नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के लिए मुख्यमंत्री पद इस बार वैसे ही है जैसे बीजेपी के बाकी चुनावी वादे - जैसे 19 लाख रोजगार देने की बातें या फिर बिहार के लोगों को मुफ्त कोरोना वैक्सीन देने का चुनावी आश्वासन. बिहार (Bihar Politics) के चुनाव नतीजों को लेकर भी नीतीश कुमार का पहला रिएक्शन तभी आया जब उनको भरोसा हो गया कि बीजेपी दफ्तर से ऐसी घोषणा होने जा रही है कि मुख्यमंत्री पद को लेकर बीजेपी नेतृत्व किसी तरह के यू टर्न के बारे में नहीं सोच रहा है. असल में जेडीयू और बीजेपी की सीटों में बड़े फासले दर्ज होने के बाद से ही कुछ बीजेपी नेता मुख्यमंत्री पद को लेकर नये सिरे से बहस शुरू करने की कोशिश कर रहे थे - लेकिन जैसे चुनावों के पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नीतीश कुमार के बिहार चुनाव में एनडीए के नेता होने की बात पर मुहर लगायी थी, ठीक वैसी ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने अब उनको ही मुख्यमंत्री बनाये जाने को वीटो कर दिया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये तो तो बोल दिया है कि बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही बीजेपी के लोग भी काम करेंगे - लेकिन नीतीश कुमार सार्वजनिक तौर पर ये भी सुनना और कबूल करवाना चाहते हैं कि ऐसा कब तक हो सकेगा? ये सब पांच साल के लिए है या कोई अस्थायी इंतजाम है? उनको पहले की तरह ही सरकार चलाने की आजादी होगी या फिर शिवराज सिंह चौहान की तरह मंत्रियों के नाम ही नहीं उनके विभागों का बंटवारा भी दिल्ली में ही होगा?
नीतीश कुमार के मन में हिचकिचाहट तो होगी ही!
नीतीश कुमार के चुनाव नतीजों से निराश होने के लिए सिर्फ जेडीयू का प्रदर्शन ही काफी नहीं है और भी तमाम कारण हैं - चिराग पासवान के अंडरकवर वोटकटवा ऑपरेशन का साफ साफ असर, बीजेपी की चुनावी रणनीति या फिर चुनाव नतीजे आने के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर बीजेपी नेताओं की तरफ से नये सिरे से कन्फ्यूजन पैदा करने जैसी कोशिशें.
बिहार चुनाव के वोटों की गिनती के दौरान ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित बीजेपी नेताओं के ट्विटर पर...
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के लिए मुख्यमंत्री पद इस बार वैसे ही है जैसे बीजेपी के बाकी चुनावी वादे - जैसे 19 लाख रोजगार देने की बातें या फिर बिहार के लोगों को मुफ्त कोरोना वैक्सीन देने का चुनावी आश्वासन. बिहार (Bihar Politics) के चुनाव नतीजों को लेकर भी नीतीश कुमार का पहला रिएक्शन तभी आया जब उनको भरोसा हो गया कि बीजेपी दफ्तर से ऐसी घोषणा होने जा रही है कि मुख्यमंत्री पद को लेकर बीजेपी नेतृत्व किसी तरह के यू टर्न के बारे में नहीं सोच रहा है. असल में जेडीयू और बीजेपी की सीटों में बड़े फासले दर्ज होने के बाद से ही कुछ बीजेपी नेता मुख्यमंत्री पद को लेकर नये सिरे से बहस शुरू करने की कोशिश कर रहे थे - लेकिन जैसे चुनावों के पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नीतीश कुमार के बिहार चुनाव में एनडीए के नेता होने की बात पर मुहर लगायी थी, ठीक वैसी ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने अब उनको ही मुख्यमंत्री बनाये जाने को वीटो कर दिया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये तो तो बोल दिया है कि बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही बीजेपी के लोग भी काम करेंगे - लेकिन नीतीश कुमार सार्वजनिक तौर पर ये भी सुनना और कबूल करवाना चाहते हैं कि ऐसा कब तक हो सकेगा? ये सब पांच साल के लिए है या कोई अस्थायी इंतजाम है? उनको पहले की तरह ही सरकार चलाने की आजादी होगी या फिर शिवराज सिंह चौहान की तरह मंत्रियों के नाम ही नहीं उनके विभागों का बंटवारा भी दिल्ली में ही होगा?
नीतीश कुमार के मन में हिचकिचाहट तो होगी ही!
नीतीश कुमार के चुनाव नतीजों से निराश होने के लिए सिर्फ जेडीयू का प्रदर्शन ही काफी नहीं है और भी तमाम कारण हैं - चिराग पासवान के अंडरकवर वोटकटवा ऑपरेशन का साफ साफ असर, बीजेपी की चुनावी रणनीति या फिर चुनाव नतीजे आने के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर बीजेपी नेताओं की तरफ से नये सिरे से कन्फ्यूजन पैदा करने जैसी कोशिशें.
बिहार चुनाव के वोटों की गिनती के दौरान ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित बीजेपी नेताओं के ट्विटर पर रिएक्शन आने लगे थे. तब भी जबकि रुझानों में एनडीए और महागठबंधन की सीटों में कांटे का मुकाबला देखने को मिल रहा था. प्रधानमंत्री मोदी के साथ साथ बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी ट्वीट कर बिहार के लोगों का शुक्रिया कहा, लेकिन नीतीश कुमार खामोश रहे. देर रात नतीजे आ जाने के बावजूद नीतीश कुमार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न आना सबको हैरान कर रहा था.
नीतीश कुमार का पहला रिएक्शन तब आया जब दिल्ली में बीजेपी दफ्तर में जश्न का माहौल बन चुका था और उसमें शामिल होने के लिए जेपी नड्डा और अमित शाह के साथ साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहुंच गये.
ऐसा लगा जैसे नीतीश कुमार ने तब ट्वीट करने का फैसला किया जब पूरी तरह आश्वस्त हो गये कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सार्वजनिक तौर पर उनको ही बिहार का मुख्यमंत्री बनाये जाने की घोषणा करने वाले हैं.
बीजेपी नेतृत्व को तो पहले से ही ऐसी चीजों का आभास रहा होगा, लिहाजा अभी चुनाव नतीजे आये भी नहीं थे तभी अमित शाह की तरफ नीतीश कुमार से संपर्क साधने की कोशिश हुई. फिर आनन फानन में सुशील मोदी और बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव को नीतीश कुमार के पास भेजा गया. ठीक उसी वक्त आरजेडी की तरफ से मुख्यमंत्री आवास से जिलों के डीएम को फोन कर नतीजों में हेरफेर कराने आरोप भी लगाये गये. ऐसे आरोपों को काउंटर करने के लिए ही चुनाव आयोग के अधिकारी बार बार मीडिया के जरिये अपडेट और सफाई देते रहे.
बाद में भी भूपेंद्र यादव और डिप्टी सीएम सुशील मोदी के साथ साथ बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल और केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने अलग से नीतीश कुमार से मुलाकात की. पेश तो इसे शिष्टाचार मुलाकात के तौर पर किया गया, लेकिन साथ साथ ये भी चर्चा रही कि ये सब नीतीश कुमार का मनोबल बनाये रखने और बीजेपी की तरफ से आश्वस्त किये जाने की कोशिशों का ही हिस्सा है.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि बीजेपी नेताओं की तरफ से नीतीश कुमार को भरोसा दिलाने की लगातार कोशिश हो रही है कि वो निश्चिंत होकर आगे बढ़ें और मान कर चलें की सरकार चलाने की पहले की तरह ही पूरी स्वतंत्रता होगी. रिपोर्ट में बीजेपी के ही एक नेता के हवाले से बताया गया है कि नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के मूड में नहीं हैं. बीजेपी के उस गुमनाम नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'वो इस बात से काफी परेशान हैं कि चिराग पासवान ने जेडीयू के कम से कम 25-30 उम्मीदवारों की जीत की उम्मीदों पर पानी फेर दिया.'
आखिर नीतीश को और क्या आश्वासन चाहिये?
चिराग पासवान को लेकर नीतीश कुमार ने ऐसी ही नाराजगी तब भी जाहिर की थी जब एनडीए के सीटों के बंटवारे की प्रेस कांफ्रेंस होने वाली थी. तब भी नीतीश कुमार प्रेस कांफ्रेंस में शामिल होने को तभी राजी हुए जब बीजेपी की तरफ से भरोसा दिलाया गया कि मीडिया के जरिये चिराग पासवान के प्रति पार्टी के स्टैंड को साफ किया जाएगा. प्रेस कांफ्रेंस में सुशील मोदी ने साफ तौर पर कहा कि एनडीए के सहयोगी दलों के अलावा किसी को भी प्रधानमंत्री मोदी के तस्वीर इस्तेमाल करने की छूट नहीं दी जाएगी और ऐसा होने पर चुनाव आयोग में शिकायत भी दर्ज करायी जाएगी.
नीतीश कुमार के चुनाव नतीजों पर रिएक्शन वाले ट्वीट से पहले जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी भी दिन पर टीवी चैनलों पर समझाते रहे कि किस तरह चिराग पासवान की हरकतों की वजह से जेडीयू को सीटों का नुकसान हुआ है. केसी त्यागी ने तो यहां तक कहा कि दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व को बैठ कर इस मुद्दे पर गौर करना चाहिये और भविष्य में ऐसा न होने देने के लिए कोई रास्ता भी निकाला जाना चाहिये.
नीतीश कुमार के स्टैंड से ये तो साफ हो ही चुका है कि अगर बीजेपी चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद को लेकर किये गये अपने वादे पर कायम है तो उसे कामकाज में हस्तक्षेप न करने और रबर स्टांप सीएम बनाने की कोशिश न करने का भी भरोसा दिलाये. वरना, स्थिति तो महागठबंधन जैसी ही हो जाएगी. चुनावों में भी नीतीश कुमार लोगों को यही समझाते रहे कि कैसे महागठबंधन सहयोगी लालू यादव के हस्तक्षेप के चलते उनका काम करना दूभर हो गया था और आखिरकार हालात ऐसे बने कि पाला बदल कर फिर से एनडीए में वापसी करनी पड़ी थी.
ये भी तो हो सकता है कि इसी बहाने नीतीश कुमार पहले से ही बीजेपी नेतृत्व को आगाह करने की कोशिश कर रहे हों कि काम करने में दिक्कत होने पर एक बार फिर उनके सामने विकल्प तैयार हो चुका है. ये तो बीजेपी नेतृत्व को भी पता होगा ही कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन को मिली ज्यादा सीटें उसके सामने नये सिरे से खतरा बन कर उभरी हैं - और नीतीश कुमार के नाराज होने की स्थिति में एक विकल्प तैयार माना जा सकता है.
1. जो हालात समझ में आ रहे हैं निश्चित तौर पर नीतीश कुमार बीजेपी की तरह से पहले से आश्वस्ति चाहते होंगे कि बतौर NDA मुख्यमंत्री उनके अधिकार और कर्तव्य की लक्ष्मण रेखा कैसी होगी?
2. मुख्यमंत्री के तौर पर उनको महज हस्ताक्षर करने भर ही अपने कामकाज सीमित रखने होंगे या फिर वो अपने मन सें मंत्रिमंडल का गठन भी कर सकेंगे? कहीं ऐसा तो नहीं कि मध्य प्रदेश की तरफ बिहार से संभावित मंत्रियों की सूची भेजे जाने के बाद उसे दिल्ली में पूरी तरह बदल दिया जाएगा? ध्यान रहे राजस्थान में तमाम उठापटक के बावजूद पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खुल कर सरकार गिराने के लिए आगे न बढ़ पाने की एक बड़ी वजह यही महसूस की गयी थी.
3. नीतीश कुमार ये भी आश्वस्त करना चाहेंगे कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उनके बैठने की कोई समय सीमा तो नहीं निर्धारित की जा रही है? कहीं ऐसा तो नहीं कि छह महीने बीतते बीतते उनको केंद्रीय मंत्रिमंडल में मनपसंद विभाग ऑफर किया जाने लगेगा?
खबर आ रही है कि दिवाली बाद 16 नवंबर को नीतीश कुमार के सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की पूरी संभावना है. दरअसल, नीतीश कुमार बिहार के नये राजनीतिक हालात में बीजेपी नेतृत्व के इरादे टटोलना चाहते हैं - वो ये भी चाहते हैं कि बीजेपी चिराग पासवान के जरिये जेडीयू को चुनावों में हुए नुकसान की भरपाई करे. एवज में अगर केंद्र में चिराग पासवान को एनडीए से अलग नहीं करना चाहती तो कम से कम बिहार में चीजें पहले की तरह ही चलने दे - वैसे भी बीजेपी को मालूम है कि नीतीश कुमार कमजोर जरूर हुए हैं, खत्म नहीं!
इन्हें भी पढ़ें :
Bihar Results: सत्ता विरोधी लहर में नीतीश झुलसे, BJP साफ बच निकली
नीतीश कुमार भी उद्धव ठाकरे की तरह बेवफा न बन जाएं...
तिकड़ी, जिसने तेजस्वी के अरमानों पर पानी फेर दिया
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.