12 मई को दिल्ली में मतदान होने वाले हैं. सातवें और आखिरी दौर में 19 मई को पंजाब में वोटिंग होनी है. ये दोनों ही राज्य ऐसे हैं जहां के लोगों के जख्म 1984 के सिख दंगों के जिक्र भर से हरे हो जाते हैं.
बीजेपी की चुनौती से जूझ रहे कांग्रेस नेतृत्व के खजाने में कुछ ऐसे नमूने हैं जो जब चाहें मुसीबतें बुला सकते हैं. बीजेपी दिल्ली और पंजाब में वोटिंग से पहले कांग्रेस को घेरने की रणनीति पर काम कर रही थी. तभी राहुल गांधी के तात्कालिक छवि विशेषज्ञ सैम पित्रोदा टपक पड़े और 2014 के मणिशंकर अय्यर को पीछे छोड़ते हुए कांग्रेस के लिए बड़ी सी मुश्किल मोल ली.
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में हुए सिख दंगों की लपटें कांग्रेस के तमाम नेताओं को झुलसा चुकी हैं. ताजा शिकार राहुल गांधी हुए हैं - और वो भी अपने अंकल सैम के कारण. सैम पित्रोदा, राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी के सहयोगी रहे हैं.
कांग्रेस ने आगे बढ़ कर मुसीबत लपक ली है
पांचवे दौर की वोटिंग के ऐन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर अब तक का सबसे बड़ा हमला बोला था - निशाने पर थे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी. 6 मई को वोटिंग होनी थी और उससे एक दिन पहले यूपी के प्रतापगढ़ की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजीव गांधी का नाम लिये बगैर कहा, 'आपके पिताजी को राज दरबारियों ने गाजे-बाजे के साथ मिस्टर क्लीन बना दिया था लेकिन देखते ही देखते भ्रष्टाचारी नंबर वन के रूप में उनका जीवनकाल समाप्त हो गया.'
बीजेपी के हिसाब से देखा जाये तो ये बयान नुकसान पहुंचा सकता था. अगले ही दिन अमेठी और रायबरेली में चुनाव रहा - जिसे बीजेपी अपने नाम करना चाहती है. मोदी के बयान से कांग्रेस को कोई फायदा हुआ या नहीं ये तो नतीजे बताएंगे, लेकिन सैम पित्रोदा ने सिख दंगों को लेकर जो कुछ कहा है वो तो निश्चित तौर पर नुकसान पहुंचाने वाला है - क्योंकि ये सब दिल्ली और पंजाब के चुनाव से पहले हुआ है. राजीव गांधी को प्रधानमंत्री के बयान पर कांग्रेस नेता...
12 मई को दिल्ली में मतदान होने वाले हैं. सातवें और आखिरी दौर में 19 मई को पंजाब में वोटिंग होनी है. ये दोनों ही राज्य ऐसे हैं जहां के लोगों के जख्म 1984 के सिख दंगों के जिक्र भर से हरे हो जाते हैं.
बीजेपी की चुनौती से जूझ रहे कांग्रेस नेतृत्व के खजाने में कुछ ऐसे नमूने हैं जो जब चाहें मुसीबतें बुला सकते हैं. बीजेपी दिल्ली और पंजाब में वोटिंग से पहले कांग्रेस को घेरने की रणनीति पर काम कर रही थी. तभी राहुल गांधी के तात्कालिक छवि विशेषज्ञ सैम पित्रोदा टपक पड़े और 2014 के मणिशंकर अय्यर को पीछे छोड़ते हुए कांग्रेस के लिए बड़ी सी मुश्किल मोल ली.
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में हुए सिख दंगों की लपटें कांग्रेस के तमाम नेताओं को झुलसा चुकी हैं. ताजा शिकार राहुल गांधी हुए हैं - और वो भी अपने अंकल सैम के कारण. सैम पित्रोदा, राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी के सहयोगी रहे हैं.
कांग्रेस ने आगे बढ़ कर मुसीबत लपक ली है
पांचवे दौर की वोटिंग के ऐन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर अब तक का सबसे बड़ा हमला बोला था - निशाने पर थे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी. 6 मई को वोटिंग होनी थी और उससे एक दिन पहले यूपी के प्रतापगढ़ की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजीव गांधी का नाम लिये बगैर कहा, 'आपके पिताजी को राज दरबारियों ने गाजे-बाजे के साथ मिस्टर क्लीन बना दिया था लेकिन देखते ही देखते भ्रष्टाचारी नंबर वन के रूप में उनका जीवनकाल समाप्त हो गया.'
बीजेपी के हिसाब से देखा जाये तो ये बयान नुकसान पहुंचा सकता था. अगले ही दिन अमेठी और रायबरेली में चुनाव रहा - जिसे बीजेपी अपने नाम करना चाहती है. मोदी के बयान से कांग्रेस को कोई फायदा हुआ या नहीं ये तो नतीजे बताएंगे, लेकिन सैम पित्रोदा ने सिख दंगों को लेकर जो कुछ कहा है वो तो निश्चित तौर पर नुकसान पहुंचाने वाला है - क्योंकि ये सब दिल्ली और पंजाब के चुनाव से पहले हुआ है. राजीव गांधी को प्रधानमंत्री के बयान पर कांग्रेस नेता रिएक्ट कर ही रहे थे तभी बीजेपी ने INS विराट पर पूर्व प्रधानमंत्री के छुट्टी मनाने का मामला उछाल दिया और बयानबाजी के दौर शुरू हो गये.
आखिर प्रधानमंत्री मोदी ने राजीव गांधी को टारगेट क्यों किया? इसके दो ही कारण हो सकते हैं. एक, प्रधानमंत्री मोदी को लगा होगा कि जब चुनाव जीत ही रहे हैं तो ढंग से जीतें? या फिर बाजी हाथ से निकलती देख हर हथियार आजमाने की कोशिश होगी? वैसे प्रधानमंत्री मोदी ने राजीव गांधी को टारगेट करने की वजह भी बतायी है. पहली वजह - 'मैंने जो भी बोला वो फैक्ट है.' दूसरी वजह, 'क्योंकि राहुल गांधी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वो मेरी छवि खराब कर देंगे.'
कम ही ऐसे मौके होते हैं जब कांग्रेस नेतृत्व को 84 दंगों को लेकर डिफेंसिव होना पड़ता है. 2018 में तीन राज्यों में सरकार बनाने की बारी आयी तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ को लेकर सवाल उठने लगे. हालांकि, कमलनाथ ने सफाई दी कि जांच में वो बरी हो चुके हैं. दरअसल, कमलनाथ का नाम गुरुद्वारा रकाबगंज हिंसा में लिया जाता है. आरोप लगता है कि कमलनाथ ने पीड़ितों की मदद नहीं की. 2018 में ही जब राहुल गांधी ने राजघाट पर अनशन किया था तो जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार भी पहुंचे, लेकिन विरोध के चलते दोनों को वापस लौटना पड़ा. दंगों की आंच से तो पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव भी खुद को नहीं बचा सके थे - क्योंकि उस वक्त वो केंद्र सरकार में गृह मंत्री थे. राव पर दंगे रोकने में लापरवाही का आरोप लगा था.
सैम पित्रोदा के ये कहने के बाद कि 'जो हुआ, हुआ...' बीजेपी ने कांग्रेस पर हमले तेज कर दिये हैं. बीजेपी नेता हर मोड़ पर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का बयान याद दिला रहे हैं, जिसमें उन्होंने कहा था, 'जब इंदिरा जी की हत्या हुई थी़, तो हमारे देश में कुछ दंगे-फसाद हुए थे. हमें मालूम है कि भारत की जनता को कितना क्रोध आया, कितना गुस्सा आया और कुछ दिन के लिए लोगों को लगा कि भारत हिल रहा है... जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है.'
राहुल गांधी चाहें तो दंगा पीड़ितों की तकलीफ कम हो सकती है
दूसरे कांग्रेस नेताओं की तरह 84 दंगे में अगर राहुल गांधी को भी झुलसना पड़ रहा है तो वो खुद भी इसके लिए जिम्मेदार हैं. 84 दंगों को लेकर माफी नहीं मांगने के सवाल पर राहुल गांधी का कहना था, '1984 में निर्दोष लोग मारे गए और निर्दोष लोगों की मौत भयावह है और ऐसा नहीं होना चाहिए.'
बाद में इसी बयान को लेकर जब राहुल के सामने सवाल उठा कि वो माफी मांगने से क्यों हिचक गये, तो वो बोले, 'PA के प्रधानमंत्री ने माफी मांगी और कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष ने खेद प्रकट किया. मेरी भी ऐसी ही भावना है.' ये तब की बात है जब सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष थीं.
लंदन के एक कार्यक्रम में भी राहुल गांधी ने सिख दंगों को बेहद दर्दनाक त्रासदी बताया और कहा था कि किसी के भी साथ हिंसा के दोषी को सजा दिलाने को लेकर वो सौ फीसदी इत्तफाक रखते हैं. हालांकि, राहुल गांधी ने दंगों में कांग्रेस की भूमिका से इंकार कर दिया था.
राहुल के इस जबाव पर एक दंगा पीड़ित निरप्रीत ने बीबीसी से बातचीत में गहरी नाराजगी जतायी, 'उन्हें कहना चाहिए था कि दंगे के दोषियों को सजा मिलेगी चाहे वो किसी भी पार्टी के हों. अगर राहुल ऐसा कहते तो हमें खुशी होती.'
जहां तक सिख दंगों को लेकर माफी मांगने का सवाल है, प्रधानमंत्री बनाने के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने इसके लिए मनमोहन सिंह को आगे कर दिया था. 2005 में संसद में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था, 'विपक्ष के नेता ने कहा है कि मुझे माफी मांगनी चाहिए तो मैं बताना चाहता हूं कि पांच-छह साल पहले मैं कांग्रेस अध्यक्ष के साथ हरमंदर साहिब गया था और वहां हमने सर झुकाकर कहा था कि हमें वो रास्ता दिखाएं कि जो कुछ हुआ वैसा कभी न हो.'
मनमोहन सिंह ने इंदिरा गांधी की हत्या को 'राष्ट्रीय त्रासदी' और दंगों को 'देश के लिए शर्मनाक' बताया और मुख्य तौर पर तीन बातें कही -
1. 'मुझे न केवल सिख समुदाय से बल्कि पूरे भारत राष्ट्र से फिर माफी मांगने में कोई झिझक नहीं है.'
2. 'जो कुछ हुआ वह राष्ट्रीय भावना के खिलाफ था और इसलिए सरकार और राष्ट्र की ओर से मेरा सर शर्म से झुक जाता है.'
3. 'सभी को चाहिए कि इसके लिए आत्मावलोकन करें और देखें कि 1984 जैसे दंगे देश में कभी न हों.'
दिलचस्प बात ये है कि सैम पित्रोदा अपने प्रेरणास्रोत मणिशंकर अय्यर की ही तरह हिंदी के अल्पज्ञान की दुहाई दे रहे हैं. अय्यर ने प्रधानमंत्री मोदी को नीच कहने के बाद यही बहाना बनाया था.
राहुल गांधी सिख दंगों को लेकर भले ही कांग्रेस का बचाव करें. ये राहुल गांधी पर ही निर्भर करता है कि वो कांग्रेस का बचाव करते हैं या अपने पिता राजीव गांधी का, उनके बयान के लिए. दंगों के लिए खुद भी माफी मांगने या न मांगने का फैसला भी राहुल गांधी का ही होगा और होना भी चाहिये. राहुल गांधी चाहें तो एक छोटे से बयान से दंगे के पीड़ितों का दुख थोड़ा कम जरूर कर सकते हैं - 'दंगे के दोषियों को सजा मिलेगी चाहे वो किसी भी पार्टी के क्यों न हों.'
इन्हें भी पढ़ें :
राजीव गांधी की 5 गलतियां, जो राहुल गांधी की लड़ाई कमजोर करती हैं
सोनिया से दूसरे नहीं, राहुल कुछ सीखें तो कांग्रेस का ही भला होगा
1988 में 'राजीव गांधी चोर है' की गाज एक प्रोफेसर पर गिरी थी...
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.