सीवान में AK-47 से 150 राउंड की फायरिंग कानून-व्यवस्था के हिसाब से कान खड़े कर देने वाला वाकया है. तभी तो जंगलराज की वापसी की चर्चा भी शुरू हो गयी है. मीडिया में इसे जंगलराज 2.0 भी लिखा जाने लगा है.
जंगलराज (Jungleraj) आखिर किसे कहते हैं? अगर कहीं कानून का राज न हो तो उसे जंगलराज ही तो कहेंगे. ये जंगलराज का डर ही तो है जिसे बार बार याद दिला कर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) मुख्यमंत्री बने और अब तक बने हुए हैं. मजाल क्या कि कोई भी चुनाव जंगलराज की चर्चा के बगैर पूरा हो पाये. बिहार में लालू यादव और राबड़ी देवी के शासन को पहली बार नीतीश कुमार ने जंगलराज के तौर पर पेश किया - और तब से लेकर 2020 के विधानसभा चुनाव तक पहले की तरह ही कैंपेन चलाया गया.
नीतीश कुमार के साथ साथ बीजेपी (BJP) नेतृत्व भी चुनावों में लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के खिलाफ आक्रामक देखा जाता है. फर्क इस बात से भी नहीं पड़ता कि लालू यादव जेल में हैं - और तेजस्वी यादव जंगलराज को लेकर कई बार माफी भी मांग चुके हैं.
फिर तो जिस तरीके से नीतीश कुमार बिहार में जंगलराज का नाम भुनाते रहे हैं, एनडीए सरकार के मुख्यमंत्री भी कठघरे में खड़े किये जाएंगे - और जैसे वो लालू-राबड़ी शासन पर सवाल उठाते रहे हैं, अगर स्थिति पर जल्द से जल्द काबू नहीं पा सके तो बीजेपी को भी नीतीश कुमार को अलग से घेरने का मौका स्वाभाविक तौर पर मिल जाएगा.
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के पहले से ही बीजेपी ने नीतीश कुमार को घेरने का पूरा इंतजाम कर लिया था. चुनाव में जो हुआ सबको पता ही है. मौके के हिसाब से चिराग पासवान और मुकेश सहनी दोनों को बीजेपी ने सियासी टूल बनाकर ही इस्तेमाल किया. नीतीश कुमार से बीजेपी नेता सुशील मोदी को दूर किया जाना भी नेतृत्व की रणनीति रही - और अब जिस तरीके की गुगली मुहिम नीतीश कुमार के खिलाफ बीजेपी की तरफ से चलायी जा रही है, सारे तीर तो एक ही दिशा में छोड़े गये लगते हैं.
नीतीश कुमार अगर अब तक बचे हुए हैं तो अपने रणनीतिक बुद्धि चातुर्य और राजनीतिक कौशल की बदौलत, लेकिन सीवान जैसी घटना सारी चीजों पर भारी पड़ सकती है. एक दिन ऐसा आये जब नीतीश कुमार के शासन में भी बिहार की कानून व्यवस्था पर सवाल उठने लगे, नीतीश कुमार को पहले से ही सचेत हो जाना चाहिये - क्योंकि एक बार अगर हालात बेकाबू हो गये और ब्रांड सुशासन ही कठघरे में खड़ा हो गया तो नीतीश कुमार के सामने बचाव के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे.
सुशासन में ये जंगलराज की दस्तक नहीं तो क्या है?
27 मार्च, 2022 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बख्तियारपुर में थे और तभी पीछे से पहुंच कर एक युवक ने घूंसा जड़ दिया. युवक को विक्षिप्त बताया गया वो भी ठीक है, लेकिन ये सुरक्षा में चूक तो समझी ही जाएगी. ताजा खबर मिली है कि बिहार पुलिस ने मुख्यमंत्री की सुरक्षा को लेकर नये सिरे से ब्लूप्रिंट तैयार कर लिया है.
लालू-राबड़ी शासन को बार बार जंगलराज बताने वाले नीतीश कुमार से भी वैसे ही सवाल पूछे जाएंगे
नीतीश कुमार पर हमले के अगले ही दिन 28 मार्च को बिहार की राजधानी पटना के पास ही दानापुर में जेडीयू नेता और नगर परिषद उपाध्यक्ष दीपक मेहता की गोली मार कर हत्या कर दी जाती है. ये केस भी पुलिस अपने हिसाब से सॉल्व कर चुकी है. पुलिस के मुताबिक, जेडीयू नेता की हत्या जमीन विवाद की वजह से हुई है. पुलिस का दावा है कि दीपक मेहता का करीब दो साल से कुछ पेशेवर अपराधियों से विवाद चल रहा था.
और ठीक एक हफ्ते बाद 4 अप्रैल की आधी रात को सीवान में विधान परिषद चुनाव में निर्दल उम्मीदवार रईस खान के काफिले पर एके 47 से हमला होता है. तेज रफ्तार होने के कारण रईस खान की गाड़ी तो आगे निकल जाती है, लेकिन दूसरी गाड़ी में बैठे तीन लोगों को गोली लगती है. एक की मौत हो जाती है.
मान भी लेते हैं कि ये घटना गैंगवार का नतीजा है, लेकिन इलाका तो वही है आरजेडी के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन की वजह से जंगलराज का प्रमुख केंद्र हुआ करता था - अगर शहाबुद्दीन के बाद भी हालात नहीं बदले हैं तो कैसे यकीन हो कि जंगलराज नये सिरे से दस्तक नहीं दे रहा है?
फिर तो जिस तरीके से नीतीश कुमार बिहार में जंगलराज का नाम भुनाते रहे हैं, एनडीए सरकार के मुख्यमंत्री भी कठघरे में खड़े किये जाएंगे - और जैसे वो लालू-राबड़ी शासन पर सवाल उठाते रहे हैं, अगर स्थिति पर जल्द से जल्द काबू नहीं पा सके तो बीजेपी को भी नीतीश कुमार को अलग से घेरने का मौका स्वाभाविक तौर पर मिल जाएगा.
सीवान की घटना नीतीश कुमार और उनकी सरकार के लिए रेड अलर्ट है. ये आरजेडी के शहाबुद्दीन का इलाका रहा है. स्थानीय लोगों की मानें तो शहाबुद्दीन के बाद पूरे इलाके पर खान भाइयों का कब्जा हो गया है. ये हैं रईस खान और अयूब खान. अब तक यही माना जाता रहा है कि सीवान में रईस खान को चैलेंज करने वाला फिलहाल कोई नहीं है.
और खान भाइयों में से एक रईस खान के काफिले पर एके 47 से हुई फायरिंग के बाद सीवान के 'बदलापुर' बन जाने की आशंका जतायी जाने लगी है. ये मामला जेडीयू नेता श्याम बहादुर सिंह के बयान के बाद और भी मजबूत हो गयी है. निर्दलीय चुनाव लड़े रईस अहमद को जेडीयू नेता श्याम बहादुर सिंह का सपोर्ट हासिल है. कहते हैं कि हमले में पांच-पांच एके 47 का इस्तेमाल हुआ है.
पूर्व विधायक श्याम बहादुर सिंह ने तो खुलेआम ऐलान कर दिया है कि 'ठोक के बदला' लिया जाएगा. अपनी खांटी देसी स्टाइल में श्याम किशोर सिंह कहते हैं, 'भाई के चुनाव हम लड़वइली... गोली हमरे प चले के चाही...'
और फिर ऐलान-ए-जंग वाले अंदाज में कहते हैं, 'जे भी इ काम कइले बा... हिसाब होई जोड़ि के होई... हम सीना ठोक के कहतानी... बख्साई ना... जबाब दिआई...'
रईस खान के लिए श्याम बहादुर सिंह के साथ साथ बीजेपी के बागी नेता सच्चिदानंद राय भी एमएलसी चुनाव में वोट मांग रहे थे. यही वजह रही कि सीवान में मुकाबला त्रिकोणीय समझा जा रहा था. बीजेपी ने वहां मनोज सिंह को टिकट दिया और आरजेडी के टिकट पर विनोद कुमार जायसवाल चुनाव मैदान में रहे.
बीजेपी के लिए मुश्किल भी होगा कि वो सीधे सीधे बिहार में कानून व्यवस्था पर सवाल उठाये, जैसे आरजेडी ने नीतीश कुमार को टारगेट किया है. बिहार का गृह विभाग भी नीतीश कुमार के पास ही है. आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी का आरोप है कि सुशासन का दावा करने वाली सरकार ने बिहार को गैंगवार तक पहुंचा दिया है. आरजेडी प्रवक्ता कहते हैं, 'अब तक छोटे मोटे अपराधी ही बिहार सरकार के लिए संभालना मुश्किल था, अब बड़े माफिया भी आ गये हैं... नीतीश कुमार के सुशासन की पोल खुल गई है.'
अभी तो बीजेपी को बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कन्फ्यूजन पैदा करने में ही खूब मजा आ रहा है. कोई नीतीश कुमार के उपराष्ट्रपति बनने की चर्चा पर बीजेपी के मुख्यमंत्री की बात कर रहा है, तो कोई नीतीश कुमार के कार्यकाल पूरा करने पर भी शक जाहिर कर रहा है. बहती गंगा में हाथ धो लेने वालों में बिहार सरकार में मंत्री जनक राम भी शामिल हो गये हैं. हाजीपुर में जनक राम ने कहा कि खुशी की बात होगी कि नीतीश कुमार राष्ट्रपति बनेंगे. लगे हाथ वो ये भी बता देते हैं कि नीतीश कुमार के जाने के बाद बिहार को संभालने वाले नेताओं की कमी नहीं है.
बिहार पुलिस बेखबर क्यों लगती है?
पटना के बहादुरपुर इलाके में प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहे एक छात्र की हत्या कर दी जाती है. वैसे ही पटना के दीघा में एक महिला का शव बरामद होता है - और ये सब हफ्ते भर के अंदर के मामले हैं.
शहर के एक लॉज में रह कर आईआईटी की तैयारी कर रहे एक छात्र का सड़ा-गला शव मिलता है. बताते हैं कि गला दबा कर और चाकू से हमला कर उसकी हत्या हुई है. शरीर पर किसी गर्म चीज से जलाने के भी निशान मिले हैं - और जो बात सबसे ज्यादा हैरान करने वाली है, वो छात्र की आंखें फोड़ डालना.
आंखें फोड़ डालने का ऐसा ही वाकया बांका की आठ साल की बच्ची के साथ रेप के मामले में भी देखने को मिली थी. बच्ची होली खेलने निकली थी तभी उसे अगवा कर लिया गया और रेप के बाद हत्या कर शव नाले में फेंक दिया गया था - और हैवानियत की हद देखिये कि बच्ची की दोनों आंखें भी फोड़ डाली गयी थीं.
80 के दशक का अंखफोड़वा कांड अपराधियों के खिलाफ पुलिस के एक्शन के रूप में जाना जाता है, लेकिन ये दो घटनाएं बता रही हैं कि अपराधी ही अब ये काम करने लगे हैं. पुलिस के ऑपरेशन गंगाजल पर घंटे भर की एक डॉक्यूमेंट्री ‘द आइज ऑफ डार्कनेस’ के अलावा फिल्म मेकर प्रकाश झा एक्टर अजय देवगन को लेकर 'गंगाजल' भी बना चुके हैं.
बांका: बांका में हैवानियत की शिकार बच्ची के पिता बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए जगह जगह भटक रहा है, लेकिन हर जगह उसे भगा दिया जाता है. थक हार कर वो पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने की कोशिश करता है, लेकिन भगा दिया जाता है.
अपनी बेटी के साथ रेप और हत्या के बाद आंखें तक फोड़ डालने वाली दर्दनाक दास्तां सुनाते हुए पिता का आरोप है, 'पुलिस वाले अपराधी को नहीं पकड़ रहे... हम लोगों को ही परेशान कर रहे हैं... मेरे भाई को ही गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है...'
बार बार मिन्नत के बावजूद सुरक्षा में तैनात पुलिसवाले मुख्यमंत्री से मिलाने को तैयार नहीं होते. बच्ची के पिता के साथ मुख्यमंत्री से मिलने की नाकाम कोशिश कर चुकीं सामाजिक कार्यकर्ता योगिता बांका में हैवानियत की शिकार बच्ची के पिता के साथ सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भयाना ने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर कर दिखाने की कोशिश की है कि बिहार पुलिस कैसे काम करती है.
अगर बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सुशासन का ताजा नमूना यही है तो, बिहार बीजेपी अध्यक्ष डॉक्टर संजय जायसवाल की बातें कब हकीकत बन जायें कहा नहीं जा सकता. नीतीश सरकार के भविष्य को लेकर एक इंटरव्यू में संजय जायसवाल समझाते हैं, "आप यहां से बाहर निकलकर जायें और दुर्घटना नहीं हो, ये कोई जानता है क्या?"
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