राजशाही ने भले ही लोकशाही के आगे सालों पहले दम तोड़ दिया हो, लेकिन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 145 किलोमीटर दूर एक ऐसी जगह भी है जहां आज भी दरबार लगता है, आज भी फरियादी आते हैं और आज भी लोग अपने विधायक को 'राजा' ही मानते हैं. हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के कुंडा की, जहां से पिछले 5 बार से निर्दलीय विधायक रहे रघुराज प्रताप सिंह 'राजा भैया' अपनी किस्मत फिर आजमाने जा रहे हैं. कानूनी खातों में राजा भैया के खिलाफ दर्जनों आपराधिक मामले भले ही दर्ज हों लेकिन कुंडा की जनता के लिए तो रघुराज प्रताप सिंह सिर्फ उनके 'सरकार' हैं.
सुबह का सूरज अभी बादलों की ओट से पूरी तरह निकल भी न सका है, कोहरे से जूझता सा नजर आ रहा है और राजा भैया की कोठी के कई फुट लंबे काले सिंहद्वार के सामने लोगों का तांता लगना शुरु हो गया है. एक दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ में राजा भैया के समर्थक कहीं कोहनी से किसी को दूर हटा रहे तो कहीं थोड़ी सी जगह में से सरक के पीछे से आगे की कतार में आने का भरसत प्रयास कर रहे थे. हम भी उसी भीड़ की चपेट में दरवाजा खुलने के इंतजार में थे. हमारे फोन करने पर पीए साहब कोठी का दरवाजा खोलने आ रहे थे. उन्हें दरवाजे तक की दूरी तय करने में अगर थोड़ा और समय लगता तो शायद पहली पंक्ति में आने की होड़ में हमे भी पीछे धकेल दिया जाता.
अंदर जाते ही तरह तरह के पेड़ों, जानवरों, पक्षियों के साथ ही भांति भांति के कार्यकर्ता और समर्थक भी दिखे, कोई डायरी से किसने कहां प्रचार किया का ब्योरा दे रहा था तो कोई आज का 'डे प्लैन' बना रहा था. पास ही बजरंगबली के मंदिर से अनूप जलोटा की आवाज में श्री रामचरितमानस की आवाज भी गूंज रही थी. करीब आधे घंटे के इंतजार के बाद राजा भैया बाहर निकले और अब तक घोड़ों की हिनहिनाहट, पंक्षियों के कलरव के बीच कार्यकर्ताओं की खुसुरफुसुर से भरे वातावरण में 'राजा भैया...
राजशाही ने भले ही लोकशाही के आगे सालों पहले दम तोड़ दिया हो, लेकिन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 145 किलोमीटर दूर एक ऐसी जगह भी है जहां आज भी दरबार लगता है, आज भी फरियादी आते हैं और आज भी लोग अपने विधायक को 'राजा' ही मानते हैं. हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के कुंडा की, जहां से पिछले 5 बार से निर्दलीय विधायक रहे रघुराज प्रताप सिंह 'राजा भैया' अपनी किस्मत फिर आजमाने जा रहे हैं. कानूनी खातों में राजा भैया के खिलाफ दर्जनों आपराधिक मामले भले ही दर्ज हों लेकिन कुंडा की जनता के लिए तो रघुराज प्रताप सिंह सिर्फ उनके 'सरकार' हैं.
सुबह का सूरज अभी बादलों की ओट से पूरी तरह निकल भी न सका है, कोहरे से जूझता सा नजर आ रहा है और राजा भैया की कोठी के कई फुट लंबे काले सिंहद्वार के सामने लोगों का तांता लगना शुरु हो गया है. एक दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ में राजा भैया के समर्थक कहीं कोहनी से किसी को दूर हटा रहे तो कहीं थोड़ी सी जगह में से सरक के पीछे से आगे की कतार में आने का भरसत प्रयास कर रहे थे. हम भी उसी भीड़ की चपेट में दरवाजा खुलने के इंतजार में थे. हमारे फोन करने पर पीए साहब कोठी का दरवाजा खोलने आ रहे थे. उन्हें दरवाजे तक की दूरी तय करने में अगर थोड़ा और समय लगता तो शायद पहली पंक्ति में आने की होड़ में हमे भी पीछे धकेल दिया जाता.
अंदर जाते ही तरह तरह के पेड़ों, जानवरों, पक्षियों के साथ ही भांति भांति के कार्यकर्ता और समर्थक भी दिखे, कोई डायरी से किसने कहां प्रचार किया का ब्योरा दे रहा था तो कोई आज का 'डे प्लैन' बना रहा था. पास ही बजरंगबली के मंदिर से अनूप जलोटा की आवाज में श्री रामचरितमानस की आवाज भी गूंज रही थी. करीब आधे घंटे के इंतजार के बाद राजा भैया बाहर निकले और अब तक घोड़ों की हिनहिनाहट, पंक्षियों के कलरव के बीच कार्यकर्ताओं की खुसुरफुसुर से भरे वातावरण में 'राजा भैया जिंदाबाद' के नारे लगने लगे. लोगों को शांत करने के बाद जब वे हमारी टीम से मुख़ातिब हुए तो सवाल-जवाब, चर्चा-परिचर्चा, वाद-विवाद, तर्क-कुतर्क (नोट: कार्यकर्ताओं और समर्थकों को टेढ़े सवाल भी गंवारा न थे) का दौर चल निकला.
सवाल: राजा भैया लोग कह रहे कि जीत तो आपकी सुनिश्चित है चर्चे तो वोटों के मार्जिन के हैं...?
जवाब: जी, मैं ये मानता हूं कि ये सब भगवान की कृपा है. मेरे समर्थक, कार्यकर्ता और जनता पर मुझे भरोसा है.
सवाल: 'जीत एक लाख पार' का नारा आपने दिया है? क्या आप इतने मार्जिन से जीत पायेंगे?
जवाब: ये नारा जनता और राजा भैया यूथ ब्रिगेड जिसे कि कुछ समर्थक चलाते हैं उन्होंने दिया है. बाकी जीत के बारे में तो क्या कहें जो हरि इच्छा.
सवाल: विरोधी शिकायत कर रहे हैं कि आपसे डर के कारण वे प्रचार नहीं कर पा रहे, कोई कार्यालय के लिए उन्हें कमरा तक देने को तैयार नहीं?
जवाब: यहां हमारी तरफ से किसी को प्रचार करने में रोक नहीं है, लेकिन विरोधी जो कि शायद सिर्फ इस लिए लड़ रहे हैं कि लड़ना है..वे ये भी नहीं जानते कि कुंडा विधानसभा कहां तक है, कुछ दिन पहले भाजपा के प्रत्याशी कुंडा की बजाय अपने लिए वोट मांगने बाबगंज पहुंच गए थे.
सवाल: निर्दलीय ही क्यों? जब आप सरकार में शामिल हैं, कैबिनेट मंत्री हैं तो निर्दलीय क्यों?
जवाब: शुरू में ही यूनिवर्सिटी से निकलते ही पहली बार निर्दलीय लड़ा था, कभी किसी पार्टी में शामिल होने के बारे में सोचा नहीं.
सवाल: आपके विरोधी कहते हैं कि कुंडा में आपका खौफ है, जिसकी वजह से आप जीतते हैं?
जवाब: आप जनता से कहीं भी कैमरे पर या कैमरा बंद करके पूछ लीजिए...ख़ौफ, डर, भय ये सब सिर्फ मीडिया की उपज है. लोगों का प्यार है जो मेरे साथ है.
सवाल: आपके खिलाफ दर्जनों आपराधिक मामले दर्ज हैं..?
जवाब: आरोप सिद्ध होने तक तो अपराधी मत बनाइये. राजनैतिक साजिश के तहत ये मामले दर्ज कराए गए हैं, मैं आपसे आग्रह करता हूं कि एक बार ये भी देख लें कि कैसे कैसे मामले दर्ज हैं. ईंटों की चोरी तक का आरोप लगा है.
थोड़ी और चर्चा... और चाय के प्याले के खत्म होने के साथ ही साक्षात्कार भी समाप्त हुआ. इसके बाद आने वालों की भीड़ से राजा भैया मुख़ातिब हुए, सुबह सुबह ही कुछ अल्पसंख्यक (मुसलमान भाईयों) का दल आ पहुंचा और राजा भैया के सामने पहुंचने के पहले ही आपस में दो गुट इस बात पर भिड़ गए कि किसके गांव से ज़्यादा वोट मिलेंगे. एक परिपक्व नेता के कान हर तरफ रहते हैं... दोनों गुटों को बुलाकर अपने अंदाज़ में अवधी में समझाया कि दोनों ही मेरे अपने हो... इसमें लड़ने की क्या बात है. इस बीच हम बेंती गांव के वोटरों का मन टटोलने निकले. एक स्वर में सभी ने कहा राजा भैया को छोड़कर किसी को वोट नहीं देंगे, वो हमारे सुख दुख में साथ खड़े रहते हैं.
हमने जब ये पूछा कि 'राजा तो लखनऊ रहते हैं. तो एक 76 साल की महिला ने ड्योढ़ी पर से आवाज लगायी, 'राजा हमारे दिल में रहते हैं...दिल में.'
इतने में राजा भैया का काफिला बेंती से निकलने लगा. एक-एक कर कई एसयूवी गाड़ियां बाहर निकलीं फिर लैंड क्रूज़र पर सवार राजा भैया सबको हाथ दिखाते हुए निकले. पहली मीटिंग जिस गांव में थी वहां सीमा प्रारंभ होते ही करीब 200 बाइक सवार युवक उनके स्वागत में खड़े थे, और अनके काफिले के आगे पीछे एक सुरक्षा कवच सा बनाकर उन्हें मीटिंग स्थल तक ले गए. जहां महिलाएं और बच्चे तक हाथों में गेंदे और गुलाब की माला लिए खड़े थे. माला हाथ में लिए लोगों को देखते ही राजा भैये ने चश्मा उतार कर जेब में रखा, मैंने धीरे से पूछा चश्मा उतारने की वजह? जवाब आया- 'कई बार अति उत्साही समर्थक इतनी जोर से माला पहनाते हैं कि चश्मा वश्मा सब छिटक जाता है,' इतना कहते ही वे गर्दन झुकाए सबका अभिवादन स्वीकार करने लगे. लोग एक साथ दर्जनों मालाएं उनके गले में डाल देते तो सतर्क स्टाफ तुरंत माला की एक किश्त निकालकर गले में दूसरी फिर तीसरी फिर चौथी इंस्टालमेंट की जगह बनाने लगता.
इसी बीच कोई पैर पर गिरता तो उसे उठाकर गले लगाते हुए वे मंच पर पहुंचे और प्रधान जी से धीरे से कहा- मैंने कहा था ना फूलों पर पैसे न लगाकर मुझे गमछा ओढ़ाकर सम्मानित किया जाए. गमछा बाद में गरीबों में बांट देंगे तो काम आयेगा. कई वरिष्ठ (उम्र में) नेताओं के अभिवादन के बाद अवधी में बोलना शुरु किया- 'रिकार्ड मैं नहीं बनाता कुंडा की जनता यानी आप रिकार्ड बनाते हैं. इटावा और मैनपुरी के बाद यहां सबसे ज़्यादा सड़कें बनीं हैं. पहले बिजली का ये हाल था कि आप लोगों को फोन तक चार्ज करने बाजार में जाना पड़ता था, अब सूरज के डूबने के पहले बल्ब जल जाते हैं.’ इन मुख्य बातों और थोड़ी हल्की फुल्की ठिठोली के बीच लघु भाषण देकर कार्यक्रम को आधे घंटे में निपटाकर कुंडा की जनता के राजा अपने अगले पड़ाव की ओर चले.
अगली मीटिंग के गांव तक बाईक सवार युवकों ने पहुंचाया और वहां खड़े अश्वारोही दस्ते के हवाले राजा के काफिले को किया और वापस लौट गए. यहां से काफिले को करीबन 170 घोड़े, हाथी और सजे हुए ऊंटों पर सवार लोगों ने टेकओवर कर लिया और मीटिंग स्थल तक बैगपाइपर(मेड इन कुंडा) बजाते हुए ले गए. राजा भैया की मीटिंग में सभी जगह भारी भीड़ दिखी लेकिन एक बार गौरतलब है कि महिलाएं जहां उत्तर प्रदेश में चाहरदीवारी में ही रखी जाती हैं वहीं यहां रंगबिरंगी साड़ी पहने आगे का कतार में बैठी महिलाओं की मौजूदगी हर मीटिंग में काफी दिखी. इसी प्रकार एक दस्ता दूसरे दल को काफिले की कमान संभालता और दिन भर मीटिंग्स का सिलसिला चलता रहा, इस दौरान राजा भैया ने अपने प्रधान से सिर्फ एक ही फरमाइश की, वो थी -एक प्याली ढ़ाबे वाली कड़क चाय! इसके बाद हम निकले क्षेत्र के दौरे पर. देखना ये था कि क्या सच में लोग राजा भैया को प्यार करते हैं या डर के कारण किसी और को वोट नहीं देते. थोड़ी दूर जाते ही एक गांव के सामने पोस्टर मिला, जिसपर लिखा था- यहां गांव के लोगों ने सिर्फ राजा भैया को ही वोट देने का निर्णय सर्वसम्मति से लिया है इसलिए कोई अन्य प्रत्याशी यहां वोट मांगने न आए.'
जब हमने पूछा कि क्यों? तो सभी ने बारी बारी कर बताना शुरु किया- मेरी बेटी की शादी उन्होंने करवाई. हर साल 100 से ज्यादा जोड़ों की शादी करवाते हैं. तो किसी ने बताया कि मेरी मां की आंख पर से मोतियाबिंद का पर्दा राजा के नेत्र शिविर में ही हटा है. इतना ही नहीं कुछ ने तो ये भी बताया कि राजा ने हमारे घर का झगड़ा सुलझाया. मेरी नाराज बीवी को समझाकर मायके से वापस बुलवाया. हम जब चाहें उनसे मिल सकते हैं.
आगे बढ़े तो भाजपा कैंडिडेट की गाड़ी देखते ही लोग 'बिरोधी...बिरोधी आय हैं...' की चर्चा ऐसे करने लगे कि मानों गांव में लुटेरे घुस आए हों. पूछने पर लोगों ने कहा कि गांव में एक बच्चा भी नहीं मिलेगा जो राजा का सम्मान न करता हो.
दुबई में कंस्ट्रक्शन कंपनी में मजदूर शेख मोहम्मद ने बताया कि वो खास तौर पर वोट देने के लिए छुट्टी लेकर भारत आए हैं, और वे ही नहीं बल्की दोहा, साउदी अरब, दिल्ली, मुंबई और न जाने कहां-कहां से बहुत से लोग राजा को वोट देने गांव आये हैं. कई लोगों से हमने पूछा कि क्या तालाब में मगरमच्छ हैं? तो कोई हंसने लगा तो किसी ने सिर्फ ना कहा तो एक शिक्षक महोदय ने तर्क देकर समझाया कि 'भई तालाब में मछली है. तो अगर उस तालाब में मगरमच्छ होगा तो मछली को खा नहीं जायेगा??' ये जवाब भी मुझे बहुत संतोषजनक नहीं लगा और तालाब का खुद निरीक्षण करने का निर्णय लिया.
करीब 2000 एकड़ के इलाके में फैले इस तालाब के किसी कोने में बच्चे नहा रहे थे तो कहीं मछलियां उछल कर किनारे पर बने पगडंडियों पर गिर रही थीं, तो कहीं थोड़ा कम गहरा छोर ढूंढ कर सूअर भी लोट रहे थे, कहीं नीलगाय पानी पी रही थीं तो किसी शांत कोने में चीन और साइबेरिया से आये पक्षी मानों ध्यान लगाए बैठे नजर आये मगर मगरमच्छ का कहीं निशान न था.
हम आपको बता दें कि..
रघुराज प्रताप सिंह भद्री के राजा श्री उदय प्रताप सिंह के बेटे हैं जिन्होंने 23 साल की उम्र में अपने चुनावी सफर की शुरुआत की, इनके दादा हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे लेकिन इनके पिता को सक्रिय राजनीती से परहेज रहा. 5 बार से निर्दलीय विधायक रहे राजा भैया के विधनसभा क्षेत्र कुंडा में 65 प्रतिशत ओबीसी, एस सी और मुसलमान वोटर हैं, और ठाकुर सिर्फ 15 हजार के आसपास ही हैं. जहां हर पार्टी जातीवाद की बिसात पर अपने मोहरे चलती है वहीं निर्दलीय कोई भी 6 बार विधानसभा तक नहीं पहुंच पाया है.
पिछले चुनाव में राजा भैया 88 हजार वोटों से जीतकर प्रदेश में सबसे अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी. राजा भैया कल्याण सिंह, स्वर्गीय राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह के कैबिनेट में भी मंत्री रह चुके हैं.
सन 2013 में राजा भैया पर डीएसपी ज़िया उल हक की हत्या का आरोप लगा था, उसके पहले इनपर पोटा(प्रिवेंशन ऑफ टेररिज़्म एक्ट) भी लग चुका है और इनके खिलाफ करीब 48 आपराधिक मामले दर्ज हो चुके हैं जिनमें से 47 में वे बरी हो चुके हैं.
हम आपको बता दें कि लखनऊ के राजनैतिक गलियारों में ये चर्चा है कि अगली सरकार बनाने में राजा भैया की बड़ी भूमिका हो सकती है. सुगबुगाहट है कि राजा भैया के साथ कई दलों के 40 से ज्यादा विधायक हैं. राजा भैया की छवि प्रदेश के सबसे बड़े क्षत्रिय नेता की है.
बहरहाल, ये तो रहा कुंडा में बिताए एक दिन का ब्योरा. देखना ये है कि चुनावी खातों पर क्या भद्री के ये राजकुंवर अपनी राजशाही कलम से एक नया इतिहास रच पायेंगे?
ये भी पढ़ें-
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.