प्रशांत किशोर (Prashant Kishor of JD) के इस्तीफे को लेकर एक बाद तो साफ हो चुकी है - लेकिन दो बातें अब भी रहस्य बनी हुई हैं. साफ ये है कि प्रशांत किशोर के इस्तीफे का मामला फिलहाल खत्म हो गया है - लेकिन ये साफ नहीं है कि इस्तीफे की पेशकश प्रशांत किशोर की थी या फिर नीतीश कुमार (Nitish Kumar on NRC) ने ऐसी कोई सलाह दी थी. ऐसा भी सिर्फ इसीलिए क्योंकि इस बारे में न तो प्रशांत किशोर, न नीतीश कुमार और न ही जेडीयू के किसी प्रवक्ता की ओर से कोई आधिकारिक बयान दिया गया है.
सही तस्वीर सामने आने इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि जिस तरीके से आरसीपी सिंह कह रहे थे कि प्रशांत किशोर किसी महत्वपूर्ण भूमिका में नहीं हैं इसलिए उन्हें निकाले जाने का कोई मतलब नहीं है. अगर वो खुद जेडीयू छोड़ना चाहें तो जा सकते हैं. अब ऐसा भी नहीं कि प्रशांत किशोर के बारे में इतनी बड़ी बात जेडीयू का कोई नेता यूं ही कह डाले, बगैर नीतीश कुमार की मंजूरी के.
ठीक वैसे ही NRC को लेकर प्रशांत किशोर ने अमित शाह (Amit Shah) पर जो हमला बोला है, उसमें भी नीतीश कुमार की मंजूरी न हो ऐसा बिलकुल नहीं लगता.
क्या प्रशांत किशोर के ट्वीट नीतीश के मन की बात हैं?
नीतीश कुमार से मुलाकात से पहले तक प्रशांत किशोर के बारे में जो भी धारणा बनी रही होगी - अब बदल जानी चाहिये. प्रशांत किशोर ने न जेडीयू को छोड़ा है न हाल फिलहाल छोड़ने वाले हैं और न ही आगे को लेकर ऐसे कोई संकेत मिल रहे हैं. इस्तीफे की बातों के डस्ट-बिन में चले जाने के बाद प्रशांत किशोर की बातों को नीतीश कुमार से अलग करके देखना भी अब ठीक नहीं होगा. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि अब प्रशांत किशोर ने NRC और नागरिकता संशोधन कानून पर जो बातें कही हैं या फिर ट्विटर पर लिखा है, उसे लेकर नीतीश कुमार की तरफ से कोई असहमति जैसी बात नहीं है. सवाल है कि प्रशांत किशोर को किस भूमिका में देखा जाना चाहिये?
क्या जेडीयू में प्रशांत किशोर की भूमिका को शिवसेना में संजय राउत की तरह देखा जाना चाहिये? अगर ऐसा है तो फिर...
प्रशांत किशोर (Prashant Kishor of JD) के इस्तीफे को लेकर एक बाद तो साफ हो चुकी है - लेकिन दो बातें अब भी रहस्य बनी हुई हैं. साफ ये है कि प्रशांत किशोर के इस्तीफे का मामला फिलहाल खत्म हो गया है - लेकिन ये साफ नहीं है कि इस्तीफे की पेशकश प्रशांत किशोर की थी या फिर नीतीश कुमार (Nitish Kumar on NRC) ने ऐसी कोई सलाह दी थी. ऐसा भी सिर्फ इसीलिए क्योंकि इस बारे में न तो प्रशांत किशोर, न नीतीश कुमार और न ही जेडीयू के किसी प्रवक्ता की ओर से कोई आधिकारिक बयान दिया गया है.
सही तस्वीर सामने आने इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि जिस तरीके से आरसीपी सिंह कह रहे थे कि प्रशांत किशोर किसी महत्वपूर्ण भूमिका में नहीं हैं इसलिए उन्हें निकाले जाने का कोई मतलब नहीं है. अगर वो खुद जेडीयू छोड़ना चाहें तो जा सकते हैं. अब ऐसा भी नहीं कि प्रशांत किशोर के बारे में इतनी बड़ी बात जेडीयू का कोई नेता यूं ही कह डाले, बगैर नीतीश कुमार की मंजूरी के.
ठीक वैसे ही NRC को लेकर प्रशांत किशोर ने अमित शाह (Amit Shah) पर जो हमला बोला है, उसमें भी नीतीश कुमार की मंजूरी न हो ऐसा बिलकुल नहीं लगता.
क्या प्रशांत किशोर के ट्वीट नीतीश के मन की बात हैं?
नीतीश कुमार से मुलाकात से पहले तक प्रशांत किशोर के बारे में जो भी धारणा बनी रही होगी - अब बदल जानी चाहिये. प्रशांत किशोर ने न जेडीयू को छोड़ा है न हाल फिलहाल छोड़ने वाले हैं और न ही आगे को लेकर ऐसे कोई संकेत मिल रहे हैं. इस्तीफे की बातों के डस्ट-बिन में चले जाने के बाद प्रशांत किशोर की बातों को नीतीश कुमार से अलग करके देखना भी अब ठीक नहीं होगा. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि अब प्रशांत किशोर ने NRC और नागरिकता संशोधन कानून पर जो बातें कही हैं या फिर ट्विटर पर लिखा है, उसे लेकर नीतीश कुमार की तरफ से कोई असहमति जैसी बात नहीं है. सवाल है कि प्रशांत किशोर को किस भूमिका में देखा जाना चाहिये?
क्या जेडीयू में प्रशांत किशोर की भूमिका को शिवसेना में संजय राउत की तरह देखा जाना चाहिये? अगर ऐसा है तो फिर केसी त्यागी की क्या भूमिका रहेगी? केसी त्यागी भी संजय राउत की तरह पार्टी के मुख्य प्रवक्ता हैं.
प्रशांत किशोर और संजय राउत में फर्क करने के लिए नीतीश कुमार और उद्धव ठाकरे का फर्क समझना होगा. उद्धव ठाकरे में नीतीश कुमार जैसा राजनीतिक कौशल नहीं है, वो एक लाइन पर चलते हैं - और बीजेपी से अलग अब तक एक जैसा ही स्टैंड लिया है. नीतीश कुमार की राजनीति उद्धव ठाकरे नहीं बल्कि शरद पवार जैसी समझी जा सकती है.
ऐसा लगता है कि प्रशांत किशोर वैसे मुद्दों पर फोकस करेंगे जो नीतीश कुमार की दूरगामी रणनीति का हिस्सा होंगी - और बाकी प्रवक्ता फौरी रिएक्शन देते रहेंगे. वैसे जिस तरीके से प्रशांत किशोर ने NRC और नागरिकता संशोधन बिल (अब कानून बन चुका है) के खिलाफ ट्विटर पर लगातार हमलावर रूख अख्तियार किया वो जेडीयू के प्रवक्ताओं से संभव न था - और नीतीश कुमार के लिए कुछ कहना भी मुमकिन न था.
अब ये मान कर चलना होगा कि प्रशांत किशोर के कंधे पर बंदूक रख कर ही नीतीश कुमार चलाने वाले हैं - और प्रशांत किशोर जो भी कहेंगे वो नीतीश कुमार के मन की बात होगी और उसके सिवा कुछ नहीं होगी.
क्या नीतीश कुमार अपना स्टैंड बदलने वाले हैं?
प्रशांत किशोर ने ऐसा कोई संकेत तो नहीं दिया है कि वो अपना स्टैंड बदलने वाले हैं. मगर, प्रशांत किशोर का ये कहना कि एनआरसी और नागरिकता संशोधन कानून एक साथ लागू किये जाते हैं तो ये खतरनाक होगा.
नीतीश कुमार NRC को लेकर आगे क्या रूख अपनाने वाले हैं, अभी साफ नहीं है. हां, प्रशांत किशोर का दावा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार NRC को लागू किये जाने के पक्ष में नहीं हैं. हालांकि, प्रशांत किशोर का कहना है कि NRC को लेकर मुख्यमंत्री अपना पक्ष खुद सबके सामने रखेंगे. दूसरी तरफ, गृह मंत्री अमित शाह ने साफ साफ कह दिया है कि NRC पूरे देश में लागू होगा.
नीतीश से पटना में हुई मीटिंग के बाद प्रशांत किशोर ने जो ट्वीट किया है उसमें एक खास हैशटैग इस्तेमाल किया है - #NotGivingp यानी वो पीछे नहीं हट रहे. ऐसे समझा जाये कि वो हथियार नहीं डाल रहे हैं. प्रशांत किशोर ने एनआरसी को नागरिकता की नोटबंदी बताया है.
लेकिन प्रशांत किशोर का नया नयी ही कहानी कहता है - 'NRC का विचार नागरिकता के नोटबंदी की तरह से है... ये तब तक अवैध है जब तक कि आप इसे साबित नहीं कर देते... इसके सबसे ज्यादा शिकार वे लोग होंगे जो गरीब और हाशिये पर हैं... अनुभव से हम ये कह सकते हैं.'
सूत्रों के हवाले से मीडिया में आयी कुछ रिपोर्ट से पता चल रहा है कि प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार की मीटिंग में NRC पर गंभीर चर्चा हुई. ये भी कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को भरोसा दिलाया है कि बिहार में NRC लागू नहीं होगा - और जल्द ही ये बातें सही तरीके से सार्वजनिक तौर पर भी बता दी जाएंगी.
ऐसा लगता है नागरिकता संशोधन कानून को तो नीतीश कुमार धारा 370 की तरह अपना चुके हैं, लेकिन NRC पर वो अभी राजनीतिक रंग दिखाने वाले हैं - और तब तक वो अमित शाह के खिलाफ प्रशांत किशोर के कंधे का भरपूर इस्तेमाल करते रहेंगे.
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