- काग़ज़ पर गणित लगाने बैठते हैं तो लगता है बीजेपी को 250 और एनडीए को 300 सीटें आएंगी.
- लोगों से बात करते हैं, मिलते-जुलते हैं, तो लगता है उसे 300 और एनडीए को 350 सीटें आएंगी.
- कहीं ऐसा न हो कि चुनाव परिणाम आते-आते पता चले कि बीजेपी को 320-325 और एनडीए को 360-370 सीटें आ गईं.
ऐसा दरअसल इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि विपक्ष का कोई विश्वसनीय स्वरूप जनता के सामने उभर नहीं पा रहा है. न तो विपक्षी दलों में एकता है, न विपक्षी दलों के पास ललचाऊ नेता और नीति है.
आज देश में जैसा माहौल है, उसमें कोई पार्टी केवल घोषणापत्र के सहारे चुनाव नहीं जीत सकती. फिर भी कांग्रेस ने प्रयास किया था एक ललचाऊ घोषणापत्र पेश करने का, लेकिन देशद्रोह कानून, धारा 370, AFSPA आदि पर देश के मानस से बिल्कुल 180 डिग्री उल्टी बात करके उसने अपने ही "हाथ" से अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली.
आप मुझे निरंतर भाजपाई, मोदी-भक्त, जनसंघी इत्यादि कहते रह सकते हैं, लेकिन मैं भी इस बात को बार-बार कहने से पीछे नहीं हट सकता कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी में वो अपील नहीं है. प्रियंका गांधी की नई-नई अपील भी आंशिक रूप से केवल मीडिया में ही है, जो इस चुनाव के परिणाम के बाद समाप्त हो जाएगी.
कांग्रेस को आज नहीं तो कल नेहरू-गांधी परिवार से बाहर अपना भविष्य तलाशना ही पड़ेगा. अगर वह जबरन देश की जनता पर इस खानदान के अयोग्य और अलोकप्रिय युवक-युवतियों को थोपना चाहेगी, तो उसे जल्दी ही महसूस हो जाएगा कि 70 साल के विकासक्रम में जनता का मानस अब राजतंत्र को छोड़कर लोकतंत्र को अपनाने के लिए तैयार होता जा रहा है.
कई संकेतों से ऐसा भी लगता है कि...
- काग़ज़ पर गणित लगाने बैठते हैं तो लगता है बीजेपी को 250 और एनडीए को 300 सीटें आएंगी.
- लोगों से बात करते हैं, मिलते-जुलते हैं, तो लगता है उसे 300 और एनडीए को 350 सीटें आएंगी.
- कहीं ऐसा न हो कि चुनाव परिणाम आते-आते पता चले कि बीजेपी को 320-325 और एनडीए को 360-370 सीटें आ गईं.
ऐसा दरअसल इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि विपक्ष का कोई विश्वसनीय स्वरूप जनता के सामने उभर नहीं पा रहा है. न तो विपक्षी दलों में एकता है, न विपक्षी दलों के पास ललचाऊ नेता और नीति है.
आज देश में जैसा माहौल है, उसमें कोई पार्टी केवल घोषणापत्र के सहारे चुनाव नहीं जीत सकती. फिर भी कांग्रेस ने प्रयास किया था एक ललचाऊ घोषणापत्र पेश करने का, लेकिन देशद्रोह कानून, धारा 370, AFSPA आदि पर देश के मानस से बिल्कुल 180 डिग्री उल्टी बात करके उसने अपने ही "हाथ" से अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली.
आप मुझे निरंतर भाजपाई, मोदी-भक्त, जनसंघी इत्यादि कहते रह सकते हैं, लेकिन मैं भी इस बात को बार-बार कहने से पीछे नहीं हट सकता कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी में वो अपील नहीं है. प्रियंका गांधी की नई-नई अपील भी आंशिक रूप से केवल मीडिया में ही है, जो इस चुनाव के परिणाम के बाद समाप्त हो जाएगी.
कांग्रेस को आज नहीं तो कल नेहरू-गांधी परिवार से बाहर अपना भविष्य तलाशना ही पड़ेगा. अगर वह जबरन देश की जनता पर इस खानदान के अयोग्य और अलोकप्रिय युवक-युवतियों को थोपना चाहेगी, तो उसे जल्दी ही महसूस हो जाएगा कि 70 साल के विकासक्रम में जनता का मानस अब राजतंत्र को छोड़कर लोकतंत्र को अपनाने के लिए तैयार होता जा रहा है.
कई संकेतों से ऐसा भी लगता है कि कांग्रेस मन ही मन 2019 की लड़ाई हार चुकी है और वह 2024 के लिए तैयारी कर रही है, लेकिन 2024 की लड़ाई भी वह राहुल और प्रियंका के नेतृत्व में नहीं जीत सकती, इसे मेरे हवाले से आज ही नोट करके रख लें. इसलिए बेहतर होगा कि पार्टी, देश और लोकतंत्र के हित में 2019 का चुनाव निपटने के बाद वह यथाशीघ्र अपना नेतृत्व बदल डाले और पार्टी संभालने के लिए कुछ बेहतर नेताओं को गढ़ना शुरू कर दे.
कांग्रेस के अलावा अन्य सभी विपक्षी दल भी या तो क्षेत्र विशेष में सीमित हैं या फिर अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं. ऊपर से आज की तारीख में कांग्रेसी मोर्चे में लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल को छोड़कर कोई भी पार्टी ऐसी नहीं है, जो मौका देखकर या ज़रूरी होने पर कांग्रेस का हाथ झटककर मोदी और भाजपा के साथ नहीं जा सकती.
लेकिन इतना सब होने के बावजूद विपक्ष कोई करिश्मा कर सकता था, अगर यूपी और बिहार में उसने कोई दमदार गठबंधन बनाया होता, लेकिन यूपी में उसने कमज़ोर और बिहार में बेहद कमज़ोर गठबंधन बनाया है. आज की परिस्थितियों में मुझे नहीं लगता कि यूपी में एनडीए को 60 से कम और बिहार में 32-33 से कम सीटें आ सकती हैं. और अगर यूपी-बिहार में एनडीए ने अपना किला बचा लिया, तो यकीन मानिए कि विपक्ष मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, दिल्ली आदि राज्यों में भाजपा को दो-दो एक-एक सीटों का नुकसान पहुंचाने का सपना देखकर सत्तारूढ़ खेमे का बाल भी बांका नहीं कर सकता.
लोकतंत्र में अगाध आस्था रखने के कारण मैं हमेशा से देश में एक मज़बूत विपक्ष देखना चाहता हूं, लेकिन दुर्भाग्य कि अभी लोकतंत्र के इतने अच्छे दिन आए नहीं हैं. भाजपा और मोदी फिलहाल अदम्य और अपराजेय लगते हैं.
ये भी पढ़ें-
अनंतनाग में चुनावी मुद्दा अलगाववाद है, तो चुनाव न ही हो
कांग्रेस घोषणा पत्रों में बदलता फोकस वहां पहुंचा, जहां सोनिया गांधी का गुस्सा था!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.