कस्बों और गांवों में बाजार की साप्ताहिक बंदी की दोपहर, चौक-नुक्कड़ों पर ताश की बाज़ी जमती है. फड़ पर चार खिलाड़ी ताश खेलते हैं और पीछे ताका झांकी करते चालीस घाघ खिलाड़ी सलाह देते हैं. बेगम चल...अरे सत्ता क्यों चल रहा है गुलाम फेंक...चल सब समेट ले...अबे ईंट का नहला नहीं चिड़ी का एक्का चल...फिर एकदूसरे पर छींटाकशी भी अलां या फलां ने हरवा दिया वरना मैं तो सही बता रहा था. यहां इस किस्से का लब्बोलुआब ये है कि चुनाव आयोग का ईवीएम चैलेंज भी ऐसी ही फड़ पर ताश के खेल जैसा हो गया है.
ईवीएम की विश्वसनीयता को लेकर सबसे ज़्यादा हो हल्ला करने वाली आप और बसपा ने तो इस धनुष यज्ञ में जौहर दिखाने से कन्नी काट ली है. लेकिन इनके धुरंधर धनुष यज्ञ में बतौर ऑब्जर्वर रहेंगे जरूर. वही सत्ती चल या चिड़ी का गुलाम नहीं ईंट का इक्का चल वाली भूमिका में.
चुनाव आयोग ने 26 मई शाम पांच बजे के बाद डाक, ईमेल और अन्य माध्यमों से मिली अर्ज़ियों को पड़ताल के बाद आप सहित कई पार्टियों की शर्तों को चैलेंज के लिए तय फ्रेम से बाहर मानते हुए सीधे खारिज ही कर दिया. राष्ट्रीय जनता दल ने शुक्रवार को अर्ज़ी तय समयसीमा शाम 5 बजे के बाद भेजी. आयोग को मेल 5.39 बजे मिली तो अनुशासन का शिकार हो गया.
अब मैदान में ईवीएम से जोर आज़माइश करने वाले दो ही पहलवान रह गए हैं. नेशनलिस्ट कंग्रेस पार्टी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी. इस चैलेंज में हिस्सा लेने के लिए आखिरी दो दिनों में 8 पार्टियों ने अर्ज़ी दी थी. आप और कांग्रेस ईवीएम में जिन शर्तों पर छेड़छाड़ करना चाहते थे वो आयोग को मंजूर नहीं था. आयोग की शर्तें और चौलेंज के लिए तय फ्रेम इन दोनो पार्टियों को गवारा नहीं हुआ. यानी तय अनुशासन और नियमों के खिलाफ था. खेलने से पहले ही फाउल हो गया.