कभी कैटरीना कैफ को राष्ट्रपति बनाने की बात करने वाले जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने कुलभूषण जाधव पर भारत के कदम को पूरी तरह गलत करार दिया है. जस्टिस काटजू की नजर में भारत ने अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट जाकर पाकिस्तान को खुली छूट दे दी है. वैसे काटजू से पहले भी कुछ जानकार ऐसी आशंका जता चुके हैं कि पाकिस्तान अब मामूली चीजों को लेकर भी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बवाल करेगा.
लेकिन सवाल ये है कि आखिर रास्ता क्या था? कुलभूषण के मामले में पाकिस्तान 16 बार काउंसलर एक्सेस देने से इंकार कर दिया था - और यही बात कोर्ट में उसके खिलाफ गई है.
जस्टिस काटजू की राय
अपनी फेसबुक पोस्ट में जस्टिस काटजू लिखते हैं, 'मेरे हिसाब से इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का रुख कर भारत ने बड़ी गलती की है.' जस्टिस काटजू से पहले भी मीडिया में जानकारों की टिप्पणी आई थी जिसमें उन्होंने भारत के कदम को बहुत सही नहीं माना था. लेकिन काटजू की तरह किसी ने पूरी तरह गलत भी नहीं बताया था.
काटजू ने आगे लिखा है, 'एक तरह से हम पाकिस्तान के हाथों में खेल गए. हमने पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में और भी दूसरे मुद्दे उठाने की छूट दे दी.' जस्टिस काटजू पाकिस्तान द्वारा कोर्ट के फैसले का गंभीरता से विरोध नहीं किये जाने के पीछे यही वजह देख रहे हैं.
बड़ा सवाल ये है कि आखिर भारत के पास चारा क्या था? बार बार काउंसलर एक्सेस की अपील पाकिस्तान ठुकरा दे रहा है. महज एक वीडियो को पाकिस्तान सबसे बड़े सबूत के तौर पर पेश कर रहा है. क्या पाकिस्तानी फौज की हिरासत में कोई अपनी मर्जी से कुछ बोल सकता है? ध्यान देने वाली बात ये है कि कोर्ट ने वो वीडियो दिखाये जाने की भी इजाजत नहीं दी.
मानते हैं...
कभी कैटरीना कैफ को राष्ट्रपति बनाने की बात करने वाले जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने कुलभूषण जाधव पर भारत के कदम को पूरी तरह गलत करार दिया है. जस्टिस काटजू की नजर में भारत ने अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट जाकर पाकिस्तान को खुली छूट दे दी है. वैसे काटजू से पहले भी कुछ जानकार ऐसी आशंका जता चुके हैं कि पाकिस्तान अब मामूली चीजों को लेकर भी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बवाल करेगा.
लेकिन सवाल ये है कि आखिर रास्ता क्या था? कुलभूषण के मामले में पाकिस्तान 16 बार काउंसलर एक्सेस देने से इंकार कर दिया था - और यही बात कोर्ट में उसके खिलाफ गई है.
जस्टिस काटजू की राय
अपनी फेसबुक पोस्ट में जस्टिस काटजू लिखते हैं, 'मेरे हिसाब से इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का रुख कर भारत ने बड़ी गलती की है.' जस्टिस काटजू से पहले भी मीडिया में जानकारों की टिप्पणी आई थी जिसमें उन्होंने भारत के कदम को बहुत सही नहीं माना था. लेकिन काटजू की तरह किसी ने पूरी तरह गलत भी नहीं बताया था.
काटजू ने आगे लिखा है, 'एक तरह से हम पाकिस्तान के हाथों में खेल गए. हमने पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में और भी दूसरे मुद्दे उठाने की छूट दे दी.' जस्टिस काटजू पाकिस्तान द्वारा कोर्ट के फैसले का गंभीरता से विरोध नहीं किये जाने के पीछे यही वजह देख रहे हैं.
बड़ा सवाल ये है कि आखिर भारत के पास चारा क्या था? बार बार काउंसलर एक्सेस की अपील पाकिस्तान ठुकरा दे रहा है. महज एक वीडियो को पाकिस्तान सबसे बड़े सबूत के तौर पर पेश कर रहा है. क्या पाकिस्तानी फौज की हिरासत में कोई अपनी मर्जी से कुछ बोल सकता है? ध्यान देने वाली बात ये है कि कोर्ट ने वो वीडियो दिखाये जाने की भी इजाजत नहीं दी.
मानते हैं कि पाकिस्तान कोर्ट के आदेश को मानने के लिए बाध्य नहीं है, लेकिन क्या दुनिया को ये नहीं पता चला कि पड़ोसी मुल्क ज्यादती कर रहा है? क्या अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट का स्टे किसी काम का नहीं है?
अगर इतना ही बेकार होता तो शायद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की मुश्किलें नहीं बढ़तीं. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की भी इतनी फजीहत नहीं होती?
कोई नवाज से भी तो हाल पूछे
पूर्व क्रिकेटर और पाकिस्तानी तहरीक-ए-इंसाफ के नेता इमरान खान ने जाधव पर पाकिस्तान सरकार के स्टैंड पर ही सवाल उठा दिया है. इमरान का इल्जाम तो ये है कि भारतीय कारोबारी सज्जन जिंदल और नवाज शरीफ की मुलाकात के बाद जाधव की फांसी पर रोक लगा दी गई. इमरान का कहना है कि विपक्षी दलों के पूछने पर भी नवाज शरीफ ने जिंदल के पाकिस्तान आने और उनसे मुलाकात की वजहों के बारे में नहीं बताया. वैसे नवाज ने आर्मी चीफ से मुलाकात में कबूल किया था कि जिंदल से मुलाकात बैकडोर डिप्लोमेसी का हिस्सा रही.
पाकिस्तानी मीडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक मानवाधिकार कार्यकर्ता और कई कानूनी जानकार पाकिस्तान के ही रुख को गलत बता रहे हैं. असमां जहांगीर ने पूछा है, 'ये राय किसने दी कि जाधव को राजनयिक पहुंच न दी जाए. क्या इससे उन कैदियों के अधिकार खतरे में नहीं पड़ेंगे, जो भारतीय जेलों में बंद हैं? क्या कोई इंटरनैशनल कानून बदल सकता है?'
कानूनी जानकार यासीन लतीफ ने एक इंटरव्यू में बताया है, 'पाकिस्तान को शुरुआती दौर से ही कुलभूषण को काउंसलर एक्सेस की सुविधा देनी चाहिए थी.'
नवाज शरीफ सरकार की इस बात के लिए भी आलोचना हो रही है कि कानूनी तैयारी पर सात करोड़ रुपये खर्च कर भी कोर्ट में केस को सही तरीके से नहीं रखा.
फिर कैसे कहा जा सकता है कि अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में जाने का भारत का कदम बिलकुल गलत था? अगर भारत ने ये पहल नहीं की होती तो क्या पाकिस्तान को ऐसे घिरे होने का कभी अहसास भी हो पाता?
फंडिंग चालू आहे...
आजतक के स्टिंग 'ऑपरेशन हुर्रियत' और उसके बाद अलगाववादी नेताओं का रिएक्शन बता रहा है कि कैसे जम्मू कश्मीर में पत्थरबाजी और हिंसक गतिविधियों को पैसे के बल पर हवा दी जा रही है. आज तक के कैमरे पर कई अलगाववादी नेताओं में स्वीकार किया था कि घाटी में बवाल के लिए उन्हें पाकिस्तान से पैसे मिलते हैं. इन नेताओं ने ही घाटी में स्कूलों को जलाने के पीछे साजिश की बात भी मानी थी.
इस खुलासे के बाद एनआईए को भी जांच के पर्याप्त आधार मिल गये हैं और तरहीक-ए-हुर्रियत के नेता नईम खान, फरूक अहमद डार उर्फ विट्टा कराटे और गाजी जावेद बाबा को समन जारी कर पेश होने को कहा है.
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में भारत की कामयाबी तो बहुत बड़ी है, लेकिन कुलभूषण जाधव को लेकर उपलब्धि तिनके से ज्यादा नहीं है. किसी को अब तक नहीं पता कि जाधव कहां और किस हालत में हैं. बीजेपी सांसद आरके सिंह तो यहां तक कह चुके हैं कि जाधव जिंदा भी हैं इसको लेकर भी उन्हें शक है. अगर किताबी ढंग से सोचें तो भारत को अपना काम कर वेट एंड वॉच पॉलिसी अपनानी चाहिये थी. लेकिन क्या बगैर रिस्क लिए ये सब संभव भी था? इस बीच वायुसेनाध्यक्ष की चिट्ठी की खबर भी मौजूं है. ऐसा पहली बार है, जब किसी वायुसेना प्रमुख व्यापक पैमाने पर चिट्ठी लिखी है. इससे पहले, दो सेना प्रमुखों - फील्ड मार्शल (तत्कालीन जनरल) केएम करियप्पा ने 1 मई 1950 को और जनरल के सुंदरजी ने 1 फरवरी 1986 को इस तरह के खत लिखे थे. वायुसेनाध्यक्ष की चिट्ठी इसी साल 30 मार्च की है.
असल वजह जो भी हो लेकिन इस चिट्ठी का भी तो कोई मैसेज जाएगा ही. इसमें शॉर्ट नोटिस पर ऑपरेशन के लिए तैयार रहने को कहा गया है. चिट्ठी में एक खास टर्म 'सब-कंवेंशनल थ्रेट' का जिक्र है. माना जा रहा है कि इसे पाकिस्तान की ओर से जारी छद्म युद्ध और चीन की तरफ से मिलने वाली चुनौतियों के संदर्भ में कहा गया है. ये सब यूं ही नहीं समझा जा सकता, खबर देने वाले इंडियन एक्सप्रेस ने इसे अभूतपूर्व कदम बताया है.
जाधव पर भारत के कदम को लेकर काटजू ने अगर अपनी बात लाइट मूड में नहीं कही है तो कैटरीना कैफ को राष्ट्रपति बनाने और जाधव पर भारत की गलती बताने में उन्होंने कोई फर्क भी नहीं किया है. जस्टिस काटजू जो भी कहें, जाधव पर ICJ क्या, सर्जिकल स्ट्राइक भी जरूरी हो तो पीछे नहीं हटना चाहिये.
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