प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने पंचवर्षीय योजनाओं वाले योजना आयोग को खत्म कर दिया था - और सत्ता के पांचवें साल में पहले पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू के पंचशील के सिद्धांत का भी अपडेटे वर्जन पेश कर दिया है. 1954 में नेहरू ने हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे के साथ पंचशील का सिद्धांत पेश किया था.
मोदी की ये चीन यात्रा, बल्कि बेहतर होगा वुहान यात्रा कहना - दोनों मुल्कों के बीच रिश्तों में ज्यादा गर्माहट और मजबूती लानी चाहिये क्योंकि दोनों ही पक्ष ऐसी ही उम्मीद जता रहे हैं. वैसे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को डोकलाम पर उनके सवाल का जवाब नहीं मिल पाया है - और शी जिनपिंग से मिलते वक्त मोदी के टेंशन में होने का अपना अहसास तो वो ट्विटर पर पहले ही साझा कर चुके हैं.
भारत-चीन के उत्तरोत्तर बदलते रिश्ते
वुहान का कार्यक्रम जरूर अनोखा रहा, लेकिन चीन दौरे को लेकर मोदी को ये कहने का मौका नहीं मिला कि इस मामले में भी वो पहले प्रधानमंत्री हैं. देखा जाय तो अरसे बाद राजीव गांधी ने 1988 में चीन जाकर 1962 से चले आ रहे तनाव के माहौल को कुछ कम किया और उसके बाद पीवीएल नरसिम्हा राव और फिर अटल बिहारी वाजपेयी ने उसे बेहतर शेप दिया. वाजपेयी के बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी अपने कार्यकाल में तीन बार चीन गये. प्रधानमंत्री मोदी का तो ये चौथा दौरा रहा - और अभी जून में शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन में गये तो पांच साल में पांच यात्राओं का रिकॉर्ड तो हो ही जाएगा.
पाकिस्तान जैसा तो नहीं लेकिन चीन के साथ भी भारत का तकरीबन वैसा ही तनावपूर्ण संबंध रहा है. दोनों के साथ रिश्तों में फर्क कुछ ऐसा है कि पाकिस्तान की ओर से अक्सर सीजफायर तोड़ कर फायरिंग होती रहती है, लेकिन चीन नेताओं के अरुणाचल प्रदेश...
प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने पंचवर्षीय योजनाओं वाले योजना आयोग को खत्म कर दिया था - और सत्ता के पांचवें साल में पहले पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू के पंचशील के सिद्धांत का भी अपडेटे वर्जन पेश कर दिया है. 1954 में नेहरू ने हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे के साथ पंचशील का सिद्धांत पेश किया था.
मोदी की ये चीन यात्रा, बल्कि बेहतर होगा वुहान यात्रा कहना - दोनों मुल्कों के बीच रिश्तों में ज्यादा गर्माहट और मजबूती लानी चाहिये क्योंकि दोनों ही पक्ष ऐसी ही उम्मीद जता रहे हैं. वैसे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को डोकलाम पर उनके सवाल का जवाब नहीं मिल पाया है - और शी जिनपिंग से मिलते वक्त मोदी के टेंशन में होने का अपना अहसास तो वो ट्विटर पर पहले ही साझा कर चुके हैं.
भारत-चीन के उत्तरोत्तर बदलते रिश्ते
वुहान का कार्यक्रम जरूर अनोखा रहा, लेकिन चीन दौरे को लेकर मोदी को ये कहने का मौका नहीं मिला कि इस मामले में भी वो पहले प्रधानमंत्री हैं. देखा जाय तो अरसे बाद राजीव गांधी ने 1988 में चीन जाकर 1962 से चले आ रहे तनाव के माहौल को कुछ कम किया और उसके बाद पीवीएल नरसिम्हा राव और फिर अटल बिहारी वाजपेयी ने उसे बेहतर शेप दिया. वाजपेयी के बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी अपने कार्यकाल में तीन बार चीन गये. प्रधानमंत्री मोदी का तो ये चौथा दौरा रहा - और अभी जून में शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन में गये तो पांच साल में पांच यात्राओं का रिकॉर्ड तो हो ही जाएगा.
पाकिस्तान जैसा तो नहीं लेकिन चीन के साथ भी भारत का तकरीबन वैसा ही तनावपूर्ण संबंध रहा है. दोनों के साथ रिश्तों में फर्क कुछ ऐसा है कि पाकिस्तान की ओर से अक्सर सीजफायर तोड़ कर फायरिंग होती रहती है, लेकिन चीन नेताओं के अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर आपत्ति जताता रहता है. भले वो प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति हों या फिर किसी राजदूत या दलाई लामा के जाने का प्रोग्राम क्यों न हो. हां, चार दशक से जारी तनाव में गोली कभी नहीं चली. जब प्रधानमंत्री मोदी ने ये बात याद दिलाई तो पहली बार चीन खिलखिला उठा था.
ये दौर भी कुछ ऐसा है कि चीन की चौतरफा अहमियत बढ़ी है. जिस तरह मनमोहन सरकार के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका के साथ रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिश की, चीन के साथ भी काफी कुछ वैसा ही प्रयास चल रहा है. चीन की अहमियत तो इस कदर बढ़ी है कि उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के साथ रिश्तों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप को भी शी जिनपिंग का रोल महत्वपूर्ण लगने लगा है. साथ ही, शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच कई मुद्दों पर बनती सहमति, एशिया ही नहीं बल्कि उससे आगे के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भी कहीं न कहीं बैलेंसिंग फैक्टर के रूप में नजर आती है.
ऐसे हालात में प्रधानमंत्री मोदी भारत की भी अहम भूमिका तलाश रहे हैं - और जिस हिसाब से चीन ने मोदी का स्वागत सत्कार किया है, प्रोटोकॉल की भी परवाह नहीं की है, उसमें रिश्तों की मजबूती पर शक करना कहीं से भी बुद्धिमानी नहीं लगती. वैसे डोकलाम पर जवाब मांगना तो फिलहाल राहुल गांधी का कुदरती हक है.
नेहरू बनाम मोदी के पंचशील सिद्धांत
1962 के चीन युद्ध से करीब आठ साल पहले पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू ने दोनों मुल्कों के बीच बेहतर संबंधों को कायम रखने के लिए पांच सिद्धांतों की बात कही थी. ये पंचशील के सिद्धांत के नाम से जाने जाते रहे हैं. नेहरू के पंचशील सिद्धांत हैं - एक दूसरे की संप्रभुता का सम्मान, एक दूसरे पर हमले न करना, एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल न देना, साझा फायदे के लिए बराबरी और सहयोग और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में यकीन रखना.
वुहान में शी जिनपिंग के साथ मुलाकात में मोदी ने पंचशील के सिद्धांत का अपडेटेड वर्जन लांच किया. मोदी का ये 5-प्वाइंट एजेंडा है - समान दृष्टिकोण, बेहतर संवाद, मजबूत रिश्ता, साझा विचार और साझा समाधान.
मोदी के एजेंडे में आक्रमण वाली बात गायब है क्योंकि वैसे भी जिन बातों के लिए दोनों देश एक दूसरे के करीब आ रहे हैं उसमें कारोबारी पक्ष की भूमिका ज्यादा लगती है. कारोबार इतना दमदार होता है कि किसी भी तरह के वॉर पर भारी पड़ता है.
प्रधानमंत्री ने चीनी राष्ट्रपति को भारत में चरखा चलवाया और झूला झुलाया था शी जिनपिंग मोदी के साथ बोटिंग की और चाय की चुस्कियों के साथ दुनियावी और आपसी मसलों पर चर्चा की. खिलाने पिलाने से लेकर मोदी के स्वागत में चीनी कलाकारों में बेहतरीन बॉलीवुड नंबर भी परफॉर्म किया - 'तू है वही दिल ने जिसे अपना कहा...'
जाहिर ये गीत भी काफी सोच समझ कर चुना गया होगा. सुननेवालों के साथ साथ गाने बजाने वालों को गीत का मतलब और भाव निश्चित रूप से महसूस हो रहे होंगे. संगीत के साथ भाव न जुड़ा हो तो वो यूं ही बेसुरा हो जाता है. बाकी बातें जैसी भी हों मोदी की वुहान यात्रा में भाव पक्ष की प्रधानता जरूर दिखी.
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