पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने 'द कपिल शर्मा शो' नहीं छोड़ने का फैसला किया है. तो क्या जनता ने उन्हें अपनी सेवा करने के लिए चुनकर गलती की है? यहां सवाल उठता है कि फिल्मी कलाकारों और खिलाड़ियों को राजनीति में संजीदा क्यों नहीं समझा जाता, तो इसका जवाब ऐसे ही माननीय हैं.
ये लोग अपनी दूसरी विधाओं और टेलेंट के दम पर राजनीति में आते हैं और अपना पूरा कार्यकाल ऐसे ही बिता देते हैं. जनता ठगा सा महसूस करती है और इसका खामियाज़ा जनता के साथ-साथ उनकी पार्टी भी भुगतती है. लोकतंत्र में जनता अपने वोटों के माध्यम से अपने प्रतिनिधि चुनती है. जनता को रिझाने के लिए तमाम दलों के नेता लोकलुभावन आयोजन करते हैं, कुछ फील्ड में जाकर जनता के बीच काम करते हैं लेकिन फिल्मी कलाकारों और खिलाड़ियों के अपने फैन होते हैं जो उनके लिए वोट बैंक में तब्दील हो जाते हैं. जनता उन्हें संसद और विधानसभाओं में तो पहुंचा देती है लेकिन उनकी उम्मीदें टूट जाती हैं. बहुत से कलाकार और खिलाड़ियों ने राजनीति में लंबी पारी खेली है लेकिन एक गलत उदाहरण भी ये साबित करने के लिए काफी है कि राजनीति इनके बस की बात नहीं है.
अपने कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री ने कानूनी राय ली और उन्हें क्लीन चिट दे दी. लेकिन क्या ये सिद्धू की नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं है कि वो फुल टाइम राजनीति करें. राजनीति कोई शौक नहीं है, कम से कम उस समय तो नहीं जब आपको किसी विभाग की ज़िम्मेदारी दी गई हो. ये विभाग जनता की सेवा के लिए बनाए गए हैं. और यहां आपको रीटेक करने का मौका नहीं मिलेगा. ये कोई कॉमेडी शो भी नहीं है कि 'ठोको ताली' और काम हो गया.
सिद्धू पहले भी सांसद रहे हैं लेकिन उनके नाम पर ऐसी कोई उपलब्धि नहीं जिसके लिए उन्हें याद किया जा सके. हां, अब उन्हें ये मौका मिला है जिसके लिए उन्हें यकीनन...
पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने 'द कपिल शर्मा शो' नहीं छोड़ने का फैसला किया है. तो क्या जनता ने उन्हें अपनी सेवा करने के लिए चुनकर गलती की है? यहां सवाल उठता है कि फिल्मी कलाकारों और खिलाड़ियों को राजनीति में संजीदा क्यों नहीं समझा जाता, तो इसका जवाब ऐसे ही माननीय हैं.
ये लोग अपनी दूसरी विधाओं और टेलेंट के दम पर राजनीति में आते हैं और अपना पूरा कार्यकाल ऐसे ही बिता देते हैं. जनता ठगा सा महसूस करती है और इसका खामियाज़ा जनता के साथ-साथ उनकी पार्टी भी भुगतती है. लोकतंत्र में जनता अपने वोटों के माध्यम से अपने प्रतिनिधि चुनती है. जनता को रिझाने के लिए तमाम दलों के नेता लोकलुभावन आयोजन करते हैं, कुछ फील्ड में जाकर जनता के बीच काम करते हैं लेकिन फिल्मी कलाकारों और खिलाड़ियों के अपने फैन होते हैं जो उनके लिए वोट बैंक में तब्दील हो जाते हैं. जनता उन्हें संसद और विधानसभाओं में तो पहुंचा देती है लेकिन उनकी उम्मीदें टूट जाती हैं. बहुत से कलाकार और खिलाड़ियों ने राजनीति में लंबी पारी खेली है लेकिन एक गलत उदाहरण भी ये साबित करने के लिए काफी है कि राजनीति इनके बस की बात नहीं है.
अपने कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री ने कानूनी राय ली और उन्हें क्लीन चिट दे दी. लेकिन क्या ये सिद्धू की नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं है कि वो फुल टाइम राजनीति करें. राजनीति कोई शौक नहीं है, कम से कम उस समय तो नहीं जब आपको किसी विभाग की ज़िम्मेदारी दी गई हो. ये विभाग जनता की सेवा के लिए बनाए गए हैं. और यहां आपको रीटेक करने का मौका नहीं मिलेगा. ये कोई कॉमेडी शो भी नहीं है कि 'ठोको ताली' और काम हो गया.
सिद्धू पहले भी सांसद रहे हैं लेकिन उनके नाम पर ऐसी कोई उपलब्धि नहीं जिसके लिए उन्हें याद किया जा सके. हां, अब उन्हें ये मौका मिला है जिसके लिए उन्हें यकीनन कॉमेडी शो का मोह छोड़ना होगा.
जनता और राजनीतिक दलों को भी ये बात समझनी होगी कि राजनीति देश सेवा का माध्यम है और ये काम पार्ट टाइम नहीं किया जा सकता. ये एक पूर्णकालिक कार्य है जिसके लिए समर्पित लोगों की आवश्यकता होती है. पंजाब की जनता को पूर्णकालिक मंत्री चाहिये और ये बात यदि मंत्रीजी नहीं समझते हैं तो कम से कम मुख्यमंत्री जी को तो समझ ही लेनी चाहिए. यदि उनसे पहले जनता ने समझ लिया तो यकीन मानिये सत्ता उनकी पार्टी के लिए दूर की कौड़ी ही रह जाएगी.
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