नोटबंदी को हमेशा केंद्र सरकार एक उपलब्धि की तरह गिनाती आई है. विपक्ष ने तो हमेशा इस बात का विरोध किया था, लेकिन अब भाजपा की एक सहयोगी पार्टी भी विरोध में खड़ी नजर आ रही है. कभी जिस नोटबंदी का बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पुरजोर समर्थन किया था, अब वही मोदी सरकार के इस कदम पर उंगली उठा रहे हैं. इतना ही नहीं, पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से मोदी सरकार और नीतीश कुमार के बीच बातचीत हो रही है, उससे कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. कुछ सूत्र तो यह भी कह रहे हैं कि विपक्ष दोबारा से उन्हें महागठबंधन का नेतृत्व करने का न्योता दे रहा है. ऐसे में एक बार गठबंधन तोड़कर भाजपा से जा मिले नीतीश कुमार अगर दोबारा पाला बदल लें, तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी. चलिए जानते हैं उन 4 कारणों के बारे में जो भाजपा-जेडीयू के गठबंधन के टूटने का इशारा कर रहे हैं:
1- विशेष राज्य का दर्जा न मिलने से हैं नाराज
नीतीश कुमार ने पटना में बैंकरों की एक बैठक के दौरान कहा कि जब तक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल जाता, तब तक कोई भी यहां पूंजी नहीं लगाएगा. दरअसल, मोदी सरकार से नीतीश कुमार को उम्मीद थी कि वह बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देंगे, लेकिन केंद्र सरकार ने इस मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया. 2017 में भाजपा के साथ गठबंधन होने के बाद से अब तक नीतीश कुमार ने विशेष राज्य का दर्जा देने की बात पर जोर देना छोड़ दिया था, लेकिन अब एक बार फिर से वह उस बात को दोहराने लगे हैं. 2017 से पहले भी जेडीयू विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करती रही थी, जब वह विपक्ष में थी. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को माने जाने को भी नीतीश कुमार देख चुके हैं. विशेष राज्य का दर्जा पाने का लालच भी उनके भाजपा से जा मिलने की एक वजह हो सकता है. आपको बता दें विशेष राज्य के दर्जे के तहत राज्य सरकार को केंद्र की तरफ से फंड मिलता है और कुछ अन्य सुविधाएं भी मिलती हैं. विशेष दर्जा मिलने के बाद किसी योजना में केंद्र से मिलने वाली राशि भी बढ़ जाती है. ये अनुपात 90:10 होता है, जिसमें 90 फीसदी केंद्र सरकार देती है.
नोटबंदी को हमेशा केंद्र सरकार एक उपलब्धि की तरह गिनाती आई है. विपक्ष ने तो हमेशा इस बात का विरोध किया था, लेकिन अब भाजपा की एक सहयोगी पार्टी भी विरोध में खड़ी नजर आ रही है. कभी जिस नोटबंदी का बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पुरजोर समर्थन किया था, अब वही मोदी सरकार के इस कदम पर उंगली उठा रहे हैं. इतना ही नहीं, पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से मोदी सरकार और नीतीश कुमार के बीच बातचीत हो रही है, उससे कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. कुछ सूत्र तो यह भी कह रहे हैं कि विपक्ष दोबारा से उन्हें महागठबंधन का नेतृत्व करने का न्योता दे रहा है. ऐसे में एक बार गठबंधन तोड़कर भाजपा से जा मिले नीतीश कुमार अगर दोबारा पाला बदल लें, तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी. चलिए जानते हैं उन 4 कारणों के बारे में जो भाजपा-जेडीयू के गठबंधन के टूटने का इशारा कर रहे हैं:
1- विशेष राज्य का दर्जा न मिलने से हैं नाराज
नीतीश कुमार ने पटना में बैंकरों की एक बैठक के दौरान कहा कि जब तक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल जाता, तब तक कोई भी यहां पूंजी नहीं लगाएगा. दरअसल, मोदी सरकार से नीतीश कुमार को उम्मीद थी कि वह बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देंगे, लेकिन केंद्र सरकार ने इस मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया. 2017 में भाजपा के साथ गठबंधन होने के बाद से अब तक नीतीश कुमार ने विशेष राज्य का दर्जा देने की बात पर जोर देना छोड़ दिया था, लेकिन अब एक बार फिर से वह उस बात को दोहराने लगे हैं. 2017 से पहले भी जेडीयू विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करती रही थी, जब वह विपक्ष में थी. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को माने जाने को भी नीतीश कुमार देख चुके हैं. विशेष राज्य का दर्जा पाने का लालच भी उनके भाजपा से जा मिलने की एक वजह हो सकता है. आपको बता दें विशेष राज्य के दर्जे के तहत राज्य सरकार को केंद्र की तरफ से फंड मिलता है और कुछ अन्य सुविधाएं भी मिलती हैं. विशेष दर्जा मिलने के बाद किसी योजना में केंद्र से मिलने वाली राशि भी बढ़ जाती है. ये अनुपात 90:10 होता है, जिसमें 90 फीसदी केंद्र सरकार देती है.
2- नोटबंदी के विरोध में बयान
बैंकरों के साथ बैठक के दौरान ही नीतीश कुमार ने पीएम मोदी की नोटबंदी पर भी हमला बोला. उन्होंने कहा- पहले मैं नोटबंदी का समर्थक था, लेकिन इससे फायदा कितने लोगों को हुआ? आप छोटे लोगों को लोन देने के लिए विशिष्ट हो जाते हैं लेकिन उन ताकतवर लोगों का क्या जो लोन लेकर गायब हो जाते हैं? यह आश्चर्यजनक है कि बैंकों के वरिष्ठ अधिकारियों तक को भी इसकी भनक नहीं लगती. बैंकिंग सिस्टम में सुधार की जरूरत है, मैं आलोचना नहीं कर रहा हूं, मैं चिंतित हूं.'
आपको बता दें कि इसी कार्यक्रम में उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी भी मौजूद थे, जिन्होंने बाद में भाजपा का बचाव करते हुए नीतीश कुमार के बयान पर सफाई भी दी. उन्होंने कहा, ‘यह समझना गलत होगा. मुख्यमंत्री ने ये नहीं कहा कि नोटबंदी नाकाम रही. उन्होंने कहा कि नोटबंदी को अमल में लाते समय कुछ बैंकों की भूमिका ठीक नहीं रही. उस समय जिन नोटों को चलन से हटाया गया, उनको गलत ढंग से बैंकों में जमा होने की रिपोर्ट आईं.’
3- केंद्र सरकार के चार साल पूरे होने पर नाराजगी भरा ट्वीट
इसी कार्यक्रम के बाद मोदी सरकार के चार साल पूरे होने पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी गई, लेकिन वह पत्रकारों के सवालों से चुपचाप बचते हुए निकल लिए. इसके बाद उन्होंने ट्वीट किया और लिखा- 'माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को सरकार के गठन के 4 साल पूरे होने पर बधाई. विश्वास है कि सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगी.' बधाई के साथ-साथ नीतीश ने अपनी दबी नाराजगी भी जाहिर कर दी कि सरकार लोगों की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर रही है.
4- 'एक देश, एक चुनाव' के आइडिया पर भी असहमत
नीतीश कुमार मोदी सरकार के उस आइडिया से भी खुश नहीं हैं, जिसके तहत मोदी सरकार पूरे देश में एक साथ चुनाव कराना चाहती है. विपक्ष तो इसे लेकर विरोध कर ही रहा था, लेकिन अब सहयोगी दलों ने भी आवाज उठाना शुरू कर दिया है. उन्होंने साफ कह दिया है कि अगले साल लोकसभा चुनावों के साथ विधानसभा चुनाव नहीं होंगे. वह बोले कि गुजरात या कर्नाटक जैसे राज्यों में यह बिल्कुल संभव नहीं है. ऐसे देखा जाए तो इस आइडिया को लेकर भी नीतीश कुमार विपक्षी खेमे में शामिल हो गए हैं. दिलचस्प बात ये है कि नीतीश कुमार ने ही जनवरी में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने पर अपना समर्थन दिया था, लेकिन अब अपनी यू-टर्न लेते नजर आ रहे हैं. इससे ऐसा लग रहा है मानो नीतीश सरकार को दोषी ठहराने के तरीके ढूंढ़ रहे हैं.
ये सारी बातें तो इसी ओर इशारा कर रही हैं कि नीतीश कुमार और मोदी सरकार के बीच इन दिनों कोई न कोई अनबन चल रही है. अगर अनबन नहीं है तो बेशक सूत्रों की खबर सही हो सकती है. दरअसल, यह बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार को विपक्षी पार्टियों ने फिर से महागठबंधन का नेतृत्व करने के लिए न्योता भेजा है. अब अगर नीतीश कुमार को यह डील पसंद आ गई हो तो इसमें कोई दोराय नहीं है कि वह एक बार फिर से पाला बदल लेंगे. ऐसे में जिस भाजपा का गुणगान करते हुए वह मोदी सरकार की शरण में जा पहुंचे थे, उससे अलग होने के लिए कुछ तो बहाने बनाने होंगे. यानी या तो भाजपा-जेडीयू के बीच कोई अनबन है या फिर नीतीश कुमार कोई अनबन पैदा करके भाजपा से अपना पल्ला झाड़ने के चक्कर में हैं. भाई... जनता को भी तो कुछ दिखाना होगा, बताना होगा... अब भाजपा को क्यों छोड़ा.
ये भी पढ़ें-
ये रहा मोदी सरकार के चार साल का लेखा जोखा
अंग्रेजों के जमाने के नियम से मजबूर हमारा चुनाव आयोग
अटल-आडवाणी और शाह-मोदी की जोड़ी में ये बुनियादी फर्क है
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.