नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (Nepal PM KP Sharma Oli) द्वारा भगवान श्रीराम (Lord Ram) के जन्मस्थान और उनकी जन्भूमि अयोध्या (Ayodhya) को लेकर दिए गए विवादित बयान के बचाव में नेपाल के विदेश मंत्रालय (Nepal Foreign Minister statement over Ayodhya issue) ने जो विज्ञप्ति जारी की है, वह ओली के बयान से भी अधिक ख़तरनाक है. प्रधानमन्त्री ओली ने तो बस भगवान श्रीराम का जन्म नेपाल में और अयोध्या (Ayodhya) नेपाल में है कह कर इसकी शुरुआत की थी. लेकिन ओली के बयान की सफाई में नेपाल के विदेश मंत्रालय ने जो बयान जारी किया है वह तो पूरे रामायण, भगवान श्रीराम, उनके जन्मस्थान सभी को लेकर सवाल खड़े कर रहा है. मंगलवार को जब नेपाल के विदेश मंत्रालय की तरफ से ओली का बचाव करते हुए बयान जारी किया गया था तब पहली नजर में यह लगा कि यह पीएम का यूटर्न है. विदेश मंत्रालय के बयान की शुरुआत में कहा गया है कि पीएम ओली की अभिव्यक्ति किसी राजनीतिक विषय से नहीं जुड़ी है और ना ही यह किसी की भावना को ठेस पहुंचाने की नीयत से दिया गया है.
इसी तरह बयान के तीसरे बिंदु में लिखा है कि पीएम ओली का बयान ना तो अयोध्या के महत्त्व को कम करने के लिए और ना ही इसके सांस्कृतिक मूल्यों को कम के लिए दिया गया था. बयान के अंत में इस बात को जोर देकर कहा गया है कि विवाह पंचमी के अवसर पर प्रत्येक वर्ष भारत के अयोध्या से नेपाल के जनकपुर में बारात आती है. इसमे भारत के प्रधानमंत्री की सन 2018 में हुई जनकपुर यात्रा के सन्दर्भ का उल्लेख करते हुए रामायण सर्किट के शुभारम्भ होने और जनकपुर-अयोध्या यात्री बस की शुरुआत होने से दोनों देशों...
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (Nepal PM KP Sharma Oli) द्वारा भगवान श्रीराम (Lord Ram) के जन्मस्थान और उनकी जन्भूमि अयोध्या (Ayodhya) को लेकर दिए गए विवादित बयान के बचाव में नेपाल के विदेश मंत्रालय (Nepal Foreign Minister statement over Ayodhya issue) ने जो विज्ञप्ति जारी की है, वह ओली के बयान से भी अधिक ख़तरनाक है. प्रधानमन्त्री ओली ने तो बस भगवान श्रीराम का जन्म नेपाल में और अयोध्या (Ayodhya) नेपाल में है कह कर इसकी शुरुआत की थी. लेकिन ओली के बयान की सफाई में नेपाल के विदेश मंत्रालय ने जो बयान जारी किया है वह तो पूरे रामायण, भगवान श्रीराम, उनके जन्मस्थान सभी को लेकर सवाल खड़े कर रहा है. मंगलवार को जब नेपाल के विदेश मंत्रालय की तरफ से ओली का बचाव करते हुए बयान जारी किया गया था तब पहली नजर में यह लगा कि यह पीएम का यूटर्न है. विदेश मंत्रालय के बयान की शुरुआत में कहा गया है कि पीएम ओली की अभिव्यक्ति किसी राजनीतिक विषय से नहीं जुड़ी है और ना ही यह किसी की भावना को ठेस पहुंचाने की नीयत से दिया गया है.
इसी तरह बयान के तीसरे बिंदु में लिखा है कि पीएम ओली का बयान ना तो अयोध्या के महत्त्व को कम करने के लिए और ना ही इसके सांस्कृतिक मूल्यों को कम के लिए दिया गया था. बयान के अंत में इस बात को जोर देकर कहा गया है कि विवाह पंचमी के अवसर पर प्रत्येक वर्ष भारत के अयोध्या से नेपाल के जनकपुर में बारात आती है. इसमे भारत के प्रधानमंत्री की सन 2018 में हुई जनकपुर यात्रा के सन्दर्भ का उल्लेख करते हुए रामायण सर्किट के शुभारम्भ होने और जनकपुर-अयोध्या यात्री बस की शुरुआत होने से दोनों देशों की जनता की प्रगाढ़ता की बात कही गई है. इस पूरे बयान में कहीं भी यह स्वीकार नहीं किया गया गया है कि प्रधानमंत्री ओली ने नेपाल में ही श्रीराम का जन्म होने और अयोध्या नेपाल में होने के दावा गलत है. या फिर प्रधानमंत्री की किसी भी विवादित बात का खंडन नहीं किया गया है.
लेकिन उससे अधिक आपत्तिजनक बात इस बयान के दूसरे बिंदु में उल्लेखित की गयी है, जिसमे कहा गया है कि रामायण, भगवान श्रीराम से जुड़े हुए स्थानों के बारे में कई प्रकार की किंवदंती और उदाहरण हैं. प्रधानमंत्री ओली के बयान का समर्थन करते हुए यह कहा गया है कि भगवान श्रीराम के बारे में कोई भी सत्य, तथ्य हासिल करने के लिए रामायण, इसके वृहत सांस्कृतिक भूगोल, इसकी सभ्यता से जुड़े हुए विभिन्न स्थान के बारे में अभी और अधिक अनुसंधान और अध्ययन की आवश्यकता है.
नेपाल के विदेश मंत्रालय के तरफ से कहा गया कि पीएम ओली का बयान रामायण को लेकर रहे विभिन्न मिथकों पर अभी और अधिक जानकारी हासिल करने के लिए ही दिया गया था. यानी नेपाल ने आधिकारिक तौर पर माना है कि रामायण, भगवान श्रीराम, और उनसे जुड़ी हुई घटनाओ पर विश्वास नहीं किया जा सकता है इसलिए इसमें और अधिक अध्ययन और अनुसंधान की आवश्यकता है. नेपाल ने सीधे सीधे अब रामायण पर, भगवान राम पर उनके जन्मस्थान के अस्तित्व पर भी सवाल खडा कर दिए हैं दिए हैं.
यहां यह भी समझना होगा कि नेपाल के प्रधानमंत्री के द्वारा एक निजी संस्था के आयोजन में दिए गए धार्मिक बयान पर यदि विवाद हुआ है तो सफाई देने के लिए विदेश मंत्रालय को ही क्यों चुना गया? जबकि इस पूरे मामले का विदेश मंत्रालय या सरकार के किसी भी मंत्रालय से कोई लेना देना नहीं था.पीएम ओली चाहते तो अपने दफ्तर से, अपने सलाहकार से या अपने निजी सचिवालय से इस बयान को जारी करवा सकते थे. क्योंकि भारत ने अभी तक उनके इस बयान पर कोई भी आधिकारिक प्रतिक्रया नहीं दी थी. इसलिए विदेश मंत्रालय को इस पूरे मामले में लाने के पीछे आखिर क्या कारण हो सकता है?
जान बूझकर और एक सोची समझी रणनीति के तहत विदेश मंत्रालय को यह बयान देकर नेपाल के तरफ से भगवान् राम, उनकी जन्मस्थली और पूरे रामायण के अस्तित्व पर जो सवाल खडा किया गया है उसको अंतरराष्ट्रीय चर्चा का विषय बनाने की कोशिश है. यह बात हम सभी जानते हैं कि विदेश मंत्रालय का बयान उस देश के दुनिया भर में रहे दूतावासों के जरिये भेजा जाता है. हर देश की मीडिया को दिया जाता है.
करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के केंद्र रहे भगवान श्रीराम, उनकी जन्मस्थली अयोध्या और पवित्र रामायण पर दुनिया के एकमात्र हिंदू राष्ट्र रहे नेपाल की सरकार के तरफ से आधिकारिक रूप से सवाल उठाया जाता है तो चर्चा का होना स्वाभाविक है. वह भी ऐसे समय जब अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण कार्य औपचारिक रूप से शुरू होने वाला है. जब पूरी दुनिया का ध्यान अयोध्या पर है.
ऐसे में नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार ने एक बार फिर यह मामला अंतरराष्ट्रीय रूप से उछाल कर हमारी आस्था पर हमारी श्रद्धा पर हमारे विश्वास पर और हमारे पूजनीय भगवान श्रीराम के अस्तिव पर सवाल खड़ा किया है जो किसी बड़ी साजिश का हिस्सा माना जाएगा.यह साजिश इसलिए कि नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली का पिछले दिनों जो भी बयान आया है वह पूरी तरह से चीन परस्त है. जब नेपाल और भारत की मीडिया ने नेपाल के एक गांव पर चीन के कब्जे की बात उठाई, नेपाल के कई भूभाग पर चीन के द्वारा अतिक्रमण की बात उठाई तो नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली ने बड़ी बेशर्मी के साथ संसद में खड़े होकर यह बयान दिया कि चीन ने नेपाल की कोई भूमि पर कब्जा नहीं किया है.
ज्ञवाली ने यह भी कहा कि चीन के साथ नेपाल का किसी तरह का कोई सीमा विवाद है ही नहीं. और चीन परस्ती की हद तब पार हो गई जब सारे तथ्यों और प्रमाणों को झुठलाते हुए नेपाल के विदेश मंत्री ज्ञवाली ने कहा कि गोरखा के रूई गांव पर चीन का कब्जा नहीं है बल्कि उस गांव के लोग अपनी मर्जी से चीन में विलय कर गए हैं.
ऐसे ही नेपाल के तरफ से विवादित क्षेत्र कालापानी, लिपुलेक और लिम्पियाधुरा की बात आती है तो प्रदीप ज्ञवाली पूरे आत्मविश्वास के साथ यह तो जरूर कहते हैं उनके पास इस बात के सारे तथ्य, प्रमाण और ऐतिहासिक दस्तावेज मौजूद हैं. लेकिन आज तक न तो नेपाल सरकार की तरफ से ना ही नेपाल के विदेश मंत्रालय के तरफ से और ना तो संसद में, ना ही मीडिया को इस बात का कोई भी प्रमाण दिखा पाते हैं. यह नेपाल के विदेश मंत्री की दोहरी नीति है जो कि चीन और भारत के साथ अलग अलग रवैये से साफ़ हो जाता है.
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