नीतीश कुमार (Nitish Kumar) फिर से बिहार की यात्रा कर रहे हैं. ये यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब बिहार में प्रशांत किशोर जन सुराज यात्रा पर हैं और राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ब्रेक के बाद फिर से शुरू हो चुकी है.
नीतीश कुमार ने अपनी नयी यात्रा का नाम रखा है - समाधान यात्रा (Samadhan Yatra). जाहिर है, यात्रा के दौरान किसी न किसी तरह के समाधान खोजने की ही कोशिश होगी. लेकिन ऐसा कौन सा समाधान है जो नीतीश कुमार को बिहार की राजनीति में ही मिल सकता है - ये सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति (National Politics) का रुख कर चुके हैं.
एनडीए से निकलने के बाद से ही नीतीश कुमार ने 2024 के आम चुनाव में बीजेपी को शिकस्त देने का ऐलान कर रखा है. और तभी से वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का असर देखे जाने के बाद नीतीश कुमार के प्रयासों को महत्व मिलना कम हो गया है. फिर भी वो धीरे धीरे पुराने जनता परिवार को एक मंच पर लाने के लिए प्रयासरत लगते हैं.
2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से ये नीतीश कुमार की 14वीं बिहार यात्रा है - और यही वजह है कि समझना मुश्किल हो रहा है कि आखिर 18 साल से लगातार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद नीतीश कुमार किस समस्या का समाधान खोज रहे हैं?
अगर नीतीश कुमार भी राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल की तरह कोई राष्ट्रीय अभियान शुरू किये होते तो ऐसे सवाल नहीं उठते. अब ये तो होने से रहा कि नीतीश कुमार बिहार की यात्रा करके विपक्ष को एकजुट कर सकते हैं या फिर राष्ट्रीय स्तर पर किसी बड़ी भूमिका का ही कोई इंतजाम कर सकते हैं - बिहार यात्रा से नीतीश कुमार को राष्ट्रीय राजनीति के लिए कुछ हासिल हो भी सकता है, ऐसा तो बिलकुल नहीं लगता.
ये तो ऐसा लगता है जैसे नीतीश कुमार और के. चंद्रशेखर राव की मौजूदा राजनीति का फोकस अपनी अपनी कुर्सी है. दोनों ही जो कुछ भी कर रहे हैं, वो मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाये रखने...
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) फिर से बिहार की यात्रा कर रहे हैं. ये यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब बिहार में प्रशांत किशोर जन सुराज यात्रा पर हैं और राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ब्रेक के बाद फिर से शुरू हो चुकी है.
नीतीश कुमार ने अपनी नयी यात्रा का नाम रखा है - समाधान यात्रा (Samadhan Yatra). जाहिर है, यात्रा के दौरान किसी न किसी तरह के समाधान खोजने की ही कोशिश होगी. लेकिन ऐसा कौन सा समाधान है जो नीतीश कुमार को बिहार की राजनीति में ही मिल सकता है - ये सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति (National Politics) का रुख कर चुके हैं.
एनडीए से निकलने के बाद से ही नीतीश कुमार ने 2024 के आम चुनाव में बीजेपी को शिकस्त देने का ऐलान कर रखा है. और तभी से वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का असर देखे जाने के बाद नीतीश कुमार के प्रयासों को महत्व मिलना कम हो गया है. फिर भी वो धीरे धीरे पुराने जनता परिवार को एक मंच पर लाने के लिए प्रयासरत लगते हैं.
2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से ये नीतीश कुमार की 14वीं बिहार यात्रा है - और यही वजह है कि समझना मुश्किल हो रहा है कि आखिर 18 साल से लगातार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद नीतीश कुमार किस समस्या का समाधान खोज रहे हैं?
अगर नीतीश कुमार भी राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल की तरह कोई राष्ट्रीय अभियान शुरू किये होते तो ऐसे सवाल नहीं उठते. अब ये तो होने से रहा कि नीतीश कुमार बिहार की यात्रा करके विपक्ष को एकजुट कर सकते हैं या फिर राष्ट्रीय स्तर पर किसी बड़ी भूमिका का ही कोई इंतजाम कर सकते हैं - बिहार यात्रा से नीतीश कुमार को राष्ट्रीय राजनीति के लिए कुछ हासिल हो भी सकता है, ऐसा तो बिलकुल नहीं लगता.
ये तो ऐसा लगता है जैसे नीतीश कुमार और के. चंद्रशेखर राव की मौजूदा राजनीति का फोकस अपनी अपनी कुर्सी है. दोनों ही जो कुछ भी कर रहे हैं, वो मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाये रखने की कवायद से ज्यादा कुछ नहीं लगता. जैसे केसीआर तेलंगाना के लोगों को राष्ट्रीय राजनीति का सपना दिखा कर अपने खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को काटने की कोशिश कर रहे हैं, नीतीश कुमार भी सरकार के ढीले पेंचों को कसने की कोशिश कर रहे हैं.
जब से नीतीश कुमार ने 2025 के बिहार चुनाव के लिए अपने डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को महागठबंधन का नेता घोषित किया है, आरजेडी के लोग अलग अलग तरीके से कुर्सी छोड़ने के लिए दबाव बना रहे हैं - और बात इस कदर बढ़ चुकी है कि बिहार आरजेडी अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह लगातार नीतीश कुमार को टारगेट कर रहे हैं.
एक तरफ जगदानंद सिंह कहते हैं कि नीतीश कुमार को चाहिये कि वो तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप कर दिल्ली कूच कर जायें, तभी दूसरी छोर से सुधाकर सिंह कभी उनको 'शिखंडी' तो कभी 'भिखमंगा' कहने लगे हैं.
ऐसे वाकये तो यही संकेत दे रहे हैं कि नीतीश कुमार बिहार में ही जैसे भी हो सके अपनी कुर्सी बचाये रखने का समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हैं?
ये यात्रा है या एक मुख्यमंत्री का सरकारी दौरा?
नीतीश कुमार की ताजा यात्रा पहले की यात्राओं से बिलकुल अलग है - समाधान यात्रा में न तो कोई पब्लिक मीटिंग होगी न ही कोई रैली. मतलब, आम जनता से नीतीश कुमार का कोई संपर्क नहीं होने वाला है - मुख्यमंत्री के जनता दरबार जैसा भी संपर्क नहीं होने वाला.
दरअसल, ऐसा लगता है जैसे ये नीतीश कुमार की यात्रा नहीं, बल्कि बिहार के मुख्यमंत्री का सरकारी दौरा है. जहां जहां भी नीतीश कुमार जाएंगे, जिले के अफसरों के साथ मीटिंग करेंगे - और जिले में हो रहे विकास के कामों की समीक्षा करेंगे. पश्चिमी चंपारण से 5 जनवरी से शुरू होकर ये यात्रा पहले चरण में 29 जनवरी तक चलेगी - और इस दौरान 18 जिलों को कवर करने का प्रयास होगा.
क्या नीतीश कुमार की समाधान यात्रा के पीछे प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा भी हो सकती है? प्रशांत किशोर भी बिहार में घूम रहे हैं और नीतीश कुमार के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार किये हुए हैं.
पूर्वी चंपारण पहुंचे प्रशांत किशोर पूछ रहे थे, 'आज आरजेडी और जेडीयू के नेता जो बिहार के गरीब लोगों को लूट कर अपना काम चला रहे हैं, अपना बर्थडे चार्टर्ड प्लेन में मना रहे हैं... उनसे मीडिया कभी क्यों नहीं पूछता... आखिर वो इतना पैसा कहां से ला रहे हैं?' साथ ही प्रशांत किशोर ने एक और बात कही, 'मैंने तो इन पार्टियों के लिए काम भी किया है.' तो क्या काम करते वक्त प्रशांत किशोर को ये मालूम हो गया था कि ये नेता पैसे कहां से लाते हैं? लेकिन ये सवाल वो मीडिया से क्यों पूछवाना चाहते हैं?
नीतीश की यात्रा पर जितने मुंह उतने सवाल: प्रशांत किशोर और बीजेपी नेता तो विरोधी हैं, लेकिन नीतीश कुमार के लिए अघोषित प्रवक्ता तक की भूमिका में देखे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को भी शक है कि मुख्यमंत्री की यात्रा से कोई समाधान नहीं निकलने वाला है.
पहले तो मांझी नीतीश कुमार की तारीफ करते हैं, लेकिन फिर नतीजों पर सीधे सीधे सवाल खड़ा कर देते हैं. जीतन राम मांझी कह रहे हैं, नीतीश कुमार 45 डिग्री वाली गर्मी में भी यात्रा करते हैं ...और इस कड़कड़ाती ठंड में भी... इसके लिए वो बधाई के पात्र हैं - लेकिन नीतीश कुमार को यात्रा से हकीकत पता नहीं चलेगा.
जीतनराम मांझी का कहना है, जो अधिकारी इनके साथ जा रहे हैं, वही करप्शन में डूबे हुए हैं, इसलिए वो हकीकत को सामने नहीं आने देंगे. कुछ लोगों और अधिकारियों से फीडबैक लेकर ये यात्रा सफल नहीं होगी.
और फिर वो नीतीश कुमार को सलाह भी देते हैं, नीतीश कुमार को हकीकत जानने के लिए ग्राउंड जीरो पर वेष बदलकर निकलना होगा - और जनता से मिलना होगा, तभी हकीकत सामने आएगी. बात में दम तो है. लेकिन नीतीश कुमार को भी ये बात समझ में आये तभी तो.
बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय कुमार सिन्हा तो ऐसे बरस पड़े हैं कि नीतीश कुमार को न जाने क्या क्या कह डाला है. नीतीश कुमार की समाधान यात्रा को लेकर अपने विधानसभा क्षेत्र लखीसराय में मीडिया से बातचीत में विजय सिन्हा कहते हैं, बिहार की 13वीं कर दी... तेरहवीं तो समझते ही हैं लोग... तेरहवीं यात्रा के बाद 14वीं यात्रा नहीं होती... मुख्यमंत्री जी, 13 यात्रा करने पर आपके सहयोगी दल ने सवाल उठाया था, जगदानंद सिंह ने कहा था कि अगर पहले की यात्रा उपयोगी होती तो ये यात्रा करने की जरूरत नहीं पड़ती?
सुधाकर अपना खेल खराब कर रहे हैं या तेजस्वी का?
बिहार आरजेडी अध्यक्ष जगदानंद सिंह हाल तक नीतीश कुमार के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार किये हुए थे, लेकिन बेटे सुधाकर सिंह ने तो नया ही बवाल कर डाला है - जो जगदानंद सिंह कल तक नीतीश कुमार पर हमलावर थे, अब चुप्पी साध चुके हैं.
और तो और तेजस्वी यादव को भी बचाव की मुद्रा में आना पड़ा है, और माना जा रहा है कि सुधाकर सिंह पर गाज गिरने ही वाली है - बड़ा सवाल ये है कि क्या जगदानंद सिंह के हस्ताक्षर से ही सुधाकर सिंह पर कार्रवाई होगी?
सुधाकर सिंह के साथ क्या सलूक किया जाना है, फैसला तो तेजस्वी यादव ही लेंगे. हो सकता है फैसले में लालू यादव की भी मंजूरी ली जाये - क्योंकि आरजेडी को ये भी देखना होगा कि सुधाकर सिंह के खिलाफ जो भी एक्शन लिया जाता है उसका महागठबंधन की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा?
सुधाकर सिंह की नीतीश कुमार से नाराजगी की कई वजहें हैं और उनमें से कुछ निजी कारण भी हैं. और यही वजह है कि वो नीतीश कुमार को तानाशाह से लेकर 'शिखंडी' तक करार दे चुके हैं. पहले तो वो नीतीश कुमार की हिटलर से भी तुलना कर चुके हैं - और बिहार के लिए विशेष दर्जे की मांग को लेकर मुख्यमंत्री को भिखमंगा तक बता चुके हैं.
नीतीश कुमार को लेकर सुधाकर सिंह की ताजा टिप्पणी के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने मोर्चा संभाला. जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा ने एक पोस्ट में लिखा, 'सुधाकर सिंह उस शख्सियत को शिखंडी कह रहे हैं, जिन्होंने बिहार को उस खौफनाक मंजर से मुक्ति दिलाने की मर्दानगी दिखाई थी... ऐसे बयानों पर जितनी जल्दी रोक लगे उतना बेहतर होगा, गठबंधन के लिए - और शायद आपके लिए भी.'
सुधाकर सिंह के बयान को बिहार की जनता का अपमान बताते हुए तेजस्वी यादव को टैग कर लगातार चार ट्वीट भी किये. उपेंद्र कुशवाहा ने तेजस्वी यादव से कहा, 'जरा गौर से देखिये-सुनिये अपने एक माननीय विधायक के बयान को... और उन्हें बताइये कि राजनीति में भाषाई मर्यादा की बड़ी अहमियत होती है.'
और मौका देख कर बीजेपी नेता सुशील मोदी भी मजे लेने लगे हैं. कहते हैं, तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने का वादा पूरा नहीं होने से शह-मात का खेल शुरू हुआ है... नीतीश कुमार ने तीन बार लालू यादव को धोखा दिया... दोनों को एक दूसरे पर भरोसा नहीं है. लालू प्रसाद के इशारे पर ही सुधाकर सिंह, नीतीश कुमार के लिए शिखंडी और नाइट गार्ड जैसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं.'
उपेंद्र कुशवाहा की बातों का असर तो नहीं लगता, लेकिन सुधाकर सिंह के मुद्दे पर नीतीश कुमार के बयान के बाद तेजस्वी यादव थोड़ी परेशानी महसूस कर रहे थे, लिहाजा उनको भी बोलना पड़ा. क्योंकि सुधाकर सिंह को लेकर नीतीश कुमार ने गेंद सीधे तेजस्वी के पाले में ही डाल दी थी.
मीडिया के पूछने पर नीतीश कुमार का कहना रहा, ऐसे लोगों के बयानों को मैं नोटिस नहीं लेता... एक ही गठबंधन में सब लोग काम कर रहे हैं... ऐसे में किसी दल से अगर कोई नेता बोलता है तो उस पर उस दल को ही सोचना होगा... वो दल फैसला करेगा.
नीतीश कुमार के बाद तेजस्वी यादव ने साथी नेताओं को याद दिलाया कि आरजेडी आरजेडी के अधिवेशन में तय हुआ था कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के अलावा और किसी को हक नहीं है कि वो नेतृत्व पर टिप्पणी करे. तेजस्वी यादव ने समझाया कि महागठबंधन सरकार या नेतृत्व के बारे में किसी भी तरह का बयान देने का अधिकार सिर्फ आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव को है, और खुद उनको.
और फिर बातों बातों में ही तेजस्वी यादव ने सुधाकर सिंह को बीजेपी का एजेंट करार दिया - फिर तो बीजेपी का एजेंड आरजेडी में नहीं ही रह सकता. नीतीश कुमार को भी एक्शन वाले फैसले का इंतजार है.
2024 की भी तैयारी चल रही है: नीतीश कुमार के ये कह देने के बाद कि राहुल गांधी के प्रधानमंत्री पद का दावेदार होने से उनको कोई दिक्कत नहीं है, जेडीयू के भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने की संभावना जतायी जाने लगी थी, लेकिन अब तस्वीर साफ हो चुकी है.
जब नीतीश कुमार खुद ही यात्रा पर हों तो किसी और राजनीतिक दल के यात्रा में शामिल होने का सवाल ही नहीं बनता, फिर भी नीतीश कुमार ने बयान देना जरूरी समझा. नीतीश कुमार ने कहा कि जेडीयू भारत जोड़ो यात्रा में शामिल नहीं होगी. बोले, ये उनकी पार्टी का कार्यक्रम है, हर पार्टी को यात्रा करने का अधिकार है.
इस बीच मुख्यमंत्री आवास पर नीतीश कुमार ने मुस्लिम समाज के लोगों को बुलाकर मीटिंग की है. खास बात ये रही कि जेडीयू के मुस्लिम नेताओं को मीटिंग से बाहर रखा गया था. नीतीश कुमार ने अपनी तरफ से मुस्लिम बुद्धिजीवियों से अपील की है कि वे विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ हाई अलर्ट पर रहें - और खासतौर पर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM से पूरी तरह सावधान रहें.
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