नीतीश कुमार का इस्तीफा मौजूदा सियासी माहौल में ब्रह्मास्त्र है. नीतीश कुमार पर सवाल उठने लगे थे और दो दिन बाद शुरू होने जा रहे विधानसभा सत्र में हंगामा होना भी तय था. अपने इस्तीफे के साथ नीतीश ने ये तो साफ कर ही दिया कि उन्हें कुर्सी से ज्यादा फिक्र अपनी छवि को लेकर है. नीतीश कुमार का ये दांव लालू प्रसाद यादव की सियासत पर सर्जिकल स्ट्राइक जैसा है जिसकी जद में कांग्रेस और पूरा थर्ड फ्रंट अपनेआप आ जाता है.
कठघरे में लालू एंड कंपनी
जेडीयू के विधायक दल की बैठक 28 जुलाई को होनी थी, लेकिन नीतीश ने दो दिन पहले ही बुला ली. इससे पहले 11 जुलाई को मुख्यमंत्री के सरकारी आवास 1, अणे मार्ग पर हुई बैठक में जेडीयू नेता इस बात पर एक राय थे कि डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के इल्जाम के बाद इस्तीफा दे देना चाहिये.
लालू प्रसाद पर इन बातों का कोई असर नहीं हुआ. लालू के बाद अपने ताजा बयान में राबड़ी देवी ने भी कह दिया कि तेजस्वी को फंसाया जा रहा है और वो इस्तीफा नहीं देंगे. बाद में आरजेडी नेताओं ने भी लालू और राबड़ी के सुर में सुर मिलाए. करीब दो हफ्ते से नीतीश कुमार जबर्दस्त दबाव में थे. विपक्षी बीजेपी लगातार दबाव बनाये हुए थी कि नीतीश कुमार पहले तो भ्रष्टाचार की बात होते ही इस्तीफा ले लिया करते थे लेकिन तेजस्वी के मामले में वो ऐसा क्यों नहीं कर रहे? राष्ट्रपति चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिनर में शामिल होने के लिए दिल्ली पहुंचे नीतीश ने राहुल गांधी से भी मुलाकात की.
पहले तो सिर्फ जेडीयू नेता ही तेजस्वी के इस्तीफे पर जोर दे रहे थे, बाद में नीतीश ने भी चुप्पी तोड़ी और कहा कि जो कुछ भी हो रहा है सबके सामने है.
तेजस्वी के इस्तीफे को लेकर लालू के इंकार के बाद नीतीश...
नीतीश कुमार का इस्तीफा मौजूदा सियासी माहौल में ब्रह्मास्त्र है. नीतीश कुमार पर सवाल उठने लगे थे और दो दिन बाद शुरू होने जा रहे विधानसभा सत्र में हंगामा होना भी तय था. अपने इस्तीफे के साथ नीतीश ने ये तो साफ कर ही दिया कि उन्हें कुर्सी से ज्यादा फिक्र अपनी छवि को लेकर है. नीतीश कुमार का ये दांव लालू प्रसाद यादव की सियासत पर सर्जिकल स्ट्राइक जैसा है जिसकी जद में कांग्रेस और पूरा थर्ड फ्रंट अपनेआप आ जाता है.
कठघरे में लालू एंड कंपनी
जेडीयू के विधायक दल की बैठक 28 जुलाई को होनी थी, लेकिन नीतीश ने दो दिन पहले ही बुला ली. इससे पहले 11 जुलाई को मुख्यमंत्री के सरकारी आवास 1, अणे मार्ग पर हुई बैठक में जेडीयू नेता इस बात पर एक राय थे कि डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के इल्जाम के बाद इस्तीफा दे देना चाहिये.
लालू प्रसाद पर इन बातों का कोई असर नहीं हुआ. लालू के बाद अपने ताजा बयान में राबड़ी देवी ने भी कह दिया कि तेजस्वी को फंसाया जा रहा है और वो इस्तीफा नहीं देंगे. बाद में आरजेडी नेताओं ने भी लालू और राबड़ी के सुर में सुर मिलाए. करीब दो हफ्ते से नीतीश कुमार जबर्दस्त दबाव में थे. विपक्षी बीजेपी लगातार दबाव बनाये हुए थी कि नीतीश कुमार पहले तो भ्रष्टाचार की बात होते ही इस्तीफा ले लिया करते थे लेकिन तेजस्वी के मामले में वो ऐसा क्यों नहीं कर रहे? राष्ट्रपति चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिनर में शामिल होने के लिए दिल्ली पहुंचे नीतीश ने राहुल गांधी से भी मुलाकात की.
पहले तो सिर्फ जेडीयू नेता ही तेजस्वी के इस्तीफे पर जोर दे रहे थे, बाद में नीतीश ने भी चुप्पी तोड़ी और कहा कि जो कुछ भी हो रहा है सबके सामने है.
तेजस्वी के इस्तीफे को लेकर लालू के इंकार के बाद नीतीश के पास शायद कोई विकल्प नहीं बचा था - और आखिरकार उन्होंने खुद ही इस्तीफा देने का फैसला किया.
नीतीश के इस्तीफे के बाद लालू और उनके परिवार की पॉलिटिक्स कठघरे में दिखाई दे रही है. तेजस्वी के इस्तीफे के मामले में लालू की तरफ से तकरीबन वैसी ही चूक हुई है जैसी राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार घोषित करने में कांग्रेस से हुई.
बस 20 महीने बाद
नीतीश कुमार के इस्तीफे के साथ ही 20 महीने पुरानी महागठबंधन सरकार का अंत हो गया. नीतीश ने कहा कि उन्होंने अतंरात्मा की आवाज पर ये फैसला लिया. नीतीश ने ये भी साफ किया कि उन्होंने तेजस्वी से इस्तीफा नहीं मांगा क्योंकि वो गठबंधन का धर्म निभा रहे थे.
राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी को इस्तीफा सौंपने के बाद नीतीश ने कहा, "हम से जितना हुआ उतना गठबंधन का धर्म निभाया. जनता के हित में काम किया. लगातार बिहार के लिए काम करने की कोशिश की. जो माहौल था, उसमें काम करना मुश्किल था. हमने तेजस्वी से इस्तीफा नहीं मांगा, लेकिन लालू और तेजस्वी से यही कहा कि जो भी आरोप लगे हैं, उसे साफ करें. स्पष्टीकरण करना बहुत जरूरी है, लेकिन वो भी नहीं हो पा रहा है. तेजस्वी पर आरोपों से गलत धारणा बन रही है. बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष से हमने कहा कि कुछ तो ऐसा करिये जिससे रास्ता निकले, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा था."
नीतीश के इस्तीफे को बीजेपी ने हाथों हाथ लिया है. खुद प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार की लड़ाई में साथ देने के लिए नीतीश कुमार को ट्वीट कर बधाई दी है.
आगे क्या होगा?
बिहार विधानसभा में राजनीतिक दलों की स्थिति को देखें तो नीतीश की पार्टी जेडीयू के पास 71 विधायक हैं. महागठबंधन में जेडीयू से ज्यादा आरजेडी के विधायक थे - 80 जबकि कांग्रेस के विधायकों की संख्या 27 है. इसी तरह विपक्षी बीजेपी और उसके सहयोगियों के पास 58 विधायक हैं.
बिहार विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 122 है और बीजेपी के सपोर्ट से नीतीश बड़े आराम से फिर से मुख्यमंत्री बन सकते हैं. लेकिन क्या बीजेपी की मदद से सरकार चलाना नीतीश के लिए आसान होगा?
अगर महागठबंधन से तुलना करें तो बीजेपी के साथ नीतीश को निश्चित रूप से आसानी होगी. अब बीजेपी पर निर्भर करता है कि वो सरकार बनने की सूरत में नीतीश को सिर्फ बाहर से समर्थन देती है या फिर सरकार में भी शामिल होने का फैसला करती है.
तत्काल तो नहीं लेकिन नीतीश को आगे चल कर कई मुश्किलें आएंगी. महागठबंधन में तो तय था कि 2019 में नीतीश अपने कोटे की सीटों पर चुनाव लड़ते और अगर जीत जाते तो लोक सभा में जेडीयू का दबदबा कायम होता. नये समीकरण में बीजेपी नीतीश से कैसे डील करती है ये वक्त ही बता पाएगा.
नीतीश को बिहार का चाणक्य कहा जाता है, ऐसे में जाहिर है नीतीश ने इस्तीफे का फैसला यूं ही तो लिया नहीं होगा. नीतीश भी जानते हैं कि बीजेपी से हाथ मिलाना कोई बड़े फायदे की बात नहीं है. एक तो इससे प्रधानमंत्री पद पर नीतीश की दावेदारी खत्म हो जाएगी, दूसरे बीजेपी कब बिहार में महाराष्ट्र की शिवसेना वाली कहानी दोहरा दे, कहना मुश्किल है.
ऐसा भी नहीं है नीतीश के इस्तीफे के साथ ही महागठबंधन भी टूट गया है और दोबारा कोई चांस नहीं बचा. नीतीश ने इस्तीफा देकर लालू को अपने राजनीतिक भविष्य के बारे में सोचने को मजबूर कर दिया है. लालू भले ही चारा घोटाले में जमानत पर छूटे हुए हों, लेकिन सत्ता पर उनका प्रभाव किसी से छिपा नहीं है. जेल में बंद शहाबुद्दीन से बातचीत में जिस अंदाज में लालू को सुना गया - लगाओ तो फोन एसपी को! बाकी बताने की जरूरत नहीं है. नीतीश के इस्तीफे वाले दांव में जो शिकार निशाने पर है वो हैं तेजस्वी यादव. दरअसल, बिहार की राजनीति में नीतीश के सामने कोई चुनौती नहीं है. अगर कोई चुनौती बन कर उभरा है तो वो सिर्फ और सिर्फ नीतीश यादव हैं. जिस हिसाब से लालू तेजस्वी को खड़ा कर रहे थे 2020 में जीतने पर भी मुख्यमंत्री नीतीश बनते जरूरी नहीं था. तब यही होता कि जिसकी सीटें ज्यादा होतीं, सीएम उसी पार्टी का होता.
नीतीश की राह में तेजस्वी ही सबसे बड़े कांटा बन रहे थे. बात अब भी बिगड़ी नहीं है, बशर्ते तेजस्वी भी इस्तीफा दे दें. नीतीश फिर से शपथ ले सकते हैं, लेकिन ये सब अब लालू के अगले कदम पर निर्भर करता है.
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