आपसी हितों का पूरा ध्यान रखते हुए कांग्रेस और जेडीएस ने बीजेपी को साफ कर दिया है कि कांग्रेस मुक्त कर्नाटक का उसका ख्वाब फिलहाल तो अधूरा ही रहेगा. 2019 तक तो बिलकुल नहीं. मुख्यमंत्री कुमारस्वामी की कुर्सी भी 2019 तक के लिए पक्की हो चुकी है. वैसे कांग्रेस की ओर से वादा तो पांच साल का किया गया है, लेकिन वादे का क्या सियासत में कसमें-वादे तो सहूलियत के हिसाब से तोड़ लिये जाते हैं.
चुनाव बाद ही सही कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को लेकर आगे समाचार ये है कि दोनों 2019 का आम चुनाव भी मिल कर लड़ेंगे. तय हुआ है कि सीटों का बंटवारा मिल बैठ कर पूरा कर लिया जाएगा. हालांकि, आरआर नगर उपचुनाव तक इसकी आशंका बनी हुई थी. दोनों पक्षों की ओर से कोशिश जरूर हुई कि कोई एक उम्मीदवारी वापस ले ले, लेकिन आखिर तक फैसला न हो सका. जीत कांग्रेस की हुई, जिद के मामले में नहीं - विधान सौधा के लिए एक और सदस्य के रूप में - अब तक कुल 79.
आगे तो बहुत लोचा है
कांग्रेस ने कर्नाटक का पेच तो सुलझा लिया, लेकिन दिल्ली में ही बड़ा लोचा नजर आ रहा है. वही हाल उसके लिए हरियाणा, यूपी और मध्य प्रदेश में भी साफ साफ दिख रहा है.
दिल्ली में कांग्रेस और आप के बीच समझौते की चर्चा चल रही है. इस बात की कोई पुख्ता जानकारी सामने नहीं आयी है, लेकिन दोनों पार्टियों के नेताओं के ट्वीड-डिबेट के आधार पर राजनीतिक के जानकार अंदाजा लगा रहे हैं - और नेताओं-कार्यकर्ताओं के बीच भी बहस हो रही है.
दिल्ली में लोक सभा की 7 सीटें हैं और दोनों दलों की कोशिश है कि खुद ज्यादा और दूसरे को कम से कम में निबटा दें. कुछ मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि खुद राहुल गांधी भी आप के साथ गठबंधन के पक्षधर नहीं हैं. पक्ष में न होने के...
आपसी हितों का पूरा ध्यान रखते हुए कांग्रेस और जेडीएस ने बीजेपी को साफ कर दिया है कि कांग्रेस मुक्त कर्नाटक का उसका ख्वाब फिलहाल तो अधूरा ही रहेगा. 2019 तक तो बिलकुल नहीं. मुख्यमंत्री कुमारस्वामी की कुर्सी भी 2019 तक के लिए पक्की हो चुकी है. वैसे कांग्रेस की ओर से वादा तो पांच साल का किया गया है, लेकिन वादे का क्या सियासत में कसमें-वादे तो सहूलियत के हिसाब से तोड़ लिये जाते हैं.
चुनाव बाद ही सही कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को लेकर आगे समाचार ये है कि दोनों 2019 का आम चुनाव भी मिल कर लड़ेंगे. तय हुआ है कि सीटों का बंटवारा मिल बैठ कर पूरा कर लिया जाएगा. हालांकि, आरआर नगर उपचुनाव तक इसकी आशंका बनी हुई थी. दोनों पक्षों की ओर से कोशिश जरूर हुई कि कोई एक उम्मीदवारी वापस ले ले, लेकिन आखिर तक फैसला न हो सका. जीत कांग्रेस की हुई, जिद के मामले में नहीं - विधान सौधा के लिए एक और सदस्य के रूप में - अब तक कुल 79.
आगे तो बहुत लोचा है
कांग्रेस ने कर्नाटक का पेच तो सुलझा लिया, लेकिन दिल्ली में ही बड़ा लोचा नजर आ रहा है. वही हाल उसके लिए हरियाणा, यूपी और मध्य प्रदेश में भी साफ साफ दिख रहा है.
दिल्ली में कांग्रेस और आप के बीच समझौते की चर्चा चल रही है. इस बात की कोई पुख्ता जानकारी सामने नहीं आयी है, लेकिन दोनों पार्टियों के नेताओं के ट्वीड-डिबेट के आधार पर राजनीतिक के जानकार अंदाजा लगा रहे हैं - और नेताओं-कार्यकर्ताओं के बीच भी बहस हो रही है.
दिल्ली में लोक सभा की 7 सीटें हैं और दोनों दलों की कोशिश है कि खुद ज्यादा और दूसरे को कम से कम में निबटा दें. कुछ मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि खुद राहुल गांधी भी आप के साथ गठबंधन के पक्षधर नहीं हैं. पक्ष में न होने के पीछे दुविधा भी हो सकती है जो अमूमन ऐसे फैसलों में देखने को मिलती भी रहती है. दिल्ली के ज्यादातर नेताओं ने तो इस आइडिया को भी खारिज कर दिया है. संभव है उन्हें अपने कॅरियर पर खतरा नजर आ रहा हो.
कांग्रेस का आप के साथ गठबंधन का इरादा अगर हरियाणा में भी है तो अभी कोई स्कोप नहीं है. आप नेता अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा की सभी 10 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. केजरीवाल वैसे भी अगला विधानसभा चुनाव गंभीरतापूर्वक लड़ने की तैयारी में जुटे हैं.
यूपी में गठबंधन का हाल तो और भी अजीब लगने लगा है. कैराना में वोटिंग से पहले ही मायावती ने साथी सियासी संगठनों को साफ कर दिया था कि बीएसपी गठबंधन तभी करेगी जब उसे सम्मान जनक सीटें मिलेंगी. अब सम्मान जनक संख्या भी सूत्रों के हवाले से सामने आ रही है - 40. यूपी में लोक सभा की 80 सीटें हैं, 40 का मतलब आधी सीटें.
आधी सीटें अगर मायावती ले लेंगी तो क्या समाजवादी पार्टी बचे हुए अपने हिस्से से शेयर करेगी. समाजवादी पार्टी को सीटें तो अजीत सिंह की पार्टी आरएलडी को भी देनी होगी. ज्यादा नहीं तो कम से कम तीन - एक तबस्सुम हसन, दूसरी अजीत सिंह और तीसरी जयंत चौधरी के लिए. हो सकता है कैराना की जीत के बाद अजीत सिंह और भी मोलभाव करें.
और कांग्रेस? अगर इसी हिसाब से सीटें बंटी तो कांग्रेस कहां जाएगी? कांग्रेस को भी सम्मान जनक सीटें चाहिये ही और 2017 में समाजवादी पार्टी द्वारा बख्शी गयी जैसी तो बिलकुल नहीं. ऐसी कोई डील मध्य प्रदेश को लेकर कांग्रेस के साथ मायावती भी कर सकती है.
ये सारी किचकिच तो बाद के लिए है. पहले राज्य सभा के उप सभापति पर बात तो बने. देखते हैं विपक्ष एक दूसरे का हाथ कब तक जोर से पकड़े रहता है - या फिर बीजेपी कोई खेल कर बाजी मार ले जाती है.
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