नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दिक्कत का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. बीजेपी (BJP) नेता अमित शाह की वजह से भी बहुत मुश्किल होती हो ये भी नहीं लगता, लेकिन यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से परेशानी जरूर होती होगी.
योगी आदित्यनाथ तो नीतीश कुमार को लॉकडाउन के दौर से ही चुनौतियां पेश करते रहे हैं. यूपी के प्रवासी मजदूरों और कोटा के छात्रों की घर वापसी कराकर योगी आदित्यनाथ ने नीतीश कुमार के विरोधियों की आवाज तेज कर दी थी. कुछ दिन पहले ही लव-जिहाद पर कानून को लेकर नीतीश कुमार की नीयत पर सवाल खड़ा कराने लगे थे.
योगी आदित्यनाथ से नीतीश कुमार की परेशानी का ताजा सबब देश का मिजाज सर्वे है. इंडिया टुडे और कार्वी इनसाइट्स के सर्वे में भी योगी आदित्यनाथ को पछाड़ कर नंबर 1 की पोजीशन हासिल कर ली और परफॉर्मेंस के मामले में नीतीश कुमार को चौथे पायदान पर पहुंचा दिया. वैसे नीतीश और योगी आदित्यनाथ के बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी जगह बना ली थी. सर्वे से ये भी पता चल गया कि नीतीश कुमार की लोकप्रियता गिरनी थम नहीं रही है. बिहार विधानसभा चुनावों से पहले भी नीतीश कुमार की लोकप्रियता में गिरावट दर्ज की गयी थी, हालांकि, अभी के 6 फीसदी के मुकाबले तब बेहतर था - 7 फीसदी.
योगी आदित्यनाथ की ही तरह नीतीश कुमार को चिराग पासवान भी खूब परेशान करते हैं. लॉकडाउन के दौरान और बिहार चुनाव से पहले तो चिराग पासवान, नीतीश कुमार के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाये ही रहे, जब लोगों से वोट लेने का टाइम आया तो चिराग पासवान ने जड़ें खोदनी ही शुरू कर दी - और नतीजा ये हुआ कि जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी तो हुई ही, बीजेपी की सीटों के साथ फासला भी बढ़ गया.
लेकिन नीतीश कुमार अब चिराग पासवान (Chirag Paswan) से बदला लेना शुरू कर दिये हैं. अब तो ऐसा लगता है जैसे चिराग पासवान के बहाने नीतीश कुमार बीजेपी को अपने इशारों पर नचाना शुरू कर दिये हैं - दरअसल, चिराग पासवान के बिहार चुनाव के बाद हुई...
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दिक्कत का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. बीजेपी (BJP) नेता अमित शाह की वजह से भी बहुत मुश्किल होती हो ये भी नहीं लगता, लेकिन यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से परेशानी जरूर होती होगी.
योगी आदित्यनाथ तो नीतीश कुमार को लॉकडाउन के दौर से ही चुनौतियां पेश करते रहे हैं. यूपी के प्रवासी मजदूरों और कोटा के छात्रों की घर वापसी कराकर योगी आदित्यनाथ ने नीतीश कुमार के विरोधियों की आवाज तेज कर दी थी. कुछ दिन पहले ही लव-जिहाद पर कानून को लेकर नीतीश कुमार की नीयत पर सवाल खड़ा कराने लगे थे.
योगी आदित्यनाथ से नीतीश कुमार की परेशानी का ताजा सबब देश का मिजाज सर्वे है. इंडिया टुडे और कार्वी इनसाइट्स के सर्वे में भी योगी आदित्यनाथ को पछाड़ कर नंबर 1 की पोजीशन हासिल कर ली और परफॉर्मेंस के मामले में नीतीश कुमार को चौथे पायदान पर पहुंचा दिया. वैसे नीतीश और योगी आदित्यनाथ के बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी जगह बना ली थी. सर्वे से ये भी पता चल गया कि नीतीश कुमार की लोकप्रियता गिरनी थम नहीं रही है. बिहार विधानसभा चुनावों से पहले भी नीतीश कुमार की लोकप्रियता में गिरावट दर्ज की गयी थी, हालांकि, अभी के 6 फीसदी के मुकाबले तब बेहतर था - 7 फीसदी.
योगी आदित्यनाथ की ही तरह नीतीश कुमार को चिराग पासवान भी खूब परेशान करते हैं. लॉकडाउन के दौरान और बिहार चुनाव से पहले तो चिराग पासवान, नीतीश कुमार के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाये ही रहे, जब लोगों से वोट लेने का टाइम आया तो चिराग पासवान ने जड़ें खोदनी ही शुरू कर दी - और नतीजा ये हुआ कि जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी तो हुई ही, बीजेपी की सीटों के साथ फासला भी बढ़ गया.
लेकिन नीतीश कुमार अब चिराग पासवान (Chirag Paswan) से बदला लेना शुरू कर दिये हैं. अब तो ऐसा लगता है जैसे चिराग पासवान के बहाने नीतीश कुमार बीजेपी को अपने इशारों पर नचाना शुरू कर दिये हैं - दरअसल, चिराग पासवान के बिहार चुनाव के बाद हुई एनडीए की मीटिंग से दूर रखे जाने की वजह नीतीश कुमार ही माने जा रहे हैं.
चिराग पासवान की तबीयत ठीक रहेगी भी कैसे
लोक जनशक्ति पार्टी नेता चिराग पासवान बिहार एनडीए से अपना पत्ता कटा हुआ तो पहले से ही महसूस कर रहे थे, लेकिन दिल्ली को लेकर कोई नाउम्मीदी वाली बात कभी सोची भी नहीं होगी. चुनावों के दौरान तो जेपी नड्डा और अमित शाह के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भी वो सूची पढ़ कर सुना ही डाली थी जो पार्टियां एनडीए में शामिल रहीं. फिर भी चिराग पासवान ने इसे बिहार तक ही सिमटा हुआ समझा होगा. तब बोले भी थे कि प्रधानमंत्री मोदी भी नीतीश कुमार के दबाव बनाने के कारण ही ऐसा कह रहे हैं, जबकि वो खुद को प्रधानमंत्री मोदी का हनुमान मानते हैं. अब तो लगता है वो हनुमान नहीं एकलव्य के किरदार में रहे.
विधानसभा चुनावों के बाद पहली बार आम बजट से पहले हुई मीटिंग का बुलावा भी मिला था लेकिन ऐन वक्त पर, सूत्रों के हवाले से खबर आयी है, न्योता ही रद्द कर दिया गया. हालांकि, चिराग पासवान की तरफ से अभी ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है.
चिराग पासवान के दफ्तर की तरफ से बताया गया कि तबीयत ठीक नहीं होने के चलते वो एनडीए की मीटिंग में हिस्सा नहीं ले पा रहे हैं. वो भी तब जबकि वर्चुअल मीटिंग थी. अगर वर्चुअल मीटिंग अटेंड करने की स्थिति में भी चिराग पासवान नहीं हैं तो चिंता वाली बात है. सेहत के साथ किसी तरह का खिलवाड़ करने की जगह फौरन उनको अस्पताल का रुख करना चाहिये. तंदुरूस्ती सलामत रही तो सियासत भी दुरूस्त रहेगी.
मुद्दे की बात तो ये है जब इतना कुछ हो रहा हो तो तबीयत ठीक रहे भी तो कैसे रहे?
हवन भी करो और हाथ भी जल जाये तो भला तबीयत ठीक रह पाएगी क्या? भले ही ये जताने की कोशिश रही हो कि चिराग पासवान ने बीजेपी नेतृत्व की बातें नहीं सुनीं और एनडीए में जो सीटें मिल रही थीं लेने को तैयार नहीं हुए, लेकिन सारा नुकसान उठाकर चिराग पासवान ने फायदा तो बीजेपी को ही पहुंचाया है. अगर नीतीश कुमार को थोड़ा नुकसान हुआ है तो चिराग पासवान की पार्टी का तो सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है.
एनडीए की मीटिंग का बुलावा बीजेपी की तरफ से रद्द नहीं भी हुआ होता तो भी नीतीश कुमार अपनी तरफ से पहले ही इंतजाम कर चुके थे जिससे चिराग पासवान से आमना सामना न हो - आरसीपी सिंह को जेडीयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर.
आरसीपी सिंह तो अध्यक्ष पद के लिए अपने नाम की घोषणा होते ही फॉर्म में आ चुके थे, एनडीए मीटिंग के पहले चिराग पासवान की पार्टी का नाम सुनते ही भड़क गये.
आरसीपी सिंह से सवाल एनडीए की बैठक में चिराग पासवान के शामिल होने को लेकर ही पूछ लिया गया. चिराग पासवान का नाम सुनते ही झल्ला उठे - दूसरी पार्टी की बात हम नहीं करते, जिनका नाम आप लेते हैं उन पर मुझे कोई टिप्पणी नहीं करनी है.
तभी जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी भी बताने लगे कि वो लोग तो ये मान कर चल रहे हैं कि चिराग पासवान एनडीए से बाहर हैं. बोले, उनको किसी भी स्तर पर एनडीए के कार्यक्रमों का या फिर सरकारों का हिस्सा बनाने की अगर कोशिश होते है तो जरूर ये 'अनफ्रेंडली-एक्ट' होगा. असल में चुनावों में चिराग पासवान की हरकत को जेडीयू में बीजेपी की तरफ से अनफ्रेंडली एक्ट ही समझा जाता है.
केसी त्यागी ने साफ साफ बोल दिया, 'ऐसे लोग अगर एनडीए में आएंगे तो हम इसका विरोध करेंगे.'
हाल फिलहाल कई बार नीतीश कुमार को बीजेपी के खिलाफ बड़े ही सख्त लहजे का इस्तेमाल देखा गया है. अब तो जब भी कोई इधर उधर वाली बात होती है, नीतीश कुमार ये जरूर बताते हैं कि चुनाव नतीजे आने के बाद उनकी मुख्यमंत्री बनने की इच्छा नहीं थी, लेकिन बीजेपी के लोगों के कहने पर ही वो राजी हुए. एक से अधिक बार नीतीश ये भी कह चुके हैं कि उनको कुर्सी का कोई मोह नहीं है, एनडीए जिसे चाहे मुख्यमंत्री बना ले.
ऐसा ही तेवर तब भी देखने को मिला जब नीतीश कुमार से मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर पूछ लिया गया. मंत्रिमंडल विस्तार में देर की वजह भी वो बीजेपी पर थोप रहे थे. कह रहे थे, 'मुझे करना होता तो पहले की तरह पहले ही कर देते....' 'कभी देर हुई है क्या?' ये भी पूछ डाले थे.
चुनाव बाद नीतीश कुमार और उनके साथियों को सबसे ज्यादा तकलीफ अरुणाचल प्रदेश में जेडीयू विधायकों को बीजेपी में मिला लेने को लेकर रहा. आरसीपी सिंह से लेकर केसी त्यागी तक सभी ने इस बात को लेकर गुस्से का इजहार किया था.
मंत्रिमंडल से पहले जेडीयू में विस्तार होने लगा
पटना में सत्ता के गलियारों में एक चर्चा खूब हो रही है - जेडीयू की सीटें तो बगैर चुनाव के ही बढ़ने लगी हैं. हालांकि, जेडीयू को अभी उतना नहीं मिल सका जितना अरुणाचल प्रदेश में बिहार से अलग नुकसान हुआ है. अरुणाचल प्रदेश में जेडीयू के 6 विधायकों ने बीजेपी ज्वाइन कर लिया था.
अभी बिहार में जेडीयू की सीटों की संख्या में एक बढ़ोतरी के साथ 44 ही हुई है, लेकिन पार्टी के अर्धशतक जमाने के संकेत तेजी से मिलने लगे हैं. बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू को 43 सीटें मिली थीं और अब बीएसपी के एकमात्र विधायक के जेडीयू में पहुंच जाने के बाद से 50 पूरे होने में महज 6 सीटों की कमी रह गयी है. ये कमी भी पूरी समझी जा सकती है, बशर्ते हाल की मुलाकातों का मकसद भी ऐसा ही हो.
मायावती के एकमात्र विधायक के जेडीयू ज्वाइन कर लेने के बाद चिराग पासवान के भी अकेले विधायक राजकुमार सिंह और असदुद्दीन ओवैसी के सभी 5 विधायक नीतीश कुमार से खास मुलाकात कर चुके हैं. राजकुमार सिंह का हाल ये है कि वो चिराग पासवान से ज्यादा नीतीश कुमार से अपनापन महसूस करने लगे हैं. बात भी सही है सत्ता की चाबी जिसके पास हो सबसे प्यारा भी तो वही लगता है.
विधायकों की मुख्यमंत्री से मुलाकात की चर्चा चल ही रही थी कि मालूम हुआ नीतीश कुमार और विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा की भी मीटिंग हुई है - मुख्यमंत्री और स्पीकर की मीटिंग ने विधायकों की मुलाकात को और भी हवा दे दी. हालांकि, ये हवाएं अभी तक तेज तूफान के पहले की हल्की आंधी भी नहीं साबित हो पायी हैं.
एलजेपी विधायक राजकुमार सिंह की ही तरह असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM विधायक और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान भी नीतीश कुमार की तारीफ करते थक नहीं रहे हैं. मिलने के बाद अख्तरूल ईमान कह रहे थे - नीतीश कुमार को मैं हमेशा से अच्छा मुख्यमंत्री मानता हूं - बीजेपी से तो बेहतर हैं ही. ये हाथी के खाने के दांत रहे, दिखाने वाले दूसरे थे. AIMIM विधायक इजहार अशफी बताते फिर रहे थे कि सीमांचल के लोगों की समस्याओं को लेकर वे मुख्यमंत्री से मिलने गये थे - और यकीन है मुख्यमंत्री हमारी मांगे जरूर पूरी करेंगे.
बेशक मांगें पूरी होंगी. अब मांगे चाहे सीमांचल के लोगों से जुड़ी हों या उनके जनप्रतिनिधियों से - दस्तखत भी नीतीश कुमार को ही करनी है और मुहर भी मुख्यमंत्री को ही लगानी है.
रही बात चिराग पासवान की तो, हालत ये है कि नीतीश कुमार एलजेपी नेता का पूरा का पूरा फायदा भी उठा रहे हैं ओर डैमेज करने में भी कोई कोसर बाकी नहीं रख रहे हैं - सबसे बड़ी बात ये है कि चिराग पासवान के बहाने बीजेपी को भी नीतीश कुमार लगता है जैसे इशारों पर नचा रहे हों.
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