प्रशांत किशोर को जेडीयू ज्वाइन किये हुए महीना भर हुए हैं - और नीतीश कुमार के बाद अब उनकी नंबर दो की हैसियत हो चुकी है. हैरानी जैसी इसमें कोई बात नहीं है क्योंकि ये सारी चीजें पहले से ही तय रही होंगी. सिर्फ अमल धीरे धीरे होता है. वैसे भी 'धीरे धीरे रे मना...' नीतीश कुमार का सूत्र वाक्य है. महागठबंधन के दिनों में ये लाइन उनके ज्यादातर सवालों का जवाब हुआ करती रही.
निश्चित रूप से नीतीश कुमार को प्रशांत किशोर से बड़ी अपेक्षाएं होंगी. प्रशांत किशोर को जेडीयू का भविष्य, नीतीश कुमान ने यूं ही तो कहा नहीं होगा. वो प्रशांत किशोर का काम काफी करीब से देख चुके हैं. मौजूदा राजनीतिक स्थिति में नीतीश कुमार को प्रशांत किशोर जैसे साथी की महती जरूरत भी लग रही होगी. काफी हद तक वैसी ही जैसी नरेंद्र मोदी के लिए अमित शाह की अहमियत है. ये मोदी-शाह की जोड़ी ही है जिसके सामने बड़े से बड़ा दिग्गज राजनीतिक रूप से बौना महसूस कर रहा है.
अव्वल तो काबिलियत के मामले में नीतीश कुमार का भी कोई सानी नहीं है. लालू प्रसाद को साथ लेकर नीतीश कुमार मोदी-शाह की जोड़ी को भी शिकस्त दे ही चुके हैं. संभव है प्रशांत किशोर में नीतीश कुमार कहीं न कहीं अमित शाह का अक्स देख रहे हों और फिलहाल जो कुछ नजर आ रहा है वो नीतीश की दूरगामी सोच का हिस्सा हो. बिहार में राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले नीतीश कुमार ने चुनावी चाणक्य प्रशांत किशोर पर एक ऐसी जिम्मेदारी डाल दी है, जिसके बाद पीके के सामने नये सिरे से खुद को साबित करने की चुनौती आ पड़ी है.
जेडीयू के भविष्य में क्या है?
प्रशांत किशोर के लिए जेडीयू ही नहीं, बल्कि कोई भी राजनीतिक दल ज्वाइन करना मुश्किल नहीं था. मुश्किल था तो पार्टी में बड़ा ओहदा हासिल करना. आपत्ति तो बीजेपी को भी बहुत नहीं थी, लेकिन प्रशांत किशोर को कोई बड़ा पद दिया जाना अमित शाह को ही नहीं मंजूर था. वक्त और जरूरत के हिसाब से प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार एक दूसरे के पूरक साबित हुए हैं. अब दोनों का ये परस्पर सामन्जस्य कितना फायदेमंद साबित होता...
प्रशांत किशोर को जेडीयू ज्वाइन किये हुए महीना भर हुए हैं - और नीतीश कुमार के बाद अब उनकी नंबर दो की हैसियत हो चुकी है. हैरानी जैसी इसमें कोई बात नहीं है क्योंकि ये सारी चीजें पहले से ही तय रही होंगी. सिर्फ अमल धीरे धीरे होता है. वैसे भी 'धीरे धीरे रे मना...' नीतीश कुमार का सूत्र वाक्य है. महागठबंधन के दिनों में ये लाइन उनके ज्यादातर सवालों का जवाब हुआ करती रही.
निश्चित रूप से नीतीश कुमार को प्रशांत किशोर से बड़ी अपेक्षाएं होंगी. प्रशांत किशोर को जेडीयू का भविष्य, नीतीश कुमान ने यूं ही तो कहा नहीं होगा. वो प्रशांत किशोर का काम काफी करीब से देख चुके हैं. मौजूदा राजनीतिक स्थिति में नीतीश कुमार को प्रशांत किशोर जैसे साथी की महती जरूरत भी लग रही होगी. काफी हद तक वैसी ही जैसी नरेंद्र मोदी के लिए अमित शाह की अहमियत है. ये मोदी-शाह की जोड़ी ही है जिसके सामने बड़े से बड़ा दिग्गज राजनीतिक रूप से बौना महसूस कर रहा है.
अव्वल तो काबिलियत के मामले में नीतीश कुमार का भी कोई सानी नहीं है. लालू प्रसाद को साथ लेकर नीतीश कुमार मोदी-शाह की जोड़ी को भी शिकस्त दे ही चुके हैं. संभव है प्रशांत किशोर में नीतीश कुमार कहीं न कहीं अमित शाह का अक्स देख रहे हों और फिलहाल जो कुछ नजर आ रहा है वो नीतीश की दूरगामी सोच का हिस्सा हो. बिहार में राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले नीतीश कुमार ने चुनावी चाणक्य प्रशांत किशोर पर एक ऐसी जिम्मेदारी डाल दी है, जिसके बाद पीके के सामने नये सिरे से खुद को साबित करने की चुनौती आ पड़ी है.
जेडीयू के भविष्य में क्या है?
प्रशांत किशोर के लिए जेडीयू ही नहीं, बल्कि कोई भी राजनीतिक दल ज्वाइन करना मुश्किल नहीं था. मुश्किल था तो पार्टी में बड़ा ओहदा हासिल करना. आपत्ति तो बीजेपी को भी बहुत नहीं थी, लेकिन प्रशांत किशोर को कोई बड़ा पद दिया जाना अमित शाह को ही नहीं मंजूर था. वक्त और जरूरत के हिसाब से प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार एक दूसरे के पूरक साबित हुए हैं. अब दोनों का ये परस्पर सामन्जस्य कितना फायदेमंद साबित होता है, देखना होगा.
जेडीयू में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद भी पहली बार किसी को दिया गया है. जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी के मुताबिक उपाध्यक्ष बनने के बाद जल्द ही प्रशांत किशोर को नयी जिम्मेदारी भी मिलने वाली है. प्रशांत किशोर ने पहले से ही कह रखा है कि अगले 10 साल वो बिहार में ही रहेंगे और वहीं जमीनी स्तर पर काम करेंगे. जेडीयू ज्वाइन करने के साथ ही प्रशांत किशोर के लिए लोक सभा सीट की भी अटकलें शुरू हो गयी थीं. कुछ लोग इसे उनके लोक सभा चुनाव नहीं लड़ने से जोड़ कर देख रहे हैं, लेकिन ऐसी कोई शर्त नहीं लगती.
प्रशांत किशोर की पहली चुनौती है लोक सभा चुनाव के लिए सीटों को लेकर बीजेपी से डील. उसके बाद हिस्से में आयी ज्यादातर सीटों पर जेडीयू की जीत सुनिश्चित करना. यही वो चीज है जो जेडीयू के भविष्य की नींव होगी.
वैसे जेडीयू के भविष्य में क्या क्या हो सकता है? नीतीश कुमार ने जेडीयू को लेकर किस तरह के भविष्य की कल्पना कर रखी होगी? एकबारगी तो बिहार में जेडीयू की पकड़ मजबूत होना और दिल्ली में कोई बड़ी भूमिका. बताने के लिए अभी जेडीयू के नेता ही राज्य सभा के उपसभापति हैं - हरिवंश नारायण सिंह.
ऐसा भी तो हो सकता है कि नीतीश कुमार जेडीयू का भविष्य इस रूप में भी देखते हों कि उसका नेता कभी देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर भी बैठे? अब वक्त इतना कम है कि चुनाव से पहले तो ऐसा नहीं लगता - मगर, क्या पता चुनाव बाद कैसी परिस्थितियां हों?
ये तो जेडीयू के बतौर राजनीतिक दल भविष्य की बात हुई. वैसे नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को भविष्य बताकर कोई और संकेत देने की कोशिश तो नहीं की थी. वैसे और संकेत क्या हो सकते हैं? क्या प्रशांत किशोर आगे चल कर नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी हो सकते हैं?
नीतीश ने गेंद प्रशांत किशोर के पाले में डाल दी है. अब प्रशांत किशोर पर ही निर्भर करता है कि वो क्या कुछ हासिल कर पाते हैं. वैसे ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए तो प्रशांत किशोर का भविष्य उज्ज्वल ही लगता है. किसी उज्ज्वल भविष्य को कितना संघर्ष करना पड़ता है राहुल गांधी से बड़ा उदाहरण कौन हो सकता है?
मोदी-शाह से युद्धविराम हुआ है, नीतीश की जंग खत्म हुई नहीं लगती
महागठबंधन छोड़ कर एनडीए में आने के बाद नीतीश कुमार की मुश्किलें खत्म होना तो दूर, कम भी नहीं हुई हैं. हो सकता है मुश्किलों के नाम और तौर तरीके बदल गये हों. पहले नीतीश कुमार को भ्रष्टाचार और आपराधिक चुनौतियों से जूझना होता था, अब सांप्रदायिक माहौल से. बीजेपी नेताओं का नाम लिये बगैर नीतीश कुमार कई बार इस बारे में राय भी जाहिर कर चुके हैं.
नीतीश कुमार ने एक बार फिर बीजेपी को मैसेज देने की कोशिश की है. नीतीश ने कहा कि वो गवर्नेंस के मूल्यों पर किसी से समझौता नहीं करेंगे, यहां तक कि सहयोगियों से भी नहीं. नीतीश कुमार ने साफ साफ कहा कि वो सांप्रदायिकता को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेंगे, चाहे उसके लिए उन्हें कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े.
एक बात तो नीतीश कुमार के दिमाग में हरदम रहती ही होगी कि बीजेपी की नजर में जेडीयू भी दूसरी शिवसेना है. जो सलूक बीजेपी ने महाराषट्र में शिवसेना के साथ किया और उसे हाशिये पर धकेल दिया, बिहार में भी बीजेपी का इरादा अलग नहीं होगा. बीजेपी के खिलाफ इसी जंग में नीतीश कुमार को प्रशांत किशोर की मदद की जरूरत है.
2019 ठीक ठाक गुजर जाये और चुनाव नतीजे ऐसे हों कि आगे की लड़ाई थोड़ी आसान हो जाये तो नीतीश के लिए ये सबसे बड़ी मदद होगी. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में यही स्थिति निर्णायक साबित होगी. खासकर तब जब आरजेडी की ओर से तेजस्वी यादव भी बड़ी चुनौती पेश कर रहे होंगे. प्रोफेशनल असाइनमेंट की बात और है, लेकिन नीतीश को भी मालूम है कि प्रशांत किशोर के मन में बीजेपी को लेकर क्या चल रहा है. प्रशांत किशोर को चार साल पहले ही स्थाई पता चाहिये था. बीजेपी में ये मुमकिन नहीं हो पाया. 2015 में नीतीश को जीत दिलाने में इस मलाल का भी कोई न कोई रोल तो होगा ही.
प्रशांत किशोर का ट्विटर अकाउंट फरवरी 2018 में बना हुआ बता रहा है. प्रशांत किशोर के फिलहाल करीब 18 हजार फॉलोवर हैं और वो महज 29 लोगों को फॉलो करते हैं जिनमें ज्यादातर पत्रकार हैं.
प्रशांत किशोर बीजेपी और कांग्रेस को तो फॉलो करते हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी, अमित शाह और राहुल गांधी को नहीं. ऐसा भी नहीं कि राजनीति में वो सिर्फ नीतीश कुमार को ही ट्विटर पर फॉलो करते हैं. नीतीश कुमार के अलावा वो सिर्फ वाईएस जगनमोहन रेड्डी को फॉलो करते हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि प्रशांत किशोर नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी के साथ साथ जगनमोहन रेड्डी के साथ भी काम कर चुके हैं. वैसे पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए भी प्रशांत किशोर काम कर चुके हैं.
क्या प्रशांत किशोर के ट्विटर पर किसी को फॉलो करने न करने के पीछे भी कोई राजनीतिक वजह ही हो सकती है?
PK के लिए शाह बनना बहुत मुश्किल है
पॉलिटिक्स ने पैराशूट एंट्री कितनी खतरनाक होती है, प्रशांत किशोर को भी अच्छी तरह मालूम होगा ही. बिहार से पहले दिल्ली विधानसभा के चुनाव में किरण बेदी के चलते क्या क्या नहीं हुआ बताने की जरूरत नहीं है.
छत्तीसगढ़ दौरे पर बिलासपुर पहुंचे अमित शाह ने एक वाकये का जिक्र किया था. अमित शाह ने बताया, "1982 के ऐसे ही एक सम्मेलन में मैं अहमदाबाद में दूर कहीं खड़ा था... एक स्कूल में 293 बूथ का अध्यक्ष बनकर कहीं कोने में खड़ा था... आज बीजेपी की महानता देखिये बूथ पर पंडाल लगाने वाला, बूथ पर पोस्टर लगाने वाला, बूथ पर कमल के फूल की पेंटिंग करने वाला कार्यकर्ता दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का अध्यक्ष बनकर आप लोगों के सामने खड़ा है."
प्रशांत किशोर को लेकर कोई कुछ बोल नहीं रहा, लेकिन कई सीनियर नेताओं को ये पच नहीं रहा है. ऐसे जेडीयू नेता खामोश और मायूस हैं. अगर शरद यादव होते तो शायद मन की बात जबान पर कब की आ चुकी होती.
सबसे बड़ी चीज असल में स्वीकार्यता होती है. अमित शाह बीजेपी में नीचे से निकल कर आये हैं. प्रशांत किशोर की पैराशूट एंट्री हुई है. जेडीयू के सीनियर नेताओं द्वारा उन्हें दिल से स्वीकार किया जाना बाकी है.
शाह को चुनाव लड़ने और लड़ाने दोनों का अनुभव रहा. कई बार विधायक रहे अमित शाह फिलहाल राज्य सभा सांसद हैं. पीके के पास चुनाव जिताने का हुनर तो है - मगर खुद के लिए चुनाव जीतने का अनुभव सिफर है - जीत के लिए जनाधार के साथ साथ कार्यकर्ताओं के सहयोग की भी बहुत जरूरत होती है.
ये ठीक है कि जेडीयू और नीतीश कुमार को 2015 में जीत दिलाकर प्रशांत किशोर ने पार्टी कार्यकर्ताओं के दिल में अपनी जगह बना ली है, लेकिन राजनीति में दिल से ज्यादा दिमाग में जगह बनाना जरूरी होता है.
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