नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के पटना से दिल्ली शिफ्ट होने की चर्चा हो रही है. ये भी करीब करीब वैसे ही है जैसे उनके परम राजनीतिक मित्र सुशील मोदी को 2020 में डिप्टी सीएम न बनाने से लेकर उनके राज्य सभा पहुंचने के बीच चर्चा चलती रही.
सुशील मोदी की ही तरह अब नीतीश कुमार के भी राज्य सभा ही जाने की खबरें आ रही हैं - और उपराष्ट्रपति (Vice President) तक बनाये जाने की भी चर्चा शुरू हो चुकी है. खास बात है कि ये चर्चा भी स्वयं नीतीश कुमार ने ही शुरू की है. नीतीश कुमार ने चर्चा की शुरुआत जरूर की है, लेकिन ऐसा लगता है जैसे ये बीजेपी नेतृत्व के मन की बात हो.
ऐसी भनक तो तभी लग गयी थी जब सैयद शाहनवाज हुसैन को जम्मू-कश्मीर के डीडीसी चुनावों में बीजेपी के बेहतर प्रदर्शन के बाद बिहार भेजा गया था. बिहार विधानसभा भेजने के बाद बीजेपी ने शाहनवाज हुसैन को नीतीश कुमार सरकार में मंत्री बना दिया है. शाहनवाज हुसैन को एक तरीके से सुशील मोदी के रिप्लेसमेंट के तौर पर भी देखा जाता है.
नीतीश कुमार के दिल्ली जाने का मतलब तो पटना से पूरी तरह विदाई ही समझ में आती है - और ये तो तब भी लगा था जब प्रशांत किशोर की तरफ से राष्ट्रपति पद के ऑफर की खबर आयी. ऐसा इसलिए भी क्योंकि ये प्रस्ताव गैर-कांग्रेस और गैर-बीजेपी के संभावित गठबंधन की तरफ से आया था और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी पहल कर रहे नेताओं के संपर्क में है.
बिहार की राजनीति में नयी हलचल के बीच बीजेपी विधायक हरि भूषण ठाकुर का जोश तो देखते ही बनता है. कह रहे हैं कि अगर नीतीश कुमार राज्य सभा जाना चाहते हैं तो बीजेपी उनकी ये इच्छा जरूर पूरी करेगी - और ऐसा हुआ तो बिहार में बीजेपी का मुख्यमंत्री (BJP CM for Bihar) बनेगा.
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की पारी खत्म होने की आशंका के बीच बीजेपी के संभावित मुख्यमंत्री के नाम का भी जिक्र शुरू हो चुका है - लेकिन सवाल ये है कि क्या नीतीश कुमार बीजेपी नेतृत्व के सामने सरेंडर कर चुके हैं?
नीतीश को हटाना जोखिम भरा है
पटना से...
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के पटना से दिल्ली शिफ्ट होने की चर्चा हो रही है. ये भी करीब करीब वैसे ही है जैसे उनके परम राजनीतिक मित्र सुशील मोदी को 2020 में डिप्टी सीएम न बनाने से लेकर उनके राज्य सभा पहुंचने के बीच चर्चा चलती रही.
सुशील मोदी की ही तरह अब नीतीश कुमार के भी राज्य सभा ही जाने की खबरें आ रही हैं - और उपराष्ट्रपति (Vice President) तक बनाये जाने की भी चर्चा शुरू हो चुकी है. खास बात है कि ये चर्चा भी स्वयं नीतीश कुमार ने ही शुरू की है. नीतीश कुमार ने चर्चा की शुरुआत जरूर की है, लेकिन ऐसा लगता है जैसे ये बीजेपी नेतृत्व के मन की बात हो.
ऐसी भनक तो तभी लग गयी थी जब सैयद शाहनवाज हुसैन को जम्मू-कश्मीर के डीडीसी चुनावों में बीजेपी के बेहतर प्रदर्शन के बाद बिहार भेजा गया था. बिहार विधानसभा भेजने के बाद बीजेपी ने शाहनवाज हुसैन को नीतीश कुमार सरकार में मंत्री बना दिया है. शाहनवाज हुसैन को एक तरीके से सुशील मोदी के रिप्लेसमेंट के तौर पर भी देखा जाता है.
नीतीश कुमार के दिल्ली जाने का मतलब तो पटना से पूरी तरह विदाई ही समझ में आती है - और ये तो तब भी लगा था जब प्रशांत किशोर की तरफ से राष्ट्रपति पद के ऑफर की खबर आयी. ऐसा इसलिए भी क्योंकि ये प्रस्ताव गैर-कांग्रेस और गैर-बीजेपी के संभावित गठबंधन की तरफ से आया था और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी पहल कर रहे नेताओं के संपर्क में है.
बिहार की राजनीति में नयी हलचल के बीच बीजेपी विधायक हरि भूषण ठाकुर का जोश तो देखते ही बनता है. कह रहे हैं कि अगर नीतीश कुमार राज्य सभा जाना चाहते हैं तो बीजेपी उनकी ये इच्छा जरूर पूरी करेगी - और ऐसा हुआ तो बिहार में बीजेपी का मुख्यमंत्री (BJP CM for Bihar) बनेगा.
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की पारी खत्म होने की आशंका के बीच बीजेपी के संभावित मुख्यमंत्री के नाम का भी जिक्र शुरू हो चुका है - लेकिन सवाल ये है कि क्या नीतीश कुमार बीजेपी नेतृत्व के सामने सरेंडर कर चुके हैं?
नीतीश को हटाना जोखिम भरा है
पटना से नीतीश कुमार का बोरिया बिस्तर समेटने की तैयारी तो बीजेपी ने 2020 के आखिर में हुए विधानसभा चुनावों के साथ ही कर दी थी. चुनाव से पहले तो नीतीश कुमार के एनडीए के सीएम फेस होने पर भी सवाल उठने लगे थे. अमित शाह ने बाकायदा घोषणा तो की ही, मुख्यमंत्री भी बनाया ही.
ये तो नीतीश कुमार भी कह चुके हैं कि चुनाव नतीजे आने के बाद वो मुख्यमंत्री पद को लेकर अपनी अनिच्छा जता चुके थे, लेकिन बीजेपी के ही नेताओं ने गुजारिश की कि वो मुख्यमंत्री पद संभालें न कि ठुकराने जैसा कोई फैसला कर लें. माना गया था कि ये सुझाव भी सुशील मोदी की तरफ से ही दिया गया था - क्योंकि तब तक ये साफ नहीं हुआ था कि सुशील मोदी के साथ बीजेपी नेतृत्व क्या करने वाला है?
चुनावों में तो बीजेपी ने वे सारे यत्न कर डाले थे जिससे नीतीश कुमार के विधायकों की संख्या कम से कम हो सके. अपनी मुहिम को प्रभावी बनाने के लिए बीजेपी ने चिराग पासवान की कुर्बानी भी ले ली. कहां चिराग पासवान बदले में पिता के निधन के बाद खाली मंत्री पद के दावेदार हुआ करते थे, और कहां अब तो रामविलास पासवान का बंगलॉ भी खाली करा लिया गया है.
नीतीश कुमार को 2020 में बीजेपी ने भी वैसे ही मुख्यमंत्री बनाया जैसे 2015 में जेडीयू से आरजेडी की ज्यादा सीटें आने के बाद लालू यादव ने किया था. बाद में लालू यादव कई मौके पर अपने एहसान भी जताते रहे. और महागठबंधन छोड़ देने के बाद तो सारी हदें पार कर दी गयीं.
बीजेपी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने का एहसान तो नहीं जताया लेकिन नकेल जरूर कस दी. वो भी इस हद तक कि मंत्री बनाने से लेकर सरकार में छोटे से छोटे फैसले लेने तक नीतीश कुमार को हर बाद पूछ पूछ कर करना पड़ा है.
सवाल ये है कि नीतीश कुमार को जेडीयू की कम सीटें होने के बावजूद आखिर लालू यादव और बीजेपी नेतृत्व को हटाने की हिम्मत क्यों नहीं हुई होगी?
असल बात तो ये है कि न तो अब तक बीजेपी के पास और न ही तब लालू यादव के पास नीतीश कुमार का कोई विकल्प रहा. नीतीश कुमार के पर पूरी तरह कतरने के बाद अब जाकर बीजेपी इतनी हिम्मत जुटा पा रही है कि वो नीतीश कुमार को बिहार से दिल्ली बुलाने की कोशिश करे. तब लालू यादव के साथ भी ऐसी ही समस्या रही, अगर लालू यादव चाहते भी कि आरजेडी का मुख्यमंत्री बने तो भी नामुमकिन था.
महज अपने फेस वैल्यू की वजह से नहीं, जिस तरह से नीतीश कुमार ने बिहार में नौकरशाही का भी नेटवर्क बना रखा है, वो भी उनके मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहने में मददगार साबित होता है. जनाधार का टोटा पड़ा होने के बावजूद नीतीश कुमार ने जिस तरह महादलितों की राजनीति शुरू की, जिस तरीके से महिलाओं के बीच भरोसा पैदा किया - ये नीतीश कुमार ही रहे जो बिहार में लालू यादव के मुस्लिम-यादव समीकरण को पार कर अब तक सत्ता पर काबिज रहे हैं.
नीतीश कुमार की जगह अगर कोई और मुख्यमंत्री होता तो लालू यादव जेल से भी अपना कमाल दिखा चुके होते. कई खास मौकों पर रांची जेल से विधायकों को समझाइश भरे लालू यादव के जो फोन आये थे, वे भी तो इसी तरफ इशारा करते हैं.
अब अगर बीजेपी ने नीतीश कुमार के बाद अपना मुख्यमंत्री लाने का इंतजाम कर लिया है, तब भी जेडीयू को भरोसे में रखना होगा - भले ही ये सब बीजेपी के ऑपरेशन लोटस का ही कोई एडवांस वर्जन की बदौलत हो रहा हो, लेकिन ऐसी हालत में बैकफायर का भी बराबर खतरा रहता है.
राष्ट्रपति से उपराष्ट्रपति तक बनाये जाने की चर्चा
यूपी के जोरदार चुनावी माहौल के बीच ही दिल्ली में नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर की मुलाकात की खबर आयी थी. ये तभी की बात है जब तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव मुंबई पहुंचे थे और उद्धव ठाकरे, शरद पवार से मिले थे.
तेलंगाना के सीएम केसीआर ने तभी कहा था कि विपक्ष की तरफ से एजेंडा जल्द ही सामने रखा जाएगा, लेकिन अब तक ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया है. केसीआर एक बार फिर देश में गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेस गठबंधन खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं - जिसका मकसद 2024 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज करना है.
प्रशांत किशोर की तरफ से भी नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद का ऑफर यही बता रहा है कि बीजेपी की ही तरह विपक्ष भी जेडीयू नेता की बिहार से विदाई चाहता है. मतलब, ये कि जैसे बीजेपी बिहार में अपना मुख्यमंत्री चाहती है, विपक्ष में जुगाड़ कर तेजस्वी यादव खुद भी मुख्यमंत्री बनने का रास्ता खोज रहे हैं.
वैसे राष्ट्रपति पद का ऑफर तो हवा हवाई ही लगता है - क्योंकि न 'नौ मन तेल होगा न...' अभी का जो हाल है, देखकर तो कहीं से भी नहीं लगता कि 2024 में बीजेपी और मोदी को चैलेंज कर पाने की स्थिति में कोई एक राजनीतिक दल या दलों का कोई भी समूह नजर नहीं आ रहा है. अगर ऐसी कोई टिमटिमाता सितारा नजर भी आ रहा है तो वो ले देकर अरविंद केजरीवाल हैं, लेकिन अभी ज्यादा से ज्यादा वो विपक्षी खेमे में गांधी परिवार और ममता बनर्जी की ही जगह ले सकते हैं.
रही बात नीतीश कुमार को उपराष्ट्रपति बनाये जाने की तो ये प्रशांत किशोर के मुकाबले ज्यादा मजबूत लगता है - क्योंकि इसके पीछे बीजेपी और उसका अपना स्वार्थ है. बीजेपी, दरअसल, नीतीश कुमार की स्थापित जमीन को एक्वायर करना चाहती है, लेकिन ये तभी संभव है जब ये मैसेज जाये कि नीतीश कुमार के लिए बीजेपी का एक्सचेंज ऑफर अमानत में खयानत जैसा नहीं है.
ये भी सच है कि नीतीश कुमार में अब वो बात नहीं रही. चुनावों के दौरान बीजेपी ने अपने इंटरनल सर्वे में यही पाया था. तभी नीतीश कुमार के खिलाफ जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर रही. वो तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे बढ़ कर स्थिति को संभाल लिया, वरना चुनाव नतीजे तो यही बता रहे थे कि एनडीए थोड़ा भी कमजोर पड़ा होता तो आरजेडी को बहुमत हासिल हो गया होता. अगर यूपी चुनाव से तुलना करें तो तेजस्वी यादव ने अखिलेश यादव के मुकाबले काफी बेहतर प्रदर्शन किया था.
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए इसी साल चुनाव होने वाले हैं - और विधानसभा चुनावों के बाद अब सारी जोर आजमाइश उसी को लेकर हो रही है.
बीजेपी कैसे हासिल कर पाएगी नीतीश की राजनीतिक विरासत
बिहार के राजनीतिक मिजाज को समझें तो बीजेपी का काम बस इतने भर से नहीं चलने वाला है कि वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपना कोई नेता बिठा दे. जैसे योगी आदित्यनाथ की जगह कोई और नेता होता शायद बीजेपी के लिए सत्ता में वापसी इतनी आसान न होती. नीतीश की गैर मौजूदगी में बिहार में बीजेपी के सामने चुनावी कामयाबी काफी मुश्किल हो सकती है.
नीतीश कुमार को बिहार से हटाने के बाद बीजेपी को 2024 में पहली अग्नि परीक्षा देनी होगी. वैसे तो 2024 का आम चुनाव मोदी के नाम पर होगा, लेकिन 2019 जैसा प्रदर्शन बीजेपी के लिए काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
अगर 2020 के बिहार चुनाव के नतीजे देखें तो नीतीश कुमार के साथ मिल कर बीजेपी ने जो सरकार बनायी है, वो संघर्ष पूर्ण ही लगता है. ये ठीक है कि अब बीजेपी ने मुकेश सहनी के विधायकों को हथिया कर सबसे बड़ी पार्टी बन गयी है, लेकिन बहुमत की ऐसी स्थिति तो नहीं ही है जो तोड़ी न जा सके.
बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर नित्यानंद राय का नाम सबसे ऊपर बताया जा रहा है. नित्यानंद राय पहले बिहार बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं और अभी मोदी सरकार में गृह राज्य मंत्री हैं. यानी अमित शाह के सहयोगी कैबिनेट साथी.
बिहार में लालू यादव और नीतीश कुमार की राजनीति को कमजोर करने का क्रेडिट भी भूपेंद्र यादव के साथ नित्यानंद राय के साथ ही मिलता है. मौजूदा व्यवस्था में बीजेपी के दो डिप्टी सीएम हैं और नयी अनुमानित व्यवस्था में जेडीयू कोटे से दो डिप्टी सीएम बनाये जाने की बात चल रही है - और इसके लिए ललन सिंह, विजय चौधरी और श्रवण कुमार के नाम लिये जा रहे हैं.
इन्हें भी पढ़ें :
मुकेश सहनी और चिराग पासवान दोनों बीजेपी के ही शिकार हुए - तरीका जरूर अलग रहा
सियासत में गरियाने के लिए, और मजदूरों के रूप में मरने के लिए हैं बिहारी!
बीजेपी से जूझ रहे नीतीश कुमार को विपक्ष भला क्यों मोहरा बनाना चाहता है?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.