कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा एक चुनावी रैली में अगली कारसेवा होने पर कृष्णभक्तों पर पुष्पवर्षा होने की बात कहने के बाद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का एक ट्वीट काफी सुर्खियों में रहा था. केशव प्रसाद मौर्य ने अपने ट्वीट में लिखा था कि 'अयोध्या-काशी में भव्य मंदिर निर्माण जारी है. मथुरा की तैयारी है.' डिप्टी सीएम मौर्य के इस ट्वीट के बाद कई तरह की अटकलें लगाई जाने लगी थीं. कयास लगाए जा रहे थे कि भाजपा एक बार फिर से उग्रता के साथ हिंदुत्व की पिच पर बैटिंग करते हुए मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि को लेकर आंदोलन के जरिये कारसेवा करने का माहौल तैयार कर सकती है. लेकिन, इन तमाम अटकलों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'दिव्य काशी, भव्य काशी' के तहत काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण कर सभी अटकलों के ध्वस्त कर दिया. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए की गई कारसेवा को किनारे रखते हुए वाराणसी में 'ध्वंस नहीं निर्माण' को अपना लक्ष्य बनाया है. अब भाजपा अपनी 'लकीर' बड़ी खींचने की रणनीति पर चल रही है.
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के आगे सबकुछ 'छिपा'
पहले श्रद्धालुओं को तंग गलियों से होते हुए करीब 2000 स्क्वायर फीट में बने काशी विश्वनाथ धाम के दर्शन मिलते थे. लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 मार्च, 2019 में काशी विश्वनाथ धाम के कायाकल्प के लिए इस प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया था. और, केवल 32 महीनों में ही बिना किसी विवाद के 900 करोड़ की लागत से बनाए गए काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के अंतर्गत काशी विश्वनाथ धाम का करीब सवा...
कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा एक चुनावी रैली में अगली कारसेवा होने पर कृष्णभक्तों पर पुष्पवर्षा होने की बात कहने के बाद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का एक ट्वीट काफी सुर्खियों में रहा था. केशव प्रसाद मौर्य ने अपने ट्वीट में लिखा था कि 'अयोध्या-काशी में भव्य मंदिर निर्माण जारी है. मथुरा की तैयारी है.' डिप्टी सीएम मौर्य के इस ट्वीट के बाद कई तरह की अटकलें लगाई जाने लगी थीं. कयास लगाए जा रहे थे कि भाजपा एक बार फिर से उग्रता के साथ हिंदुत्व की पिच पर बैटिंग करते हुए मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि को लेकर आंदोलन के जरिये कारसेवा करने का माहौल तैयार कर सकती है. लेकिन, इन तमाम अटकलों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'दिव्य काशी, भव्य काशी' के तहत काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण कर सभी अटकलों के ध्वस्त कर दिया. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए की गई कारसेवा को किनारे रखते हुए वाराणसी में 'ध्वंस नहीं निर्माण' को अपना लक्ष्य बनाया है. अब भाजपा अपनी 'लकीर' बड़ी खींचने की रणनीति पर चल रही है.
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के आगे सबकुछ 'छिपा'
पहले श्रद्धालुओं को तंग गलियों से होते हुए करीब 2000 स्क्वायर फीट में बने काशी विश्वनाथ धाम के दर्शन मिलते थे. लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 मार्च, 2019 में काशी विश्वनाथ धाम के कायाकल्प के लिए इस प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया था. और, केवल 32 महीनों में ही बिना किसी विवाद के 900 करोड़ की लागत से बनाए गए काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के अंतर्गत काशी विश्वनाथ धाम का करीब सवा पांच लाख स्क्वायर फीट तक में विस्तार किया गया है. इस प्रोजेक्ट की भव्यता में एक बाधा आने पर मुस्लिम समाज ने भी सहयोग दिया. ज्ञानवापी मस्जिद पक्ष की ओर से मस्जिद से सटी 1700 स्क्वायर फीट जमीन को काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के लिए मंदिर के नाम की गई. वहीं, मंदिर प्रशासन ने इसके एवज में मुस्लिम समाज को एक हजार स्क्वायर फीट जमीन दी. ये सारी प्रक्रिया आपसी सहमति से हुई.
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर को लेकर आजतक के यूट्यूब चैनल 'यूपी तक' की एक रिपोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज पढ़ने जा रहे कुछ मुस्लिम लोगों से बातचीत की गई. मुस्लिम समाज के इन लोगों ने विकास को लेकर तमाम सवाल खड़े किए. उनका कहना रहा कि भाजपा ने केवल काशी विश्वनाथ मंदिर के इलाके में ही विकास किया है. बाकी अन्य जगह कुछ नहीं किया गया. इन सबके बीच कलकत्ता से आने वाले नौशाद आलम ने बातचीत में कहा कि 'मंदिर को इस तरह से विशाल बनाकर मस्जिद को पूरा ढंक दिया गया है.' वैसे, नौशाद आलम की बात को आसान शब्दों में कहा जाए, तो काशी विश्वनाथ कॉरिडोर को इतना विशाल कर दिया गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद वहां होने के बावजूद भी अब लोगों की आंखों से ओझल हो चुकी है. और, इसके लिए किसी तरह का आंदोलन या कारसेवा नहीं की गई.
राम जन्मभूमि के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य जारी है. लेकिन, यहां सबसे बड़ी बात ये है कि 2014 में बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद भी भाजपा ने कभी भी राम मंदिर को लेकर अध्यादेश लाने या अन्य किसी भी उपाय के बारे में नहीं सोचा. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा पर साधु-संतों से लेकर हिंदूवादी संगठनों तक का भारी दबाव था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले ही राम मंदिर के निर्माण की राह आसान कर दी जाए. लेकिन, पीएम मोदी और भाजपा ने इस मामले में बिना कोई जल्दबाजी दिखाए, सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किया. यहां अहम बात ये रही कि इससे पहले भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को मंदिरों का कायाकल्प करने वाले हिंदूवादी नेता के तौर पर स्थापित किया. जबकि, राम मंदिर आंदोलन की वजह से भाजपा पर सांप्रदायिक पार्टी होने का टैग चिपक गया था.
अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण से इतर केदारनाथ धाम का कायाकल्प, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, चार धाम सड़क परियोजना, कश्मीर में मंदिरों का जीर्णोद्धार, विदेशों में मंदिरों का निर्माण व जीर्णोद्धार जैसे अनेक फैसलों के और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विकास केंद्रित राजनीति के जरिये भाजपा ने अपने ऊपर लगे सांप्रदायिक पार्टी के ठप्पे को एक बड़ी आबादी के सामने तुच्छ साबित कर दिया है. भाजपा लोगों के बीच ये संदेश देने में कामयाब रही है कि अपनी लकीर को बड़ा करने के लिए दूसरे की लकीर मिटाने की जरूरत नहीं है. बल्कि, सामने वाले से बड़ी लकीर खींच कर भी वही काम किया जा सकता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अब भाजपा के खिलाफ हिंदू और हिंदुत्व की चर्चा के जरिये हमलावर हैं. लेकिन, 2014 के बाद नरेंद्र मोदी और भाजपा ने 'गोलपोस्ट' ही बदल दिया है.
हिंदुत्व में अंतर्निहित है सहिष्णुता
अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के दौरान उस दौर की नरसिम्हा राव सरकार ने उपासना स्थल कानून यानी प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 बनाकर सैकड़ों धार्मिक स्थलों को बचाने की कोशिश की थी. दरअसल, विश्व हिंदू परिषद (VHP) समेत अन्य हिंदूवादी संगठनों का यही मानना रहा है कि भारत के अधिकांश हिंदू धार्मिक स्थलों को तोड़कर उनकी जगह मस्जिदें खड़ी कर दी गई थीं. 90 के दशक में विश्व हिंदू परिषद की ओर से राम जन्मभूमि के साथ ही काशी विश्वनाथ और कृष्ण जन्मभूमि के मामलों को उठाया जाना इसकी बानगी माना जा सकता है. हाल ही में भाजपा के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने शून्यकाल में मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मुद्दा उठाते हुए उपासना स्थल कानून को रद्द करने की मांग उठाई थी. हरनाथ सिंह यादव ने कहा था कि 'आश्चर्य का विषय है कि इस कानून में प्रावधान किया गया है कि इस कानून के खिलाफ कोई नागरिक अदालत में भी नहीं जा सकता है.' यहां बताना जरूरी है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट इसी साल मार्च महीने में स्वीकार कर चुकी है.
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की वैधता को परखने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार को नोटिस भेजकर उसका पक्ष मांगा था. हालांकि, मोदी सरकार की ओर से अभी तक इस मामले पर कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया है. लेकिन, पीएम नरेंद्र मोदी को सनातन संस्कृति का आधुनिक ध्वजवाहक बनाकर भाजपा ने जो धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों के कायाकल्प का वैचारिक प्रयोग धरातल पर उतार दिया है. उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि प्रतीकों के महत्व को समझते हुए लगातार आगे बढ़ रही भाजपा अब अतीत के पन्नों को फिर से नहीं खोलना चाहेगी. और, अगर ऐसा होगा भी, तो फिलहाल ये समय उसके लिए कहीं से भी उचित नहीं माना जा सकता है. वैसे भी भाजपा ने नरेंद्र मोदी की छवि को हिंदू धर्म के प्रतीकों यानी मंदिरों का उद्धार करने वाले नेता के तौर पर बना दिया है. 90 के दशक की भाजपा और पीएम मोदी के नेतृत्व में दो बार सत्ता में आ चुकी भाजपा में काफी अंतर आ चुका है.
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के तौर पर मिले मौके को हिंदुत्व के ब्रांड एंबेसेडर बन चुके नरेंद्र मोदी इतनी आसानी से जाने नहीं देंगे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भाजपा के पास सुप्रीम कोर्ट में साबित करने का मौका है कि सहिष्णुता का गुण हिंदू धर्म के साथ ही हिंदुत्व में भी अंतर्निहित है. काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के जरिये समरसता और सहिष्णुता का जो संदेश भाजपा ने दिया है, वो लोगों तक असल मायनों में सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार की ओर से दिए जाने वाले जवाब से और ज्यादा साफ हो जाएगा. नरेंद्र मोदी के जरिये भाजपा ने 'ध्वंस नहीं निर्माण' को अपना आधार बना लिया है. देखना दिलचस्प होगा कि इस मजबूत आधार पर खड़ी भाजपा को टक्कर कौन देगा?
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