बाकी पार्टियों से इतर यूपी के मैदान में नीतीश कुमार अपना फायदा देख रहे हैं. अपनी सक्रियता से नीतीश कांग्रेस की मदद तो कर ही रहे हैं, लालू प्रसाद को भी ये संकेत देने की कोशिश में हैं कि बिहार की बात और है - सूबे से बाहर उन्हें किसी की कतई परवाह नहीं है.
100 सीटों पर लड़ेंगे
बिहार में महागठबंधन और सत्ता में हिस्सेदार आरजेडी नेता लालू प्रसाद ने तो साफ तौर पर कह दिया है कि उनकी पार्टी यूपी में चुनाव नहीं लड़ने जा रही है, लेकिन नीतीश कुमार का इस मुद्दे पर अपना अलग स्टैंड है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक नीतीश कुमार की पार्टी यूपी में 100 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है.
हाल ही में लालू प्रसाद ने कहा था कि उनकी पार्टी यूपी में धर्मनिरपेक्ष ताकतों के पक्ष में काम करेगी. जब लालू से पूछा गया कि क्या वो समाजवादी पार्टी की मदद करेंगे, लालू ने कहा कि समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव उनके समधी हैं और वो निश्चित तौर पर उनका खास ख्याल रखते हैं. ये बात अलग है कि बिहार चुनाव के दौरान मुलायम सिंह न सिर्फ महागठबंधन से अलग हो गये थे बल्कि लालू के बेटे तेजस्वी के शपथग्रहण के मौके से भी दूरी बना ली. कुछ ही दिन बाद जब मुलायम का बर्थडे आया तो लालू ने भी न पहुंच कर बदला ले लिया.
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किन सीटों पर है नजर
कहने को तो नीतीश कुमार के लिए जेडीयू की ओर से कार्यकर्ता सम्मेलन कराये जाते हैं, मगर ये जातीय सम्मेलन ज्यादा नजर आते हैं. बतौर...
बाकी पार्टियों से इतर यूपी के मैदान में नीतीश कुमार अपना फायदा देख रहे हैं. अपनी सक्रियता से नीतीश कांग्रेस की मदद तो कर ही रहे हैं, लालू प्रसाद को भी ये संकेत देने की कोशिश में हैं कि बिहार की बात और है - सूबे से बाहर उन्हें किसी की कतई परवाह नहीं है.
100 सीटों पर लड़ेंगे
बिहार में महागठबंधन और सत्ता में हिस्सेदार आरजेडी नेता लालू प्रसाद ने तो साफ तौर पर कह दिया है कि उनकी पार्टी यूपी में चुनाव नहीं लड़ने जा रही है, लेकिन नीतीश कुमार का इस मुद्दे पर अपना अलग स्टैंड है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक नीतीश कुमार की पार्टी यूपी में 100 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है.
हाल ही में लालू प्रसाद ने कहा था कि उनकी पार्टी यूपी में धर्मनिरपेक्ष ताकतों के पक्ष में काम करेगी. जब लालू से पूछा गया कि क्या वो समाजवादी पार्टी की मदद करेंगे, लालू ने कहा कि समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव उनके समधी हैं और वो निश्चित तौर पर उनका खास ख्याल रखते हैं. ये बात अलग है कि बिहार चुनाव के दौरान मुलायम सिंह न सिर्फ महागठबंधन से अलग हो गये थे बल्कि लालू के बेटे तेजस्वी के शपथग्रहण के मौके से भी दूरी बना ली. कुछ ही दिन बाद जब मुलायम का बर्थडे आया तो लालू ने भी न पहुंच कर बदला ले लिया.
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किन सीटों पर है नजर
कहने को तो नीतीश कुमार के लिए जेडीयू की ओर से कार्यकर्ता सम्मेलन कराये जाते हैं, मगर ये जातीय सम्मेलन ज्यादा नजर आते हैं. बतौर गेस्ट यूपी के एक दो कार्यक्रमों में शिरकत के अलावा नीतीश ने बनारस के पिंड्रा में बड़ी रैली की जहां से उन्होंने संघ और मोदी सरकार पर जोरदार हमला बोला. पिंड्रा वैसे तो फिलहाल मछलीशहर संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है लेकिन हमेशा से बनारस के करीब रहा है. इस सीट पर कुर्मी और भूमिहार वोटों का दबदबा है. कांग्रेस के अजय राय पिंड्रा से विधायक हैं जिन्होंने 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मैदान में चुनौती दी थी.
अजय राय से पहले उस इलाके से लेफ्ट के ऊदल कई दशक तक जीतते रहे जिसकी वजह सिर्फ कुर्मी वोट ही थे.
अगले शनिवार को नीतीश कुमार कानपुर के घाटमपुर इलाके में पब्लिक मीटिंग करने जा रहे हैं. कानपुर की तीन सीटें - घाटमपुर, बिल्हौर और कल्याणपुर में कुर्मी मतदाताओं की अच्छी संख्या है जो सीधे तौर पर जीत और हार तय करते रहे हैं. अब तक इस सीट पर समाजवादी पार्टी का ही राज रहा है. अब जातीय वोट बैंक के बूते नीतीश उसमें सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं.
नीतीश को नजर आ रही है फायदों की फेहरिस्त |
मोटे तौर पर देखा जाये तो यूपी में डेढ़ सौ से ज्यादा ऐसी सीटें हैं जिन पर कुर्मी वोटर आगे बढ़ कर फैसला सुनाते हैं. अब इन्हीं में से 100 सीटों पर नीतीश अपने उम्मीदवार उतारने जा रहे हैं.
नीतीश का मिशन 2017
बिहार चुनाव में नीतीश देख चुके हैं कि सिर्फ साफ सुथरी इमेज के बूते चुनावी मैदान में टिकना कितना मुश्किल है. चुनाव जीतने के लिए जनाधार और वो भी सिर्फ अपनी जाति का सपोर्ट होना सबसे जरूरी है. बिहार के साथ साथ ये बात यूपी में भी लागू होती है.
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अपने मिशन 2017 के तहत नीतीश एक तीर से दो नहीं बल्कि तीन निशाने साध रहे हैं - और निश्चित रूप से इसमें उन्हें उनके मजबूत सहयोगी और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का भरपूर साथ मिल रहा है.
1. घोषित तौर पर तो नीतीश कुमार वही सब कर रहे हैं जिससे पूरी तरह कांग्रेस को फायदा मिले. नीतीश की पहली कोशिश तो यही है कि कुर्मी वोटों का फायदा वो भले ही कांग्रेस को न दिला पाएं तो कम से कम उसे समाजवादी पार्टी और बीएसपी या अब बीजेपी को फायदा न उठाने दें.
2. बिहार से बाहर नीतीश की सक्रियता पर उनके सहयोगी आरजेडी के नेता खूब शोर मचाते हैं. लालू भले ही इसका रूख बीजेपी की ओर मोड़ देते हैं लेकिन नीतीश भी जानते हैं कि आरजेडी नेता बगैर लालू की शह के कुछ भी नहीं करते.
3. जिस तरह मुलायम ने महागठबंधन से अलग होकर नीतीश को हराने तक की अपील की थी वो नीतीश भला कैसे भूल सकते हैं. लालू भले ही अब रिश्तेदारी निभाने की बात करें लेकिन नीतीश ने अपना इरादा जाहिर कर दिया है.
नीतीश जानते हैं कि लालू का जितना फायदा उठाया जा सकता था उन्होंने उठा लिया - और निकट भविष्य में उससे ज्यादा मुमकिन नहीं है. नीतीश ये भी जानते हैं कि आरजेडी नेता उनके खिलाफ चाहे जितना बवाल करें उसकी भी हद तय है.
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अब नीतीश के पास कम से कम तीन चुनावी हथियार हैं - पहला, उनकी साफ सुथरी इमेज, दूसरा, यूपी-बिहार-झारखंड जैसे राज्यों के लिए उनकी बिरादरी का सपोर्ट और तीसरा और लेटेस्ट वेपन शराबबंदी. शराबबंदी के जरिये उन्हें महिला वोटर में अपनी पैठ बनानी है. जिस तरह बिहार में उन्हें फायदा मिला उन्हें उम्मीद होगी दूसरे राज्यों में भी लाभ मिलेगा. आखिर तमिलनाडु और केरल में तो शराबबंदी के हिमायतियों में होड़ देखी ही जा चुकी है.
यूपी में पैर जमाने के लिए पहले नीतीश ने आरएलडी नेता अजीत सिंह से हाथ मिलाने की कोशिश की, पर बात नहीं बन पाई. अब भी नीतीश के संपर्क में यूपी के कई छोटे दलों के नेता हैं. इनमें मोदी सरकार में मंत्री बनीं अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल से लेकर मायावती को ताजा झटका देने वाले आरके चौधरी भी शामिल हैं - और नीतीश इन बातों का पूरा फायदा उठाने की फिराक में हैं.
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