देश में पिछले कुछ सालों से पत्रकारों की हत्या ट्रेंड बन गई है. बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़िशा और अब कर्नाटक के एक पत्रकार को मौत के घाट उतार दिया गया है. डर तो इस बात का है कि इन हत्याओं से कहीं अन्याय के खिलाफ आवाज उठना ही बंद ना हो जाए. इन मामलों से पत्रकारों के जहन में इतना खैफ भर गया है कि किसी बड़े नेता के खिलाफ खबर करने से पहले, या फिर राम रहिम जैसे बाबाओं के खिलाफ खबर करने से पहले उन्हें हजार बार सोचना पड़ता है. हरियाणा के पत्रकार छत्रपति का ही उदाहरण ले लीजिए. उन्होंने 15 साल पहले बाबा राम रहीम के खिलाफ खबर की थी. न्यायलय से पहले तो बाबा के गुंडे हरकत में आ गए. छत्रपती को बड़ी बेरहमी से गोलियों से छलनी कर दिया गया.
खास बात तो यह है कि उनके किसी भी हत्यारे का पता पुलिस नहीं लगा पाई है. इस मौत का ही खौफ था कि अगले 15 साल तक कोई भी पत्रकार राम रहीम के खिलाफ एक भी खबर करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. देश के कई जगहों पर पत्रकारों की आवाज दबाने के लिए उनको हमेशा के लिए खामोश कर दिया गया. हैरानी की बात तो यह है कि इन पत्रकारों के कातिलों का कोई सुराग तक नहीं मिल पाता है. आखिर इन पत्रकारों के कातिल कब गिरफ्त में आएंगे ? कभी आएंगे भी या नहीं ? हत्या की तादाद दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. लेकिन हत्यारों का कोई बाल भी बांका नहीं कर पाता है.
वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की हाल ही में गोली मारकर हत्या कर दी गयी. वो अपने घर के दरवाजे पर थीं. बस दरवाजा खोलकर घर में दाखिल ही होने वाली ही थी कि घात लगाकर बैठे हमलावरों ने गौरी लंकेश को गोलीयों से छलनी कर दिया. एक के बाद एक चार गोलियां उनके शरीर में उतार दिया गया. पिछले कुछ साल में कई मौकों पर पत्रकारों की निर्मम हत्या कर दी...
देश में पिछले कुछ सालों से पत्रकारों की हत्या ट्रेंड बन गई है. बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़िशा और अब कर्नाटक के एक पत्रकार को मौत के घाट उतार दिया गया है. डर तो इस बात का है कि इन हत्याओं से कहीं अन्याय के खिलाफ आवाज उठना ही बंद ना हो जाए. इन मामलों से पत्रकारों के जहन में इतना खैफ भर गया है कि किसी बड़े नेता के खिलाफ खबर करने से पहले, या फिर राम रहिम जैसे बाबाओं के खिलाफ खबर करने से पहले उन्हें हजार बार सोचना पड़ता है. हरियाणा के पत्रकार छत्रपति का ही उदाहरण ले लीजिए. उन्होंने 15 साल पहले बाबा राम रहीम के खिलाफ खबर की थी. न्यायलय से पहले तो बाबा के गुंडे हरकत में आ गए. छत्रपती को बड़ी बेरहमी से गोलियों से छलनी कर दिया गया.
खास बात तो यह है कि उनके किसी भी हत्यारे का पता पुलिस नहीं लगा पाई है. इस मौत का ही खौफ था कि अगले 15 साल तक कोई भी पत्रकार राम रहीम के खिलाफ एक भी खबर करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. देश के कई जगहों पर पत्रकारों की आवाज दबाने के लिए उनको हमेशा के लिए खामोश कर दिया गया. हैरानी की बात तो यह है कि इन पत्रकारों के कातिलों का कोई सुराग तक नहीं मिल पाता है. आखिर इन पत्रकारों के कातिल कब गिरफ्त में आएंगे ? कभी आएंगे भी या नहीं ? हत्या की तादाद दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. लेकिन हत्यारों का कोई बाल भी बांका नहीं कर पाता है.
वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की हाल ही में गोली मारकर हत्या कर दी गयी. वो अपने घर के दरवाजे पर थीं. बस दरवाजा खोलकर घर में दाखिल ही होने वाली ही थी कि घात लगाकर बैठे हमलावरों ने गौरी लंकेश को गोलीयों से छलनी कर दिया. एक के बाद एक चार गोलियां उनके शरीर में उतार दिया गया. पिछले कुछ साल में कई मौकों पर पत्रकारों की निर्मम हत्या कर दी गई.
13 मई 2016 : बिहार के सीवान में हिंदी दैनिक हिन्दुस्तान के पत्रकार राजदेव रंजन की गोली मारकर हत्या कर दी गई. वे ऑफिस से घर लौट रहे थे, घात लगाकर बैठे हमलावरों ने उन्हें रास्ते में ही मौत के घाट उतार दिया. राजदेव को बेहद नजदीक से गोली मारी गई थी. मामला दबाने की भरपूर कोशिश की गई. लेकिन बढ़ते बवाल के बाद इस मामले की जांच सीबीआई के जिम्मे कर दिया गया.
मई 2015 : आज तक के पत्रकार अक्षय सिंह की अचानक हुई मौत ने सनसनी फैला गई. वे क्राइम रिपोर्टर थे. क्राइम बीट के पत्रकारों को अपनी जान का सबसे ज्यादा खतरा होता है. वे अपराधी के निशाने पर होते हैं. वे टीवी पर ज्यादा नजर भी नहीं आते हैं. जिससे अपराधी उनकी आसानी से पहचान कर लें. अक्षय मध्यप्रदेश में व्यापम घोटाले की जांच करने गए थे. जहां उनकी अचानक मौत हो गयी. लेकिन अब तक ना तो कारणों का पता चल पाया है, और ना ही किसी अपराधी की पहचान हो पाई है.
जून 2015 : मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में पत्रकार संदीप कोठारी को पहले अगवा किया गया. इसके बाद उन्हें ज़िंदा जला दिया गया. महाराष्ट्र के वर्धा के करीब स्थित एक खेत में उनका शव मिला. हर बार की तरह इस बार भी गुनहगारों का कोई सुराग नहीं मिल पाया है.
साल 2015 : मध्य प्रदेश की तरह उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में भी पत्रकार जगेंद्र सिंह को जिंदा जला दिया गया. जगेंद्र सिंह ने फेसबुक पर उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री राममूर्ति वर्मा के खिलाफ खबर छापी थी. इसके बाद उनकी सांसे छीन ली गई. शक की सुई तो मंत्री जी पर ही था. लेकिन आज तक इस मामले में कोई कार्यवाही नहीं हुई है.
साल 2014 : आंध्रप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार एमवीएन शंकर की 26 नवंबर 2014 को हत्या कर दी गई. एमवीएन आंध्र में तेल माफिया के खिलाफ लगातार खबरें लिख रहे थे. इन खबरों से सरकार पर तो कोई फ्रक नहीं पड़ा. लेकिन माफियाओं ने तुरंत कार्रवाई करते हुए उन्हें मौत के घाट उतार दिया.
27 मई 2014 को ओड़िसा के स्थानीय टीवी चैनल के लिए स्ट्रिंगर तरुण कुमार की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी गई.
2013 : मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान नेटवर्क18 के पत्रकार राजेश वर्मा की गोली लगने से मौत हो गई.
नक्सलियों के गढ़ रहे छत्तीसगढ़ में भी पत्रकारों को अपनी जान गवानी पड़ी है. हिंदी दैनिक देशबंधु के पत्रकार साई रेड्डी को नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में संदिग्ध हथियारबंद लोगों ने हत्या कर दी थी. दूसरी जगहों के तरह यहां से भी कोई अपराधी नहीं पकड़ा गया.
महाराष्ट्र के पत्रकार और लेखक नरेंद्र दाभोलकर की 20 अगस्त 2013 को मंदिर के सामने उन्हें बदमाशों ने गोलियों से भून डाला. ये वाकया दिन के उजाले में हुआ था. रीवा में मीडिया राज के रिपोर्टर राजेश मिश्रा की 1 मार्च 2012 को कुछ लोगों ने हत्या कर दी थी. राजेश का कसूर सिर्फ इतना था कि वो लोकल स्कूल में हो रही धांधली का सच सबके सामने ला रहे थे. मिड डे के मशहूर क्राइम रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे. जून 2011 उनकी भी हत्या कर दी गई. वे अंडरवर्ल्ड से जुड़ी कई जानकारी जानते थे. जिसके खुलासे का डर पूरे अंडरवर्ल्ड को सता रहा था.
ये उन पत्रकारों कि लिस्ट है जो किसी न किसी माफिया, नेता, बाबा, संस्था के खिलाफ जांच पड़ताल कर सबूत जुटा रहे थे. लेकिन इन पत्रकारों की बड़ी ही बेरहमी से हत्या कर दी गयी. और सच पर पर्दा डालने की भरपूर कोशिश की गई. लेकिन वो सच आज नहीं तो कल सबके सामने तो आ ही जाएगा.
हमारे देश के संविधान में पत्रकारिता को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का दर्जा दिया गया है. इन हत्याओं से निश्चित तौर पर लोकतंत्र के इस चौथे स्तब को क्षति हुई है. इस क्षति का खामियाजा सिर्फ पत्रकारों को ही नहीं समाज को झेलना पड़ेगा. इस डर से पत्रकार की स्वतंत्रता पर तो खतरा आया है. लेकिन यह डर उन तक सीमित नहीं है. समाज में हर वर्ग के अपने कर्त्तव्य हैं, अगर उससे उनको रोका गया. तो निश्चित तौर समाज में अस्थिरता फैलेगी.
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