भाजपा (BJP) और आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) दोनों को एक सा रुलाएगा प्याज (Onion Price rise in Delhi). जी हां सही सुन रहे हैं आप. बात दिल्ली के सन्दर्भ में कही गई है और इसे क्यों कहा गया है कारण है दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election). प्याज का संकट बढ़ता जा रहा है राजधानी दिल्ली में एक बार फिर प्याज की कीमतें आसमान छू रही हैं. त्योहार ख़त्म हुए अभी कुछ ही दिन बीते हैं राजधानी में प्याज 80 रुपए से 100 रुपए किलो के बीच बिक रही है. मामला क्योंकि देश के आम आदमी से जुड़ा है इसलिए राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक दोनों के माथे पर चिंता के बल पड़ गए हैं. केंद्र और राज्य दोनों की तरफ से तमाम तरह के तर्क दिए जा रहे हैं और प्रयास यही किया जा रहा है कि कैसे भी करके प्याज की बढ़ती कीमतों को नियंत्रित किया जाएगा. बाकी बात राजनीति की चल रही है तो ये बताना भी जरूरी है कि पूर्व में भी ऐसे तमाम मौके आ चुके हैं जब प्याज ने देश की राजनीति को प्रभावित किया. अलग अलग दलों के नेताओं को खून के आंसू रुलाए.
दिल्ली में चुनाव होने हैं और जिस तरह की रिपोर्ट्स हैं माना यही जा रहा है कि फ़रवरी तक प्याज की कीमतें नियंत्रित होंगी. बात चुनाव और प्याज की चल रही है. साथ ही हम ये भी बता चुके हैं कि इतिहास में कई मौके ऐसे आए हैं जब प्याज की बढ़ी हुई कीमतों ने राजनीति को प्रभावित किया है. तो आइये इतिहास में नजर डाली जाए और ये जानने का प्रयास किया जाए कि कैसे प्याज ने नेताओं को रंक से राजा और राजा को रंक बनाया है.
प्याज का सरकारों को पलटने का इतिहास रहा है. इंदिरा गांधी ने पहली बार 1980 में चुनाव के लिए एक...
भाजपा (BJP) और आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) दोनों को एक सा रुलाएगा प्याज (Onion Price rise in Delhi). जी हां सही सुन रहे हैं आप. बात दिल्ली के सन्दर्भ में कही गई है और इसे क्यों कहा गया है कारण है दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election). प्याज का संकट बढ़ता जा रहा है राजधानी दिल्ली में एक बार फिर प्याज की कीमतें आसमान छू रही हैं. त्योहार ख़त्म हुए अभी कुछ ही दिन बीते हैं राजधानी में प्याज 80 रुपए से 100 रुपए किलो के बीच बिक रही है. मामला क्योंकि देश के आम आदमी से जुड़ा है इसलिए राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक दोनों के माथे पर चिंता के बल पड़ गए हैं. केंद्र और राज्य दोनों की तरफ से तमाम तरह के तर्क दिए जा रहे हैं और प्रयास यही किया जा रहा है कि कैसे भी करके प्याज की बढ़ती कीमतों को नियंत्रित किया जाएगा. बाकी बात राजनीति की चल रही है तो ये बताना भी जरूरी है कि पूर्व में भी ऐसे तमाम मौके आ चुके हैं जब प्याज ने देश की राजनीति को प्रभावित किया. अलग अलग दलों के नेताओं को खून के आंसू रुलाए.
दिल्ली में चुनाव होने हैं और जिस तरह की रिपोर्ट्स हैं माना यही जा रहा है कि फ़रवरी तक प्याज की कीमतें नियंत्रित होंगी. बात चुनाव और प्याज की चल रही है. साथ ही हम ये भी बता चुके हैं कि इतिहास में कई मौके ऐसे आए हैं जब प्याज की बढ़ी हुई कीमतों ने राजनीति को प्रभावित किया है. तो आइये इतिहास में नजर डाली जाए और ये जानने का प्रयास किया जाए कि कैसे प्याज ने नेताओं को रंक से राजा और राजा को रंक बनाया है.
प्याज का सरकारों को पलटने का इतिहास रहा है. इंदिरा गांधी ने पहली बार 1980 में चुनाव के लिए एक नैरेटिव सेट किया और प्याज की कीमतों का इस्तेमाल चुनाव के लिए किया. इंदिरा को अपनी इस योजना का फायदा मिला और उन्होंने लोकसभा चुनाव में लगभग 65 प्रतिशत सीटों के साथ वापसी की. तब इंदिरा के सामने जनता पार्टी की सरकार थी जो उनकी बातों के सामने टिक न सकी और असंतोष तथा उच्च मुद्रास्फीति का पूरा फायदा इंदिरा को मिला.
इंदिरा गांधी प्याज का इस्तेमाल एक बड़े इलेक्शन टूल की तरह कर सकती थीं. उन्होंने पूर्व-आपातकालीन महीनों में जेपी आंदोलन के दौरान अपनी सरकार के खिलाफ जनता के गुस्से को देखा था. तब खाद्य मुद्रास्फीति बहुत अधिक थी और प्याज की कीमतें बहुत ज्यादा बढ़ गई थीं. मूल्य वृद्धि के लिए काला बाजारियों को दोषी ठहराया गया था लेकिन जनता के गुस्से का सामना उन्हें करना पड़ा और सत्ता को अलविदा कहना पड़ा.
इंदिरा के बाद प्याज ने शुष्मा स्वराज को भी खूब दर्द दिया. बात 1998 की है भाजपा ने उन्हें दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया था. भाजपा को उम्मीद थी कि सुषमा के साफ़ चरित्र और सौम्य छवि का पूरा फायदा उसे मिलेगा. मगर ऐसा नहीं हुआ. इसकी भी एक बड़ी वजह प्याज को माना गया तब भी दिल्ली में प्याज के दाम आसमान छू रहे थे.
आपको बताते चलें कि तब दिल्ली चुनाव की पूर्व संध्या पर दिल्ली में प्याज 50 रुपए किलो बिकी थी. भाजपा, लोकसभा चुनाव में अभूतपूर्व प्रदर्शन करने के बावजूद दिल्ली में सत्ता में वापसी करने में नाकाम रही और सुषमा स्वराज को हटाकर शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं जिन्होंने 15 सालों तक सत्ता सुख भोगा.
अगर बात दीक्षित के सत्ता के चरम से नीचे पहुंचने की हो तो इसकी भी एक बड़ी वजह प्याज को माना जा सकता है. जिस वक़्त शीला दीक्षित के अच्छे दिन, बुरे दिनों में बदले उस वक़्त भी प्याज के दाम आसमान पर थे. 2013 में जिस वक़्त अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता संभाली उस वक़्त भी प्याज के तारे बुलंदियों पर थे.बात आगे बढ़ाने से पहले बता दें उपरोक्त दोनों मामलों में, चाहे वो सुषमा स्वराज का मामला रहा हो या फिर शीला दीक्षित का दोनों की थी सत्ता तब गई जब उनकी पार्टी केंद्र में सत्ता का लाभ ले रही थी.
बहरहाल अब जबकि अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं और प्याज की कीमतें एक बार फिर आसमान छूते हुए 100 रुपए किलो के आस पास पहुंच गई हैं. तो हमारे लिए उनका भी राजनितिक भविष्य देखना दिलचस्प रहेगा. दिल्ली में प्याज केजरीवाल को रहम की निगाह से देखती है या फिर उनका भी हाल सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित जैसा होगा ये सभी सवाल फिलहाल वक़्त की गर्त में छुपे हैं मगर जैसा रुख केजरीवाल का है वो ये साफ़ बता देता है कि दिल्ली में केजरीवाल प्याज को चुनौती देने को तैयार हैं.
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