दिल्ली के आजाद मार्केट इलाके में एक निर्माणाधीन चार मंजिला इमारत गिर गई है. बताया जा रहा है कि इस दुर्घटना में पांच मजदूर घायल हो गए हैं. वहीं, मलबे में कुछ और मजदूरों के दबे होने की भी आशंका जताई जा रही है. मामले में पुलिस का कहना है कि प्रथम दृष्टया लग रहा है कि बिल्डिंग अधिक वजन की वजह से गिरी है. अब यहां सीधा सवाल है कि इस दुर्घटना के पीछे किसका दोष है? वैसे, इसका जवाब जानने में उतना ही वक्त लग सकता है, जितना नोएडा के सुपरटेक ट्विन टावर को गिराने का आदेश जारी होने में लगा था.
आसान शब्दों में कहें, तो दिल्ली में गिरी इस इमारत के निर्माण से पहले भी नक्शा पास कराने से लेकर सुरक्षा स्थितियों को देखने जैसी तमाम तरह की अनुमतियां ली गई होंगी. सवाल उठेंगे कि क्या यहां अधिकारियों को एक सकरी सी जगह में चार मंजिला इमारत खड़ी करने का आदेश देना चाहिए था? अगर नहीं, तो इसकी जिम्मेदारी किस पर डाली जाएगी? बीते दिनों में दिल्ली के कई इलाकों में आग लगने की वजह से कई लोगों ने अपनी जान गंवाई है. इन सघन इलाकों में ऐसी इमारतें बिना किसी सरकारी आदेश के नहीं बन सकती हैं. तो, क्या मान लिया जाए कि सरकारी तंत्र आकंठ भ्रष्टाचार में डूब चुका है?
कहना गलत नहीं होगा कि इस निर्माणाधीन इमारत का गिरना सरकारी तंत्र के मुंह पर तमाचे से कम नहीं है. खैर, इस मामले में क्या कार्रवाई की जाएगी, ये तो वक्त ही बताएगा. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भ्रष्टाचार के तहत बनाए गए नोएडा के सुपरटेक ट्विन टावर के गिरने का जश्न मनाने वाले बहुत से लोग अपना घर बनवाने के दौरान इन्हीं सरकारी नियमों को ताक पर रखने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते हैं....
दिल्ली के आजाद मार्केट इलाके में एक निर्माणाधीन चार मंजिला इमारत गिर गई है. बताया जा रहा है कि इस दुर्घटना में पांच मजदूर घायल हो गए हैं. वहीं, मलबे में कुछ और मजदूरों के दबे होने की भी आशंका जताई जा रही है. मामले में पुलिस का कहना है कि प्रथम दृष्टया लग रहा है कि बिल्डिंग अधिक वजन की वजह से गिरी है. अब यहां सीधा सवाल है कि इस दुर्घटना के पीछे किसका दोष है? वैसे, इसका जवाब जानने में उतना ही वक्त लग सकता है, जितना नोएडा के सुपरटेक ट्विन टावर को गिराने का आदेश जारी होने में लगा था.
आसान शब्दों में कहें, तो दिल्ली में गिरी इस इमारत के निर्माण से पहले भी नक्शा पास कराने से लेकर सुरक्षा स्थितियों को देखने जैसी तमाम तरह की अनुमतियां ली गई होंगी. सवाल उठेंगे कि क्या यहां अधिकारियों को एक सकरी सी जगह में चार मंजिला इमारत खड़ी करने का आदेश देना चाहिए था? अगर नहीं, तो इसकी जिम्मेदारी किस पर डाली जाएगी? बीते दिनों में दिल्ली के कई इलाकों में आग लगने की वजह से कई लोगों ने अपनी जान गंवाई है. इन सघन इलाकों में ऐसी इमारतें बिना किसी सरकारी आदेश के नहीं बन सकती हैं. तो, क्या मान लिया जाए कि सरकारी तंत्र आकंठ भ्रष्टाचार में डूब चुका है?
कहना गलत नहीं होगा कि इस निर्माणाधीन इमारत का गिरना सरकारी तंत्र के मुंह पर तमाचे से कम नहीं है. खैर, इस मामले में क्या कार्रवाई की जाएगी, ये तो वक्त ही बताएगा. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भ्रष्टाचार के तहत बनाए गए नोएडा के सुपरटेक ट्विन टावर के गिरने का जश्न मनाने वाले बहुत से लोग अपना घर बनवाने के दौरान इन्हीं सरकारी नियमों को ताक पर रखने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते हैं. जिसकी हाल दिल्ली में गिरी इस इमारत की तरह होने की आशंका बन जाती है. इतना ही नहीं, दिल्ली भर में कई पुरानी और जर्जर इमारतें खतरा बन चुकी हैं. लेकिन, न सरकारी महकमा और न ही यहां रहने वाले लोगों के कान पर जूं रेंग रही है.
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