बिहार में जहरीली शराब से मौतों (Bihar Hooch Tragedy) के मामले में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) एक बार फिर निशाने पर हैं. सारण जिले में जहरीली शराब पीने से 38 लोगों की मौत हो गयी है. सूबे में शराबबंदी लागू होने के बाद से ऐसी घटनाएं कई बार हो चुकी हैं.
न सिस्टम बदला है, न ही अफसर बदले हैं. सिर्फ राजनीति बदल गयी है. लोगों की मौत से पूरे इलाके में मातम है. पुलिस मौके पर पहुंच कर जांच पड़ताल की रस्म पहले की तरह ही पूरी मुस्तैदी से निभा रहे हैं. बाकी सबको पता है कि कुछ भी नया नहीं होने वाला है. सिस्टम और सरकार दोनों को अगली घटना का इंतजार रहेगा.
जहरीली शराब से मौतों को लेकर नीतीश कुमार पर पहले तेजस्वी यादव हमलावर हुआ करते थे, अब बीजेपी आक्रामक नजर आ रही है.
जब नीतीश कुमार एनडीए के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, बीजेपी या तो चुप रह जाती थी या फिर शराबबंदी की समीक्षा की बात होने पर हामी भर दिया करती थी. तब नीतीश कुमार को अपना बचाव अकेले करना पड़ता था. अब पहले से मजबूत साथी मिल गया है.
पहले भी विपक्ष सवाल पूछा करता था और सत्ता पक्ष रिएक्ट करना था, अब भी वही हो रहा है. बस खेमा बदल गया है - अब तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav), नीतीश कुमार के बचाव में खड़े हो गये हैं. नीतीश कुमार पहले की तरह अकेले नहीं नजर आ रहे हैं. ये बदलाव तो हुआ है.
एक तरह का एक्सचेंज ऑफर है. नीतीश कुमार ऐसे शो कर रहे हैं कि लगे वो तेजस्वी यादव को मन ही मन नेता मान चुके हैं. और किसी को ये लगे या न लगे, कम से कम लालू यादव और राबड़ी देवी दोनों को लगना चाहिये. तेज प्रताप और मीसा भारती या फिर सिंगापुर बैठीं रोहिणी आचार्य ही सही, किसी को कैसा लगता है नीतीश कुमार को बहुत फर्क नहीं पड़ता.
क्या एक पल के लिए बिहार की राजनीति को समझने के लिए यूपी की हालिया सियासत से तुलना की जा सकती है? हाल ही में शिवपाल यादव ने समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को भैया बोलने की जगह छोटे नेताजी कह कर बुलाने को कहा था - मतलब, शिवपाल यादव अब अखिलेश यादव को नेता मान...
बिहार में जहरीली शराब से मौतों (Bihar Hooch Tragedy) के मामले में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) एक बार फिर निशाने पर हैं. सारण जिले में जहरीली शराब पीने से 38 लोगों की मौत हो गयी है. सूबे में शराबबंदी लागू होने के बाद से ऐसी घटनाएं कई बार हो चुकी हैं.
न सिस्टम बदला है, न ही अफसर बदले हैं. सिर्फ राजनीति बदल गयी है. लोगों की मौत से पूरे इलाके में मातम है. पुलिस मौके पर पहुंच कर जांच पड़ताल की रस्म पहले की तरह ही पूरी मुस्तैदी से निभा रहे हैं. बाकी सबको पता है कि कुछ भी नया नहीं होने वाला है. सिस्टम और सरकार दोनों को अगली घटना का इंतजार रहेगा.
जहरीली शराब से मौतों को लेकर नीतीश कुमार पर पहले तेजस्वी यादव हमलावर हुआ करते थे, अब बीजेपी आक्रामक नजर आ रही है.
जब नीतीश कुमार एनडीए के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, बीजेपी या तो चुप रह जाती थी या फिर शराबबंदी की समीक्षा की बात होने पर हामी भर दिया करती थी. तब नीतीश कुमार को अपना बचाव अकेले करना पड़ता था. अब पहले से मजबूत साथी मिल गया है.
पहले भी विपक्ष सवाल पूछा करता था और सत्ता पक्ष रिएक्ट करना था, अब भी वही हो रहा है. बस खेमा बदल गया है - अब तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav), नीतीश कुमार के बचाव में खड़े हो गये हैं. नीतीश कुमार पहले की तरह अकेले नहीं नजर आ रहे हैं. ये बदलाव तो हुआ है.
एक तरह का एक्सचेंज ऑफर है. नीतीश कुमार ऐसे शो कर रहे हैं कि लगे वो तेजस्वी यादव को मन ही मन नेता मान चुके हैं. और किसी को ये लगे या न लगे, कम से कम लालू यादव और राबड़ी देवी दोनों को लगना चाहिये. तेज प्रताप और मीसा भारती या फिर सिंगापुर बैठीं रोहिणी आचार्य ही सही, किसी को कैसा लगता है नीतीश कुमार को बहुत फर्क नहीं पड़ता.
क्या एक पल के लिए बिहार की राजनीति को समझने के लिए यूपी की हालिया सियासत से तुलना की जा सकती है? हाल ही में शिवपाल यादव ने समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को भैया बोलने की जगह छोटे नेताजी कह कर बुलाने को कहा था - मतलब, शिवपाल यादव अब अखिलेश यादव को नेता मान चुके हैं.
ऐसा नजारा तो तेजस्वी यादव के जन्मदिन पर भी देखने को मिला था. जब एक सरकारी कार्यक्रम में नीतीश कुमार सामने बैठे लोगों से खड़े होकर और जोर जोर ताली बजाकर हैपी बर्थडे बोलने के लिए अचानक कहने लगे - और अब तो नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंधन का नेता घोषित कर दिया है.
नीतीश कुमार की घोषणा पर बीजेपी की तरह से जो प्रतिक्रिया आयी है, बहुत हद तक हकीकत के करीब ही लग रही है. तभी तो हर किसी के मन में एक सवाल गूंज रहा है - क्या तेजस्वी यादव को हैंडओवर देने के बहाने नीतीश कुमार ने ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पक्की कर ली है?
सत्ता समीकरण बदले, शराबबंदी पर सियासत नहीं
बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार शीतकालीन सत्र में वैसे ही आग बबूला नजर आये, जैसे 2020 के चुनाव के बाद लोग उनके चश्मदीद बने थे. तब उनके टारगेट पर तेजस्वी यादव थे, इस बार बीजेपी के नेता - और वही तेजस्वी यादव अब नीतीश कुमार का बचाव कर रहे हैं. शायद नीतीश कुमार के भाई जैसे दोस्त का बेटा होने का फर्ज निभा रहे थे. तब तो आपे से बाहर होने के बावजूद नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को ऐसे ही पेश भी किया था.
नीतीश कुमार के गुस्सा होने और जीभर कोसने के बाद बीजेपी के सारे विधायकों ने सदन का बहिष्कार कर दिया. बाहर निकल कर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम लेकर नारेबाजी करने लगे. बीजेपी विधायकों का कहना रहा कि सदन में उन लोगों ने जब जहरीली शराब से हुई मौतों पर सवाल किया तो नीतीश कुमार उन लोगों को बर्बाद करने की धमकी देने लगे - और बीजेपी विधायक बहुत हद तक सही भी कह रहे थे.
शराबबंदी के बावजूद लोगों की मौत पर जब बीजेपी के विधायकों ने सवाल किया तो नीतीश कुमार का कहना था कि पहले तो वे सभी शराबबंदी के पक्ष में थे - अब क्या हो गया है?
बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार शोर शराबे के बीच नीतीश कुमार बोले जा रहे थे, 'क्या हो गया... अरे! तुम बोल रहे हो...'
नीतीश कुमार बीजेपी विधायकों के लिए कह रहे थे, 'भगाओ इसको... तुम लोग इतना गंदा काम करवा रहे हो... अब टॉलरेट नहीं किया जाएगा... ऐ सबको भगाओ यहां से...'
नीतीश कुमार से शराबबंदी को लेकर पहले कई बार सवाल कर चुके तेजस्वी यादव कहते हैं, शराब की... जो ये लोग बात कर रहे थे... शपथ तो इन लोगों ने भी लिया था... आज बीजेपी को जहरीली शराब से मौत नजर आ रही है... बीजेपी जब सत्ता में थी तब कितने लोग मरे... तब बीजेपी चुप्पी साधी हुई थी.'
नीतीश कुमार के बचाव में डिप्टी सीएम तेजस्वी यहां तक कहने लगे कि जनता के मुद्दे न उठा कर बीजेपी केवल हंगामा कर रही है - ये क्या बात हुई, क्या जहरीली शराब से हो रही मौत बिहार की जनता का मुद्दा नहीं है?
अगर ये जनता का मुद्दा नहीं है, तो पहले तेजस्वी यादव खुद ऐसी घटनाओं पर सवाल क्यों पूछा करते थे? नीतीश कुमार के बचाव में तेजस्वी यादव की दलील है, सब लोग जानते हैं कि नीतीश जी के नेतृत्व में महागठबंधन की नई सरकार लोगों के लिए कितना काम कर रही है...'
महागठबंधन के भविष्य का नेता
तेजस्वी यादव को नीतीश कुमार अपने बाद महागठबंधन का नेता घोषित कर चुके हैं. नीतीश कुमार ने महागठबंधन के विधायकों की बैठक में मुख्य तौर पर दो बातें कही हैं. एक बात सारे विधायकों के लिए और एक बात सिर्फ कांग्रेस विधायकों से.
नीतीश कुमार का ये सबसे बड़ा राजनीतिक बयान है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में तेजस्वी यादव ही महागठबंधन के नेता होंगे. बैठक में कांग्रेस विधायकों से मुखाबित होकर नीतीश कुमार ने आलाकमान तक अपना मैसेज पहुंचाने को कहा - मैं 2024 में प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं हूं.
ये बात तो नीतीश कुमार पहले से ही कहते रहे हैं. नीतीश कुमार का कहना है कि वो सिर्फ विपक्षी दलों को एकजुट कर रहे हैं ताकि बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2024 में केंद्र की सत्ता से बेदखल किया जा सके.
एनडीए छोड़ने के बाद से ही नीतीश कुमार अपने मिशन में जुट गये थे, लेकिन कुछ दिनों से ये भी सुनने को मिल रहा है कि विपक्षी खेमे में कांग्रेस के दबदबे के कारण नीतीश कुमार को बहुत भाव नहीं मिल रहा है. कांग्रेस का दबदबा राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा की वजह से बढ़ा हुआ महसूस किया जा रहा होगा.
लेकिन इसी बीच ये भी सुनने को मिला है कि नीतीश कुमार एक अलग ही मिशन पर काम कर रहे हैं. ये मिशन है पुराने जनता परिवार को एकजुट करने का. ये भी सुनने में आया है कि शुरुआत लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल से हो सकती है और नवीन पटनायक के बीजू जनता दल से होते हुए पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के जनता दल सेक्युलर तक पहुंच सकता है.
तेजस्वी यादव को लेकर नीतीश कुमार के बयान को समझें तो 2024 के आम चुनाव तक ही वो खुद को महागठबंधन के नेता के तौर पर बताने की कोशिश की है - उसके बाद वासे साल भर के वक्त पर अभी संशय ही लगता है. साल भर तो खेल करने के लिए काफी ही है. फिलहाल नीतीश कुमार बिहार के सात राजनीतिक दलों के महागठबंधन के नेता हैं, जिनमें से एक कांग्रेस भी है.
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार महागठबंधन के नेता बनाये गये थे. 2020 के बिहार चुनाव में महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव रहे - और एक बार फिर नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को ही भविष्य का नेता यानी 2025 के चुनाव के लिए नेता होने के ऐलान कर दिया है.
आपको याद होगा, जब प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार ने जेडीयू में शामिल कराया था, तो उनको पार्टी का भविष्य ही बताया था. प्रशांत किशोर के साथ क्या हुआ, तेजस्वी यादव चाहें तो घटनाक्रम में अपना भविष्य आसानी से देख सकते हैं. ये जरूरी नहीं है कि तेजस्वी यादव के साथ भी नीतीश कुमार वैसा ही व्यवहार करें, लेकिन ऐसा न करें इस बात की गारंटी कौन देगा?
लालू यादव ने तेजस्वी यादव को अपनी राजनीतिक विरासत तो पहले ही सौंप दी थी, नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को एक तरीके से अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है - बड़ा सवाल ये है कि सब कुछ हैंडओवर भी कर देंगे क्या?
मतलब, नीतीश कुमार अपने उत्तराधिकारी की ताजपोशी भी कराएंगे क्या? नीतीश कुमार का ट्रैक रिकॉर्ड तो यही कह रहा है कि एक बार फिर वो नयी चाल चले हैं. जैसे बड़ी मछलियों के शिकार होने से बचने के लिए छोटी मछलियां डाल कर मुंह बंद करा दिया जाता है, नीतीश कुमार अपने राजनीतिक दांव से लालू परिवार और आरजेडी नेताओं और कार्यकर्ताओं का मुंह बंद करने की कोशिश की है.
नीतीश कुमार के अगले विधानसभा तक अपनी कुर्सी सुरक्षित कर लेने का जो आरोप बीजेपी नेता लगा रहे हैं, अंदर से भी ऐसी ही खबरें आ रही हैं. कहा जा रहा है कि जैसे 2017 में नीतीश कुमार को लालू यादव की चाल की भनक लग गयी और तत्काल प्रभाव से वो महागठबंधन छोड़ कर एनडीए में चले गये थे, एक बार फिर नीतीश कुमार को तेजस्वी यादव से ऐसी ही आशंका हुई है. बार बार पाला बदलने का काम हो सकता है, लेकिन जल्दी जल्दी तो मुश्किल ही होगा.
ऐसा समझा जा रहा है कि 2020 के चुनाव में बहुमत से दूर रह गये तेजस्वी यादव अब उसके काफी करीब पहुंच चुके हैं - और बहुमत के जादुई नंबर 122 से महज तीन कदम दूर बताये जा रहे हैं. मतलब, तेजस्वी यादव को अब सिर्फ तीन विधायकों को पाले में मिलाने की जरूरत ताकि वो नीतीश कुमार से जबरन कुर्सी छीन सकें - नीतीश कुमार ने अपने हिसाब से तात्कालिक तौर पर सबसे सही चाल चली है.
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