टीडीपी की तरफ से मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाते ही सारा विपक्ष एक हो गया. अब इसपर बहस भी हो रही है, लेकिन लोकसभा में भाजपा के पास स्वयं 273 सीटें हैं तथा सत्ताधारी एनडीए गठबंधन के पास 314 सांसद हैं और ऐसे में अगर एनडीए की दूसरी सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी शिवसेना भी प्रस्ताव के विरोध में वोट करती है तो भी सरकार को कोई नुक्सान नहीं होने वाला है. वर्तमान में लोकसभा में कुल 535 सदस्य हैं यानि इसके आधे 268 सदस्य चाहिए बहुमत साबित करने के लिए. जबकि समूचे विपक्ष के पास 231 सांसद ही हैं. इस संख्या बल के आधार पर तो यही कहा जा सकता है कि इस अविश्वास प्रस्ताव का पास होना नामुमकिन ही है.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर वो क्या वजह है जो विपक्ष साबित करना चाहता है, जबकि उसे पता है कि उनकी हार निश्चित है क्योंकि संख्या बल उसके साथ नहीं है. आखिर कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव का साथ क्यों दे रही है? कहीं ऐसा तो नहीं इसी बहाने कांग्रेस 2019 के चुनाव के लिए अपने महागठबंधन की संभावनाएं तलाशना चाहती है? लेकिन इससे ज़्यादा- कहीं ऐसा तो नहीं कि भाजपा की रणनीति में समूचा विपक्ष ही फंस गया है?
भाजपा का चाल:
अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार करने के पीछे भाजपा की चाल हो सकती है. 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा अपनी रणनीति के तहत दूसरे दलों के झुकाव का भी अंदाजा लगा सकती है. भाजपा की सहयोगी शिवसेना इससे नाराज़ चल रही है ऐसे में अगर शिवसेना इसके खिलाफ वोट डालती है तो भाजपा को AIADMK का साथ भी मिल सकता है. इससे भाजपा की स्थिति और भी मज़बूत होगी क्योंकि शिवसेना से ज़्यादा संख्या AIADMK की है. वहीं आंध्रप्रदेश का YSR कांग्रेस तथा ओडिशा से बीजू...
टीडीपी की तरफ से मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाते ही सारा विपक्ष एक हो गया. अब इसपर बहस भी हो रही है, लेकिन लोकसभा में भाजपा के पास स्वयं 273 सीटें हैं तथा सत्ताधारी एनडीए गठबंधन के पास 314 सांसद हैं और ऐसे में अगर एनडीए की दूसरी सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी शिवसेना भी प्रस्ताव के विरोध में वोट करती है तो भी सरकार को कोई नुक्सान नहीं होने वाला है. वर्तमान में लोकसभा में कुल 535 सदस्य हैं यानि इसके आधे 268 सदस्य चाहिए बहुमत साबित करने के लिए. जबकि समूचे विपक्ष के पास 231 सांसद ही हैं. इस संख्या बल के आधार पर तो यही कहा जा सकता है कि इस अविश्वास प्रस्ताव का पास होना नामुमकिन ही है.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर वो क्या वजह है जो विपक्ष साबित करना चाहता है, जबकि उसे पता है कि उनकी हार निश्चित है क्योंकि संख्या बल उसके साथ नहीं है. आखिर कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव का साथ क्यों दे रही है? कहीं ऐसा तो नहीं इसी बहाने कांग्रेस 2019 के चुनाव के लिए अपने महागठबंधन की संभावनाएं तलाशना चाहती है? लेकिन इससे ज़्यादा- कहीं ऐसा तो नहीं कि भाजपा की रणनीति में समूचा विपक्ष ही फंस गया है?
भाजपा का चाल:
अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार करने के पीछे भाजपा की चाल हो सकती है. 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा अपनी रणनीति के तहत दूसरे दलों के झुकाव का भी अंदाजा लगा सकती है. भाजपा की सहयोगी शिवसेना इससे नाराज़ चल रही है ऐसे में अगर शिवसेना इसके खिलाफ वोट डालती है तो भाजपा को AIADMK का साथ भी मिल सकता है. इससे भाजपा की स्थिति और भी मज़बूत होगी क्योंकि शिवसेना से ज़्यादा संख्या AIADMK की है. वहीं आंध्रप्रदेश का YSR कांग्रेस तथा ओडिशा से बीजू जनता दल का रूख भी साफ़ हो जायेगा जो अभी किसी के साथ नहीं हैं.
दूसरे भाजपा इसके द्वारा संसद को सुचारू रूप से चलने देने का क्रेडिट भी लेना चाहती है. वहीं इसके बहाने कुछ महत्वपूर्ण बिल को पास कराकर अपना वोट बैंक भी पक्का करना चाहता है. खासकर तीन तलाक के बिल को पास कराकर आनेवाले चुनावों में इसे मुद्दा बनाकर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया जाए.
कांग्रेस को भी फायदा:
इस अविश्वास प्रस्ताव को समर्थन देकर कांग्रेस भी अपना 2019 का भविष्य सुधारना चाहती है. इसके द्वारा इसे पता चल जाएगा कि कांग्रेस का साथ कौन-कौन सी पार्टी दे सकती है. और कौन-कौन सी पार्टियों का भाजपा से मोह भंग हुआ है जिसे अपने पाले में लाया जा सके. इसके द्वारा अगले लोकसभा चुनावों में अपनी रणनीति तैयार करना इसका मकसद होगा. इसके बाद विपक्षी एकता की मुहिम भी रफ्तार पकड़ सकती है. इसके साथ ही कांग्रेस संसद में ऐसे मुद्दों को भी उठाना चाहती है जिससे उसे आने वाले चुनावों में फायदा हो सके. मसलन गोरक्षा के नाम पर हत्याएं, दलितों पर अत्याचार के मामले इत्यादि.
हालांकि यह मोदी सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव है लेकिन इसके द्वारा सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष भी एक अवसर के तौर पर देख रहा है और दोनों को ये विश्वास है कि ये उनके हक में होगा, लेकिन ये कितना सच होगा इसका आकलन आनेवाले चुनाव नतीजों के बाद ही पत्ता चल पायेगा.
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