बीजेपी के खिलाफ विपक्ष के महागठबंधन की पहल के साथ नीतीश कुमार चाहते थे - बड़ी पार्टी होने के कारण नेतृत्व सोनिया गांधी ही करें. सोनिया ने तो नीतीश की बात मान ली, लेकिन मीटिंग में नीतीश कुमार नहीं आये.
ऐसे में जब विपक्ष की मोर्चेबंदी हो रही हो उसमें बीजेपी के खिलाफ सबसे मुखर अरविंद केजरीवाल की गैरमौजूदगी भी हैरान करने वाली है. मगर, पता चला है कि सोनिया की मीटिंग में केजरीवाल को न्योता ही नहीं मिला था.
सोनिया की मीटिंग से नीतीश के नदारद रहने की वजह थोड़ी बहुत समझ में तो आती है, लेकिन केजरीवाल को दरकिनार करना थोड़ा अजीब लगता है.
सोनिया की मीटिंग
मीटिंग में सबसे पहले पहुंची थी ममता बनर्जी. मेजबान कांग्रेस के नेताओं से भी पहले. मीटिंग के बाद ममता ही मीडिया से मुखातिब हुईं और बताया कि वहां राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार की बजाये सहारनपुर, कश्मीर और ईवीएम मशीन के डेमो पर चर्चा हुई.
बैठक का असली मकसद तो 2019 के लिए एक मजबूत फोरम खड़ा करना है लेकिन राष्ट्रपति चुनाव के बहाने सबका मन टटोलने का भी ये बेहतरीन मौका है. ममता ने ये भी बताया कि राष्ट्रपति पद के लिए किसी उम्मीदवार पर सहमति नहीं बनती है तो एक कमेटी बनाई जाएगी जो इसके लिए रास्ता सुझाएगी.
सोनिया की ये मीटिंग इस मायने में खास मानी जाएगी क्योंकि इसमें वो सभी नेता पहुंचे जो एक दूसरे को कभी फूटी आंख भी नहीं देखना चाहते. नीतीश और केजरीवाल की गैरमौजूदगी से ये भी साफ हो गया कि बीजेपी के खिलाफ भले ही अलग अलग कोई कितना भी चिल्लाए, एक मंच से एक स्वर में नामुमकिन है.
बैठक में नीतीश की पार्टी से शरद यादव और केसी त्यागी पहुंचे थे तो बिहार के महागठबंधन के दूसरे पार्टनर लालू प्रसाद भी मौजूद रहे....
बीजेपी के खिलाफ विपक्ष के महागठबंधन की पहल के साथ नीतीश कुमार चाहते थे - बड़ी पार्टी होने के कारण नेतृत्व सोनिया गांधी ही करें. सोनिया ने तो नीतीश की बात मान ली, लेकिन मीटिंग में नीतीश कुमार नहीं आये.
ऐसे में जब विपक्ष की मोर्चेबंदी हो रही हो उसमें बीजेपी के खिलाफ सबसे मुखर अरविंद केजरीवाल की गैरमौजूदगी भी हैरान करने वाली है. मगर, पता चला है कि सोनिया की मीटिंग में केजरीवाल को न्योता ही नहीं मिला था.
सोनिया की मीटिंग से नीतीश के नदारद रहने की वजह थोड़ी बहुत समझ में तो आती है, लेकिन केजरीवाल को दरकिनार करना थोड़ा अजीब लगता है.
सोनिया की मीटिंग
मीटिंग में सबसे पहले पहुंची थी ममता बनर्जी. मेजबान कांग्रेस के नेताओं से भी पहले. मीटिंग के बाद ममता ही मीडिया से मुखातिब हुईं और बताया कि वहां राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार की बजाये सहारनपुर, कश्मीर और ईवीएम मशीन के डेमो पर चर्चा हुई.
बैठक का असली मकसद तो 2019 के लिए एक मजबूत फोरम खड़ा करना है लेकिन राष्ट्रपति चुनाव के बहाने सबका मन टटोलने का भी ये बेहतरीन मौका है. ममता ने ये भी बताया कि राष्ट्रपति पद के लिए किसी उम्मीदवार पर सहमति नहीं बनती है तो एक कमेटी बनाई जाएगी जो इसके लिए रास्ता सुझाएगी.
सोनिया की ये मीटिंग इस मायने में खास मानी जाएगी क्योंकि इसमें वो सभी नेता पहुंचे जो एक दूसरे को कभी फूटी आंख भी नहीं देखना चाहते. नीतीश और केजरीवाल की गैरमौजूदगी से ये भी साफ हो गया कि बीजेपी के खिलाफ भले ही अलग अलग कोई कितना भी चिल्लाए, एक मंच से एक स्वर में नामुमकिन है.
बैठक में नीतीश की पार्टी से शरद यादव और केसी त्यागी पहुंचे थे तो बिहार के महागठबंधन के दूसरे पार्टनर लालू प्रसाद भी मौजूद रहे. यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भी मीटिंग में पहुंचीं थीं. जब समाजवादी पार्टी से रामगोपाल यादव और नरेश अग्रवाल दिखे तो लगा अखिलेश यादव भी गच्चा दे गये - लेकिन थोड़ी देर बाद अखिलेश खुद भी पहुंच गये.
नीतीश और केजरीवाल की गैरमौजूदगी
नीतीश और केजरीवाल की गैरमौजूदगी अगर तात्कालिक है फिर तो कोई खास बात नहीं, लेकिन आगे भी ऐसा ही होगा तो विपक्षी एकता के लिए ये बड़ा धक्का है. जब से विपक्षी एकता की कोशिशें चल रही हैं तभी से ममता बनर्जी खुद केजरीवाल के संपर्क में हैं. दिल्ली के एमसीडी चुनावों में जेडीयू की ओर से उम्मीदवार उतारने के बावजूद नीतीश और केजरीवाल की दोस्ती में अभी तक किसी और बात की कोई सूचना नहीं है. फिर केजरीवाल को मीटिंग से दूर रखने का फैसला थोड़ा ताज्जुब करने वाला है.
जैसा कि मालूम हुआ है केजरीवाल को मीटिंग का न्योता नहीं भेजा गया. आखिर इसकी असल वजह क्या हो सकती है?
अगर एक दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में रहना कोई पैमाना है तो ऐसे कई उदाहरण हैं. मायावती भी तो कांग्रेस के खिलाफ यूपी के चुनाव मैदान में थीं. कांग्रेस तो पश्चिम बंगाल में ममता के खिलाफ चुनाव लड़ी थी. इस हिसाब से देखें तो सीताराम येचुरी और ममता को तो साथ कभी आना ही नहीं चाहिये. यूपी में एक दूसरे के खिलाफ तो अखिलेश और मायावती भी थे लेकिन चुनाव नतीजों के बाद दोनों ने साथ आने की हामी भर दी थी.
केजरीवाल से कांग्रेस के खफा होने की एक बड़ी वजह हो सकती है आम आदमी पार्टी का हर उस चुनाव मैदान में होना जहां बीजेपी और कांग्रेस आमने सामने हैं. इस फॉर्मूले में तो सबसे ताजा दिल्ली का एमसीडी चुनाव ही है, लेकिन उससे केजरीवाल दूर रहे भला कैसे हो सकता है? हां, पंजाब, गोवा और भी आगे गुजरात के विधानसभा चुनाव ऐसे मामले जरूर हैं जहां कांग्रेस की राह में केजरीवाल की पार्टी खड़ी हो जाती है.
नीतीश कुमार के दूरी बनाने की पहली वजह तो लालू की तात्कालिक मुश्किलें हो सकती हैं. लालू की बेटी मीसा भारती के सीए की गिरफ्तारी के बाद उन्हें नोटिस भेज कर आयकर ने तलब किया हुआ है. इस मामले के ठीक पहले एक टीवी चैनल पर लालू और जेल में बंद शहाबुद्दीन की बातचीत की ऑडियो क्लिप को लेकर भी खूब बवाल हुआ. दबी जबान में चर्चा ये भी रही कि इन सब के पीछे कहीं न कहीं नीतीश की भी भूमिका रही. ये तो सच है कि भले ही लालू और नीतीश कहें कि महागठबंधन में सब ठीक ठाक है लेकिन हकीकत कुछ और ही है. चर्चा तो लालू कैंप द्वारा नीतीश के तख्तापलट की तैयारी तक की होती है, फिर नीतीश आखिर उसे न्यूट्रलाइज करने के अपने उपाय न करें तो करें भी क्या?
खैर ताजा अपडेट यह है कि नीतीश कुमार ने भले ही सोनिया गांधी के न्यौते को व्यवस्तता का हवाला देते हुए ठुकरा दिया है, लेकिन वे अगले ही दिन दिल्ली आ रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी के न्यौते पर. मौका है मॉरीशस के प्रधानमंत्री के साथ सहभोज का. मोदी-नीतीश मिलेंगे तो मॉरीशस के अलावा कुछ और बात भी तो होगी.
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