प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और मुख्यमंत्रियों की वीडियो कांफ्रेंसिंग में ममता बनर्जी के हिस्सा न लेने की आशंका थी, लेकिन तृणमूल कांग्रेस नेता ने गलत साबित कर दिया. ऐसा इसलिए लग रहा था क्योंकि पश्चिम बंगाल पहुंची केंद्रीय गृह मंत्रालय की टीम को लेकर काफी तनातनी है. ममता बनर्जी तो शामिल हुईं, लेकिन केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने अपनी जगह अपने मुख्य सचिव को भेज दिया था - क्योंकि मीटिंग में उनको बोलने की अनुमति नहीं थी और अपनी सलाह वो दाखिल कर चुके थे.
प्रधानमंत्री मोदी की मीटिंग में और उसके बाद जो आवाज गूंज रही है, वो है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की. कोटा में फंसे बिहार के छात्रों (Bihar students in Kota) के मुद्दे पर खामोशी अख्तियार किये रहने वाले नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग में मजबूती से अपनी बात रखी. बोले कि वो तो केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों से बंधे हुए हैं - और दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों की इसकी परवाह ही नहीं है. साफ है नीतीश कुमार का इशारा यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरफ ही था जो कोटा से यूपी के छात्रों को वापस लाने के बाद अब मजदूरों को लाने की तैयारी कर रहे हैं. सिर्फ योगी आदित्यनाथ ही क्यों - शिवराज सिंह चौहान भी तो ऐसा कर ही चुके हैं.
तो क्या नीतीश कुमार कोटा में फंसे बच्चों को नहीं लाने का नया बहाना ढूंढ रहे हैं?
नहीं. ऐसा बिलकुल नहीं है. वो तो उनको वापस लाने का बहाना ढूंढ रहे हैं, बस कोई सटीक बहाना चाहते हैं ताकि ठीकरा अपने सिर पर न फूट जाये. नीतीश कुमार की बातों से तो यही लग रहा है कि वो भूल सुधार के लिए तैयार हैं बस किसी तरह बिहार के लोगों को ये समझा सकें कि वो तो मजबूर थे, वरना - क्या योगी और क्या शिवराज सबसे पहले तो बिहार के ही बच्चे अपने घरों में पहुचे होते.
एक सेफ एग्जिट प्लान की सख्त जरूरत है
नीतीश कुमार की हालत फिलहाल सुबह के भूले जैसी लग रही है जो समझ चुका हो कि शाम हो चुकी है और बस एक आश्वासन चाहता हो कि कोई उसे...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और मुख्यमंत्रियों की वीडियो कांफ्रेंसिंग में ममता बनर्जी के हिस्सा न लेने की आशंका थी, लेकिन तृणमूल कांग्रेस नेता ने गलत साबित कर दिया. ऐसा इसलिए लग रहा था क्योंकि पश्चिम बंगाल पहुंची केंद्रीय गृह मंत्रालय की टीम को लेकर काफी तनातनी है. ममता बनर्जी तो शामिल हुईं, लेकिन केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने अपनी जगह अपने मुख्य सचिव को भेज दिया था - क्योंकि मीटिंग में उनको बोलने की अनुमति नहीं थी और अपनी सलाह वो दाखिल कर चुके थे.
प्रधानमंत्री मोदी की मीटिंग में और उसके बाद जो आवाज गूंज रही है, वो है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की. कोटा में फंसे बिहार के छात्रों (Bihar students in Kota) के मुद्दे पर खामोशी अख्तियार किये रहने वाले नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग में मजबूती से अपनी बात रखी. बोले कि वो तो केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों से बंधे हुए हैं - और दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों की इसकी परवाह ही नहीं है. साफ है नीतीश कुमार का इशारा यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरफ ही था जो कोटा से यूपी के छात्रों को वापस लाने के बाद अब मजदूरों को लाने की तैयारी कर रहे हैं. सिर्फ योगी आदित्यनाथ ही क्यों - शिवराज सिंह चौहान भी तो ऐसा कर ही चुके हैं.
तो क्या नीतीश कुमार कोटा में फंसे बच्चों को नहीं लाने का नया बहाना ढूंढ रहे हैं?
नहीं. ऐसा बिलकुल नहीं है. वो तो उनको वापस लाने का बहाना ढूंढ रहे हैं, बस कोई सटीक बहाना चाहते हैं ताकि ठीकरा अपने सिर पर न फूट जाये. नीतीश कुमार की बातों से तो यही लग रहा है कि वो भूल सुधार के लिए तैयार हैं बस किसी तरह बिहार के लोगों को ये समझा सकें कि वो तो मजबूर थे, वरना - क्या योगी और क्या शिवराज सबसे पहले तो बिहार के ही बच्चे अपने घरों में पहुचे होते.
एक सेफ एग्जिट प्लान की सख्त जरूरत है
नीतीश कुमार की हालत फिलहाल सुबह के भूले जैसी लग रही है जो समझ चुका हो कि शाम हो चुकी है और बस एक आश्वासन चाहता हो कि कोई उसे भूला न कहे - कोई बात नहीं, कोई कुछ नहीं कहेगा.
देश में संपूर्ण लॉकडाउन लागू होने के बाद, नीतीश कुमार के लिए उनका अपना ही बयान गले की हड्डी बन चुका है. एक बार बाहर निकले बिहार के दिहाड़ी मजदूरों और दूसरी पर कोटा में पढ़ रहे राज्य के छात्रों को लेकर नीतीश कुमार बोल कर ही फंस चुके हैं और अब चौतरफा दबाव ऐसा बन रहा है कि सांप-छछूंदर का हाल हो चुका है. लॉकडाउन के बाद जब पूर्वांचल के लोग दिल्ली की सड़कों पर निकले और अपने घरों की ओर चल दिये तो नीतीश कुमार ने सबको समझाने की कोशिश की कि अगर वे नहीं माने तो लॉकडाउन फेल हो जाएगा. अपनी बात को मजबूती देने के लिए वो प्रधानमंत्री मोदी की बातों का भी जिक्र कर रहे थे. दूसरी बार, जब कोटा में फंसे छात्रों को वापस बुलाने की बात हुई तो बोल पड़े - क्या पांच लोग सड़क पर आकर मांग करने लगेंगे तो सरकार झुक जाएगी? सरकार ऐसे काम करती है? ये सब संपन्न परिवारों के बच्चे हैं उनको वहां क्या दिक्कत है?
नीतीश कुमार ने जो कहा उसमें कुछ गलत भी नहीं था. संपन्न परिवार अपने बच्चों को जैसे भी संभव हुआ वापस लाये - नेता, विधायक अफसर और वे सारे जो सक्षम थे, लेकिन उन बच्चों के मां-बाप जो इमरजेंसी वाले इंतजाम करने में समर्थ नहीं थे. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने ट्विटर पर दावा किया कि किस तरह समर्थ लोगों की नीतीश सरकार परदे के पीछे मदद कर रही है.
नीतीश कुमार को सबसे ज्यादा चिढ़ योगी आदित्यनाथ से ही लगती है क्योंकि जब दिल्ली की सीमाओं पर पूर्वांचल के लोग जमा हो गये तो रातों रात दो सौ बसों का इंतजाम कर दिया. यूपी के लोगों को उनके इलाके में स्कूलों और ऐसी दूसरी जगहों पर ले जाकर रखा और क्वारंटीन के बाद उनके घर भेज दिया. ऐसा ही योगी आदित्यनाथ ने कोटा में पढ़ रहे उत्तर प्रदेश के बच्चों के लिए भी किया - बसें भेज कर वापस बुलाया और क्वारंटीन के लिए रहने और खाने का इंतजाम किया. फिर घर भेज दिया. बाद में शिक्षा विभाग को ये भी आदेश दिया कि वो अपने अपने इलाके में बच्चों का हालचाल ले और मदद की जरूरत हो तो इंतजाम भी करे.
प्रधानमंत्री मोदी के साथ मीटिंग में कोटा के बच्चों पर नीतीश कुमार के खामोशी तोड़ने की खास वजह भी है. पटना और बिहार के कई इलाकों के लोग से बात करने पर मालूम होता है कि जो बच्चे कोटा से लौट कर बिहार पहुंच चुके हैं वहां भारी असंतोष है. लौटने वाले बच्चों में सिर्फ वही नहीं हैं जो संपन्न और सक्षम परिवारों के हैं, ऐसे बच्चे भी हैं जो यूपी की बसों में जैसे तैसे जुगाड़ कर बैठ गये और फिर बिहार की सीमाओं पर कहीं न कहीं पहुंच गये. जब बच्चे नजदीक आ गये तो सरकार को उनको घर भिजवाने के लिए मजबूर होना पड़ा.
ये लौट चुके बच्चे ही नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं. चुनावी साल में लोगों की नाराजगी भारी पड़ सकती है और नीतीश कुमार ये सोच कर ही परेशान हैं. ये ठीक है कि अगला विधानसभा चुनाव वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छत्रछाया में लड़ने जा रहे हैं, लेकिन जरूरी सवाल तो मुख्यमंत्री से ही होंगे - हिसाब दो, जवाब दो.
नीतीश कुमार की मुश्किल ये है कि छोटा भाई ट्विटर पर चैलेंज कर रहा है तो बड़ा भाई लालू परवार की तरफ से नया पैंतरा शुरू कर चुका है - सद्बुद्धि यज्ञ!
असल बात तो ये है कि नीतीश कुमार को एक सेफ-एग्जिट-प्लान की दरकार है - और हां, लॉकडाउन को लेकर तो हरगिज नहीं, बल्कि कोटा से बच्चों को बिहार लाये जाने को लेकर!
जिस बात का डर था
नीतीश कुमार को बिहार के लोगों के लौटने को लेकर जो डर था, ठीक वैसा तो नहीं हुआ - लेकिन जो हुआ वो कहीं ज्यादा बुरा हुआ. सबसे बड़ा नुकसान तो नीतीश कुमार के लिए यही है कि तमाम बहानेबाजी के बावजूद हर तरह से जिम्मेदारी उन पर ही आ चुकी है और अब वो हर किसी के निशाने पर भी आ चुके हैं. सिर्फ विपक्ष ही नहीं, नीतीश कुमार का वोटर भी ऐसा समझने लगा है - और यही बात अब नीतीश कुमार को भी अच्छी तरह समझ में आने लगी है.
नीतीश कुमार ने देश भर में जगह जगह फंसे लोगों को जहां हैं वहीं रुकने और बिहार न लौटने की अपील की थी. जब जान पर बन आती है तो ऐसी अपीलों की परवाह कौन करता है. नीतीश कुमार ने किसी के लिए बसें भले न भेजी हों - लेकिन कोई गाड़ी रिजर्व करके तो कोई अपने वाहन से तो जिसके पास कुछ भी नहीं था वो पैदल ही बिहार पहुंच चुका है. जो लोग बिहार की सीमा पर पहुंचे उनके लिए शेल्टर होम बनाये गये थे, लेकिन वहां कोई रुका नहीं. कोई झगड़ा-झंझट करके तो कोई गाली-गलौच करके निकल ही लिया और अपने घर के पास ही स्कूल या घर में क्वारंटीन का पालन किया.
नीतीश कुमार को पहला डर तो यही था कि लोग बिहार लौटेंगे तो संक्रमण बढ़ाएंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. बिहार में कोरोना पॉजिटिव मामले सामने आ रहे हैं लेकिन जिस तरह कोरोना फैसले की नीतीश कुमार को आशंका रही होगी वैसा कुछ नहीं हुआ.
माना जाता है कि एक बिहार तो बाहर बसता ही है - जितने लोग बिहार में हैं उतने ही बिहार के बाहर भी होंगे.
नीतीश कुमार ये सोच कर भी परेशान रहे कि ये सारे लोग लौट गये तो संक्रमण भी फैलेगा और उससे निपट भी लिये तो बेरोजगारी बढ़ेगी. बेरोजगारी बढ़ी तो समस्याओं में अपराध भी बढ़ेगा और नयी चुनौती खड़ा करेगा.
अब तो नौबत ये हो चली है कि लौटे हुए लोगों ने न लौट पाये लोगों के परिवारों की खीझ बढ़ा दी है. बिहार से बाहर फंसे हुए लोगों के परिवार वाले नीतीश कुमार की तरफ ही टकटकी लगाये हुए हैं - जैसे हो लोगों के घर लौटने का इंतजाम किया जाये. बाकी जो होगा देखा जाएगा.
तभी तो - प्रधानमंत्री मोदी से रास्त खोजने की गुजारिश कर डाली है. नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी से कहा तो यही कि केंद्र कोई नीति तैयार करे जिस पर राज्य सरकारें अमल करें, लेकिन कहने का मतलब तो यही लगता है - अब आप की कोई जुगत लगाओ. कोई उपाय करो जिससे चुनावों में भी चुप्पी साधने की नौबत न आ जाये.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेडियो कार्यक्रम के ठीक एक दिन बाद, नीतीश कुमार ने कोटा में फंसे बिहार के बच्चों पर अपने मन की बात कह डाली है - प्रभु अब तो आप ही तारणहार हो इसलिए कोई रास्ता निकालो.
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