युवाओं के लिए नई नौकरियां मुहैया कराना मोदी सरकार के लिए एक सिरदर्द बनी हुई है. 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रचार के दौरान उन्होंने देश में हर साल 1 करोड़ रोजगार सृजन का वादा किया था. लेकिन एक ओर जहां देश में सालाना 1 करोड़ लोग रोजगार के लिए तैयार हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ ऑटोमेशन और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस जैसी टेक्नोलॉजी कई क्षेत्रों में लोगों को रोजगार से बाहर करने को तैयार खड़ी हो गई हैं.
एक ऐसे समय में जब हमारी कुल जनसंख्या में युवाओं का वर्चस्व है तब रोजगार की कमी भाजपा के लिए 2019 के चुनावों और इस साल कई राज्यों में होने वाले चुनावों में भारी पड़ सकती है. क्योंकि रोजगार की कमी ने ग्रामीण- शहरी, जाति और धर्म से परे हर किसी को प्रभावित किया है. इसलिए इस मामले में सरकार को जल्दी ही कदम उठाने की जरुरत है.
2018-19 के बजट सेशन भाजपा के लिए ऐसे मुद्दों पर ध्यान देने के लिए एक अच्छा अवसर है. श्रम मंत्रालय के लेबर ब्यूरो द्वारा इंडस्ट्रीज सर्वे के तिमाही रिकॉर्ड के अनुसार 2015 में रोजगार के अवसर 6 सालों में निम्नतम स्तर पर पहुंच कर 1,35,000 ही था. जबकि 2014 में 4,21,000 और 2013 में 4,19,000 रोजगार प्रदान किए गए थे.
पिछले साल हुए गुजरात चुनावों में बीजेपी ने देखा कि ग्रामीण क्षेत्रों में उनके प्रति रोष का भाव है. हालांकि ग्रामीणों के रोष का कारण खेती-किसानी की बुरी हालत के कारण माना जा रहा है लेकिन रोजगार की कमी भी एक बड़ा कारक हो सकता है. ये बजट सेशन मोदी सरकार के लिए 2019 के चुनावों के पहले का आखिरी बजट सेशन है. इसलिए उम्मीद कर सकते हैं कि इस बार सरकार के बजट में उन घोषणाओं की प्रमखता रहेगी जिससे चुनावों में फायदा उठाया जा सके. एक तरफ जहां कृषि के क्षेत्र में कई घोषणाएं...
युवाओं के लिए नई नौकरियां मुहैया कराना मोदी सरकार के लिए एक सिरदर्द बनी हुई है. 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रचार के दौरान उन्होंने देश में हर साल 1 करोड़ रोजगार सृजन का वादा किया था. लेकिन एक ओर जहां देश में सालाना 1 करोड़ लोग रोजगार के लिए तैयार हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ ऑटोमेशन और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस जैसी टेक्नोलॉजी कई क्षेत्रों में लोगों को रोजगार से बाहर करने को तैयार खड़ी हो गई हैं.
एक ऐसे समय में जब हमारी कुल जनसंख्या में युवाओं का वर्चस्व है तब रोजगार की कमी भाजपा के लिए 2019 के चुनावों और इस साल कई राज्यों में होने वाले चुनावों में भारी पड़ सकती है. क्योंकि रोजगार की कमी ने ग्रामीण- शहरी, जाति और धर्म से परे हर किसी को प्रभावित किया है. इसलिए इस मामले में सरकार को जल्दी ही कदम उठाने की जरुरत है.
2018-19 के बजट सेशन भाजपा के लिए ऐसे मुद्दों पर ध्यान देने के लिए एक अच्छा अवसर है. श्रम मंत्रालय के लेबर ब्यूरो द्वारा इंडस्ट्रीज सर्वे के तिमाही रिकॉर्ड के अनुसार 2015 में रोजगार के अवसर 6 सालों में निम्नतम स्तर पर पहुंच कर 1,35,000 ही था. जबकि 2014 में 4,21,000 और 2013 में 4,19,000 रोजगार प्रदान किए गए थे.
पिछले साल हुए गुजरात चुनावों में बीजेपी ने देखा कि ग्रामीण क्षेत्रों में उनके प्रति रोष का भाव है. हालांकि ग्रामीणों के रोष का कारण खेती-किसानी की बुरी हालत के कारण माना जा रहा है लेकिन रोजगार की कमी भी एक बड़ा कारक हो सकता है. ये बजट सेशन मोदी सरकार के लिए 2019 के चुनावों के पहले का आखिरी बजट सेशन है. इसलिए उम्मीद कर सकते हैं कि इस बार सरकार के बजट में उन घोषणाओं की प्रमखता रहेगी जिससे चुनावों में फायदा उठाया जा सके. एक तरफ जहां कृषि के क्षेत्र में कई घोषणाएं हो सकती हैं और दूसरा जॉब की कमी पर भी बात हो सकती है.
इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि इस बजट में सरकार नौकरियों के मुद्दे पर बड़ी घोषणा कर सकती है. बजट में एक राष्ट्रीय रोजगार पॉलिसी की घोषणा हो सकती है. इस पॉलिसी में आर्थिक, सामाजिक और श्रम के क्षेत्र में रुपरेखा तय की जाएगी. इस पॉलिसी के जरिए सरकार कंपनियों को मदद करेगी ताकि वो ज्यादा से ज्यादा रोजगार प्रदान कर सकें साथ ही संगठित क्षेत्रों में रोजगार को बढ़ावा दिया जाएगा जिससे लोगों को न्यूनतम वेतन और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित हो सके.
अभी आलम ये है कि देश में ज्यादातर नौकरियां असंगठित क्षेत्रों में है. लेकिन सरकार इस दृश्य को उलटने के मूड में है. आज लगभग 90 प्रतिशत कामगार असंगठित क्षेत्रों से जुड़े हैं जिसमें उन्हें किसी तरह की न तो सामाजिक सुरक्षा या फिर न्यूनतम वेतन तय होगा.
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