नवजोत सिंह सिद्धू एक बार फिर ग़लत कारणों से सुर्ख़ियों में है. जैसे तेवर भाजपा में रहते समय सिद्धू ने अकाली दल के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ दिखाए थे कुछ वैसे ही तेवर आजकल वर्तमान मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ दिखा रहे है. पिछले 10 महीनों में तीन बार ऐसे मौके आए हैं जब नवजोत सिंह सिद्धू की वजह से प्रदेश कांग्रेस और पंजाब सरकार को असुविधाजनक स्थिति का सामना करना पड़ा है.
अमृतसर, जालंधर व पटियाला के मेयर चुनने के लिए सिद्धू की राय नहीं लिए जाने के मुद्दे पर उन्होंने अपनी नाराज़गी सार्वजनिक कर दी. सिद्धू ने अपने विशेष अंदाज़ में कहा, 'सत्य प्रताड़ित हो सकता है, पराजित नहीं हो सकता, सच की राह पर हूं, फूल हों कांटे हों, मुझे कोई परवाह नहीं होती।' ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि किसी मंत्री ने अपनी ही राज्य सरकार और पार्टी की प्रदेश इकाई के खिलाफ जंग छेड़ दी हो.
सिद्धू की नाराज़गी प्रदेश सरकार बनने के समय से ही शुरू हो गई थी. सिद्धू ने चुनाव के समय वादा किया था कि सरकार बनने पर केबल माफ़िया पर नकेल कसी जाएगी. सरकार बनने के बाद अमरिंदर सिंह ने इस विषय पर कोई ख़ास करवाई नहीं की, जिसके कारण सिद्धू और मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह में तनाव उत्पन्न हो गया था. इस मुद्दे को पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने जैसे तैसे सुलझाया था.अपने मंत्रालय में उपलब्ध अधिकारियों से भी नवजोत सिंह सिद्धू खुश नहीं थे और उन्होंने उनका भी तबादला करवाया.
हालत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस प्रदेश इकाई फिर से सोच में पड़ गई है कि 2019 में सिद्धू की पार्टी में क्या भूमिका होगी? राजनीतिक विश्लेषकों का आंकलन है कि नवजोत सिंह सिद्धू को कांग्रेस की विचारधारा से कोई ख़ास...
नवजोत सिंह सिद्धू एक बार फिर ग़लत कारणों से सुर्ख़ियों में है. जैसे तेवर भाजपा में रहते समय सिद्धू ने अकाली दल के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ दिखाए थे कुछ वैसे ही तेवर आजकल वर्तमान मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ दिखा रहे है. पिछले 10 महीनों में तीन बार ऐसे मौके आए हैं जब नवजोत सिंह सिद्धू की वजह से प्रदेश कांग्रेस और पंजाब सरकार को असुविधाजनक स्थिति का सामना करना पड़ा है.
अमृतसर, जालंधर व पटियाला के मेयर चुनने के लिए सिद्धू की राय नहीं लिए जाने के मुद्दे पर उन्होंने अपनी नाराज़गी सार्वजनिक कर दी. सिद्धू ने अपने विशेष अंदाज़ में कहा, 'सत्य प्रताड़ित हो सकता है, पराजित नहीं हो सकता, सच की राह पर हूं, फूल हों कांटे हों, मुझे कोई परवाह नहीं होती।' ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि किसी मंत्री ने अपनी ही राज्य सरकार और पार्टी की प्रदेश इकाई के खिलाफ जंग छेड़ दी हो.
सिद्धू की नाराज़गी प्रदेश सरकार बनने के समय से ही शुरू हो गई थी. सिद्धू ने चुनाव के समय वादा किया था कि सरकार बनने पर केबल माफ़िया पर नकेल कसी जाएगी. सरकार बनने के बाद अमरिंदर सिंह ने इस विषय पर कोई ख़ास करवाई नहीं की, जिसके कारण सिद्धू और मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह में तनाव उत्पन्न हो गया था. इस मुद्दे को पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने जैसे तैसे सुलझाया था.अपने मंत्रालय में उपलब्ध अधिकारियों से भी नवजोत सिंह सिद्धू खुश नहीं थे और उन्होंने उनका भी तबादला करवाया.
हालत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस प्रदेश इकाई फिर से सोच में पड़ गई है कि 2019 में सिद्धू की पार्टी में क्या भूमिका होगी? राजनीतिक विश्लेषकों का आंकलन है कि नवजोत सिंह सिद्धू को कांग्रेस की विचारधारा से कोई ख़ास मतलब नहीं है. मुख्यमंत्री की चाहत नवजोत सिंह सिद्धू को भाजपा से कांग्रेस में ले आई थी. जब सिद्धू को नज़र आया कि कांग्रेस अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री बनाएगी तो वह उप मुख्यमंत्री के लिए प्रयास करने लगे. उप मुख्यमंत्री पद भी नहीं मिला तो सिद्धू अपनी नई-नई मांगें अमरिंदर के सामने रखने लगे.
सिद्धू जब भाजपा में थे तब ऐसा लगता था कि वह तर्क और नीति के आधार पर अकाली दल के नेताओं का विरोध कर रहे हैं परंतु वर्तमान सरकार में उनके कृत्य यह साफ-साफ दर्शाते हैं कि वह भी एक अवसरवादी नेता हैं. ऐसा नेता जिसकी कोई विचारधारा नहीं है, ऐसा नेता जो अपनी मांग को मनवाने के लिए पार्टी और सरकार का सार्वजनिक मंच पर मज़ाक बनवा सकता है.
प्रतीत होता है कि भविष्य में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह नवजोत पर विश्वास नहीं करेंगे. यदि इसी प्रकार नवजोत सिंह सिद्धू, अमरिंदर पर प्रहार करते रहे तो प्रदेश कांग्रेस को 2019 चुनावों में, ख़ासा नुकसान होना निश्चित है.
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