बिहार में हो रहा बोचहां उपचुनाव (Bochahan bypoll) भी सभी राजनीतिक दलों के लिए तारापुर और कुशेश्वर स्थान जितना ही महत्वपूर्ण है. बोचहां में भी एनडीए पहले की ही तरह पूरी ताकत से चुनाव लड़ रहा है. बीते उपचुनावों में दोनों सीटें जेडीयू के हिस्से की रहीं और आगे भी बनी रहीं. अब बीजेपी की बारी है - लेकिन जीत सुनिश्चित करने की पूरी जिम्मेदारी नीतीश कुमार पर ही है.
तब तो लालू यादव ने भी आरजेडी उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार किया था, अब तेजस्वी यादव को अकेले डेरा डालना पड़ रहा है. हालांकि, लालू यादव का करिश्मा तब पूरी तरह फेल रहा - और तेजस्वी यादव की सारी रणनीति धरी की धरी रह गयी.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) भी चुनाव प्रचार के आखिरी दिन कैंपेन टीम की हौसलाअफजाई करने वाले हैं. सुरक्षित सीट बोचहां पर बीजेपी की जीत सुनिश्चित करना भी नीतीश कुमार की जिम्मेदारियों का हिस्सा लगने लगा है.
जिस तरीके से बिहार बीजेपी (BJP) के नेताओं की तरफ से नीतीश कुमार को टारगेट किया जा रहा है, बीजेपी को बोचहां की जीत का तोहफा देने के बाद नीतीश की मुश्किलें आसान हो सकती हैं. खासकर तब, जब नीतीश कुमार के पूरे कार्यकाल तक मुख्यमंत्री बने रहने पर बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल सवालिया निशान लगा रहे हों तो सैयद शाहनवाज हुसैन का सपोर्ट सिस्टम भी हिलता डुलता लगता है.
और जिस तरह दानापुर में जेडीयू नेता दीपक मेहता की मारकर हत्या कर दी, गयी सीवान में एक MLC उम्मीदवार के काफिले को एके 47 से टारगेट किया गया, बिहार में कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठना तो स्वाभाविक ही है - ये जिम्मेदारी भी तो नीतीश कुमार की ही है, लिहाजा निशाने पर भी वही रहेंगे. ऐसे सवाल पहले सिर्फ विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव की तरफ से ही उठाये जाते रहे, अब तो...
बिहार में हो रहा बोचहां उपचुनाव (Bochahan bypoll) भी सभी राजनीतिक दलों के लिए तारापुर और कुशेश्वर स्थान जितना ही महत्वपूर्ण है. बोचहां में भी एनडीए पहले की ही तरह पूरी ताकत से चुनाव लड़ रहा है. बीते उपचुनावों में दोनों सीटें जेडीयू के हिस्से की रहीं और आगे भी बनी रहीं. अब बीजेपी की बारी है - लेकिन जीत सुनिश्चित करने की पूरी जिम्मेदारी नीतीश कुमार पर ही है.
तब तो लालू यादव ने भी आरजेडी उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार किया था, अब तेजस्वी यादव को अकेले डेरा डालना पड़ रहा है. हालांकि, लालू यादव का करिश्मा तब पूरी तरह फेल रहा - और तेजस्वी यादव की सारी रणनीति धरी की धरी रह गयी.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) भी चुनाव प्रचार के आखिरी दिन कैंपेन टीम की हौसलाअफजाई करने वाले हैं. सुरक्षित सीट बोचहां पर बीजेपी की जीत सुनिश्चित करना भी नीतीश कुमार की जिम्मेदारियों का हिस्सा लगने लगा है.
जिस तरीके से बिहार बीजेपी (BJP) के नेताओं की तरफ से नीतीश कुमार को टारगेट किया जा रहा है, बीजेपी को बोचहां की जीत का तोहफा देने के बाद नीतीश की मुश्किलें आसान हो सकती हैं. खासकर तब, जब नीतीश कुमार के पूरे कार्यकाल तक मुख्यमंत्री बने रहने पर बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल सवालिया निशान लगा रहे हों तो सैयद शाहनवाज हुसैन का सपोर्ट सिस्टम भी हिलता डुलता लगता है.
और जिस तरह दानापुर में जेडीयू नेता दीपक मेहता की मारकर हत्या कर दी, गयी सीवान में एक MLC उम्मीदवार के काफिले को एके 47 से टारगेट किया गया, बिहार में कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठना तो स्वाभाविक ही है - ये जिम्मेदारी भी तो नीतीश कुमार की ही है, लिहाजा निशाने पर भी वही रहेंगे. ऐसे सवाल पहले सिर्फ विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव की तरफ से ही उठाये जाते रहे, अब तो बिहार बीजेपी के नेताओं की तरकश में ये नया तीर भी जुड़ जाएगा.
लेकिन नीतीश कुमार चाहें तो बोचहां सीट बीजेपी की झोली में भर कर अपने खिलाफ हमलों की धार थोड़ी कम तो कर ही सकते हैं - मान कर चलना चाहिये कि बीजेपी नेतृत्व की तरफ नीतीश कुमार की हो रही अग्नि परीक्षाओं में से एक तो होगा ही.
नीतीश के खिलाफ खेल खत्म क्यों नहीं हो रहा है?
एमएलसी चुनाव की गहमागहमी खत्म होने के बाद बिहार की राजनीति का फोकस बोचहां उपचुनाव पर शिफ्ट हो गया है. अगर थोड़ा बहुत ध्यान बंटता भी है तो 7 अप्रैल को नतीजे आने के बाद वो भी खत्म हो जाएगा.
बीजेपी लगता है बिहार में नीतीश कुमार को लेकर माइंड गेम खेलने लगी है. बिहार बीजेपी के नेताओं के अलग अलग तरह के आ रहे बयान, संकेत तो ऐसे ही दे रहे हैं. जैसे ही कुछ नेता नीतीश कुमार के कार्यकाल पूरे करने पर सवाल खड़े कर रहे हैं, तभी बीजेपी के ही कुछ नेता नीतीश कुमार के ही 2025 तक बिहार के मुख्यमंत्री बने रहने का भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे है.
ऐसा लगने लगा है जैसे धीरे धीरे नीतीश कुमार भी वीआईपी नेता मुकेश सहनी और लोक जनशक्ति पार्टी नेता चिराग पासवान की राह पर बढ़ते जा रहे हों. अगर मुकेश सहनी हड़बड़ी में नहीं होते और बीजेपी के खिलाफ आक्रामक तरीके से मुहिम चलाकर टकराये नहीं होते तो, मुमकिन है उनका नंबर नीतीश कुमार के बाद ही आता.
नीतीश कुमार के राज्य सभा वाला शिगूफा छोड़ने के बाद बीजेपी विधायकों की तरफ से अपने मुख्यमंत्री की मांग शुरू हो जाती है - और तभी एक इंटरव्यू में बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल शक भी जाहिर कर देते हैं, 'नीतीश कुमार अभी मुख्यमंत्री हैं, आगे क्या होगा ये कोई नहीं जानता. संजय जायसवाल अपनी बात समझाने के लिए किसी राजनीतिक हादसे का भी संकेत देते हैं. ठीक वैसे ही जैसे गाड़ी पलटने से होने वाले एनकाउंटर को लेकर योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि गाड़ी का क्या कभी भी पलट सकती है.
बातचीत में डॉक्टर संजय जायसवाल समझाते हैं, "आप यहां से बाहर निकलकर जायें और दुर्घटना नहीं हो, ये कोई जानता है क्या?"
क्या वास्तव में नीतीश कुमार किसी राजनीतिक हादसे के शिकार होने वाले हैं. जैसा जेडीयू विधायकों के साथ अरुणाचल प्रदेश में हुआ. जैसा वीआईपी के विधायकों से साथ अभी अभी बिहार में हुआ है - क्या जेडीयू विधायकों के साथ बिहार में भी अरुणाचल प्रदेश जैसा हादसा हो सकता है?
मुश्किल ये है कि जैसे ही नीतीश कुमार बिहार बीजेपी अध्यक्ष की बात सुन कर अलर्ट मोड में आते हैं, कैबिनेट साथी तारकिशोर प्रसाद कहना शुरू कर देते हैं, 'नीतीश कुमार को बिहार की जरूरत है... वो 2025 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहेंगे...'
तारकिशोर प्रसाद तो नीतीश कुमार को उप राष्ट्रपति बनाये जाने की बातों को भी खारिज कर रहे हैं और लगे हाथ बीजेपी नेताओं को बेवजह की बयानबाजी न करने की सलाह दे रहे हैं - और जेडीयू की तरफ से इसे हाथोंहाथ लिया गया है. जरूरी भी है, मजबूरी भी.
अगर बीजेपी की तरह से कन्फ्यूज करने की कोशिशें हो रही हैं, तो जेडीयू नेता भी अपनी ओर से काउंटर करने का प्रयास कर रहे हैं. जेडीयू नेता नीरज कुमार कह रहे हैं कि बीजेपी नेताओं को तारकिशोर प्रसाद की बात तो माननी ही पड़ेगी, 'बीजेपी विधानमंडल दल के वो नेता जो हैं.'
बोचहां उपचुनाव का सूरत-ए-हाल
बिहार की बोचहां विधानसभा सीट सुरक्षित कैटेगरी में आती है और करीब तीन लाख वोटर हैं - 2,90,764. उपचुनाव के लिए वोटिंग 12 अप्रैल को होनी है और 16 अप्रैल को वोटों की गिनती यानी नतीजों का दिन है. 2020 में मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के टिकट पर मुसाफिर पासवान विधायक बने थे - और नवंबर, 2021 में उनके निधन की वजह से ही वहां उपचुनाव हो रहा है.
मुकेश सहनी के बीजेपी से झगड़े की असली वजह तो यूपी चुनाव में उनकी अंगड़ाई रही, लेकिन ऊपरी तौर पर बोचहां उपचुनाव को ही बहाना बनाया गया. मुसाफिर पासवान की सीट होने के नाते मुकेश सहनी बोचहां पर कब्जा जमाये रखना चाहते थे. बीजेपी को तो बस कोई बहाना चाहिये था और दोनों तरफ से उम्मीदवार उतार दिये जाने के बाद आगे का रास्ता यूं ही साफ होता चला गया.
बीजेपी ने जहां बेबी कुमार को बोचहां से उम्मीदवार बना दिया, मुकेश सहनी ने पूर्व मंत्री रमई राम की बेटी गीता कुमारी को वीआईपी का टिकट दे दिया. रमई राम बोचहां से नौ बार विधायक रह चुके हैं.
अपना बहुत कुछ लुटा चुके मुकेश सहनी को अपनी बची खुची राजनीतिक जमीन बचाये रखने के लिए बोचहां फिलहाल आखिरी उम्मीद है. बीजेपी ने वीआईपी के टिकट पर जीते विधायकों की घर वापसी कराने के साथ ही, नीतीश कुमार पर दबाव बना कर मंत्री पद से भी मुकेश सहनी को चलता कर दिया है.
भाजपा ने पहले से ही प्रत्याशी बेबी कुमारी के लिए चुनाव प्रचार तेज कर दिया था। विधायक, प्रदेश स्तर के नेता और कई मंत्री मतदाताओं की नब्ज टटोलने के लिए जनसंपर्क अभियान चला चुके हैं। अन्य दलों ने भी अब तक जनसंपर्क को ही प्रचार का मुख्य माध्यम बनाया है।
निषादों का नेता कौन होगा: इलाके में निषाद समाज का असली नेता कौन होगा, उपचुनाव ये भी बताने वाला है और इसीलिए कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण हो गया है.
बोचहां, दरअसल, मुजफ्फरपुर लोक सभा सीट के तहत आने वाली छह विधानसभाओं में से एक है - और मुकेश सहनी का राजनीतिक उभार मुजफ्फरपुर से बीजेपी सांसद अजय निषाद को शुरू से ही हजम नहीं हो रहा है. कभी जॉर्ज फर्नांडिस का संसदीय क्षेत्र रहे मुजफ्फरपुर से अजय निषाद 2014 से बीजेपी के टिकट पर जीतते आ रहे हैं.
खुद को सन ऑफ मल्लाह कहने वाले मुकेश सहनी के यूपी चुनाव में एक्टिव होने पर सबसे ज्यादा हमलावर अजय निषाद ही रहे और कई बार एनडीए से बाहर का रास्ता दिखाये जाने की मांग कर चुके थे.
AIMIM उम्मीदवार को धमकी: बोचहां विधानसभा उप चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी ने रिंकू देवी को AIMIM की तरफ से उम्मीदवार बनाया है. रिंकू देवी की तरफ से इस मामले सकरा थाने में अज्ञात व्यक्ति शिकायत दर्ज करायी गयी है.
पुलिस को दी गयी शिकायत के मुताबिक, फोन रिसीव करते ही दूसरी तरफ से वो शख्स अपशब्द बोलने लगा और चुनाव मैदान से हटने को लेकर धमकी देने लगा. फिर उसने फोन काट दिया. बाद में व्हाट्सऐप पर अश्लील मैसेज आने शुरू हो गये थे.
सबसे अमीर उम्मीदवार और कर्जदार भी: प्रत्याशियों की ओर से दायर हलफनामे के अनुसार, सबसे अमीर उम्मीदवार आरजेडी के अमर पासवान हैं. अमर पासवान के पास करीब 15 करोड़ रुपये की संपत्ति है. हलफनामे में जो जानकारी दी गयी है उसमें बताया गया है अमर पासवान के पास करीब 28 लाख रुपये नकद हैं बैंक खाते में 2.63 करोड़ रुपये जमा हैं. अलग से उनके पास करीब 10 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति भी है.
बीजेपी उम्मीदवार बेबी कुमारी ने अपने हलफनामे में बताया है कि उनके ऊपर 10. 90 लाख रुपये की कर्जदार हैं और उनके पति के नाम पर भी 83.45 लाख रुपये का लोन है. बेबी कुमारी ने संपत्ति का जो ब्योरा दिया है, उसमें 16 और 14 लाख की दो कार हैं - और पति पत्नी दोनों के नाम पर एक-एक पिस्टल भी है.
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