प्रिय भारतीय जनता पार्टी,
यह सही है कि कर्नाटक में भी आप सबसे बड़ी पार्टी थे और महाराष्ट्र में भी थे. यह भी सही है कि महाराष्ट्र में सरकार बनाने का मैंडेट आप ही को था और कर्नाटक में भले ही आपको पूर्ण बहुमत नहीं था, लेकिन जनता की पहली चॉइस आप ही थे.
फिर आपसे गलती कहां हुई? दोनों ही राज्यों में आपके विरोधी दलों ने हाथ मिलाकर बहुमत प्राप्त कर लिया और जनता की पहली चॉइस होने के बावजूद आप नम्बर गेम में पीछे रह गए. इस प्रकार संवैधानिक रूप से आपकी दावेदारी कमज़ोर हो गई, जिसे सहजता से आपको स्वीकार कर लेना चाहिए था. लेकिन आपने ऐसा नहीं किया और जोड़-तोड़ करके सरकार बनाने की कोशिश की. आपसे यही गलती हुई.
यह गलती इसलिए भी गंभीर दिखाई देती है, क्योंकि इससे सत्ता के लिए आपकी लोलुपता प्रकट हुई और विचारधारा आधारित पार्टी होने का आपका दावा कमज़ोर पड़ा. मेरी सभी पार्टियों के समर्थकों से बात होती है. मैंने पाया है कि आपके समर्थक इस मायने में अलग हैं कि वे आपको सत्ता के लिए विचारधारा से समझौता करते हुए नहीं देखना चाहते. अगर आपके समर्थक आम तौर पर इतने आदर्शवादी, सिद्धांतवादी और नैतिकतावादी हैं, तो आपको उनपर भरोसा बनाए रखना चाहिए और भूल से भी उनका दिल नहीं तोड़ना चाहिए. उन्होंने अगर केंद्र में आपको 303 के पहाड़ पर चढ़ाया और अनेक राज्यों में भी आपकी सरकारें बनवाई तो इसके पीछे मुख्य रूप से विचारधारा आधारित पार्टी होने के आपके दावे पर उनका भरोसा ही है.
तब सवाल है कि लोकतंत्र में आपकी भूमिका क्या केवल हरिभजन करने भर की होनी चाहिए? नहीं. बिल्कुल नहीं. विचारधारा को लागू करने के लिए भी सत्ता चाहिए. लेकिन इसके लिए शुचिता से समझौता नहीं होना चाहिए. यह बात सही नहीं...
प्रिय भारतीय जनता पार्टी,
यह सही है कि कर्नाटक में भी आप सबसे बड़ी पार्टी थे और महाराष्ट्र में भी थे. यह भी सही है कि महाराष्ट्र में सरकार बनाने का मैंडेट आप ही को था और कर्नाटक में भले ही आपको पूर्ण बहुमत नहीं था, लेकिन जनता की पहली चॉइस आप ही थे.
फिर आपसे गलती कहां हुई? दोनों ही राज्यों में आपके विरोधी दलों ने हाथ मिलाकर बहुमत प्राप्त कर लिया और जनता की पहली चॉइस होने के बावजूद आप नम्बर गेम में पीछे रह गए. इस प्रकार संवैधानिक रूप से आपकी दावेदारी कमज़ोर हो गई, जिसे सहजता से आपको स्वीकार कर लेना चाहिए था. लेकिन आपने ऐसा नहीं किया और जोड़-तोड़ करके सरकार बनाने की कोशिश की. आपसे यही गलती हुई.
यह गलती इसलिए भी गंभीर दिखाई देती है, क्योंकि इससे सत्ता के लिए आपकी लोलुपता प्रकट हुई और विचारधारा आधारित पार्टी होने का आपका दावा कमज़ोर पड़ा. मेरी सभी पार्टियों के समर्थकों से बात होती है. मैंने पाया है कि आपके समर्थक इस मायने में अलग हैं कि वे आपको सत्ता के लिए विचारधारा से समझौता करते हुए नहीं देखना चाहते. अगर आपके समर्थक आम तौर पर इतने आदर्शवादी, सिद्धांतवादी और नैतिकतावादी हैं, तो आपको उनपर भरोसा बनाए रखना चाहिए और भूल से भी उनका दिल नहीं तोड़ना चाहिए. उन्होंने अगर केंद्र में आपको 303 के पहाड़ पर चढ़ाया और अनेक राज्यों में भी आपकी सरकारें बनवाई तो इसके पीछे मुख्य रूप से विचारधारा आधारित पार्टी होने के आपके दावे पर उनका भरोसा ही है.
तब सवाल है कि लोकतंत्र में आपकी भूमिका क्या केवल हरिभजन करने भर की होनी चाहिए? नहीं. बिल्कुल नहीं. विचारधारा को लागू करने के लिए भी सत्ता चाहिए. लेकिन इसके लिए शुचिता से समझौता नहीं होना चाहिए. यह बात सही नहीं है कि चुनाव में जिसे आप भ्रष्ट कहें और जेल भेजने की बात करें, चुनाव के बाद सत्ता के लिए आप उसी से साझेदारी कर लें और अपनी सरकार में महत्वपूर्ण पद दे दें. नेताओं के लिए इस तरह पलटी मारना आसान हो सकता है, लेकिन जनता के पेट में इतने दांत नहीं होते कि ऐसी घटनाओं को भी वह सहजता से पचा ले. यह सब देखकर उसे चोट पहुंचती है.
आपने भी भिन्न विचारधारा वाले दलों के साथ चुनाव-बाद गठबंधन करके सरकारें बनाई हैं, इसलिए दूसरे भी अगर ऐसा कर रहे हैं तो उसे सहज भाव से लिया कीजिए और विपक्ष में बैठकर अपना लोकतांत्रिक दायित्व निभाइए. अगर बेमेल गठबंधन होगा तो अपने आप वह सरकार गिरेगी और खुद-ब-खुद आपको मौका मिलेगा, जैसा कि कर्नाटक में हुआ. अगर आपने 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस-जेडीएस को सरकार बनाने से रोकने की अनर्थक कोशिश नहीं की होती, तो आपका क्या बिगड़ जाता? वैसे भी साल भर में सत्ता आप ही के पास आनी थी.
इसी तरह महाराष्ट्र में कर्नाटक का नाटक दुहरा कर आपको क्या मिला? सिद्धांत भी गया और सत्ता भी न मिली. तीन पार्टियों के बेमेल गठबंधन के हश्र को लेकर अगर आप इतने आश्वस्त हैं, तो धैर्य क्यों नहीं दिखाया? बिहार में नीतीश कुमार भी आपसे छिटककर वैसे ही दूर चले गए थे, जैसे कि आज महाराष्ट्र में शिवसेना छिटक गयी है. लेकिन लालूजी के साथ नीतीश जी का गठबंधन बेमेल था, तो वहां भी दो साल के भीतर वे पुनः आपकी गोदी में आए कि नहीं आए? आज आप फिर से नीतीश जी के साथ सरकार चला रहे हैं.
इसलिए राजनीति में सत्ता जितनी महत्वपूर्ण है, धैर्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है. ज़रूरी नहीं कि सब कुछ आज ही और मौजूदा नेतृत्व द्वारा ही हासिल कर लिया जाए. अगर आप आज धैर्य धारण करके रखेंगे, तो बहुत कुछ छूटा हुआ और नया आपके बाद की पीढियां भी प्राप्त करेंगी, जैसा कि अपने पिछले अनेक नेताओं के धैर्य और संघर्ष से आज आप लोगों ने हासिल किया है.
इसलिए राजनीति केवल तृष्णा ही नहीं, त्याग भी है. बड़े-बड़े धुरंधर नेताओं से सुसज्जित पार्टी को एक मामूली लेखक और पत्रकार राजनीति करना नहीं सिखा सकता, लेकिन लोकतंत्र में निरपेक्ष रहते हुए सबको अपनी-अपनी भूमिका निभानी है, इसीलिए यह पत्र लिखा है. बहुत-बहुत धन्यवाद.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.