प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने पांच साल पहले नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को वो चीज दी थी जिसे हासिल करना उनके लिए नामुमकिन सा था. 2014 के आम चुनाव में जेडीयू को मिली हार के बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री की कुर्सी तक छोड़ डाली - और जीतनराम मांची से कब्जा वापस लेने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा, लेकिन उसकी भी मियाद जल्दी ही पूरी हो गयी.
तब नीतीश कुमार के मन में बीजेपी से भारी खीझ रही और वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बदला लेना चाहते थे. नीतीश कुमार ने इसके लिए लालू प्रसाद से 20 बरस पुरानी दुश्मनी भुला कर हाथ भी मिला लिया, लेकिन वो भी नाकाफी था. तभी प्रशांत किशोर के साथ बात हुई और नीतीश कुमार बीजेपी को बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में शिकस्त देने में कामयाब हुए.
नीतीश कुमार को आगे बढ़ाने में प्रशांत किशोर की तकरीबन वैसी ही भूमिका रही जैसी बीते बरसों में नीतीश के साथ और करीब आये नेताओं की रही है - और नीतीश कुमार ने इस मामले में प्रशांत किशोर के साथ जरा भी भेदभाव नहीं किया है - बिलकुल वैसे ही किनारे लगाया है जैसे दूसरों को काम हो जाने के बाद दूध से मक्खी की तरह निकाल बाहर किये. मामला सिर्फ इतना ही नहीं है, अमित शाह (Amit Shah) का नाम लेकर नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर की मुश्किलें और बढ़ा दी है.
ये तो होना ही था
जिस लेवल पर प्रशांत किशोर राजनीति कर रहे थे, एक न एक दिन जेडीयू से उनकी विदायी तय ही थी. ये दिन टाला भी जा सकता था अगर प्रशांत किशोर कोई बगावती तेवर अख्तियार नहीं किये होते या फिर नीतीश कुमार पर किसी तरह का दबाव नहीं रहता.
प्रशांत किशोर ने जब जेडीयू ज्वाइन किया था तो नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी का भविष्य बताया था - लेकिन लगता है जेडीयू नेता को जल्द ही भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा. प्रशांत किशोर को जेडीयू में नीतीश कुमार की बगल में बैठने का अधिकार तो मिला, लेकिन ज्यादा काम करने का मौका नहीं मिला.
प्रशांत किशोर अपने विवादित बयानों के चलते जेडीयू में लगातार अपने विरोधियों के निशाने...
प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने पांच साल पहले नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को वो चीज दी थी जिसे हासिल करना उनके लिए नामुमकिन सा था. 2014 के आम चुनाव में जेडीयू को मिली हार के बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री की कुर्सी तक छोड़ डाली - और जीतनराम मांची से कब्जा वापस लेने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा, लेकिन उसकी भी मियाद जल्दी ही पूरी हो गयी.
तब नीतीश कुमार के मन में बीजेपी से भारी खीझ रही और वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बदला लेना चाहते थे. नीतीश कुमार ने इसके लिए लालू प्रसाद से 20 बरस पुरानी दुश्मनी भुला कर हाथ भी मिला लिया, लेकिन वो भी नाकाफी था. तभी प्रशांत किशोर के साथ बात हुई और नीतीश कुमार बीजेपी को बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में शिकस्त देने में कामयाब हुए.
नीतीश कुमार को आगे बढ़ाने में प्रशांत किशोर की तकरीबन वैसी ही भूमिका रही जैसी बीते बरसों में नीतीश के साथ और करीब आये नेताओं की रही है - और नीतीश कुमार ने इस मामले में प्रशांत किशोर के साथ जरा भी भेदभाव नहीं किया है - बिलकुल वैसे ही किनारे लगाया है जैसे दूसरों को काम हो जाने के बाद दूध से मक्खी की तरह निकाल बाहर किये. मामला सिर्फ इतना ही नहीं है, अमित शाह (Amit Shah) का नाम लेकर नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर की मुश्किलें और बढ़ा दी है.
ये तो होना ही था
जिस लेवल पर प्रशांत किशोर राजनीति कर रहे थे, एक न एक दिन जेडीयू से उनकी विदायी तय ही थी. ये दिन टाला भी जा सकता था अगर प्रशांत किशोर कोई बगावती तेवर अख्तियार नहीं किये होते या फिर नीतीश कुमार पर किसी तरह का दबाव नहीं रहता.
प्रशांत किशोर ने जब जेडीयू ज्वाइन किया था तो नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी का भविष्य बताया था - लेकिन लगता है जेडीयू नेता को जल्द ही भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा. प्रशांत किशोर को जेडीयू में नीतीश कुमार की बगल में बैठने का अधिकार तो मिला, लेकिन ज्यादा काम करने का मौका नहीं मिला.
प्रशांत किशोर अपने विवादित बयानों के चलते जेडीयू में लगातार अपने विरोधियों के निशाने पर रहे. नीतीश कुमार के महागठबंधन छोड़ने के फैसले की आलोचना और आखिरकार झूठा बता कर उनकी भी नाराजगी मोल ली. जेडीयू नेताओं को तो जैसे नीतीश कुमार की मंजूरी का इंतजार रहा. जैसे ही मामला गंभीर हुआ और नीतीश कुमार ने हामी भी प्रशांत किशोर चलते बने. या तो प्रशांत किशोर जानबूझ कर जोखिम उठाये या फिर उन्हें अंजाम का अंदाजा नहीं रहा. नीतीश कुमार के ट्रैक रिकॉर्ड को देखें तो प्रशांत किशोर के साथ कोई नया काम नहीं किया है. वो तो अपने तरीके की राजनीति करते रहे हैं और जो कोई भी उनके रास्ते का रोड़ा बना या बनने की कोशिश की या फिर उन्हें ऐसा लगा - ऐसा जाल बिछाया कि एक दिन पत्ता ही साफ हो गया.
शरद यादव का मामला भी तो प्रशांत किशोर और पवन वर्मा से ठीक पहले का ही है. कहां शरद यादव जेडीयू के अध्यक्ष हुआ करते रहे और कहां पार्टी से ही बेदखल कर दिया. तभी तो लोगों के बीच ये भी चर्चा हुआ करती है कि 'जब नीतीश बाबू अपने नेता जॉर्ज फर्नांडिज के नहीं हुए तो बाकी कैसे बख्शे जाएंगे. शम्भू श्रीवास्तव, दिग्विजय सिंह (कांग्रेस नेता नहीं) और उपेंद्र कुशवाहा भी तो कभी न कभी नीतीश के करीबी साथी ही हुआ करते रहे. सबकी अपनी अपनी कहानी है, लेकिन हर कहानी में नीतीश कुमार का किरदार कॉमन है.
प्रशांत किशोर जब तक काम के रहे, साथ रहे. सबसे करीब रहे. फिलहाल प्रशांत किशोर राह का रोड़ा बनने लगे थे. रास्ते से हटा दिया.
हो सकता है वो दिन भी आये जब लालू प्रसाद की तरह नीतीश कुमार फिर से प्रशांत किशोर में जेडीयू के साथ साथ अपना भी भविष्य देखने लगें - वैसे भी राजनीति में दोस्ती-दुश्मनी स्थायी तो होती नहीं!
सिर्फ ठिकाने नहीं लगाया है
प्रशांत किशोर के पास सरवाइवल का अपना जो भी कारगर तरीका हो, लेकिन नीतीश कुमार ने अपने हिसाब से उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा है. प्रशांत किशोर के केस में अमित शाह का नाम लेना और फिर दोहराना भी नीतीश कुमार की रणनीति का हिस्सा लगता है. अमित शाह का नाम लेना कुछ लोगों को थोड़ा अजीब लगा था. सुनते ही सहज सा सवाल पैदा होता कि भला नीतीश कुमार अमित शाह की बात इतनी कैसे मान सकते हैं कि उनके कहने पर जेडीयू में अपने बाद सबसे बड़ा पद दे डालें.
प्रशांत किशोर को जेडीयू से बेदखल करने के बाद नीतीश कुमार भले कुछ न कहे हों, लेकिन लगता तो यही है कि ऐसे फैसले के पीछे भी अमित शाह ही हो सकते हैं. वैसे तो प्रशांत किशोर भी ये कहने पर नीतीश कुमार को झूठा बताते रहे, लेकिन जेडीयू से निकाले जाने के बाद जो ट्वीट किया है उससे तो यही लगता है कि प्रशांत किशोर ने भी मान लिया है कि नीतीश कुमार झूठ नहीं बोल रहे थे.
अपने ट्वीट में प्रशांत किशोर ने 'कुर्सी बचाने' के लिए शुभकामनाएं दी है - आखिर प्रशांत किशोर के कहने का क्या मतलब हो सकता है? मालूम नहीं अमित शाह का नाम लेकर नीतीश कुमार ने जो राजनीतिक चाल चली है वो प्रशांत किशोर की समझ में आ रहा है या नहीं? और कुछ किया हो या नहीं, नीतीश कुमार ने ये मैसेज तो दे ही दिया है कि प्रशांत किशोर भी अमित शाह के ही आदमी हैं.
अब नीतीश कुमार के ये बताने पर कि प्रशांत किशोर भी अमित शाह के आदमी हैं, कोई भरोसा करे न करे लेकिन मन में संदेह तो हो ही सकता है - खास कर वो जो पहले से ही अमित शाह से खार खाये बैठा हो. समझने वाली बात ये है कि प्रशांत किशोर के कम से कम दो मौजूदा क्लाइंट अमित शाह और बीजेपी नेताओं से बराबर दूरी बनाये रखते हैं - क्या वे प्रशांत किशोर पर वैसे ही पक्का यकीन कर सकेंगे जैसा पहले से करते आये हैं. सच तो ये है कि प्रशांत किशोर पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कैंपेन में अमित शाह के साथ काम कर चुके हैं.
ध्यान से समझने पर लगता है कि नीतीश कुमार की कोशिश प्रशांत किशोर के प्रति ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल के मन में संदेह पैदा करने की ही है - और इस मामले में बहुत हद तक सफल भी नजर आते हैं.
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