मोदी सरकार (Modi Government) ने कुछ समय ही मेडिकल शिक्षा में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (EWS) के उम्मीदवारों के लिए केंद्रीय कोटे से आरक्षण (Reservation) की व्यवस्था की थी. मोदी सरकार ने फिर से ओबीसी समुदाय को साधने के लिए एक और दांव चल दिया है. मोदी सरकार ने आरक्षण के लिए ओबीसी की सूची तैयार करने का अधिकार राज्यों को दे दिया है. 127वें संविधान संशोधन विधेयक के पेश होने के बाद संसद के मानसून सत्र का ये पहला मौका है, जब विपक्ष अपने हंगामे को किनारे रखते हुए मोदी सरकार के समर्थन में आ खड़ा हुआ है. पेगासस, कृषि कानूनों जैसे मुद्दों को लेकर 19 जुलाई को शुरू हुए मानसून सत्र की कार्यवाही अब तक विपक्ष के हंगामे और विरोध की भेंट चढ़ती रही है. मोदी सरकार के ओबीसी बिल (OBC list bill) के समर्थन में खड़े विपक्ष की स्थिति ठीक वैसी ही है, जैसी सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (EWS) के आरक्षण के समय थी.
खैर, लंबे समय से ओबीसी बिल को लाने की मांग की जा रही थी. एनडीए की पूर्व सहयोगी शिवसेना के प्रमुख और महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने भी राज्य में मराठा आरक्षण के बाबत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर इस बिल को लाने की मांग की थी. दरअसल, महाराष्ट्र सरकार के मराठा आरक्षण के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ओबीसी लिस्ट तैयार करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है. अन्य राज्य की सरकारों द्वारा भी ओबीसी सूची तैयार करने का अधिकार दिए जाने की मांग समय-समय पर उठाई जाती रही है. इस ओबीसी बिल के सहारे राज्यों में कई जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग में जोड़ने का रास्ता खुल गया है. आइए जानते हैं कि ओबीसी बिल का देश की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
मोदी सरकार (Modi Government) ने कुछ समय ही मेडिकल शिक्षा में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (EWS) के उम्मीदवारों के लिए केंद्रीय कोटे से आरक्षण (Reservation) की व्यवस्था की थी. मोदी सरकार ने फिर से ओबीसी समुदाय को साधने के लिए एक और दांव चल दिया है. मोदी सरकार ने आरक्षण के लिए ओबीसी की सूची तैयार करने का अधिकार राज्यों को दे दिया है. 127वें संविधान संशोधन विधेयक के पेश होने के बाद संसद के मानसून सत्र का ये पहला मौका है, जब विपक्ष अपने हंगामे को किनारे रखते हुए मोदी सरकार के समर्थन में आ खड़ा हुआ है. पेगासस, कृषि कानूनों जैसे मुद्दों को लेकर 19 जुलाई को शुरू हुए मानसून सत्र की कार्यवाही अब तक विपक्ष के हंगामे और विरोध की भेंट चढ़ती रही है. मोदी सरकार के ओबीसी बिल (OBC list bill) के समर्थन में खड़े विपक्ष की स्थिति ठीक वैसी ही है, जैसी सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (EWS) के आरक्षण के समय थी.
खैर, लंबे समय से ओबीसी बिल को लाने की मांग की जा रही थी. एनडीए की पूर्व सहयोगी शिवसेना के प्रमुख और महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने भी राज्य में मराठा आरक्षण के बाबत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर इस बिल को लाने की मांग की थी. दरअसल, महाराष्ट्र सरकार के मराठा आरक्षण के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ओबीसी लिस्ट तैयार करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है. अन्य राज्य की सरकारों द्वारा भी ओबीसी सूची तैयार करने का अधिकार दिए जाने की मांग समय-समय पर उठाई जाती रही है. इस ओबीसी बिल के सहारे राज्यों में कई जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग में जोड़ने का रास्ता खुल गया है. आइए जानते हैं कि ओबीसी बिल का देश की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
वोट बैंक की राजनीति
2014 और 2019 में केंद्र की सत्ता में काबिज हुई नरेंद्र मोदी सरकार को ओबीसी मतदाताओं का भरपूर साथ मिला है. उत्तर प्रदेश जैसे सबसे बड़े राज्य में भाजपा के हिस्से वाले वोट प्रतिशत में आया उछाल ओबीसी समुदाय के समर्थन से ही हुआ है. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिले अभूतपूर्व बहुमत से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है. बीते कुछ सालों में मोदी सरकार ने ओबीसी केंद्रित राजनीति को भरपूर बढ़ावा दिया है. ओबीसी समुदाय को अपने में लाने के लिए मोदी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार से लेकर संगठन की नियुक्तियों तक ओबीसी समुदाय की हिस्सेदारी को तेजी से बढ़ाया गया है. जातीय जनगणना के मामले पर बैकफुट पर चल रही मोदी सरकार ओबीसी बिल के सहारे एक बार फिर से फ्रंटफुट पर आ गई है.
2024 से पहले उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान और गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं. ओबीसी बिल के सहारे इन राज्यों में भाजपा मौका भुनाने की भरपूर कोशिश करेगी. इस बिल के पक्ष में विपक्ष भी भाजपा के साथ में खड़ा नजर आ रहा है. दरअसल, 2018 में हुए 102वें संविधान संशोधन में ओबीसी की लिस्ट बनाने का अधिकार संसद को दे दिया गया था. इस संशोधन के बाद से ही विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर राज्यों की शक्ति को छीनकर संघीय ढांचे पर हमला करने के आरोप लगाए थे. वहीं, अब विपक्षी दल भी वोट बैंक की राजनीति को देखते हुए इस मुद्दे पर मोदी सरकार के साथ नजर आ रहे हैं. शायद ही कोई राजनीतिक दल इस बिल का विरोध करने का जोखिम उठाएगा.
2022 के विधानसभा चुनावों से पहले आना तय था ओबीसी बिल
इस बात की पहले से ही संभावना जताई जा रही थी कि मोदी सरकार 2022 में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले ओबीसी बिल को संसद में लाएगी. दरअसल, उत्तर प्रदेश में करीब 70 ऐसी जातियां हैं, जो खुद को ओबीसी में शामिल किए जाने की मांग कर रही हैं. ओबीसी बिल के पास होने के बाद भाजपा इसके सहारे राजनीतिक लाभ लेने की भरपूर कोशिश करेगी. जाट बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन की वजह से भाजपा के खिलाफ माहौल बना हुआ है. इस बिल के पास होने के बाद भाजपा के केवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही नहीं हरियाणा और राजस्थान में भी जाट समुदाय को साधने की कोशिश कर सकती है.
यह बिल केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, अन्य राज्यों में भी राजनीति की हवा को बदल देगा. महाराष्ट्र में लंबे समय से चली आ रही मराठा आरक्षण की मांग को इस बिल के सहारे पूरा करने की कोशिश की जाएगी. वहीं, गुजरात में पटेल और कर्नाटक में लिंगायत समुदाय लंबे समय से आरक्षण की मांग करते रहे हैं. ओबीसी बिल के पास होने के साथ ही राज्य सरकारों को अधिकार मिल जाएगा कि वे किन जातियों को ओबीसी वर्ग में शामिल करें. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस बिल के रूप में भाजपा के पास आगामी चुनावों में विपक्ष के ऊपर राजनीतिक बढ़त बनाने का मौका हाथ लग गया है.
27 फीसदी ओबीसी आरक्षण की सीमा पार होगी?
ओबीसी बिल के लिए संविधान में संशोधन के बाद राज्यों के पास ओबीसी में अन्य जातियों को शामिल करने का रास्ता खुल जाएगा. लेकिन, इस बिल से ओबीसी के लिए निर्धारित 27 फीसदी की आरक्षण सीमा को पार नहीं किया जा सकेगा. यानी अगर राज्य किसी जाति को ओबीसी वर्ग में जोड़ते हैं, तो इसका लाभ उन्हें 27 फीसदी आरक्षण के अंतर्गत ही मिलेगा. इस ओबीसी बिल के सहारे भाजपा आरक्षण की सीमा को नहीं बढ़ा रही है.
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