भारत भीषण आपदा झेल रहे तुर्की में ऑपरेशन दोस्त चलाकर एक भरोसेमंद दोस्त की भूमिका निभा रहा है. NDRF की टीम लगातार राहत और बचाव कार्य चला कर ज्यादा से ज्यादा ज़िंदगियों को बचाने की मुहिम में जुटी है. NDRF के अलावा भारतीय सेना भी मेडिकल सपोर्ट लेकर टर्की पहुंची है.मोदी सरकार ने एक बार भारत की उसी महान परंपरा को निभाया है जिसे वो वसुधैव कुटुंबकम के अपने सूत्र से विश्व को बांधते रहे हैं.
देखा जाय तो प्रधानमंत्री मोदी ने वही किया है जो प्राचीन भारत की महान परंपरा रही है जिसमें कूटनीतिक समीकरण नहीं एक संवेदनशील मित्र का संकल्प सर्वोपरि है. NDRF के जवान भीषण त्रासदी के बीच जीवन खोज रहे हैं, तो भारतीय सेना मेडिकल सहायता के साथ तुर्की में है. विपदा काल में मोदी की इस सहायता का कायल तुर्की है. तुर्की के राजदूत का ये ट्वीट बताता है जिसमें वो लिखते हैं, ' तुर्की और हिंदी में दोस्त, दोस्ती के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक आम शब्द है.
हमारे तुर्की में एक कहावत है कि जरूरत में काम आने वाला दोस्त ही सच्चा दोस्त होता है. कोई देश महान भौगलिक सीमाओं से नहीं होता न सैन्य शक्ति से होता है. कोई देश महान अपनी संवेदनशीलता और मानवीय नज़रिए से होता है. मोदी ने तुर्किए-सीरिया पर आई त्रासदी के बाद जो कहा वो किया मित्र के तौर पर जो प्रतिबद्धता दिखाई उसे निभाया. भारत के मानवीय संकल्प ने ऑपरेशन दोस्त का रूप अख्तियार कर लिया और तुर्की में NDRF की टीम दोस्ती फर्ज निभाने के लिए और लोगों की ज़िंदगी बचाने के लिए मैदान में डट गई. पूरी दुनिया को परिवार मानने भारत के राहत और बचाव कर्मी पूरी संवेदनशीलता और मानवता के संकल्प के साथ तबाह हुए तुर्किए की शहरों में कर्मपथ पर जुटे है.
'वसुधैव कुटुंबकम' के मंत्र से दुनिया को जोड़ने वाले मोदी ने एक बार फिर संदेश दिया कि हिंदुस्तान के...
भारत भीषण आपदा झेल रहे तुर्की में ऑपरेशन दोस्त चलाकर एक भरोसेमंद दोस्त की भूमिका निभा रहा है. NDRF की टीम लगातार राहत और बचाव कार्य चला कर ज्यादा से ज्यादा ज़िंदगियों को बचाने की मुहिम में जुटी है. NDRF के अलावा भारतीय सेना भी मेडिकल सपोर्ट लेकर टर्की पहुंची है.मोदी सरकार ने एक बार भारत की उसी महान परंपरा को निभाया है जिसे वो वसुधैव कुटुंबकम के अपने सूत्र से विश्व को बांधते रहे हैं.
देखा जाय तो प्रधानमंत्री मोदी ने वही किया है जो प्राचीन भारत की महान परंपरा रही है जिसमें कूटनीतिक समीकरण नहीं एक संवेदनशील मित्र का संकल्प सर्वोपरि है. NDRF के जवान भीषण त्रासदी के बीच जीवन खोज रहे हैं, तो भारतीय सेना मेडिकल सहायता के साथ तुर्की में है. विपदा काल में मोदी की इस सहायता का कायल तुर्की है. तुर्की के राजदूत का ये ट्वीट बताता है जिसमें वो लिखते हैं, ' तुर्की और हिंदी में दोस्त, दोस्ती के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक आम शब्द है.
हमारे तुर्की में एक कहावत है कि जरूरत में काम आने वाला दोस्त ही सच्चा दोस्त होता है. कोई देश महान भौगलिक सीमाओं से नहीं होता न सैन्य शक्ति से होता है. कोई देश महान अपनी संवेदनशीलता और मानवीय नज़रिए से होता है. मोदी ने तुर्किए-सीरिया पर आई त्रासदी के बाद जो कहा वो किया मित्र के तौर पर जो प्रतिबद्धता दिखाई उसे निभाया. भारत के मानवीय संकल्प ने ऑपरेशन दोस्त का रूप अख्तियार कर लिया और तुर्की में NDRF की टीम दोस्ती फर्ज निभाने के लिए और लोगों की ज़िंदगी बचाने के लिए मैदान में डट गई. पूरी दुनिया को परिवार मानने भारत के राहत और बचाव कर्मी पूरी संवेदनशीलता और मानवता के संकल्प के साथ तबाह हुए तुर्किए की शहरों में कर्मपथ पर जुटे है.
'वसुधैव कुटुंबकम' के मंत्र से दुनिया को जोड़ने वाले मोदी ने एक बार फिर संदेश दिया कि हिंदुस्तान के लिए मानवता..संवेदनशीलता, जीवन और ज़िंदगी का सम्मान ही विदेशनीति है. हिंदुस्तान ने मानवता के लिए बांहे फैलाईं और जीवन की रक्षा के लिए हाथ बढ़ाया और मानवता की रक्षा करते हुए तुर्किए के लोगों के दिल जीते. भारत के छठे विमान 5 C-17 IAF विमान में 250 से ज्यादा बचाव कर्मी, विशेष उपकरण और 135 टन से अधिक की राहत सामग्री तुर्किए भेजी गई है. मलबे में दबे लोगों को निकालने और वहां घायल लोगों को इलाज देने के लिए भारत हर मुमकिन प्रयास में जुटा है. छठी फ्लाइट में बचाव दल, डॉग स्क्वाड, दवाएं और अन्य जरूरी सामान भेजे गए हैं.
केवल तुर्की और सीरिया में ही नहीं भारत कई अंतरराष्ट्रीय मौकों पर इसे साबित भी कर चुका है. फिर चाहे अफगानिस्तान संकट के समय सभी की सुरक्षित वापसी हो, यूक्रेन में फंसे भारतीयों को वापस लाने की नीति हो या फिर कोरोना काल में दूसरे देशों की मदद की बात है. भारत ने हर मोर्चे पर आगे बढ़ कर सबकी मदद की है. हाल ही में भारत ने श्रीलंका की मदद करके ये साबित कर दिया है कि भले ही वह आगे बढ़ रहा है लेकिन अपने पड़ोसियों के लिए हमेशा खड़ा है.
वैसे हम कुछ भूलते नहीं है लेकिन बात अगर मानवता की आती है तो हम सबसे पहले खड़े मिलते हैं. कश्मीर मुद्दे पर तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने पाकिस्तान का साथ दिया था. बार-बार ये मुद्दा उठाया. इसके बाद भारत का 56,877 टन गेहूं वापस लौटा दिया, ये कहकर कि इसमें रुबेला वायरस है. उसी अनाज को दुनिया के अन्य देशों ने खरीदा. एर्दोगन ने ऐलान किया कि 2023 में तुर्की-पाकिस्तान मिलकर युद्धपोत बनाएंगे. लेकिन भारत ने ये सब भूलकर सिर्फ मदद की सोची.
दरअसल भारत में दुनिया के मदद का ये सिलसिला 1963 इथोपिया से शुरू हुआ. सूखे के बाद यहां के हालात बद्तर हो गए थे. गंभीर सूखे के बाद चिकित्सा कर्मियों की एक टीम इथोपिया भेजी थी. मेडिकल टीम ने प्रभावित समुदायों को चिकित्सा सहायता करने के लिए अथक प्रयास किया. उनके इस प्रयासों की इथियोपियाई सरकार और लोगों ने बहुत सराहना की. 1965 में, भारत ने भीषण भूकंप के बाद आपदा राहत और सहायता प्रदान करने के लिए चिकित्सा कर्मियों की एक और टीम यमन भेजी. टीम ने प्रभावित आबादी की जरूरतों का आकलन करने के लिए स्थानीय अधिकारियों और समुदायों के साथ मिलकर काम किया और जरूरतमंद लोगों को चिकित्सा सहायता, भोजन की व्यवस्था की.
1971 में भारत ने बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के बाद राहत प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. देश ने उन लाखों शरणार्थियों का समर्थन करने के लिए पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में चिकित्सा कर्मियों की टीम और खाद्य सामग्री भेजी. एनडीआरएफ टीम ने जरूरतमंद लोगों को चिकित्सा सहायता, भोजन और आश्रय प्रदान करने के लिए स्थानीय अधिकारियों और समुदायों के साथ मिलकर काम किया. 1999 में भी विनाशकारी भूकंप के बाद भारत ने NDRF कर्मियों की एक टीम को तुर्की भेजा. टीम ने प्रभावित समुदायों को आपदा राहत और सहायता प्रदान करने के लिए अथक प्रयास किया और उनके प्रयासों की तुर्की सरकार और लोगों ने बहुत सराहना की थी .
1999 में भारत के पीठ में छुरा भोकने वाले पाकिस्तान के लिए साल 2005 में भारत ने दिल खोला. एकबार फिर आपदा राहत और सहायता प्रदान करने के लिए एनडीआरएफ टीमों को विदेश भेजा. इस बार एक गंभीर भूकंप प्रभावित आबादी को जरूरतों का आकलन करने के लिए स्थानीय अधिकारियों और समुदायों के साथ मिलकर काम किया और जरूरतमंद लोगों को चिकित्सा सहायता, भोजन और आश्रय प्रदान किया. 2006 में इंडोनेशिया में जावा द्वीप में एक बड़े पैमाने पर भूकंप आया. जिसने विनाश का अमिट निशान छोड़ा. भारत सरकार ने तुरंत आपदा प्रतिक्रिया प्रयासों में सहायता के लिए एनडीआरएफ कर्मियों की एक टीम भेजी. एनडीआरएफ की टीम को प्रभावित क्षेत्रों में खोज और बचाव कार्यों के साथ-साथ आपदा से प्रभावित लोगों को चिकित्सा और मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए तैनात किया गया था.
2008 में एक विनाशकारी चक्रवात ने म्यांमार में तबाही मचाई, जो अपने पीछे तबाही के निशान छोड़ गया. जवाब में भारत ने प्रभावित आबादी को सहायता और सहायता प्रदान करने के लिए एनडीआरएफ (NDRF) कर्मियों की एक टीम भेजी. एनडीआरएफ की टीम ने आपदा से प्रभावित लोगों को राहत और सहायता प्रदान करने के लिए अथक प्रयास किया और जरूरतमंद लोगों की मदद करने की भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया. जनवरी 2010 में, हैती के द्वीप राष्ट्र में एक बड़े पैमाने पर भूकंप आया. जिसमें हजारों लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए. भारत सरकार ने आपदा प्रतिक्रिया प्रयासों में सहायता के लिए एनडीआरएफ कर्मियों की एक टीम भेजी. NDRF की टीम को प्रभावित क्षेत्रों में खोज और बचाव कार्यों के साथ-साथ आपदा से प्रभावित लोगों को चिकित्सा और मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए तैनात किया गया था.
2011 में, थाईलैंड में भयंकर बाढ़ आई, जिससे भयंकर नुकसान पहुंचा हजारों लोग बेघर हो गए थे. भारत सरकार ने आपदा प्रतिक्रिया प्रयासों में सहायता के लिए एनडीआरएफ कर्मियों की एक टीम भेजी. एनडीआरएफ की टीम को प्रभावित क्षेत्रों में खोज और बचाव कार्यों के साथ-साथ आपदा से प्रभावित लोगों को चिकित्सा और मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए तैनात किया गया था. 2015 में, भारत ने विनाशकारी भूकंप के बाद NDRF की टीमों को नेपाल भेजा था. टीम ने प्रभावित आबादी की जरूरतों का आकलन करने के लिए स्थानीय अधिकारियों और समुदायों के साथ मिलकर काम किया और जरूरतमंद लोगों को चिकित्सा सहायता, भोजन और आश्रय प्रदान किया. NDRF के प्रयासों की नेपाली सरकार और लोगों ने काफी सराहना की थी .
2016 में, चक्रवात डाइनो ने ज़िम्बाब्वे के दक्षिणी अफ्रीकी राष्ट्र पर हमला किया. जिससे व्यापक क्षति और विस्थापन हुआ. भारत सरकार ने आपदा प्रतिक्रिया प्रयासों में सहायता के लिए एनडीआरएफ कर्मियों की एक टीम भेजी. एनडीआरएफ की टीम को प्रभावित इलाकों में तलाशी और बचाव अभियान चलाने के लिए तैनात किया गया. 2017 में, पश्चिम अफ्रीकी देश सिएरा लियोन में भारी बारिश और भूस्खलन हुआ. इसमे और जीवन की हानि हुई. भारत सरकार ने एनडीआरएफ कर्मियों की एक टीम भेजी. एनडीआरएफ की टीम को प्रभावित क्षेत्रों में खोज और बचाव कार्यों के साथ-साथ चिकित्सा और मानवीय सहायता प्रदान की. भारतीय यूनिट ने सैकड़ों लोगों की जान बचाई.
2019 में, भारत ने विनाशकारी चक्रवात के बाद आपदा राहत और सहायता प्रदान करने के लिए दक्षिणी अफ्रीकी देशों मोज़ाम्बिक, ज़िम्बाब्वे और मलावी में NDRF की टीमों को भेजा. टीम ने प्रभावित आबादी की जरूरतों का आकलन करने के लिए स्थानीय अधिकारियों और समुदायों के साथ मिलकर काम किया और जरूरतमंद लोगों को चिकित्सा सहायता, भोजन और आश्रय प्रदान किया. कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि भारत अपने सिद्धांतों पर चलते हुए मानता है कि समूचा विश्व समुदाय एक ही बड़े वैश्विक परिवार का एक हिस्सा है और परिवार के सदस्यों को शांति और सद्भाव रखना चाहिए, मिलजुल कर काम करना चाहिए और एक साथ बढ़ने और पारस्परिक लाभ के लिए एक दूसरे पर भरोसा करना चाहिए.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.