नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के लिए अभी तो सबसे बड़ी चुनौती है एडीए सहयोगियों के साथ विधानसभा सीटों का बंटवारा (NDA Seat Sharing), लेकिन उससे भी पड़ा चैलेंज तो उसके बाद इंतजार कर रहा है - टिकट के लिए उम्मीदवारों (JD Candidates) की लंबी कतार.
अव्वल तो टिकट बंटवारे का काम किसी भी राजनीतिक दल के लिए बेहद मुश्किल काम होता है - क्योंकि जिसे टिकट दिया जाता है उससे भी मुश्किल टास्क होता है जिसका टिकट कटता है उसको बागी बनने से रोकना. बीजेपी के लिए बिहार में तो ये काम ज्यादा दिक्कत वाली नहीं है, लेकिन मध्य प्रदेश उपचुनावों में कहीं ज्यादा ही दिक्कत हो रही है. मध्य प्रदेश में तो पहले से तय है कि कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ विधानसभा से इस्तीफा देने वालों को टिकट देना ही है - ऊपर से जो बीजेपी नेता 2018 के चुनावों में उनसे हार गये थे उनको अब बीजेपी के नये उम्मीदवारों के लिए इलाके में वोट मांगने के लिए भी राजी करना है.
नीतीश कुमार ने हाल फिलहाल आरजेडी और कांग्रेस से कई विधायकों और नेताओं को जेडीयू ज्वाइन कराया है. मान कर चलना चाहिये कि वे सभी टिकट पाने और सरकार बनने पर मंत्री पद के लालच में ही पाला बदले हैं. अगर सभी नहीं तो ज्यादातर तो ऐसे ही होंगे जिनको टिकट दिया जाना पक्का होगा. जाहिर है बाहरियों को पार्टी के पुराने नेताओं का टिकट काट कर ही उम्मीदवार बनाया जाएगा. साथ ही, कई नेता ऐसा भी हैं जिनको अपने बेटे-बेटियों और रिश्तेदारों को टिकट दिलाना है - ये तो लगता है गठबंधन के सीट बंटवारे से भी कठिन काम है और ये हर हाल में करना ही है.
बाहरियों से जेडीयू के भीतर हड़कंप मचा है
मुजफ्फरपुर जिले की कांटी विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक अशोक चौधरी अपने चुनाव प्रचार में जुट गये हैं. अशोक चौधरी मान कर चल रहे हैं कि सकरा विधानसभा सीट से उनको जेडीयू का टिकट मिलना पक्का है. अशोक चौधरी की इस हरकत के चलते जेडीयू के लिए बरसों से काम करने वाले स्थानीय नेता और जमीनी कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी बतायी जा रही है. ये हाल सिर्फ...
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के लिए अभी तो सबसे बड़ी चुनौती है एडीए सहयोगियों के साथ विधानसभा सीटों का बंटवारा (NDA Seat Sharing), लेकिन उससे भी पड़ा चैलेंज तो उसके बाद इंतजार कर रहा है - टिकट के लिए उम्मीदवारों (JD Candidates) की लंबी कतार.
अव्वल तो टिकट बंटवारे का काम किसी भी राजनीतिक दल के लिए बेहद मुश्किल काम होता है - क्योंकि जिसे टिकट दिया जाता है उससे भी मुश्किल टास्क होता है जिसका टिकट कटता है उसको बागी बनने से रोकना. बीजेपी के लिए बिहार में तो ये काम ज्यादा दिक्कत वाली नहीं है, लेकिन मध्य प्रदेश उपचुनावों में कहीं ज्यादा ही दिक्कत हो रही है. मध्य प्रदेश में तो पहले से तय है कि कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ विधानसभा से इस्तीफा देने वालों को टिकट देना ही है - ऊपर से जो बीजेपी नेता 2018 के चुनावों में उनसे हार गये थे उनको अब बीजेपी के नये उम्मीदवारों के लिए इलाके में वोट मांगने के लिए भी राजी करना है.
नीतीश कुमार ने हाल फिलहाल आरजेडी और कांग्रेस से कई विधायकों और नेताओं को जेडीयू ज्वाइन कराया है. मान कर चलना चाहिये कि वे सभी टिकट पाने और सरकार बनने पर मंत्री पद के लालच में ही पाला बदले हैं. अगर सभी नहीं तो ज्यादातर तो ऐसे ही होंगे जिनको टिकट दिया जाना पक्का होगा. जाहिर है बाहरियों को पार्टी के पुराने नेताओं का टिकट काट कर ही उम्मीदवार बनाया जाएगा. साथ ही, कई नेता ऐसा भी हैं जिनको अपने बेटे-बेटियों और रिश्तेदारों को टिकट दिलाना है - ये तो लगता है गठबंधन के सीट बंटवारे से भी कठिन काम है और ये हर हाल में करना ही है.
बाहरियों से जेडीयू के भीतर हड़कंप मचा है
मुजफ्फरपुर जिले की कांटी विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक अशोक चौधरी अपने चुनाव प्रचार में जुट गये हैं. अशोक चौधरी मान कर चल रहे हैं कि सकरा विधानसभा सीट से उनको जेडीयू का टिकट मिलना पक्का है. अशोक चौधरी की इस हरकत के चलते जेडीयू के लिए बरसों से काम करने वाले स्थानीय नेता और जमीनी कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी बतायी जा रही है. ये हाल सिर्फ कांटी और सकरा ही नहीं बल्कि गायघाट, पातेपुर, पालीगंज, सासाराम और पसरा जैसे विधानसभा क्षेत्रों का हाल करीब करीब वैसा बताया जाता है.
चर्चा है कि जेडीयू की मुजफ्फरपुर यूनिट के नेताओं ने अभी पिछले ही हफ्ते सकरा में एक प्रस्ताव पारित किया है और किसी भी बाहरी नेता को उम्मीदवार बनाये जाने के खिलाफ चेतावनी दी है. जेडीयू के स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं ने आगाह किया है कि अगर पार्टी के मेहनतकश कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हुई तो इसके गंभीर परिणाम भी भुगतने के लिए तैयार रहना होाग.
ऐसा ही माहौल आरजेडी और कांग्रेस छोड़ कर जेडीयू ज्वाइन करने वाले नेताओं के इलाकों में भी महसूस किया जा रहा है. दूसरे दलों से जेडीयू में आने वाले नेता मान कर चल रहे हैं कि उनकी उम्मीदवारी तो पक्की है और ये जान कर जेडीयू के लिए जान पर खेल कर अब तक खून-पसीना बहाने वाले नेताओं में असंतोष बढ़ता जा रहा है.
मालूम हुआ है कि जेडीयू से टिकट हासिल करने वालों की कतार में वे नेता भी हैं जो 2015 में आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़े थे. दरअसल, तब लालू प्रसाद यादव ने जेडीयू के कई नेताओं को अपने चुनाव निशान लालटेन पर मैदान में उतार दिया था और वे विधायक बन गये थे. नीतीश कुमार के महागठबंधन छोड़ देने के बाद से वे जेडीयू की ओर से टिकट हासिल करने में लग गये हैं जो काफी हद तक स्वाभाविक भी लगता है.
आरजेडी छोड़ कर जेडीयू ज्वाइन करने वालों में लालू यादव के समधी चंद्रिका राय एक बड़ा नाम है. चंद्रिका राय के साथ साथ आरजेडी से जेडीयू ज्वाइन करने वाले प्रमुख चेहरों में जयवर्धन यादव, महेश्वर यादव, अशोक चौधरी, फराज फातमी और प्रेमा चौधरी हैं. आरजेडी के पांच एमएलसी दिलीप राय, राधा चरण सेठ, संजय प्रसाद, कमरे आलम और रणविजय सिंह भी जेडीयू में टिकट लेकर चुनाव लड़ने का इंतजार कर रहे हैं. लालू परिवार के गढ़ माने जाने वाले राघोपुर से पूर्व विधायक भोला राय ने भी आरजेडी छोड़ जेडीयू का दामन थाम लिया है.
कांग्रेस विधायक सुदर्शन और पूर्णिमा यादव के भी पाला बदलकर जेडीयू में चले जाने का एकमात्र मकसद टिकट हासिल करना ही है. इसी तरह उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के प्रवक्ता अभिषेक झा भी जेडीयू के हो चुके हैं और अपनी तरफ से अपने इलाके से टिकट के दावेदारों में शामिल हैं.
मुजफ्फरपुर के गायघाट विधानसभा सीट से आरजेडी के मौजूदा विधायक महेश्वर यादव के जेडीयू ज्वाइन कर लेने का साइड इफेक्ट कुछ ज्यादा ही नजर आ रहा है. महेश्वर यादव के जेडीयू ज्वाइन कर लेने से बीजेपी नेता वीणा देवी और उनके समर्थकों में बेचैनी है. 2015 में महेश्वर यादव वीणा देवी को हराकर ही विधायक बने थे, जबकि 2010 में वीणा देवी ने ही महेश्वर यादव को हराया था. दरभंगा की केवटी सीट पर भी करीब करीब वैसा ही माहौल हो गया है. जेडीयू में शामिल होने के बाद फराज फातमी ने जेडीयू के उम्मीदवार के रूप में दावेदारी पेश कर दी है. 2015 में फराज फातमी ने बीजेपी के अशोक यादव को शिकस्त दे दी थी. अशोक यादव तीन बार विधायक रह चुके हैं और इस बार भी टिकट के दावेदार हैं, लेकिन जेडीयू ने पेंच फंसा दिया है.
ये ऐसे मामले हैं जिनमें नीतीश कुमार को अपने नेताओं को तो बाद में समझाना होगा, पहले तो बीजेपी के साथ टकराव होना तय है. जो नेता बाहर से जेडीयू में आये हैं वे तो अपने ही इलाके से टिकट चाहेंगे, जबकि बीजेपी नेता अपना इलाका छोड़ना नहीं चाहेंगे. अगर नीतीश कुमार ने नया नया जेडीयू ज्वाइन करने वाले नेताओं को चुनाव क्षेत्र बदलने के लिए राजी कर लिया तो ठीक वरना, मुश्किलें हजार हैं.
ऐसा ही टकराव झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान देखने को मिला था. कांग्रेस के कई नेता बीजेपी ज्वाइन कर लिये थे और AJS नेता सुदेश महतो सीट छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए. टकराव इतना बढ़ा कि गठबंधन ही टूट गया और फिर कई सीटों पर बीजेपी और आजसू उम्मीदवारों के लड़ने से बाजी भी हाथ से निकल गयी - आखिरकार सत्ता से भी हाथ धोना पड़ा. बीजेपी झारखंड की गलती तो दोहराने से रही, उलटा शायद ही किसी तरह के समझौते के लिए तैयार हो क्योंकि बिहार में भी बीजेपी अब काफी मजबूत स्थिति में आ चुकी है.
बेटे-बेटियों और रिश्तेदारों को भी तो टिकट चाहिये
आरजेडी छोड़ कर जेडीयू ज्वाइन करने वालों में सबसे ऊपर नाम तो चंद्रिका राय का ही है जो अपनी बेटी ऐश्वर्या के लिए भी टिकट चाहेंगे ही. ऐश्वर्या जिनका लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव के साथ तलाक का मुकदमा चल रहा है. सुनने में ये भी आया है कि जेडीयू ऐश्वर्या को तेज प्रताप या तेजस्वी के खिलाफ चुनाव लड़ाने की तैयारी में है.
जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह आरा विधानसभा से अपने बेटे सोनू सिंह के लिए टिकट का दावा पेश करने वाले बताये जाते हैं. नालंदा की हरनौत सीट से जेडीयू विधायक हरिनारायण सिंह अब अपने बेटे के लिए टिकट चाहते हैं. बुजुर्ग हो चुके हरिनारायण सिंह की दावेदारी कोई अलग नहीं है, लेकिन उनके इलाके में तो विरासत और परिवार की राजनीति के चलते दूसरों को तो मौका मिलने से रहा.
आरजेडी छोड़ कर जेडीयू में शामिल पूर्व सांसद मीना सिंह और राधाचरण साह भी अपने बेटों के लिए टिकट चाहते हैं. पूर्व सांसद सूरजभान सिंह अपने छोटे भाई कन्हैया के लिए जेडीयू से टिकट चाहते हैं.
नीतीश कुमार के पुराने साथी जीतनराम मांझी के बेटे तो पहले से ही एमएलसी हैं - अब वो अपने दामाद देवेंद्र माझी के लिए भी टिकट के दावेदार हैं. हालांकि, ये कोई दिक्कत वाली बात नहीं होगी क्योंकि एनडीए में जीतनराम मांझी के लिए जो सीटों का जो कोटा तय होगा उसी में ये इंतजाम हो जाएगा.
टिकट के लिए खानदानी दावेदारों में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बीपी मंडल के पोते भी शामिल हैं. वही बीपी मंडल जिन्होंने मंडल कमीशन रिपोर्ट लिखी थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के मंडल कमीशन लागू करने के बाद देश भर में बवाल हुआ था. बीपी मंडल के पोते निखिल मंडल मधेपुरा से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं और टिकट के दावेदार बताये जा रहे हैं.
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