नीतीश कुमार (Nitish Kumar) महीना भर पहले ही समाज सुधार यात्रा पर थे. मुख्यमंत्री जगह जगह पहुंच कर बिहार के लोगों को शराबबंदी (Bihar Liquor Ban) के फायदे समझाते हुए जागरुक करने की कोशिश कर रहे थे - और WHO की रिपोर्ट बांचते हुए बता रहे थे कि शराब पीने से एड्स भी हो सकता है.
23 दिसंबर, 2021 का एक वाकया बड़ा ही दिलचस्प है. मुख्यमंत्री के दौरे से पहले कार्यक्रम स्थल का जायजा लेने अफसरों की ड्यूटी का हिस्सा हुआ करता था. पटना के क्षेत्रीय अपर निदेशक डॉक्टर जनार्दन प्रसाद सुकुमार ऐसे ही मौका मुआयना के सिलसिले में सासाराम पहुंचे थे.
डॉक्टर सुकुमार अपनी टीम के साथ एक होटल में ठहरे थे. पता चला होटल में पार्टी भी हुई और शराब भी परोसी गयी. बाकी अधिकारियों के साथ साथ डॉक्टर सुकुमार के भी नशे में होने का शक हुआ, लेकिन वो टेस्ट के लिए तैयार नहीं हुए - लेकिन बाद में उनको भी सस्पेंड कर दिया गया.
डॉक्टर सुकुमार को लेकर जिलाधिकारी की रिपोर्ट भी गौर करने लायक है, 'RDD मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समाज सुधार यात्रा के दौरान कोविड प्रोटोकॉल का पालन कराने के लिए 23 दिसंबर को सासाराम के होटल में ठहरे थे... उनके साथ अन्य कमरों में ठहरे लोग जांच के दौरान शराब के नशे में पाए गए... डॉक्टर सुकुमार को संदिग्ध पाया गया, लेकिन उन्होंने शराब सेवन की जांच में सहयोग नहीं किया... वो जांच कराने की बजाये होटल से बाहर चले गये.'
RDD यानी क्षेत्रीय अपर निदेशक (स्वास्थ्य सेवाएं) के मातहत 6 जिलों के सिविल सर्जन होते हैं और वो एक कमिश्नर की तरह काम करते हैं. डॉक्टर सुकुमार को पटना, नालंदा, भोजपुर, बक्सर, रोहतास और कैमूर जिले के सिविल सर्जन रिपोर्ट करते थे.
निश्चित तौर पर ये सब सुन कर नीतीश कुमार को भी काफी अफसोस हुआ होगा. वो भी तब जब वो सूबे में जगह जगह जहरीली शराब से होने वाली मौतों को लेकर भी पहले से ही विरोधियों के निशाने पर हों. मुश्किल ये है कि चोरी छिपे शराबखोरी का ये तो बस एक नमूना भर है.
एक मिलता जुलता मामला नवादा जिले के...
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) महीना भर पहले ही समाज सुधार यात्रा पर थे. मुख्यमंत्री जगह जगह पहुंच कर बिहार के लोगों को शराबबंदी (Bihar Liquor Ban) के फायदे समझाते हुए जागरुक करने की कोशिश कर रहे थे - और WHO की रिपोर्ट बांचते हुए बता रहे थे कि शराब पीने से एड्स भी हो सकता है.
23 दिसंबर, 2021 का एक वाकया बड़ा ही दिलचस्प है. मुख्यमंत्री के दौरे से पहले कार्यक्रम स्थल का जायजा लेने अफसरों की ड्यूटी का हिस्सा हुआ करता था. पटना के क्षेत्रीय अपर निदेशक डॉक्टर जनार्दन प्रसाद सुकुमार ऐसे ही मौका मुआयना के सिलसिले में सासाराम पहुंचे थे.
डॉक्टर सुकुमार अपनी टीम के साथ एक होटल में ठहरे थे. पता चला होटल में पार्टी भी हुई और शराब भी परोसी गयी. बाकी अधिकारियों के साथ साथ डॉक्टर सुकुमार के भी नशे में होने का शक हुआ, लेकिन वो टेस्ट के लिए तैयार नहीं हुए - लेकिन बाद में उनको भी सस्पेंड कर दिया गया.
डॉक्टर सुकुमार को लेकर जिलाधिकारी की रिपोर्ट भी गौर करने लायक है, 'RDD मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समाज सुधार यात्रा के दौरान कोविड प्रोटोकॉल का पालन कराने के लिए 23 दिसंबर को सासाराम के होटल में ठहरे थे... उनके साथ अन्य कमरों में ठहरे लोग जांच के दौरान शराब के नशे में पाए गए... डॉक्टर सुकुमार को संदिग्ध पाया गया, लेकिन उन्होंने शराब सेवन की जांच में सहयोग नहीं किया... वो जांच कराने की बजाये होटल से बाहर चले गये.'
RDD यानी क्षेत्रीय अपर निदेशक (स्वास्थ्य सेवाएं) के मातहत 6 जिलों के सिविल सर्जन होते हैं और वो एक कमिश्नर की तरह काम करते हैं. डॉक्टर सुकुमार को पटना, नालंदा, भोजपुर, बक्सर, रोहतास और कैमूर जिले के सिविल सर्जन रिपोर्ट करते थे.
निश्चित तौर पर ये सब सुन कर नीतीश कुमार को भी काफी अफसोस हुआ होगा. वो भी तब जब वो सूबे में जगह जगह जहरीली शराब से होने वाली मौतों को लेकर भी पहले से ही विरोधियों के निशाने पर हों. मुश्किल ये है कि चोरी छिपे शराबखोरी का ये तो बस एक नमूना भर है.
एक मिलता जुलता मामला नवादा जिले के वारिसलीगंज इलाके के साम्बे गांव से सामने आया है. पुलिस ने स्कूल के हेडमास्टर सहित तीन शिक्षकों को गिरफ्तार किया है. पुलिस के मुताबिक तीनों स्कूल के अंदर ही शराब पी रहे थे.
अब ये तो नहीं मालूम कि नीतीश कुमार के अफसरों को शराबबंदी लागू कराने का आइडिया स्कूली शिक्षकों (Government Teachers) को सबक सिखाने के मकसद से आया या किसी और वजह से, लेकिन बिहार सरकार के नया फरमान शराबबंदी को ही सवालों के घेरे में ला दिया है.
बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने एक सर्कुलर के जरिये सरकारी स्कूल के शिक्षकों को शराबबंदी लागू कराने का भी टास्क दे डाला है. जब सरकार का आबकारी विभाग और पुलिस शराबबंदी लागू कराने में फेल रहे तो भला बेचारे स्कूली शिक्षकों की क्या बिसात - ये तो ऐसा लगता है जैसे सरकार को भी किसी और के सिर ठीकरा फोड़ने के लिए बहाने की तलाश है.
जैसे स्कूली टीचर नहीं, थानेदार हों!
शराबबंदी रोकने को लेकर बिहार सरकार को स्कूली शिक्षकों से वैसी ही अपेक्षा लगती है जैसे किसी किसी थानेदार से कानून-व्यवस्था बनाये रखने की उम्मीद की जाती है - या फिर चुनाव के वक्त आदर्श आचार संहिता लागू कराने को लेकर आयोग जिले के डीएम से होती होगी.
बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के एडिशनल चीफ सेक्रेट्री संजय कुमार की तरफ से सभी जिला और क्षेत्रीय शिक्षा अधिकारियों को जो पत्र भेजा गया है, उसका लब्बोलुआब ऐसा ही है.
शिक्षकों के लिए गाइडलाइन: सरकार चाहती है कि शिक्षक ये सुनिश्चित करें कि स्कूल परिसर को शराब पीने के अड्डे के तौर पर न इस्तेमाल किया जाये - और साथ ही, जहां उनकी तैनाती है उस इलाके में न तो कोई शराब बेच सके न पी सके.
और ये कैसे किया जाये उसके लिए भी गाइडलाइन तैयार की गयी है, जिस पर अमल की जिम्मेदारी सरकारी स्कूल के शिक्षकों की है.
1. प्राइमरी और सेकंडरी स्कूल के शिक्षकों को निर्देश मिला है कि वे लोगों के साथ मीटिंग करें और राज्य में लागू शराबबंदी कानून को लेकर जागरुकता फैलायें.
2. प्रिंसिपल, टीचर, स्कूल कमेटी मेंबर और स्कूल से जुड़े सभी लोग शराब पीने वालों और सप्लाई करने वालों की शिनाख्त करें.
3. शराब पीने और सप्लाई करने वाली की पहचान कर लेने के बाद सभी स्कूल स्टाफ की जिम्मेदारी है कि आबकारी विभाग के टोल फ्री नंबर पर इत्तला करें.
4. सभी स्कूल स्टाफ मिल कर ये सुनिश्चित करें कि किसी भी सूरत में स्कूल परिसर का इस्तेमाल शराब पीने के लिए नहीं होना चाहिये.
ये सब करने के लिए सरकार की तरफ से शिक्षकों को कोई सुरक्षा मुहैया कराये जाने की बात तो सामने नहीं आयी है, हां - एक एहसान जरूर किया जाना है कि टोल फ्री नंबर पर सूचना देने वालों का नाम गोपनीय रखा जायेगा.
जब हर तरफ भ्रष्टाचार का आलम हो, ऐसी बातें तो मजाक जैसी ही लगती हैं. जो माफिया रिश्वत देकर जहरीली शराब की फैक्ट्री चला रहे हैं - क्या उनके लिए अपने पीछे लगे जासूसों का पता लगाना कोई मुश्किल काम होगा?
और एक बार अगर मालूम हो जाये कि आबकारी विभाग को जानकारी किसने दी थी, फिर तो उसकी जान को भी खतरा होगा - ऐसे ही जोखिमों के चलते शिक्षकों ने सरकारी फरमान का विरोध शुरू कर दिया है.
पढ़ाई के बाद पहरेदारी: बिहार में सरकारी शिक्षकों जिम्मे पहले से ही जरूरत से ज्यादा काम का बोझ है. बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ जो सबसे जरूरी काम है वो है मिड डे मील का.
जनगणना और पशुगणना के काम तो दिये ही जाते हैं, शिक्षक संगठनों के मुताबिक, खुले में शौच रोकने की भी जिम्मेदारी शिक्षकों को दी जा चुकी है. कोरोना वायरस के प्रकोप के दौरान शिक्षकों की क्वारंटीन सेंटर पर भी ड्यूटी लगायी गयी थी. वहां उनको मरीजों को दवा बांटने का काम मिला हुआ था. नये सरकारी आदेश के हिसाब से देखें तो स्कूल में पढ़ाई की अवधि खत्म हो जाने के बाद भी शिक्षकों को परिसर में पहरा देना होगा. मतलब, छात्रों की पढ़ाई और मिड डे मील उपलब्ध कराने के अलावा स्कूल में शराबियों की एंट्री रोकने के लिए शिक्षकों को 24 घंटे मुस्तैदी से ड्यूटी पर तैनात रहना होगा.
सभी के निशाने पर नीतीश कुमार
शराबबंदी को लेकर नीतीश कुमार धीरे धीरे अकेले पड़ते जा रहे हैं. शराबबंदी लागू करने के सारे प्रयास बेकार होते जा रहे हैं. जहरीली शराब से होने वाली मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है - और अदालतों में केस बढ़ने से सुप्रीम कोर्ट ने भी नाराजगी जतायी है.
कृषि कानूनों की तरह शराबबंदी वापस लेने की मांग: बिहार सरकार में नीतीश कोटे से ही साझीदार पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की सलाह है, 'मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विचार करना चाहिये... जब प्रधानमंत्री कृषि कानून को वापस ले सकते हैं तो बिहार सरकार शराबबंदी कानून वापस क्यों नहीं ले सकती?'
विपक्षी दल RJD तो बिहार में शराबबंदी कानून को फेल बताते हुए कह रही है कि मुख्यमंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिये. हाल में तेजस्वी यादव ने तो पटना लौटते ही नीतीश कुमार के शराब पीने से एड्स होने की बातों को लेकर मजाक उड़ाना शुरू कर दिया था.
RJD प्रवक्ता भाई विरेंद्र कहते हैं, 'रोज जहरीली शराब बिहार में बन रही है... लोग सेवन भी कर रहे हैं... मौत भी हो रही है... और मुख्यमंत्री टुकुर-टुकुर देख रहे हैं.' विपक्ष की तरफ से शराबबंदी कानून को लेकर सर्वदलीय बैठक बुलाने की भी मांग होती रही है.
नीतीश कुमार के कट्टर विरोधी चिराग पासवान तो राज्यपाल को पत्र भी लिख चुके हैं - और मांग की है कि जहरीली शराब पीने से हुई मौतों का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जिम्मेदार ठहराते हुए राष्ट्रपति शासन लगा दी जाये.
सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी: सुप्रीम कोर्ट ने शराबबंदी कानून की वजह से कोर्ट में मुकदमों की तादाद को लेकर बिहार सरकार के प्रति गहरी नाराजगी जतायी है.
एक सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने शराबबंदी कानून का मसौदा तैयार करने में दूरदर्शिता की कमी पायी है - और यही वजह है कि हाई कोर्ट में जमानत की अर्जियों की भरमार हो गयी है.
बिहार सरकार के वकील से जस्टिस रमना ने हाल ही में कहा था, 'आप जानते हैं कि इस कानून ने पटना हाई कोर्ट के कामकाज में कितना असर डाला है... वहां एक मामले को सूचीबद्ध करने में एक साल लग रहा है - और सभी अदालतें शराबबंदी कानून से जुड़ी जमानत याचिकों से भरी हुई हैं.'
सुप्रीम कोर्ट से मिली फटकार के बाद नीतीश कुमार की सरकार शराबबंदी कानून में संशोधन करने जा रही है - और बताते हैं कि संशोधित कानून जल्दी ही लागू किया जा सकता है. संशोधन के बाद मौके पर ही जुर्माने का प्रावधान होगा ताकि मामले को कोर्ट तक ले जाने की नौबत न आये.
ये शराबबंदी का ही मुद्दा है जिसके दम पर नीतीश कुमार 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ललकार रहे थे. यूपी के दौरे पर निकलते तो पूछा करते, प्रधानमंत्री मोदी पूरे देश में शराबबंदी क्यों नहीं लागू करते? कहा करते, जिस गुजरात से वो आते हैं वहां भी पूर्ण शराबबंदी लागू है तो पूरे देश में क्यों नहीं लागू हो सकती.
अब तो हालत ये हो गयी लगती है जैसे नीतीश कुमार को शराबबंदी न निगलते बन रही है न उगलते, लिहाजा ठीकरा फोड़ने के लिए सिर की तलाश थी, लेकिन सरकारी शिक्षक ये तोहमत अपने सिर लेने को तैयार नहीं हैं. वैसे भी जो काम आबकारी विभाग न कर सका, पूरे बिहार की पुलिस नहीं कर सकी - वो भला सरकारी शिक्षकों के वश का कैसे हो सकता है?
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