प्यारे नेताजी
यूं तो मैं घर में पड़ी डाइनिंग टेबल पर या लॉन में रखे केन फर्नीचर पर बैठकर हाथ में चाय की प्याली लिए, आपसे बात कर सकता था और गिले शिकवे दूर कर सकता था. मगर मैं आपको ये ओपन लैटर लिख रहा हूं. इस लैटर को लिखने का उद्देश्य बस इतना है कि, मैं बेहतर ढंग से और खुलकर आपको अपनी बात समझा सकूं और उन मन-मुटावों को दूर कर सकूं जिनकी वजह से आज हम दोनों ही आम जनता के बीच हंसी का पात्र बन चुके हैं.
आपने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में मुझे आशीर्वाद दिया इसके लिए मैं आभारी हूं. मेरे आभार प्रकट करने की वजह मेरा आपका बेटा होना या आपका मेरा पिता होना नहीं है. मैं आपका आभारी बस इसलिए हूं क्योंकि, आप मेरे राजनीतिक गुरु हैं. एक ऐसा गुरु जिसने मुझ अबोध टीपू को, अखिलेश सिंह यादव बनाया. मैं वो टीपू हूं जिसने सिर्फ आपके चलते अपनी राजनीतिक जमीन हासिल की और उस पर प्रयोग करने का सोचा और कई बार सफल भी हुआ.
नेताजी, आप राजनीति में आने से पहले मास्टर रह चुके हैं. अवश्य ही आपने मनोविज्ञान पढ़ा होगा. उसने 'ट्रायल एंड एरर' के बारे में आपने भी सुना होगा. इसमें व्यक्ति बार-बार प्रयोग करता है और उसमें गलतियां होती हैं, और फिर एक ऐसा समय आता है जब त्रुटियों की संख्या लगभग शून्य हो जाती है और वो सफल हो जाता है. मैं भी शायद अभी इसी फेज में...
प्यारे नेताजी
यूं तो मैं घर में पड़ी डाइनिंग टेबल पर या लॉन में रखे केन फर्नीचर पर बैठकर हाथ में चाय की प्याली लिए, आपसे बात कर सकता था और गिले शिकवे दूर कर सकता था. मगर मैं आपको ये ओपन लैटर लिख रहा हूं. इस लैटर को लिखने का उद्देश्य बस इतना है कि, मैं बेहतर ढंग से और खुलकर आपको अपनी बात समझा सकूं और उन मन-मुटावों को दूर कर सकूं जिनकी वजह से आज हम दोनों ही आम जनता के बीच हंसी का पात्र बन चुके हैं.
आपने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में मुझे आशीर्वाद दिया इसके लिए मैं आभारी हूं. मेरे आभार प्रकट करने की वजह मेरा आपका बेटा होना या आपका मेरा पिता होना नहीं है. मैं आपका आभारी बस इसलिए हूं क्योंकि, आप मेरे राजनीतिक गुरु हैं. एक ऐसा गुरु जिसने मुझ अबोध टीपू को, अखिलेश सिंह यादव बनाया. मैं वो टीपू हूं जिसने सिर्फ आपके चलते अपनी राजनीतिक जमीन हासिल की और उस पर प्रयोग करने का सोचा और कई बार सफल भी हुआ.
नेताजी, आप राजनीति में आने से पहले मास्टर रह चुके हैं. अवश्य ही आपने मनोविज्ञान पढ़ा होगा. उसने 'ट्रायल एंड एरर' के बारे में आपने भी सुना होगा. इसमें व्यक्ति बार-बार प्रयोग करता है और उसमें गलतियां होती हैं, और फिर एक ऐसा समय आता है जब त्रुटियों की संख्या लगभग शून्य हो जाती है और वो सफल हो जाता है. मैं भी शायद अभी इसी फेज में हूं. मैं लगातार ट्रायल कर रहा हूं, उसमें एरर आ रहे हैं. मगर मेरा अंतर्मन कहता है कि मैं एक दिन अवश्य ही कामयाब होकर आपको दिखाउंगा.
कहने सुनने को बहुत सी बातें हैं. कुछ ऐसी बातें, जिन्होंने मुझे बल दिया. तो कुछ ऐसी बातें जिनको सुनकर मुझे भीषण दुःख हुआ. जिन बातों से मुझे बल मिल रहा है वो सदैव मेरे दिल में रहेंगी. मगर वो बात जो लगातार मुझे काट रही है वो ये कि आपने बीते दिन मुझे संबोधित करते हुए कहा था कि, 'अखिलेश मेरे बेटे हैं और मेरा आशीर्वाद उनके साथ है लेकिन वो सफल नहीं हो सकते क्योंकि वो जुबान के पक्के नहीं हैं.
पिताजी, चूंकि आप मेरे राजनीतिक गुरु हैं तो जाहिर है आप मेरे फैसलों से खुश नहीं होंगे. अब आप ही बताइए, मैं करूं भी तो क्या करूं. आज भले ही आपका आशीर्वाद मेरे साथ हो मगर इस आशीर्वाद के बावजूद मैं अपने आपको बिल्कुल अकेला महसूस कर रहा हूं. मैं इस पल तक ये समझने में असमर्थ हूं कि आखिर मेरी गलती क्या है. राजधानी लखनऊ समेत सम्पूर्ण प्रदेश में इतना विकास कार्य करने के बावजूद लोग मुझसे संतुष्ट क्यों नहीं हैं.
पिताजी, जैसा कि आपने कहा, 'मैं जुबान का पक्का नहीं हूं तो शायद आप ये बात भूल गए कि 'जुबान के पक्के लोगों की राजनीति में कोई जगह नहीं है.' जो जुबान का पक्का होता है न तो वो राजनीति ही कर पाता है और न ही लोग उसे नेता ही मानते हैं. नायक से जननायक बनने की अपनी उलझनें और अडचनें हैं. मुझे पूरी आशा है कि ये बात आप मुझसे कहीं बेहतर ढंग से समझते होंगे.
बहरहाल, अब ये पत्र लम्बा हो रहा है. साथ ही, मैं ये भी जानता हूं कि आपके पास समय की भारी कमी है. ऐसा इसलिए क्योंकि, यदि आपके पास समय होता तो अवश्य ही आप मुझे अपने साथ बैठा के समझाते.
नेताजी, अंत में मैं, अपनी बात खत्म करते हुए बस इतना ही कहूँगा कि, प्रेस कांफ्रेंस में मुझपर आरोप लगाने से बेहतर था. आप मेरे साथ जमीन पर आए होते और हम दोनों ने न सिर्फ अपने लिए बल्कि प्रदेश की जनता के लिए एक साथ काम किया होता. यदि हम साथ होते तो शायद न मैं आपकी नजरों की किरकिरी बनता और न ही मुझे आपके सामने बगावत कर बागी बनने का तमगा मिलता.
आपका
अखिलेश
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