पिछ्ले कार्यकाल में नीतीश जी ने गली-गली शराब की दुकानें खुलवाई. अब उन दुकानों को बंद करा दिया है. पहले वे स्वयं लोगों से कहते थे- पियो और टैक्स भरो, ताकि छात्राओं को दी जाने वाली साइकिलों के पैसे आ सकें. अब वे सबको शराब न पीने की कसमें खिला रहे हैं. पहले वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अपमान करने वाले बीयर कारोबारी का सम्मान करते थे, उद्योग के नाम पर चाहते थे कि राज्य में बीयर और दारू की फैक्टरियां खुल जाएं, लेकिन अब सरकार को सरोकार याद आ गए हैं. पहले उनके अफसर राज्य में शराब की बिक्री बढ़ाने के लिए दिन-रात जुटे रहते थे, अब वे शराब न बिक सके, यह सुनिश्चित करने के लिए काम करेंगे. पहले उनके पुलिस वाले शराब माफिया से 10-10 करोड़ की रंगदारी मांगते पकड़े जाते थे, अब उनके पुलिस वाले खुद भी शराब न पीने की शपथ ले रहे हैं.
मुख्यमंत्री नितीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव. |
इन विरोधाभासी प्रसंगों के चलते मुझे रत्नाकर डाकू के बाल्मीकि ऋषि में कन्वर्ट होने की कहानी याद आ रही है. मुझे कहावत की वह बिल्ली मौसी भी याद आ रही है, जिन्होंने नौ सौ चूहे खाने के बाद अमर होने के लिए हज करने का फैसला किया था.
मुझे वह दौर भी याद है, जब हमारी माताएं-बहनें शराब का विरोध करती थीं, तो पुलिस वाले उन्हें दौड़ा देते थे. आरजेडी के नेता हिन्द केशरी यादव की शराब माफिया ने मुजफ्फरपुर कलक्ट्रेट के बाहर पिटाई कर दी थी. जब हम लोग नीतीश जी की शराब नीति की आलोचना करते थे, तो वे हमें अपना दुश्मन समझते थे. हाँ, बीजेपी के अश्विनी चौबे और सुशील मोदी जैसे कुछ नेता सिद्धांत रूप में ज़रूर हमारी बातों से सहमत दिखते थे.
बहरहाल, देर से ही सही, अगर...
पिछ्ले कार्यकाल में नीतीश जी ने गली-गली शराब की दुकानें खुलवाई. अब उन दुकानों को बंद करा दिया है. पहले वे स्वयं लोगों से कहते थे- पियो और टैक्स भरो, ताकि छात्राओं को दी जाने वाली साइकिलों के पैसे आ सकें. अब वे सबको शराब न पीने की कसमें खिला रहे हैं. पहले वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अपमान करने वाले बीयर कारोबारी का सम्मान करते थे, उद्योग के नाम पर चाहते थे कि राज्य में बीयर और दारू की फैक्टरियां खुल जाएं, लेकिन अब सरकार को सरोकार याद आ गए हैं. पहले उनके अफसर राज्य में शराब की बिक्री बढ़ाने के लिए दिन-रात जुटे रहते थे, अब वे शराब न बिक सके, यह सुनिश्चित करने के लिए काम करेंगे. पहले उनके पुलिस वाले शराब माफिया से 10-10 करोड़ की रंगदारी मांगते पकड़े जाते थे, अब उनके पुलिस वाले खुद भी शराब न पीने की शपथ ले रहे हैं.
मुख्यमंत्री नितीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव. |
इन विरोधाभासी प्रसंगों के चलते मुझे रत्नाकर डाकू के बाल्मीकि ऋषि में कन्वर्ट होने की कहानी याद आ रही है. मुझे कहावत की वह बिल्ली मौसी भी याद आ रही है, जिन्होंने नौ सौ चूहे खाने के बाद अमर होने के लिए हज करने का फैसला किया था.
मुझे वह दौर भी याद है, जब हमारी माताएं-बहनें शराब का विरोध करती थीं, तो पुलिस वाले उन्हें दौड़ा देते थे. आरजेडी के नेता हिन्द केशरी यादव की शराब माफिया ने मुजफ्फरपुर कलक्ट्रेट के बाहर पिटाई कर दी थी. जब हम लोग नीतीश जी की शराब नीति की आलोचना करते थे, तो वे हमें अपना दुश्मन समझते थे. हाँ, बीजेपी के अश्विनी चौबे और सुशील मोदी जैसे कुछ नेता सिद्धांत रूप में ज़रूर हमारी बातों से सहमत दिखते थे.
बहरहाल, देर से ही सही, अगर नीतीश जी जाग गए हैं, तो हम उन्हें गुड मॉर्निंग कहते हैं. अगर सुबह के भूले हमारे मुख्यमंत्री ने शाम को घर लौटने का फैसला कर लिया है, तो उनकी सुबह की भूलों को हम माफ़ करने के लिए तैयार हैं. पहले उन्होंने कितने चूहे खाए, इसे भूलकर उनके ताज़ा हज को भी हम मान्यता देने को तैयार हैं, बशर्ते कि उनके प्रयासों में ईमानदारी दिखे. आशा है, सरकार अपने माफिया मित्रों पर अंकुश लगाने में कामयाब होगी.
अगर बिहार में शराब-बंदी लागू हुई है, तो यह पूरी और सच्ची होनी चाहिए. अब हम इसपर प्रभावी तरीके से अमल होता हुआ देखना चाहते हैं. साथ ही पूरे देश में शराबबंदी के लिए हमारा संघर्ष और अभियान अभी जारी रहेगा.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.