यूपी के लड़के तो बाद में अवतरित हुए, पहली दस्तक तो बिहार के लड़कों ने ही दी थी. जब परिवार का नाम रोशन करने के साथ साथ परंपरा को आगे बढ़ते हुए एक ने डिप्टी सीएम तो दूसरे ने मिनिस्टर की शपथ ली. जैसे जैसे यूपी चुनाव का सफर आगे बढ़ रहा है, प्रचार प्रसार को तौबा कर लौटे नीतीश कुमार के लिए मुश्किलें खड़ी होने लगी हैं.
वैसे तो आरजेडी नेता तेजस्वी को भी सीएम मान कर चलते हैं, बस मजबूरी है कि नीतीश के चलते नाम से डिप्टी नहीं हट रहा. ये मांग उतनी अहमियत नहीं रखती अगर लालू प्रसाद ने उन्हें भविष्य नहीं बताया होता.
तेजस्वी फॉर सीएम
करीब छह महीने पहले भागलपुर के एक आरजेडी नेता ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की मांग की थी. बाद में भी उस नेता ने कई मौकों पर अपनी डिमांड रखी - लेकिन किसी ने बहुत गंभीरता से नहीं लिया.
जब नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री पद के लिए किस्मत कनेक्शन वाला बयान दिया तो लालू के समर्थन को भी इसी तरीके से जोड़ कर देखा गया. लालू ने कहा भी कि जब प्रधानमंत्री पद के लिए नाम की बात होगी तो उनकी पहली पसंद नीतीश कुमार ही होंगे. कुछ ही दिन बाद बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने भी लालू की बात का समर्थन किया.
बाप-बेटे दोनों के बयान को इस तरह से समझा गया नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होने की स्थिति में बिहार की कुर्सी के नैचुरल दावेदार तो तेजस्वी ही होंगे - और इसीलिए आरजेडी प्रमुख को ये काल्पनिक होकर भी हकीकत में अच्छी बात लग रही है. अब आरजेडी विधायक सुरेंद्र यादव, रामानुज और बिहार सरकार में मंत्री चंद्रशेखर ने भी तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने की मांग जोर शोर से उठा दी है. सुरेंद्र यादव भी इसके लिए यूपी की ही मिसाल पेश करते हैं - 'जिस तरीके से...
यूपी के लड़के तो बाद में अवतरित हुए, पहली दस्तक तो बिहार के लड़कों ने ही दी थी. जब परिवार का नाम रोशन करने के साथ साथ परंपरा को आगे बढ़ते हुए एक ने डिप्टी सीएम तो दूसरे ने मिनिस्टर की शपथ ली. जैसे जैसे यूपी चुनाव का सफर आगे बढ़ रहा है, प्रचार प्रसार को तौबा कर लौटे नीतीश कुमार के लिए मुश्किलें खड़ी होने लगी हैं.
वैसे तो आरजेडी नेता तेजस्वी को भी सीएम मान कर चलते हैं, बस मजबूरी है कि नीतीश के चलते नाम से डिप्टी नहीं हट रहा. ये मांग उतनी अहमियत नहीं रखती अगर लालू प्रसाद ने उन्हें भविष्य नहीं बताया होता.
तेजस्वी फॉर सीएम
करीब छह महीने पहले भागलपुर के एक आरजेडी नेता ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की मांग की थी. बाद में भी उस नेता ने कई मौकों पर अपनी डिमांड रखी - लेकिन किसी ने बहुत गंभीरता से नहीं लिया.
जब नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री पद के लिए किस्मत कनेक्शन वाला बयान दिया तो लालू के समर्थन को भी इसी तरीके से जोड़ कर देखा गया. लालू ने कहा भी कि जब प्रधानमंत्री पद के लिए नाम की बात होगी तो उनकी पहली पसंद नीतीश कुमार ही होंगे. कुछ ही दिन बाद बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने भी लालू की बात का समर्थन किया.
बाप-बेटे दोनों के बयान को इस तरह से समझा गया नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होने की स्थिति में बिहार की कुर्सी के नैचुरल दावेदार तो तेजस्वी ही होंगे - और इसीलिए आरजेडी प्रमुख को ये काल्पनिक होकर भी हकीकत में अच्छी बात लग रही है. अब आरजेडी विधायक सुरेंद्र यादव, रामानुज और बिहार सरकार में मंत्री चंद्रशेखर ने भी तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने की मांग जोर शोर से उठा दी है. सुरेंद्र यादव भी इसके लिए यूपी की ही मिसाल पेश करते हैं - 'जिस तरीके से उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव अच्छे तरीके से सरकार चला रहे हैं उसी प्रकार बिहार में तेजस्वी यादव भी सरकार चला सकते हैं.'
सुरेंद्र का कहना है कि अब वक्त आ चुका है कि तेजस्वी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया जाए. यहां तक तो कोई बात नहीं, लेकिन हाजीपुर में लालू प्रसाद ने मीडिया के सवालों के जवाब में जो बात कही वो इस मुद्दे को ज्यादा गंभीर बना देती है. आमतौर पर देखा जाता रहा कि जब भी आरजेडी की ओर से रघुवंश प्रसाद जैसे नेता भी अगर नीतीश के खिलाफ हमला बोलते और सवाल सामने आता तो लालू बीजेपी नेताओं की साजिश बता कर मामले को घुमा दिया करते रहे. लेकिन लालू का ताजा बयान संकेत तो यही देता है कि तेजस्वी को सीएम बनाने की मांग महज कुछ नेताओं की चापलूसी का नतीजा या हवाबाजी भर नहीं है.
लालू के मन में कुछ तो है
तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने के सवाल पर लालू का जवाब था - 'अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव भी भविष्य के मुख्यमंत्री हैं क्योंकि वो खुद और समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव अब बूढ़े हो चुके हैं. हालांकि, सचाई ये है कि लालू प्रसाद चुनाव लड़ने या मुख्यमंत्री के लिए कानूनी तौर पर अयोग्य हैं. चारा घोटाले में सजा के बाद वो जमानत पर छूटे हुए हैं.
वैसे लगे हाथ लालू ने ये भी साफ कर दिया कि फिलहाल बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए वैकेंसी नहीं है. लालू को लगा होगा उनकी बात को ग्रीन सिग्नल समझ आरजेडी नेता नया बवाल न खड़ा कर दें.
सूबे में राजकाज की बात को छोड़ भी दें तो राजनीतिक तौर पर लालू की नाराजगी तो तभी शुरू हो गयी थी जब नीतीश कुमार उनसे पहले रैली करने बनारस पहुंच गये. नीतीश के 'शराब मुक्त और संघ मुक्त' वाले बयान पर आरजेडी के सीनियर नेताओं ने बवाल कर इसे साबित भी कर दिया.
नीतीश ने नोटबंदी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सपोर्ट किया तो लालू ने ममता बनर्जी की पटना रैली को सफल बनाने में पूरी ताकत झोंक दी. कुछ कसर तो नीतीश ने सुशील मोदी को मकर संक्रांति पर न्योता देकर पूरी की और बाकी पटना बुक फेयर में कमल के फूल में रंग भर कर.
लेकिन ये सब तो कुछ भी नहीं है. 8 मार्च को होने जा रहे एमएलसी चुनाव तो लगता है महागठबंधन में खटपट का लिटमस टेस्ट लेने जा रहे हैं. बिहार चुनाव से पहले हुए एमएलसी चुनाव को भी महागठबंधन ने बेहद गंभीरता से लिया था. लोक सभा के बाद उपचुनावों में मिली जीत के बाद दूसरा चुनाव एमएलसी का ही रहा. तब एक एक सीट पर खूब माथापच्ची के बाद उम्मीदवारों का चयन हुआ. लेकिन इस बार तो लगता है उल्टी ही गंगा बह रही है.
शुरुआत गया से हो रही है. बिहार विधान परिषद के सभापति और बीजेपी नेता अवधेश नारायण सिंह चुनाव लड़ने जा रहे हैं. अवधेश नारायण, नीतीश कुमार के पुराने मित्र बताये जा रहे हैं. चर्चा है कि नीतीश ने उन्हें ये आश्वासन भी दे रखा था कि उनके खिलाफ जेडीयू का कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं होगा.
जब इस बात की भनक आरजेडी खेमे में लगी तो आनन फानन में आरजेडी की ओर से प्रत्याशी घोषित कर दिया गया. अब नीतीश के सामने बड़ी मुश्किल ये होगी कि वो किसका सपोर्ट करें - दोस्त का या महागठबंधन के साथी का?
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