नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के तेजस्वी यादव की इफ्तार पार्टी में जाने के बाद से ही बिहार की राजनीति में अटकलों का दौर शुरू हो गया है - जिसे वो अपने एक्शन और बयानों से कभी खंडन तो कभी कंफर्म करते नजर आ रहे हैं.
नीतीश कुमार के मन में क्या चल रहा है, ये तो बस वही जानते हैं, लेकिन इफ्तार के बाद पुराने बंगले में शिफ्ट होकर चीजों को और भी ज्यादा रहस्यमय बना देते हैं - अगर घटनाक्रमों की कड़ियां जोड़ें तो क्रोनोलॉजी अलग ही समझ आ रही है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नया पता अब 7, सर्कुलर रोड हो गया है. बताया गया है कि मुख्यमंत्री कार्यालय का एड्रेस अब भी 1, अणे मार्ग ही रहेगा - जिस बंगले में नीतीश कुमार पहुंचे हैं, वहीं पर बिहार में महागठबंधन की नींव पड़ी थी. बरसों बाद नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद के साथ नये सिरे से दोस्ती की शुरुआत की थी. पहले तो बीजेपी बस मुंह देखती रह गयी थी, 2015 के चुनावों में भी हार का ही मुंह देखना पड़ा था.
नीतीश कुमार को लेकर लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप का तो यहां तक दावा है कि 'चाचा से सीक्रेट बात' हो गयी है, जबकि स्थिति ये है कि वो तेजस्वी यादव तक से कोई ऐसी बात नहीं करने वाले हैं - अगर कोई काम की बात करनी भी होगी तो सीधे लालू यादव से संपर्क साधेंगे.
तेजस्वी यादव की इफ्तार पार्टी में नीतीश कुमार का जाना, बिहार की राजनीतिक चर्चाओं का प्रमुख मुद्दा बन गया है. तेज प्रताप यादव ने नीतीश कुमार को लेकर क्या कहा है या नहीं कहा है, इससे फर्क नहीं पड़ता - लेकिन इसका मतलब ये भी तो नहीं होता कि नीतीश कुमार के मन में भी कुछ नहीं ही चल रहा होगा.
कहने को तो नीतीश कुमार ने दावत के बहाने तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के परिवार से मुलाकात को राजनीतिक रंग न देने को कहा है. लालू यादव की बेटी मीसा...
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के तेजस्वी यादव की इफ्तार पार्टी में जाने के बाद से ही बिहार की राजनीति में अटकलों का दौर शुरू हो गया है - जिसे वो अपने एक्शन और बयानों से कभी खंडन तो कभी कंफर्म करते नजर आ रहे हैं.
नीतीश कुमार के मन में क्या चल रहा है, ये तो बस वही जानते हैं, लेकिन इफ्तार के बाद पुराने बंगले में शिफ्ट होकर चीजों को और भी ज्यादा रहस्यमय बना देते हैं - अगर घटनाक्रमों की कड़ियां जोड़ें तो क्रोनोलॉजी अलग ही समझ आ रही है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नया पता अब 7, सर्कुलर रोड हो गया है. बताया गया है कि मुख्यमंत्री कार्यालय का एड्रेस अब भी 1, अणे मार्ग ही रहेगा - जिस बंगले में नीतीश कुमार पहुंचे हैं, वहीं पर बिहार में महागठबंधन की नींव पड़ी थी. बरसों बाद नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद के साथ नये सिरे से दोस्ती की शुरुआत की थी. पहले तो बीजेपी बस मुंह देखती रह गयी थी, 2015 के चुनावों में भी हार का ही मुंह देखना पड़ा था.
नीतीश कुमार को लेकर लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप का तो यहां तक दावा है कि 'चाचा से सीक्रेट बात' हो गयी है, जबकि स्थिति ये है कि वो तेजस्वी यादव तक से कोई ऐसी बात नहीं करने वाले हैं - अगर कोई काम की बात करनी भी होगी तो सीधे लालू यादव से संपर्क साधेंगे.
तेजस्वी यादव की इफ्तार पार्टी में नीतीश कुमार का जाना, बिहार की राजनीतिक चर्चाओं का प्रमुख मुद्दा बन गया है. तेज प्रताप यादव ने नीतीश कुमार को लेकर क्या कहा है या नहीं कहा है, इससे फर्क नहीं पड़ता - लेकिन इसका मतलब ये भी तो नहीं होता कि नीतीश कुमार के मन में भी कुछ नहीं ही चल रहा होगा.
कहने को तो नीतीश कुमार ने दावत के बहाने तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के परिवार से मुलाकात को राजनीतिक रंग न देने को कहा है. लालू यादव की बेटी मीसा भारती का भी यही कहना रहा कि दावत को राजनीतिक नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिये. दावत में तेजस्वी यादव की आवभगत में सक्रियता के साथ हाव भाव का जिक्र हो रहा है, लेकिन मेहमानों को बुलाकर अगर वो ऐसा नहीं करते तो क्या करते.
ये ठीक है कि इफ्तार पार्टी में बीजेपी नेता और बिहार सरकार में मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन भी पहुंचे थे, लेकिन नीतीश कुमार का पांच साल बाद लालू यादव के घर जाना और पूरे परिवार के साथ 45 मिनट बिताना राजनीतिक नजरिये से यूं ही तो नहीं लगता.
तरह तरह की बातें इसलिए भी हो रही हैं क्योंकि हाल फिलहाल नीतीश कुमार और बीजेपी के रिश्तों को लेकर सवाल खड़े किये जाते रहे हैं. बोचहां उपचुनाव में बीजेपी उम्मीदवार की हार को लेकर भी बिहार बीजेपी के नेताओं में कानाफूसी चल रही है - और जब ये सब होता है तो ऐसा कैसे हो सकता है कि आलाकमान तक अपडेट न पहुंचे.
लेकिन नीतीश कुमार ने अमित शाह (Amit Shah) को रिसीव करने एयरपोर्ट पहुंच कर नया ट्विस्ट दे दिया. अमित शाह के साथ एयरपोर्ट पर नीतीश कुमार ने बंद कमरे में करीब 15 मुलाकात भी की. बताते हैं कि बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल भी उस दौरान मौजूद थे.
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को किसी मुख्यमंत्री का रिसीव करना और बात है, लेकिन किसी केंद्रीय मंत्री को रिसीव करने का नीतीश कुमार का ये फैसला भी चौंकाने वाला ही लगता है - कुछ तो ऐसी बात जरूर है जिसे नीतीश कुमार को न बताते बन रहा है, न छुपाते बन रहा है!
क्रोनोलॉजी को कैसे समझा जाये
राज्य सभा को लेकर चर्चा खुद नीतीश कुमार ने शुरू की थी और वो उनको उपराष्ट्रपति बनाने तक पहुंच गयी. खंडन पर खंडन आने लगे और चर्चा थोड़ी धीमी पड़ी. तभी प्रशांत किशोर उनको राष्ट्रपति बनाने का प्रस्ताव लेकर पहुंच गये.
पांच साल बाद लालू यादव के घर इफ्तार की दावत में अगर नीतीश कुमार पहुंचते हैं तो चर्चा तो होगी ही - और तभी सरकारी बंगला भी बदल लेते हैं! माजरा क्या है? कुछ तो है!
पुराने बंगले के पीछे नया क्या है? 7 सर्कुलर रोड वाले सरकारी आवास में नीतीश कुमार पहले भी रह चुके हैं - लेकिन कब? सबसे महत्वपूर्ण बात, दरअसल, यही है.
एनडीए छोड़न के बाद नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री का पद भी छोड़ दिया था और अपनी जगह जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया. तभी 1, अणे मार्ग के मुख्यमंत्री आवास से सर्कुलर रोड वाले बंगले में भी चले गये थे. ये 2014 में केंद्र में बीजेपी की सरकार और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के तत्काल बाद की बात है.
सर्कुलर रोड वाले बंगले में रहते हुए ही नीतीश कुमार ने लालू यादव के साथ हाथ मिला कर आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया था - और 2015 में चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री बने थे. टाइम मशीन एक बार फिर वैसे ही घूमती नजर आ रही है, फिर चर्चाएं रुक कैसे सकती हैं. लगता तो ये है कि नीतीश कुमार खुद भी यही चाहते हैं.
अब कोई संयोग समझे या नीतीश कुमार के प्रयोग, लेकिन लालू परिवार का आवास भी सर्कुलर रोड पर ही है. दोनों नेताओं के बंगलों में थोड़ा फासला जरूर है - थोड़ा ज्यादा सोचना चाहें तो लालू यादव को एक और केस में जमानत मिल चुकी है और सब ठीक रहा तो जेल से बाहर भी आ सकते हैं. और आने वाले दिनों में पहले दिल्ली और उसके बाद पटना भी पहुंच सकते हैं.
बताया गया है कि 1, अणे मार्ग पर मेंटेनेंस का काम होना है और ये सब उसी हिस्से में होना है जो मुख्यमंत्री का आवासीय हिस्सा है. इसलिए तीन चार महीने तक वो सर्कुलर रोड पर ही रहेंगे. ये भी बताया गया है कि मुख्यमंत्री कार्यालय 1, अणे मार्ग पर ही रहेगा.
लेकिन ये नहीं समझ में आ रहा कि तीन-चार महीने के लिए गोशाला को शिफ्ट करने की क्या जरूरत रही होगी. मवेशी तो जहां थे वहां रह ही सकते थे - कहीं वास्तु दोष जैसी कोई सलाहियत तो नहीं मिली थी?
इफ्तार पर लालू के घर जाना यूं कैसे? नीतीश कुमार राबड़ी देवी के आवास पांच साल बाद पहुंचे थे. 2017 में भी बतौर मुख्यमंत्री ही पहुंचे थे, लेकिन तब माहौल अलग था. तब तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव उनके कैबिनेट साथी हुआ करते थे - और लालू प्रसाद सत्ताधारी महागठबंधन में पार्टनर. हालांकि, लालू यादव के जेल चले जाने के बाद से इफ्तार और होली मिलन जैसे कार्यक्रम ठंडे पड़ गये थे.
दावत-ए-इफ्तार का न्योता अमित शाह को भी भेजा गया था, तेज प्रताप यादव ने ट्विटर पर वो कार्ड शेयर कर ये दावा किया है. ये न्योता राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव की तरफ से भेजा गया है.
इफ्तार की दावत के लिए लालू-राबड़ी के घर जाने को लेकर नीतीश कुमार का कहना रहा, 'ऐसी इफ्तार पार्टियों में बहुत से लोगों को आमंत्रित किया जाता है... इसका राजनीति से क्या संबंध है? हम भी एक इफ्तार पार्टी रखते हैं - और सभी को इसमें आमंत्रित करते हैं.'
लेकिन तेज प्रताप के दावे पर लोग मजे लेकर खूब चर्चा कर रहे हैं, 'हम सरकार बनाएंगे और खेल खुल जाएगा... ये एक रहस्य है... नीतीश जी के साथ गुप्त बातचीत हुई.' तेज प्रताप के लिए तो खुशी को संभालना मुश्किल ह रहा है, 'ये राजनीति है... अटकलें लगना सामान्य बात है... पहले मैंने 'नो एंट्री' बोर्ड लगाया था, लेकिन अब इसे 'एंट्री - नीतीश चाचा जी' से बदल दिया गया है - अब वो आ गये हैं.'
राज्य सभा जाने की चर्चा तो खुद ही छेड़ी थी! नीतीश कुमार को उपराष्ट्रपति से लेकर राष्ट्रपति बनाये जाने को लेकर भी काफी चर्चा हो रही है - और उसे बिहार से नीतीश कुमार की विदायी के तौर पर देखा जा रहा है.
नीतीश कुमार ने पटना में पत्रकारों के साथ बातचीत में मन की बात कुछ इस अंदाज में कही थी, जैसे वो सभी तीर्थ कर चुके हों बस गंगासागर बाकी रहा गया है - अब तक वो राज्य सभा के सदस्य नहीं रहे हैं.
फिर क्या था, नयी चर्चा शुरू हो गयी कि नीतीश कुमार को बीजेपी राज्य सभा के जरिये उपराष्ट्रपति बनाने की तैयारी कर रही है. बीजेपी नेताओं ने कहना शुरू कर दिया कि ऐसा हुआ तो मुख्यमंत्री बीजेपी का बनेगा.
बीजेपी की तरफ से दो तरह के बयान आये. बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल समझा रहे थे कि हादसे का क्या कभी भी हो सकता है. मतलब, नीतीश कुमार कभी भी जा सकते हैं. लेकिन बीजेपी के डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद समझाने लगे कि नीतीश कुमार आगे भी मुख्यमंत्री रहेंगे. ऐसी ही बात शाहनवाज हुसैन की तरफ से भी सुनी गयी थी.
फिर चर्चा इस बात पर शुरू हो गयी कि बीजेपी की तरफ से नीतीश कुमार की जगह कौन लेगा - नित्यानंद राय से लेकर गिरिराज सिंह तक के नाम चलने लगे. हो सकता है बधाइयों का दौर भी भीतर ही भीतर चला हो.
नीतीश कुमार ने तेजस्वी यावद की इफ्तार पार्टी में शामिल होकर ऐसी चर्चाओं को ट्विस्ट दिया है, तो अमित शाह से एयरपोर्ट पर मिल कर बीजेपी को कंफ्यूज करने की कोशिश की है. जिस तरीके से प्रशांत किशोर और सोनिया गांधी ताबड़तोड़ मीटिंग कर रहे हैं, ऐसा लगता है विपक्ष की तरफ से राष्ट्रपति चुनाव में एक मजबूत उम्मीदवार उतारने की भी तैयारी चल रही है.
सटीक संकेत राष्ट्रपति चुनाव ही देगा
नीतीश कुमार के नये राजनीतिक स्टैंड की तस्वीर राष्ट्रपति चुनाव में ही पूरी तरह साफ हो सकेगी, ऐसा लगता है. राष्ट्रपति चुनावों को लेकर भी नीतीश कुमार का एक खास ट्रैक रिकॉर्ड देखा गया है.
अक्सर ही नीतीश कुमार राष्ट्रपति चुनाव में पैंतरा बदल लेते हैं - और उसके बाद पाला बदल लेने की संभावना भी बढ़ जाती है. एक बार फिर नीतीश कुमार की राजनीति उसी मोड़ पर पहुंची हुई लगती है.
राष्ट्रपति चुनाव 2012: 2012 में एनडीए में रहते हुए भी नीतीश कुमार ने यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का सपोर्ट किया था. तब बीजेपी की तरफ से एनडीए और विपक्ष के उम्मीदवार पीए संगमा चुनाव मैदान में उतारे गये थे.
राष्ट्रपति चुनाव 2017: 2017 में नीतीश कुमार महागठबंधन के मुख्यमंत्री थे, लेकिन जब राष्ट्रपति चुनाव की बारी आयी तो एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को वोट दे आये. तब विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार थीं - और नीतीश कुमार का कहना रहा कि अगर दलित की बेटी की इतनी फिक्र है तो अगली बार विपक्ष ऐसा इंतजाम करे की वो राष्ट्रपति भवन पहुंच जायें.
राष्ट्रपति चुनाव 2022: 2022 में नीतीश कुमार का स्टैंड गौर करने लायक होगा - देखा होगा, नीतीश कुमार इस बार एनडीए कैंडिडेट को सपोर्ट करते हैं या विपक्ष के उम्मीदवार को? बशर्ते, नीतीश कुमार को ही राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार नहीं बनाये जाने की अंदर ही अंदर तैयारी चल रही हो!
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