हिमालयी संस्कृति प्राकृतिक नियमों से अधिक संचालित होती रही है तथा उच्च मानवीय मूल्यों की केंद्र रही है. ऐतिहासिक रूप से यदि हम बुद्धकालीन भारत, चीन, तिब्बत, नेपाल तथा अन्य निकटवर्ती राष्ट्रों की स्थिति एवं संस्कृति का दिग्दर्शन करते हैं तो पाते हैं कि यही सभ्यता प्राच्य सभ्यता के रूप में स्वीकृत रही है. हिमालय की अटलता, पवित्रता तथा व्यापक सम्पदा की समृद्धि ने ही इस भू-भाग के मानवजाति को श्रेष्ठ जीवन जीने को प्रेरित किया होगा. जब यातायात के कोई यांत्रिक साधन नहीं थे तब भी भगवान बुद्ध के दर्शन को इस क्षेत्र के अतिरिक्त सुदूर देशों यथा जापान, श्रीलंका, थाईलैंड, बर्मा तथा अफ़ग़ानिस्तान में स्वीकृति मिली और श्रेष्ठ मानव मूल्यों – अहिंसा, करुणा, दया, शील और प्रज्ञा पर आधारित मानव संस्कृति बनी. आज कल के तथाकथित वामपंथी इस संस्कृति को ही शायद दक्षिणपंथ मानते हैं. ऐसे आधुनिक वामपंथी जो मात्र भारत में माओ को ही श्रेष्ठतम विचारक तथा माओवादी राज्य व्यवस्था को कल्याणकारी राज्य व्यवस्था मानते हैं, भारत केंद्रित आर्य संस्कृति को मानने वालों को यह वर्ग पुरातनपंथी, अंधविश्वासी और प्रतिक्रियावादी ठहराता है.
स्वतंत्र भारत वर्ष में इन्होंने इतनी सामाजिक अराजकता एवं अनुशासनहीनता फैला दिया है कि भारत जैसे शान्तिप्रिय देश भी आंतरिक रूप से इन वामपंथियों की जमात से संकट में हैं. इनको लगता है कि चीन द्वारा अन्वेषित कोरोना से केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही संकट बढ़ेगा. दुनिया के सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र तिब्बत को माओवादियों ने निगल लिया और आज तिब्बत की राष्ट्रवादी जनता निर्वासित शरणार्थी के रूप में जीवन जी रही है.
विश्व मानचित्र पर अगर नजर डालें तो यह पता चलता है कि तिब्बत पर आक्रमण के द्वारा कब्ज़ा कर लेने के पश्चात चीन का नेपाल के निकट आना ज्यादा संभव हो पाया है. आज नेपाल खुद को चीन एवं भारत के बीच घिरा हुआ पाता है. इसके बावजूद कि नेपाल के अंदर हिन्दू धर्म को मानने वालों की जनसंख्या काफी अधिक है, नेपाल का चीन की तरफ बढ़ता झुकाव भारत के...
हिमालयी संस्कृति प्राकृतिक नियमों से अधिक संचालित होती रही है तथा उच्च मानवीय मूल्यों की केंद्र रही है. ऐतिहासिक रूप से यदि हम बुद्धकालीन भारत, चीन, तिब्बत, नेपाल तथा अन्य निकटवर्ती राष्ट्रों की स्थिति एवं संस्कृति का दिग्दर्शन करते हैं तो पाते हैं कि यही सभ्यता प्राच्य सभ्यता के रूप में स्वीकृत रही है. हिमालय की अटलता, पवित्रता तथा व्यापक सम्पदा की समृद्धि ने ही इस भू-भाग के मानवजाति को श्रेष्ठ जीवन जीने को प्रेरित किया होगा. जब यातायात के कोई यांत्रिक साधन नहीं थे तब भी भगवान बुद्ध के दर्शन को इस क्षेत्र के अतिरिक्त सुदूर देशों यथा जापान, श्रीलंका, थाईलैंड, बर्मा तथा अफ़ग़ानिस्तान में स्वीकृति मिली और श्रेष्ठ मानव मूल्यों – अहिंसा, करुणा, दया, शील और प्रज्ञा पर आधारित मानव संस्कृति बनी. आज कल के तथाकथित वामपंथी इस संस्कृति को ही शायद दक्षिणपंथ मानते हैं. ऐसे आधुनिक वामपंथी जो मात्र भारत में माओ को ही श्रेष्ठतम विचारक तथा माओवादी राज्य व्यवस्था को कल्याणकारी राज्य व्यवस्था मानते हैं, भारत केंद्रित आर्य संस्कृति को मानने वालों को यह वर्ग पुरातनपंथी, अंधविश्वासी और प्रतिक्रियावादी ठहराता है.
स्वतंत्र भारत वर्ष में इन्होंने इतनी सामाजिक अराजकता एवं अनुशासनहीनता फैला दिया है कि भारत जैसे शान्तिप्रिय देश भी आंतरिक रूप से इन वामपंथियों की जमात से संकट में हैं. इनको लगता है कि चीन द्वारा अन्वेषित कोरोना से केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही संकट बढ़ेगा. दुनिया के सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र तिब्बत को माओवादियों ने निगल लिया और आज तिब्बत की राष्ट्रवादी जनता निर्वासित शरणार्थी के रूप में जीवन जी रही है.
विश्व मानचित्र पर अगर नजर डालें तो यह पता चलता है कि तिब्बत पर आक्रमण के द्वारा कब्ज़ा कर लेने के पश्चात चीन का नेपाल के निकट आना ज्यादा संभव हो पाया है. आज नेपाल खुद को चीन एवं भारत के बीच घिरा हुआ पाता है. इसके बावजूद कि नेपाल के अंदर हिन्दू धर्म को मानने वालों की जनसंख्या काफी अधिक है, नेपाल का चीन की तरफ बढ़ता झुकाव भारत के लिए एक चिंता का विषय है.
सामरिक मुद्दों की दृष्टि से चीन ने नेपाल के ऊपर अपना प्रभाव बरक़रार रखा है. नेपाली राजशाही ने भी भारत का प्रभुत्व कम करने के लिए चीन के साथ सम्बन्ध स्थापित करना शुरू कर दिया था. राजा महेंद्र ने इसके लिए कई बार 'चीन कार्ड' खेला जिसके चलते चीन ने 1960 के आस-पास नेपाल को काफी धन और अनुदान दिया.
भारत नेपाल संबंधों के बीच चीन ने घुसपैठ की और जिसके चलते सामरिक क्षेत्रों में चीन को काफी लाभ मिला. ऐसा नहीं है कि भारत ने नेपाल को कोई कम धन राशि प्रदान की हो, परन्तु चीन के 'घुसपैठ' के बाद नेपाल में चीन द्वारा दिए अनुदान से ऐसे चीज़ें सामने आईं जो काफी दृश्यमान थीं. भारत द्वारा नेपाल में किए जा रहे प्रोजेक्ट्स समय पर पूरे नहीं होते थे जबकि चीन द्वारा नेपाल में किया हुआ काम बहुत ही आधुनिक हुआ करता था.
कुल मिलकर चीन ने नेपाल में बड़ा निवेश किया है, यह सब शुरुआत में, नेपाल की राजशाही का चीन के प्रति लगाव की कारण ही संभव हुआ. आज नेपाली राजनीति में 'प्रचंड' जैसे नेताओं के चलते नेपालियों का दोगलापन सामने आ रहा है, साथ ही साथ, आज जब नेपाल ने चीन से काफी सारा धन और अनुदान ले रखा है, चीन का दखल बढ़ता ही जाएगा और नेपाल का 'दोगलापन' भारत के लिए एक चिंता का विषय बनेगा.
नेपाल आज चीन का 'क्लाइंट स्टेट' अथवा आश्रित राज्य बन गया है. सन 2005 आते - आते जब भारत और अमेरिका ने नेपाल की सैन्य सहायता देना बंद कर दिया, चीन ने नेपाल को दस लाख अमेरिकी डॉलर की सैन्य सहायता देने का वायदा किया. इसके लगभग चार साल बाद चीन ने नेपाल को बीस करोड़ रूपए से ज्यादा सैन्य मदद देने की सहमति जताई. यह राशि नेपाल की सेना की प्रशिक्षण और सेना को और सुदृण बनाने के काम आने वाली थी. इसलिए यह स्पष्ट है कि नेपाल और चीन की बढ़ते सम्बन्ध भारत की लिए सीधे- सीधे खतरनाक साबित हो सकते हैं.
जिस तरह से माओवाद का नेपाल में बोलबाला है और नेपाल-चीन दोस्ती जिस तरह से परवान चढ़ रही है, नेपाल कल को अगर पाकिस्तान और नार्थ कोरिया के रस्ते पर अग्रसर हो तो बहुत आश्चर्य नहीं होना चाहिए. इस बात कि भी प्रबल संभावना है कि चीन नेपाल को अंतरिक्ष तकनीक, मिसाइल एवं परमाणु तकनीक भी मुहैया कराये.
आने वाले समय में नेपाल भारत की लिए हर दृष्टिकोण से एक चुनौती साबित होगा. अतः भारत को चाहिए कि वो अपनी उपस्थिति सार्क एवं आसिआन में मजबूत रूप से दर्ज कराये. साथ ही साथ भारत को हिमालय क्षेत्र में थल सेना और वायु सेना की मजबूत उपस्थिति बनानी चाहिए एवं चीन के मंसूबों को विश्व पटल पर सामने लाने की जरूरत है.
नेपाल में शांति व्यवस्था और प्रगति को बनाये रखने की लिए, नवंबर 2006 में सरकार ने प्रचंड की नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल (माओ ) से शांति संधि (कॉम्प्रिहेंसिव पीस ट्रीटी) पर हस्ताक्षर किया. प्रचंड का झुकाव वैचारिक रूप से हमेशा चीन के प्रति एवं भारत में रह रहे वामपंथी नेताओं से रहा. प्रचंड का पहले से ही मानना था कि भारत नेपाल का विकास कभी नहीं चाहता है, इसलिए समय - समय पर सीमावर्ती क्षेत्रों पर बढ़ा अवरोध उत्पन्न कराता रहता है.
लेकिन धीरे-धीरे, उस समय के एकमात्र वामपंथी नेता प्रचंड का प्रभाव कम होता गया और वर्तमान में राज कर रही नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी दो धड़ों में बंट गयी, जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल (यूएमएल) का नेतृत्व नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री ओली एवं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल (माओ) का प्रचंड ने अपने हाथ में लिया. हाल में 2015 में नेपाल को अपना पूर्ण संविधान मिला. इस संविधान में भी आपको चीन की प्रभाव की छाप भी आपको मिलेगी जिसको लेकर नेपाल की जनता और अन्य राजनीतिक दलों ने विरोध भी किया.
नेपाल के माओवादियों में कई धड़े सामने आ रहे हैं. कुछ सरकार में हैं. कुछ सरकार से बाहर, इनमें नेपाल के प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद ओली (के.पी.ओली ) की सोच चीनी नेताओं जैसी है, और ओली नेपाल को एक महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली देश बनाने के लिए किसी भी स्तर तक उतरने को तैयार हैं. ओली ने बड़ी-बड़ी बातें करनी शुरू कर दी है और नेपाली लोगों को दिवास्वप्न दिखने लगे हैं.
नेपाल की स्थिति भी उस 'दलाल' की जैसी है जो समय पर अपने नफा-नुकसान को देखते हुए कहीं भी कुछ भी कर सकता है. जिन नेपालियों की वफादरियों की मिसालें दी जाती थी, वे आज अति - चालाक हो गए हैं. अपनी अत्यधिक चालाकी के चलते वे गलतियां करेंगे और वे कहीं भारत को समझने में ही न कोई बड़ी गलती कर बैठें.
गोरिल्ला स्टाइल युद्ध एवं संघर्ष करते हुए इन माओवादियों की सोच भी 'गोरिल्ला सोच'हो चुकी है. इसलिए ये माओवादी मूल रूप से किसी के भी मित्र नहीं हैं. फिलहाल नेपाल में लोकतंत्र जैसी कोई चीज़ नहीं रह गई है. अभी हाल में कोरोना संकट की दौरान चीनी कोरोना वायरस को पाकिस्तान की आई.यस.आई. के सहयोग से नेपाल में छिपे तब्लीकि जमात के लोगों को बिहार के सिवान एवं बेतिया की रास्ते भारत में भेजने का प्रयास किया.
हाल में पकड़े गए 'जालिम मियां ' को लेकर भारत के खुफ़िआ विभाग ने भारत में कोरोना वायरस फ़ैलाने की साजिश का पर्दाफाश किया है. नेपाल के गृह मंत्रालय को भी यह रिपोर्ट दी गयी है कि भारत से सटे सीमावर्ती जिलों में जमाती छिपे हुए हैं जिसके चलते दोनों देशों ने अपने बॉर्डर को सील कर दिया है. नेपाल में मौजूद वामपंथी धड़े आपस में एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हुए हैं जिसके चलते नेपाल की भूमि पर माओवादियों की बीच हिंसा छिड़ने की सम्भावना बनी हुई है, इसमें नुकसान नेपालियों का ही होगा.
नेपाल की सरल लोकतांत्रिक व्यवस्था को चलते हुए देख कर चीन और पाकिस्तान दोनों ने ही आईएसआई के साथ गठजोड़ कर के नेपाल में राजनैतिक अस्थिरता उत्पन्न करना शुरू कर दिया.नेपाल में धीरे धीरे चीन समर्थक मानसिकता को गुप्त तरीक़े से सहयोग किया गया और इस प्रकार से प्रगतिशील नेपाली लोकतंत्र को अंततः चीन समर्थक राज्य व्यवस्था तक पहुंचा दिया गया.
धार्मिक एवं सांस्कृतिक रूप से नेपाली जनमानस भारतीय हिंदू जनमानस के निकट और सहोदर जैसा है. यह भी चीन और पाकिस्तान को रास नहीं आ रहा था. विगत कुछ वर्षों पूर्व नेपाल में आए भीषण भूकंप के कारण उत्पन्न त्रासदी में चीन ने बढ़-चढ़ कर दानशीलता दिखायी तथा इस रणनीति में सफल रहा की वो भारत की तुलना में नेपाल का बड़ा हितैषी है. जबकि वास्तव में ऐसा है नहीं.
आज चीन के माओ त्से तुंग को मानने वाले नेपाल में भी मौजूद हैं, और उसी नेपाल में पाकिस्तान की खतरनाक आईएसआई. भी काफी सक्रिय है. निश्चित रूप से इस तरह के मेलजोल से नेपाल के अंदर और भारत के सीमावर्ती इलाकों, जो नेपाल के करीब हैं, में एक बड़ी अस्थिरता उत्पन्न होने की प्रबल संभावना हमेशा बनी रहती है.
नेपाल स्वयं में एक छोटा राष्ट्र है जो एक तरफ भारत तथा दूसरी तरफ चीन से घिरा हुआ है. चूंकि भारत एवं चीन मौलिक रूप से एक दूसरे के परस्पर विरोधी साबित हुए हैं, इसके चलते आधुनिक समय में नेपाल के अंदर किसी भी प्रकार की अस्थिरता उत्पन्न होने की प्रबल संभावना बनी होती है. नेपाल के माओवादियों ने चीन से प्रेरित हो कर अपनी एक सेना बनायी है.
किसी समय नेपाल में हुए सिविल वॉर में बहुत सारे नेपाली मारे गए. नेपाल की वर्तमान सरकार चीनियों से हाथ मिलाने में ज़्यादा विश्वास रखती है इसलिए भविष्य में नेपाल के अंदर मानवाधिकार का उल्लंघन, चीन का बढ़ता हस्तक्षेप और प्रभाव जैसी गतिविधियों का खतरा बना रहता है. समय के साथ, चीन की गतिविधियां नेपाल के अंदर बढ़ती ही जा रही है, इससे पहले की नेपाल चीन के 'कब्जे' में पूरी तरह से आ जाये, यह नितांत आवश्यक है कि भारत-नेपाल सम्बन्ध और सुदृण हो और नेपाल में मौजूद पाकिस्तानी आईएस आई को ख़त्म किया जाए.
चीन खुद में एक ‘भस्मासुर’ है इसका 'इंतज़ाम' विश्व के प्रमुख देश अपनी-अपनी तरह से कर लेंगे.फ़िलहाल हमारी वर्तमान चुनौती चीनी वायरस अर्थात ”कोरोना संकट” से लड़ना है तथा भारतीय जनमानस के साथ-साथ विश्व मानवता को भी बचाने में यथासंभव सहयोग करना है.
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि इन बेरहम और बहम ग्रसित वामपंथियों को सद्दबुद्धि प्रदान करें तथा इन्हें माओ और मार्क्स के साथ-साथ महात्मा बुद्ध और महात्मा गांधी को भी समझने की क्षमता प्रदान करें. आने वाले समय में भारत, नेपाल और तिब्बत त्रयी दुनिया की श्रेष्ठतम महाशक्ति होगी. हम सब एक साथ संकल्प लेते हैं इस आशा के साथ कि भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व इस महामारी से बाहर निकलेगा और फिर से जीवन समान्य होगा.
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