शरद पवार रोटी पलट रहे हैं. शरद पवार रोटी पलटते रहते हैं. मगर पवार की राजनीति को जानने वाले जानते हैं कि पवार की राजनैतिक थाली की ये आखिरी रोटी नहीं है. तो फिर पक क्या रहा है? या आधी रोटी कहां तक सिक गई है. वैसे तो शरद पवार के दिमाग को पढ़ पाने वाले कोई भी राजनैतिक पंडित नहीं हुए हैं मगर यह भी दुनिया की सच्चाई है कि जिस खेल को आप हर बार खेलते आ रहे हैं वो खेल आपके साथ भी हो सकता है. जग जीता हुआ इंसान अपनों से हार जाता है. अभी तक यह साफ नहीं हुआ है कि भतीजा अजीत पवार वही खेल खेल रहा है जो खेल चाचा शरद पवार खेलते आ रहे हैं या चाचा-भतीजा साथ मिलकर खेल रहे हैं. महाराष्ट्र में बेटे-बेटियों को अपनी राजनैतिक विरासत देने को लेकर चाचा बालासाहेब ठाकरे और भतीजा राज ठाकरे की जंग सबने देखी है. बेटे उद्धव को गद्दी मिली और राज को बनवास. चाचा गोपी नाथ मुंडे और भतीजे धनंजय मुंडे का झगड़ा भी राजनैतिक उत्तराधिकार के लिए सबने देखा. गोपी नाथ मुंडे ने बेटी पंकजा को चुना और धनंजय ने पकड़ी एनसीपी की राह. कहीं इसी उथल-पथल से बचने के लिए शरद पवार ने यह इमोशनल दांव तो नहीं खेला है.
इसमें सत्ता का बंटवारा बेटी सुप्रिया सूले और अजीत पवार के बीच इस तरह से कर पाएं कि विवाद नहीं हो.अजीत पवार पार्टी की कमान संभाल भी लें तो एनसीपी के सुप्रीमों की हैसियत से चौधराहट का हक शरद पवार के पास हीं रहे. ऐसा कर वो एनसीपी के अध्यक्ष की हैसियस से कहीं उपर हो जाएंगे. सीनियर पवार ने अपनी किताब में लिखा है कि अजीत पवार इमोशनल है और सब जानते हैं कि शरद पवार इमोशन की राजनीति से उपर उठे नेता हैं, ऐसे में किसी भी दांव पेंच में वो जूनियर पवार पर भारी रहेंगे.
इससे एनसीपी पर उनकी पकड़ पहले से ज्यादा...
शरद पवार रोटी पलट रहे हैं. शरद पवार रोटी पलटते रहते हैं. मगर पवार की राजनीति को जानने वाले जानते हैं कि पवार की राजनैतिक थाली की ये आखिरी रोटी नहीं है. तो फिर पक क्या रहा है? या आधी रोटी कहां तक सिक गई है. वैसे तो शरद पवार के दिमाग को पढ़ पाने वाले कोई भी राजनैतिक पंडित नहीं हुए हैं मगर यह भी दुनिया की सच्चाई है कि जिस खेल को आप हर बार खेलते आ रहे हैं वो खेल आपके साथ भी हो सकता है. जग जीता हुआ इंसान अपनों से हार जाता है. अभी तक यह साफ नहीं हुआ है कि भतीजा अजीत पवार वही खेल खेल रहा है जो खेल चाचा शरद पवार खेलते आ रहे हैं या चाचा-भतीजा साथ मिलकर खेल रहे हैं. महाराष्ट्र में बेटे-बेटियों को अपनी राजनैतिक विरासत देने को लेकर चाचा बालासाहेब ठाकरे और भतीजा राज ठाकरे की जंग सबने देखी है. बेटे उद्धव को गद्दी मिली और राज को बनवास. चाचा गोपी नाथ मुंडे और भतीजे धनंजय मुंडे का झगड़ा भी राजनैतिक उत्तराधिकार के लिए सबने देखा. गोपी नाथ मुंडे ने बेटी पंकजा को चुना और धनंजय ने पकड़ी एनसीपी की राह. कहीं इसी उथल-पथल से बचने के लिए शरद पवार ने यह इमोशनल दांव तो नहीं खेला है.
इसमें सत्ता का बंटवारा बेटी सुप्रिया सूले और अजीत पवार के बीच इस तरह से कर पाएं कि विवाद नहीं हो.अजीत पवार पार्टी की कमान संभाल भी लें तो एनसीपी के सुप्रीमों की हैसियत से चौधराहट का हक शरद पवार के पास हीं रहे. ऐसा कर वो एनसीपी के अध्यक्ष की हैसियस से कहीं उपर हो जाएंगे. सीनियर पवार ने अपनी किताब में लिखा है कि अजीत पवार इमोशनल है और सब जानते हैं कि शरद पवार इमोशन की राजनीति से उपर उठे नेता हैं, ऐसे में किसी भी दांव पेंच में वो जूनियर पवार पर भारी रहेंगे.
इससे एनसीपी पर उनकी पकड़ पहले से ज्यादा मजबूत होगी. वैसे भी शरद पवार ने जनवरी 2012 में चुनावी राजनीति से सन्यास लिया था मगर इसका असर शरद पवार की राजनीति पर पड़ा हो ऐसा नही है. यह भी हो सकता है कि चाचा-भतीजा मिलकर 2024 के लिए कोई नया दांव खेल रहे हैं. शरद पवार दूर की कौड़ी खेलते हैं, हो सकता है कि वो उद्धव ठाकरे और कांग्रेस के बिखरे परिवार का बोझ अब और नहीं उठाना चाह रहे हों और इसके लिए कोई नैरेटिव बना रहे हों.
क्योंकि पवार हर बार अपनी राजनैतिक उलटबासियों को लेकर ऐसा तर्क ढूंढ लेते जिसे वो जनता को समझाने में सफल हो जाते हैं. तो क्या उनकी नजर बीजेपी के साथ 2024 में जाने की है. शरद पवार देश के एक मात्र राजनेता रहे हैं जो कांग्रेस और उसके सभी बड़े घटक कांग्रेस(उर्स) और सोशलिस्ट से लेकर बीजेपी, शिवसेना, समाजवादी पार्टी और आरपीआई सबके साथ गठबंधन में रह चुके हैं.
ऐसे में उनके लिए कहीं भी किसी के साथ जाना और वहीं से लौट आना असंभव नही है. शरद पवार खांटी राजनेता है. उनके लिए उनका कोई सगा नहीं रहा है. न राजनैतिक गुरू और न राजनैतिक शिष्य और राजनैतिक साथी-सहयोगी. शदर पवार ने 60 के दशक में महराष्ट्र के सबसे बड़े कद्दावर नेता पहले मुख्यमंत्री, पूर्व उप प्रधानमंत्री यशवंतराव चह्वाण की सरपरस्ती में अपनी राजनैतिक और चुनावी यात्रा शुरू की थी.
य़शवंतराव च्हवाण ने भविष्य के नेता तैयार करने के लिए शरद पवार को पहली बार 70 के दशक में वसंतराव नाईक सरकार में मंत्री बनाया. इमरजेंसी के समय 1975-77 में शरद पवार शंकरराव च्हवाण सरकार में गृह मंत्री रहे. इमरजेंसी में कांग्रेस( आर) बनी तो शरद पवार गुरु यशवंत राव चह्वाण के साथ इंदिरा गांधी की कांग्रेस में रहे.
पवार ने जब पहली रोटी पलटी
कांग्रेस दो टुकड़ों में महाराष्ट्र में चुनाव लड़ी. कांग्रेस ने तय किया कि जनता पार्टी को रोकने के लिए कांग्रेस के दोनों धड़े मिलकर सरकार बनाएंगे. शंकर राव चह्वाण मुख्यमंत्री के पद से हटे और वसंत दादा पाटिल मुख्यमंत्री बने. मगर पवार की नजर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर थी. अपने गुरू यशवंतराव च्हवाण को आगे किया और 1978 में कांग्रेस(आई) फिर से टूटकर कांग्रेस(उर्स) बनी. पवार ने जनता पार्टी के साथ मिलकर कांग्रेस(उर्स) की तरफ से 38 साल की उम्र में सबसे कम उम्र के महाराष्ट्र के सीएम बने.
इमरजेंसी में इंदिरा के साथ रहने वाले पवार ने कहा देश इमरजेंसी की ज्यादतियों को भूल नहीं सकता है. इसलिए कांग्रेस के साथ रहना ठीक नही है. गुस्से में तमतमाई इंदिरा गांधी ने 1980 में सत्ता में लौटते हीं राष्ट्रपति शासन लगाकर पवार को बर्खास्त कर दिया।
पवार ने दूसरी रोटी पलटी
पवार के गुरू यशवंत राव च्हवाण को अपनी गलती का अहसास हो गया और वो इंदिरा के साथ कांग्रेस में लौट आए, देवराज उर्स भी जनता पार्टी में चले गए. कांग्रेस भारी बहुमत के साथ सरकार में लौटी. ए.आर. अंतुले सीएम बने. पर बर्खाश्त किए गए शरद पवार अपने गुरू यशवंतराव चह्वाण को छोड़कर अपनी पार्टी में 1983 में इंडियन नेशनल कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष बने.1984 से बरामती से जीतकर पहली बार लोकसभा पहुंचे पर दिल्ली में दिल नहीं लगा और एक साल बाद हीं इस्तीफा देकर 1985 में फिर से विधानसभा पहुंचे.
इस बार पवार की इंडियन नेशनल कांग्रेस सोशलिस्ट ने 54 सीटें जीती. इसबार इंदिरा गांधी से बदला लेने के लिए बीजेपी,जनता पार्टी और दूसरी सभी क्षेत्रियों पार्टियों को इक्ठा किया. फिर कांग्रेस हटाओ के नारे के साथ बीजेपी को साथ लेकर महाराष्ट्र में नेता प्रतिपक्ष बनें. इस बार पहली बार पवार और बीजेपी साथ आए.
पवार ने तीसरी रोटी पल्टी
मगर सबको झटका देते हुए 1987 में शरद पवार कांग्रेस में लौट आए. एक साल के अंदर त्तकालीन कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांघी को यह समझाने में सफल रहे कि शिवशेना को रोकने के लिए महराष्ट्र में वो जरूरी हैं. एक बार फिर से राजीव गांघी ने शरद पवार को 1988 में महाराष्ट्र का सीएम बना दिया और फिर से पवार ने शंकरराव च्हवाण को सीएम पद से हटवा दिया. मगर 1990 में शिवसेना और बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया और कांग्रेस को 254 में से 141 सीटें मिली. फिर भी 12 निर्दलीयों की मदद से शरद पवार तीसरी बार 1990 में सीएम बनें.
पवार ने चौथी बार रोटी पलटी
राजीव गांधी की हत्या के बाद शरद पवार को प्रधानमंत्री बनने की इच्छा हुई. पवार ने कहा सबसे ज्यादा सांसद हमारे पास है. मगर पीछे हटना पड़ा और नरसिम्महा राव पीएम बने. नरसिम्महा राव ने भी बदला लिया और उन्हें केंद्र में बुलाकर रक्षा मंत्री बना दिया. उनकी जगह सुधाकर राव नाईक सीएम बनें. पर मुंबई ब्लास्ट के बाद फिर से पवार सुधाकर नाईक को हटाकर मुख्यमंत्री बने. नरसिम्महा राव भी पवार के दिल्ली कांग्रेस में बढ़ते कद से डरे थे लिहाजा वापस महाराष्ट्र भेजा.
पवार ने पलटी पांचवी रोटी
1995 में बीजेपी-शिवसेना से हार के बाद शरद पवार एक साल तक महाराष्ट्र नेता विपक्ष रहे और 1996 के लोकसभा चुनाव लड़कर दिल्ली पहुंचे औक कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव सीताराम केसरी के खिलाफ लड़ा. 1998 के मध्यावधि लोकसभा चुनाव में प्रघानमंत्री बनने का सपना देखते हुए महाराष्ट्र में पहली बार कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी, आरपीआई समेत कई पार्टियों का गठबंधन बनाकर 48 में से 37 लोकसभा सीटें जीती.
लोकसभा में विपक्ष के नेता बने मगर 1999 में भी प्रधानमंत्री नहीं बन पाए तो सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर विरोध कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाई. यानी शरद पवार की कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ने वक्त को पहचानते हुए रोटी पलटी और राष्ट्रवादी कांग्रेस नए अवतार में फिर से आई.
पवार ने पलटी छठी रोटी
लेकिन 1999 में महाराष्ट्र में पावर में आने के लिए फिर से सोनिया गांधी की कांग्रेस के साथ आए.महाराष्ट्र में विलासराव देशमुख सरकार में एनसीपी शामिल हुई और शरद पवार को यूपीए के दोनों कार्यकालों में केंद्रीय मंत्री बनाया गया. 2014 में मोदी लहर में सरकार केंद्र और महाराष्ट्र दोनों जगहों से चली गई.
पवार ने पलटी सातवीं रोटी
2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी-शीवसेना गठबंधन में दरार पड़ी. शरद पवार की एनसीपी कांग्रेस से ज्यादा सीटें लेकर आई. शरद पवार कांग्रेस के बड़े भाई बन गए और कांग्रेस- उद्धव ठाकरे को साथ लाने में लगे रहे. इसबीच बीजेपी ने सुबह अंधेरे में भतीजे अजीत पवार से बगावत करा कर उन्हें उपमुख्यमंत्री बना दिया. पर पवार हिम्मत नहीं हारे और अजीत पवार को निहत्था कर वापस आने पर मजबूर कर दिया. पवार तब और बड़े बन गए जब विद्रोही भतीजे को उपमुख्यमंत्री फिर से बनाया. मगर शिवसेना टूट गई और पवार की सातवीं रोटी चूल्हे पर छूट गई.
लोग कह रहे हैं शरद पवार आठवीं रोटी पलटने में लगे हैं. मगर पवार की रोटी कब सिकेगी इसके बारे में कोई अंदाजा नहीं लगा सकता है. हालांकि इसबार लोग कह रहे हैं कि घर के चूल्हे में आग ज्यादा है रोटी जल भी सकती है. वैसे भी पवार को पावर चाहिए. रास्ता कोई भी हो.
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