शरद पवार (Sharad Pawar) जब कोरेगांव-भीमा जांच आयोग के सामने पेश होंगे, राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई हो रही होगी. सुप्रीम कोर्ट में ऐसी याचिकाओं पर 5-6 मई को सुनवाई करने होने वाली है.
ये दोनों चीजें बिलकुल अलग अलग हैं, लेकिन कॉमन बात ये है कि एनजीओ कॉमन कॉज और अरुण शौरी ने IPC की धारा 124 A के खिलाफ आवाज उठायी है - और शरद पवार भी इसके विरोध में खड़े हो गये हैं. सुप्रीम कोर्ट पहुंचे सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण चाहते हैं कि अदालत 1962 के उस अपने फैसले पर भी विचार करे, जिसमें इस कानून की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था.
विरोध करने वाले चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस कानूनी प्रावधान को असंवैधानिक करार दे. आरोप है कि लोगों के खिलाफ सरकारों की ओर से इस कानून का दुरुपयोग बढ़ रहा है. असल में शरद पवार ने कोरेगांव-भीमा आयोग को इस सिलसिले में हलफनामा दे रखा है.
आयोग को दिये गये हलफनामे में शरद पवार ने कहा है, या तो राजद्रोह से जुड़ी आईपीसी की धारा 124 ए को रद्द किया जाना चाहिये, या फिर संशोधनों के जरिये दुरुपयोग रोका जाना चाहिये. एनसीपी नेता का कहना है, राजद्रोह से संबंधित आईपीसी की ये धारा ब्रिटिश शासकों ने अपने खिलाफ विद्रोह को काबू में करने और स्वतंत्रता के लिए आंदोलनों को दबाने के लिए 1870 में लागू की थी.
महाराष्ट्र में अमरावती से सांसद नवनीत राणा (Navneet Rana) और उनके पति रवि राणा के खिलाफ जो केस दर्ज किये गये हैं, IPC की धारा 124 A भी उनमें से एक है. देखा जाये तो शरद पवार ने काफी पहले ही हलफनामा दाखिल किया था, लेकिन नवनीत राणा केस की वजह से ये मामला ज्यादा प्रासंगिक हो गया है.
शरद पवार अगर पहले से ही आईपीसी की इस धारा के खिलाफ हैं तो मान कर चलना चाहिये कि नवनीत राणा केस में भी इसका इस्तेमाल एनसीपी नेता को बिलकुल भी सही नहीं लगा होगा. आपको याद होगा सितंबर, 2020 में एक्टर कंगना रनौत के खिलाफ बीएमसी के एक्शन को भी शरद पवार ने एक गैर-जरूरी एक्शन करार दिया था -...
शरद पवार (Sharad Pawar) जब कोरेगांव-भीमा जांच आयोग के सामने पेश होंगे, राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई हो रही होगी. सुप्रीम कोर्ट में ऐसी याचिकाओं पर 5-6 मई को सुनवाई करने होने वाली है.
ये दोनों चीजें बिलकुल अलग अलग हैं, लेकिन कॉमन बात ये है कि एनजीओ कॉमन कॉज और अरुण शौरी ने IPC की धारा 124 A के खिलाफ आवाज उठायी है - और शरद पवार भी इसके विरोध में खड़े हो गये हैं. सुप्रीम कोर्ट पहुंचे सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण चाहते हैं कि अदालत 1962 के उस अपने फैसले पर भी विचार करे, जिसमें इस कानून की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था.
विरोध करने वाले चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस कानूनी प्रावधान को असंवैधानिक करार दे. आरोप है कि लोगों के खिलाफ सरकारों की ओर से इस कानून का दुरुपयोग बढ़ रहा है. असल में शरद पवार ने कोरेगांव-भीमा आयोग को इस सिलसिले में हलफनामा दे रखा है.
आयोग को दिये गये हलफनामे में शरद पवार ने कहा है, या तो राजद्रोह से जुड़ी आईपीसी की धारा 124 ए को रद्द किया जाना चाहिये, या फिर संशोधनों के जरिये दुरुपयोग रोका जाना चाहिये. एनसीपी नेता का कहना है, राजद्रोह से संबंधित आईपीसी की ये धारा ब्रिटिश शासकों ने अपने खिलाफ विद्रोह को काबू में करने और स्वतंत्रता के लिए आंदोलनों को दबाने के लिए 1870 में लागू की थी.
महाराष्ट्र में अमरावती से सांसद नवनीत राणा (Navneet Rana) और उनके पति रवि राणा के खिलाफ जो केस दर्ज किये गये हैं, IPC की धारा 124 A भी उनमें से एक है. देखा जाये तो शरद पवार ने काफी पहले ही हलफनामा दाखिल किया था, लेकिन नवनीत राणा केस की वजह से ये मामला ज्यादा प्रासंगिक हो गया है.
शरद पवार अगर पहले से ही आईपीसी की इस धारा के खिलाफ हैं तो मान कर चलना चाहिये कि नवनीत राणा केस में भी इसका इस्तेमाल एनसीपी नेता को बिलकुल भी सही नहीं लगा होगा. आपको याद होगा सितंबर, 2020 में एक्टर कंगना रनौत के खिलाफ बीएमसी के एक्शन को भी शरद पवार ने एक गैर-जरूरी एक्शन करार दिया था - जाहिर है निशाने पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) ही रहे होंगे.
राणा और रनौत के खिलाफ एक्शन गैर-जरूरी
मातोश्री पर हनुमान चालीसा का जाप करने की घोषणा को लेकर नवनीत राणा की गिरफ्तारी और राजद्रोह (Sedition Charges) का इल्जाम बाकियों को भले ही चौंकाने वाला लगता हो, लेकिन शिवसेना की तरफ से उसे बार बार सही ठहराने की कोशिश की जा रही है.
पहले तो शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत, नवनीत राणा के अनुसूचित जाति से होने के दावे को ही खारिज कर रहे थे - और थाने में दुर्व्यवहार को लेकर पुलिस कमिश्नर के वीडियो सबूत पेश करने के बाद मुंबई पुलिस की भी तारीफ कर रहे थे.
अब मुंबई पुलिस के धारा 124 ए के तहत केस दर्ज करने को सपोर्ट करने के लिए संजय राउत, युसुफ लकड़ावाला से तार जोड़ कर पेश कर रहे हैं. इसे लेकर प्रवर्तन निदेशालय से भी जांच की मांग कर रहे हैं क्योंकि ईडी ने ही उसे मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ्तार किया था और जेल में उसकी मौत हो गयी थी. लकड़ावाला के तार दाऊद इब्राहिम से जोड़ते हुए संजय राउत नवनीत राणा को कठघरे में खड़ा कर राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला बता रहे हैं.
लेकिन लगता नहीं कि महाराष्ट्र सरकार में प्रमुख गठबंधन पार्टनर एनसीपी नेता शरद पवार भी संजय राउत के दावों से इत्तेफाक रखते होंगे. अगर धारा 14 ए पर पहले से ही शरद पवार का मानना हो कि सरकारें लोगों की आवाज दबाने के लिए इसका दुरुपयोग कर रही हैं, तो जाहिर है सांसद नवनीत राणा और विधायक रवि राणा के मामले में भी यही राय होगी.
कंगना रनौत के दफ्तर में बीएमसी टीम की तरफ से हुई तोड़ फोड़ के बाद शरद पवार ने कहा था, 'मुंबई में कई ऐसी अवैध इमारतें हैं... ऐसे में बीएमसी अधिकारियों ने ऐसा निर्णय क्यों लिया - ये देखने की जरूरत है... बीएमसी के एक्शन ने गैरजरूरी तौर पर लोगों को बोलने का मौका दे दिया.'
क्या केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ्तारी को लेकर भी शरद पवार का ऐसा ही नजरिया रहा होगा? क्योंकि नारायण राणे वैसे ही बयान को लेकर गिरफ्तार किये गये थे, जैसा बयान खुद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने दिया था.
'थप्पड़ मारने' और 'चप्पल से मारने' में कोई फर्क है क्या? मई, 2018 में उद्धव ठाकरे ने पालघर में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चप्पल से मारने की बात कही थी. उद्धव ठाकरे उस घटना से नाराज थे जब शिवाजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने समय भी योगी ने खड़ाऊं पहन रखे थे. वैसे ही 15 अगस्त भूल जाने को लेकर नारायण राणे ने उद्धव ठाकरे को थप्पड़ मारने की बात कह दी थी और उसी वजह से मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार किया था.
गैर-जरूरी एक्शन की अलग मुश्किलें हैं
उद्धव ठाकरे सरकार को भी रिमोट कंट्रोल वाली सरकार के तौर पर देखा जाता है. कहते हैं कि उद्धव ठाकरे सरकार का रिमोट कंट्रोल शरद पवार के पास ही रहता है - और ये भी सुना गया था कि शरद पवार ने ही उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनने की सलाह दी थी.
लेकिन बार बार उद्धव ठाकरे सरकार के ऐसे फैसले जो शरद पवार को पसंद न आते हों, नयी मुश्किलें नहीं खड़ी करेंगे?
रैलियों के जरिये शक्ति प्रदर्शन: 30 अप्रैल को पुणे में गठबंधन सरकार की संयुक्त रैली होने जा रही है. पुणे के अलका टाकीज चौक पर होने वाली इस रैली में बतौर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे, एनसीपी नेता शरद पवार और महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले के अलावा गठबंधन सरकार के कई मंत्री और नेता शामिल हो रहे हैं.
गठबंधन नेताओं की रैली के अगले ही दिन 1 मई को औरंगाबाद में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नेता राज ठाकरे भी रैली करने जा रहे हैं - जाहिर है राज ठाकरे के 3 मई तक मस्जिदों से लाउडस्पीकर बंद कराने के अल्टीमेटम के बीच हो रही रैलियां दोनों पक्षों के लिए शक्ति प्रदर्शन होने जा रही हैं.
राज ठाकरे की तरफ से 3 मई वाले अल्टीमेटम के अलावा कोई नया ऐलान तो नहीं किया गया है, लेकिन बीच बीच में ताने जरूर मार रहे हैं. लाउडस्पीकर के खिलाफ योगी आदित्यनाथ सरकार के एक्शन के बाद राज ठाकरे का कहना रहा कि यूपी में 'योगी सरकार' है, लेकिन महाराष्ट्र में तो 'भोगी सरकार' है.
नवनीत राणा के खिलाफ मुंबई पुलिस के एक्शन से उद्धव ठाकरे ने अपनी तरफ से राज ठाकरे को भी मैसेज देने की कोशिश तो की ही है. नवनीत राणा के मातोश्री पर हनुमान चालीसा पढ़ने को लेकर कहा भी था, ...अगर दादागिरी के साथ आ रहे हैं तो शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे ने हिंदुत्व के पाठ में हमें ये भी सिखाया है कि दादागिरी कैसे निकाली जाती है.’
महाराष्ट्र सरकार में गृह मंत्रालय एनसीपी के हिस्से में है - और गृह मंत्री दिलीप वलसे पाटिल गिरफ्तारी को मीडिया के सामने आकर सही भी ठहराये थे. बल्कि ये समझाने की कोशिश की थी कि पुलिस बगैर किसी दबाव के काम कर रही है. ऐसा लगे भी, इसलिए ये भी बताये थे कि बीजेपी नेता किरीट सोमैया की कार पर हुए हमले की भी जांच की जा रही है.
कुछ ही दिन पहले संजय राउत ने किरीट सोमैया के खिलाफ शिकायतों की जांच न कराये जाने को लेकर मुहिम भी चलायी थी. मुहिम भी ऐसी कि शिवसेना कार्यकर्ताओं की तरफ से बयानबाजी होने लगी थी कि अगर एनसीपी नेता होने के चलते दिलीप वलसे पाटिल जांच कराने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं तो उद्धव ठाकरे को गृह मंत्रालय अपने हाथ में ले लेना चाहिये. लेकिन तभी दिलीप वलसे पाटिल ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के साथ बैठक भी की और संजय राउत को भी आश्वस्त किया कि मामले को ध्यान से देखा जाएगा.
ये मामला एक तरीके से विरोधियों के साथ बदले की कार्रवाई के लिए दबाव बनाने जैसा ही रहा. शिवसेना की मुहिम के पीछे समझाइश ये रही कि केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई को काउंटर करने के लिए मुंबई पुलिस को एक्शन मोड में आना होगा. मतलब, जब तक ऐसे लड़ाई नहीं लड़ी जाएगी मामला तो बराबरी पर छूटने से रहा.
डैमेज के हिसाब से देखा जाये तो शिवसेना या कांग्रेस से ज्यादा नुकसान तो शरद पवार को हुआ है. एनसीपी के दो-दो सीनियर नेता अनिल देशमुख और नवाब मलिक को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है, संजय राउत या उद्धव ठाकरे के रिश्तेदार की तो संपत्ति ही सीज हुई है.
गठबंधन की संयुक्त रैली, दरअसल, विरोध में खड़ उन सभी के खिलाफ है जिनके बारे में ये धारणा है कि उनको पीछे से सत्ता की प्यासी बीजेपी का सपोर्ट मिल रहा है. निश्चित तौर पर रैली के जरिये शरद पवार, उद्धव ठाकरे को लोगों के बीच पहुंच कर नैतिक समर्थन देने की कोशिश कर रहे हैं - लेकिन अगर शरद पवार के मन का शक यकीन में बदलने लगा कि उद्धव ठाकरे सरकार आदतन गैर-जरूरी एक्शन लेकर मुसीबतें मोल ले रही है तो काफी मुश्किल होगी.
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