नवाब मलिक के केस और गिरफ्तारी (Nawab Malik Arrest) के तरीके से महाराष्ट्र सरकार में काफी हलचल है - और महाविकास आघाड़ी सरकार के मंत्रियों, सत्ता पक्ष के विधायकों और नेताओं का मंत्रालय के पास गांधी प्रतिमा पर धरना और प्रदर्शन मामले की गंभीरता का साफ तौर पर संकेत दे रहा है. विरोध प्रदर्शन के दौरान गठबंधन साथियों ने एक सुर में ऐलान किया कि नवाब मलिक कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफा नहीं देंगे.
प्रदर्शन शुरू होते ही डिप्टी सीएम अजित पवार, एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटील और कांग्रेस के मंत्री बालासाहब थोरात, अशोक चव्हाण सहित तमाम लोग मौके पर पहुंच गये, लेकिन जब शिवसेना के मंत्री नजर नहीं आये तो सवाल खड़े होने लगे. जब शिवसेना के सीनियर नेता सुभाष देसाई पहुंचे तब जाकर मामला साफ हुआ. शिवसेना की तरफ से बताया गया कि कुछ मंत्री यूपी और कुछ कोंकण के दौरे पर हैं, लिहाजा वे प्रदर्शन में शामिल नहीं हो पाये.
बीजेपी इस बार ज्यादा ही हमलावर है. महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटील का कहना है कि अगर नवाब मलिक का इस्तीफा नहीं होता तो उनकी पार्टी भी विरोध प्रदर्शन करेगी.
बीजेपी और महाराष्ट्र में सत्ताधारी गठबंधन के नेता नवाब मलिक केस को अपने अपने तरीके से पेश कर रहे हैं. बीजेपी जहां नवाब मलिक के अंडरवर्ल्ड से रिश्ते और मुंबई धमाकों से जोड़ कर पेश कर रही है, सत्ताधारी गठबंधन के नेता गिरफ्तारी को राजनीति से प्रेरित बता रहे हैं - और यही वजह है कि शरद पवार (Sharad Pawar) और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) के बीच अनिल देशमुख की तरह नवाब मलिक से इस्तीफा न लेने पर सहमति बनी है.
एनसीपी नेता छगह भुजबल का साफ तौर पर कहना है कि नवाब मलिक का इस्तीफा नहीं होने जा रहा है. लगे हाथ छगन भुजबल दलील भी देते हैं, जब केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ्तारी हुई तो बीजेपी ने भी उनका इस्तीफा नहीं दिलवाया था. साथ में एक सदाबहार बहाना तो है ही - अभी आरोप सिद्ध कहां हुए हैं?
नवाब मलिक के इस्तीफा न देने से क्या...
नवाब मलिक के केस और गिरफ्तारी (Nawab Malik Arrest) के तरीके से महाराष्ट्र सरकार में काफी हलचल है - और महाविकास आघाड़ी सरकार के मंत्रियों, सत्ता पक्ष के विधायकों और नेताओं का मंत्रालय के पास गांधी प्रतिमा पर धरना और प्रदर्शन मामले की गंभीरता का साफ तौर पर संकेत दे रहा है. विरोध प्रदर्शन के दौरान गठबंधन साथियों ने एक सुर में ऐलान किया कि नवाब मलिक कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफा नहीं देंगे.
प्रदर्शन शुरू होते ही डिप्टी सीएम अजित पवार, एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटील और कांग्रेस के मंत्री बालासाहब थोरात, अशोक चव्हाण सहित तमाम लोग मौके पर पहुंच गये, लेकिन जब शिवसेना के मंत्री नजर नहीं आये तो सवाल खड़े होने लगे. जब शिवसेना के सीनियर नेता सुभाष देसाई पहुंचे तब जाकर मामला साफ हुआ. शिवसेना की तरफ से बताया गया कि कुछ मंत्री यूपी और कुछ कोंकण के दौरे पर हैं, लिहाजा वे प्रदर्शन में शामिल नहीं हो पाये.
बीजेपी इस बार ज्यादा ही हमलावर है. महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटील का कहना है कि अगर नवाब मलिक का इस्तीफा नहीं होता तो उनकी पार्टी भी विरोध प्रदर्शन करेगी.
बीजेपी और महाराष्ट्र में सत्ताधारी गठबंधन के नेता नवाब मलिक केस को अपने अपने तरीके से पेश कर रहे हैं. बीजेपी जहां नवाब मलिक के अंडरवर्ल्ड से रिश्ते और मुंबई धमाकों से जोड़ कर पेश कर रही है, सत्ताधारी गठबंधन के नेता गिरफ्तारी को राजनीति से प्रेरित बता रहे हैं - और यही वजह है कि शरद पवार (Sharad Pawar) और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) के बीच अनिल देशमुख की तरह नवाब मलिक से इस्तीफा न लेने पर सहमति बनी है.
एनसीपी नेता छगह भुजबल का साफ तौर पर कहना है कि नवाब मलिक का इस्तीफा नहीं होने जा रहा है. लगे हाथ छगन भुजबल दलील भी देते हैं, जब केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ्तारी हुई तो बीजेपी ने भी उनका इस्तीफा नहीं दिलवाया था. साथ में एक सदाबहार बहाना तो है ही - अभी आरोप सिद्ध कहां हुए हैं?
नवाब मलिक के इस्तीफा न देने से क्या होगा?
बीजेपी शुरू से ही उद्धव ठाकरे सरकार पर सीधे हमले से बचती रही है. बीजेपी के बहुत ही आक्रामक अंदाज में भी संकोच का प्रभाव देखा गया है. ये सब शायद इसलिए भी कि बीजेपी मराठा लोगों के बीच ये मैसेज नहीं जाने देना चाहती कि वो मराठी मानुष की राजनीति करने वालों की सरकार को गिराने की कोशिश कर रही है.
चाहे वो कंगना रनौत का मामला हो, चाहे केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ्तारी का - बीजेपी का हर हर नेता अलग अलग तरीके से रिएक्ट करता है. नारायण राणे केस में देवेंद्र फडणवीस के हर बयान में ये ख्याल जरूर रहता था कि कहीं वो उद्धव ठाकरे पर उनकी टिप्पणी को सही न ठहरा रहे हो, इसलिए खुल कर हमला सिर्फ जेपी नड्डा की तरफ से ही किया गया.
अरसा बाद महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को ऐसा मौका मिला है जिस पर वो खुल कर और तेज प्रहार कर रहे हैं. अगर उद्धव सरकार के दो मंत्रियों के केस में फर्क देखें तो फडणवीस इस बार ज्यादा ही आक्रामक हो चले हैं.
मराठी भाषा में लिखे अपने ट्वीट में देवेंद्र फडणवीस पूछ रहे हैं, 'क्या वजह थी कि महाराष्ट्र सरकार के मंत्री को मुंबई ब्लास्ट के अभियुक्त के साथ डील करनी पड़ी? ये बहुत ही गंभीर मामला है... हो सकता है कि जिन लोगों ने मुंबई में बम ब्लास्ट किये, सौदे की रकम उनको भी मिली हो!'
महाराष्ट्र सरकार में गृह मंत्री रहे अनिल देशमुख का मामला थोड़ा अलग था. सचिन वाजे की गिरफ्तारी के बाद परमबीर सिंह की '100 करोड़ की वसूली' वाली चिट्ठी ने एनसीपी नेतृत्व को बैकफुट पर लाया जरूर था, लेकिन हैंडल करना इतना मुश्किल नहीं था. अनिल देशमुख के मामले में तो शरद पवार भी शुरू में इस्तीफे के पक्ष में नहीं थे, लेकिन नवाब मलिक का मामला प्रतिष्ठा से जुड़ने जैसा हो चला - और उद्धव ठाकरे की सरकार पर काफी गहरा असर पड़ रहा है.
देशमुख और मलिक केस में काफी फर्क है: अनिल देशमुख का इस्तीफा ऐसे वक्त हुआ था जब महाराष्ट्र सरकार के पास कोई दूसरा उपाय नहीं बचा था. 100 करोड़ की वसूली वाली चिट्ठी के बाद मुंबई पुलिस के कमिश्नर रहे परमबीर सिंह हाई कोर्ट चले गये थे - और अदालत ने सीबीआई जांच के आदेश के साथ ही 15 दिन में रिपोर्ट भी मांग ली थी.
अनिल देशमुख और नवाब मलिक में ED का एक्शन तो करीब करीब एक जैसा लगता है, लेकिन सीबीआई जांच वैल्यू एडीशन के तौर पर शुरू हो गयी - अभी शरद पवार ईडी के खिलाफ वैसे ही राजनीतिक चाल की तैयारी में हैं जैसे अपने खिलाफ सहकारिता घोटाले में नोटिस मिलने का बाद चले थे. चूंकि वो मामला शरद पवार से जुड़ा था, इसलिए वो तो भारी पड़े ही प्रशासन को भी कदम पीछे खींचने पड़े थे.
एनसीपी पर असर: नवाब मलिक के इस्तीफे के बाद एनसीपी नेतृत्व को कई मोर्चों पर जूझना पड़ेगा. विपक्ष बेशक शरद पवार का साथ देगा, लेकिन अब पहले की तरह मनमानी नहीं चलेगी.
विपक्षी खेमे से जो भी नेता ज्यादा बारगेन करेगा शरद पवार को उसकी सुननी भी पड़ेगी और माननी भी पड़ेगी. सारी बातों के बावजूद ममता बनर्जी ने सबसे पहले फोन कर सपोर्ट जताया है और विपक्ष को एकजुट करने की बात कही है - पेंच वही है कि ममता बनर्जी कांग्रेस मुक्त विपक्ष की बात कर रही हैं.
कुछ मीडिया रिपोर्ट में शरद पवार और ममता बनर्जी के बीच शारदा घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के मंत्रियों का भी जिक्र हुआ - और बंगाल सरकार की लड़ाई की स्टैटेजी को लेकर भी. यही वजह है कि अनिल देशमुख की तरह नवाब मलिक का इस्तीफा न लेकर राजनीतिक लड़ाई लड़ने का फैसला किया गया है.
1. शरद पवार पहले ही ही ऐसे आरोप लगा चुके हैं कि कैसे महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से पहले एनसीपी नेताओं को जांच एजेंसियों के जरिये डराया और धमकाया जाता था - और धीरे धीरे उनके कई विधायक और नेता बीजेपी में जा मिले. चुनाव के वक्त बीजेपी और शिवसेना के बीच गठबंधन हुआ करता था.
नवाब मलिक की गिरफ्तारी का सबसे बड़ा नुकसान ये होगा कि एनसीपी विधायक भी पाला बदलने को मजबूर हो सकते हैं. जैसे विधानसभा चुनावों के वक्त जांच एजेंसियों के डर से एनसीपी और कांग्रेस के कई नेताओं ने बीजेपी ज्वाइन कर लिया था - एक बार फिर वैसी ही भगदड़ मच सकती है.
2. एनसीपी विधायकों के बीच ये मैसेज तो चला ही गया है कि अगर सरकार मंत्री की गिरफ्तारी नहीं रोक पा रही है तो विधायकों की क्या बिसात है - क्या पता कल उनका ही नंबर हो. अब अगर परदे के पीछे खेल शुरू हो गया तो भगदड़ मचनी ही है.
3. शिवसेना सांसद संजय राउत भी पहले से ही निशाने पर हैं. राउत की पत्नी से भी पूछताछ हो चुकी है - और अभी बीजेपी पर बरसते देखे गये हैं.
उद्धव सरकार पर कितना असर
सरकार से पवार की नाराजगी: कंगना रनौत के मामले में तो शरद पवार ने अपने बयान से नाराजगी जाहिर कर दी थी, लेकिन नारायण राणे के मामले में बस इतना ही कहा था कि वो मामले को ज्यादा तवज्जो नहीं देंगे - अगर शरद पवार की बातों को समझें तो वो उद्धव ठाकरे सरकार के एक्शन से कोई खुश नहीं थे. कंगना रनौत के दफ्तर पर बीएमसी के एक्शन को लेकर भी शरद पवार यही समझाने की कोशिश कर रहे थे कि बेवजह तूल दे दिया गया.
तो क्या शरद पवार को लगने लगा है कि उद्धव सरकार के ऐसे एक्शन का रिएक्शन खतरनाक हो सकता है?
अगर शरद पवार ये मान चुके हैं कि उद्धव ठाकरे की पुलिस ने नारायण राणे के हाथ में खाने की प्लेट होते हुए नहीं गिरफ्तार किया होता तो नवाब मलिक को भी ईडी के अफसर सीआरपीएक लेकर घर पर धावा नहीं बोलते और घसीट कर नहीं ले जाते.
ध्यान देने वाली एक और बात है. शिवसेना नेताओं और कांग्रेस नेताओं के परिवार के लोगों से पूछताछ तो हुई है, लेकिन गिरफ्तारी सिर्फ एनसीपी के मंत्रियों की ही हुई है. संजय राउत की पत्नी के अलावा कांग्रेस नेता सुशील कुमार शिंदे की बेटी और शिवसेना नेता अनिल परब से भी ऐसे ही पूछताछ करके छोड़ दिया गया है - क्या मालूम कब नवाब मलिक की तरह जांच पूरी हो जाये और ईडी के अफसर घर से उठा ले जायें?
सबसे बड़ा सवाल - आखिर भनक क्यों नहीं लगी: महाराष्ट्र सरकार के सभी घटक दलों में हड़कम्प इस बात पर मचा हुआ है कि आखिर नवाब मलिक की गिरफ्तारी को लेकर राज्य के खुफिया विभाग को भनक तक क्यों नहीं लग सकी?
सरकार के मंत्रियों के साथ साथ शरद पवार भी खासे नाराज हैं, सीआरपीएफ का इतना बड़ा मूवमेंट हुआ और खुफिया विभाग के लोग बेखबर रहे - और कई नेताओं ने अपनी नाराजगी महाराष्ट्र सरकार में गृह मंत्री दिलीप वलसे पाटील के साथ शेयर भी की है.
महाराष्ट्र के मुख्य सचिव का कार्यकाल पूरा हो रहा है और ऐसा सुनने में आ रहा है कि नये अफसर की नियुक्ति के साथ नौकरशाही में भी भारी फेरबदल हो सकता है - खुद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी सारी चीजों में दिलचस्पी ले रहे हैं.
शरद पवार के सामने चैलेंज बढ़ता जा रहा है: कोई दो राय नहीं है कि नवाब मलिक की गिरफ्तारी अनिल देशमुख के मुकाबले गठबंधन दलों के साथ साथ सरकार को भी ज्यादा डैमेज कर सकती है.
अब अगर शरद पवार को लगा कि बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में ममता बनर्जी उनके लिए गांधी परिवार से बेहतर साथी और मददगार साबित हो सकती हैं तो वो सोनिया गांधी को सॉरी भी बोल सकते हैं.
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