पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस का साथ छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले तीन टीएमसी नेताओं का BJP से मोहभंग नजर आने लगा है. इन वर्तमान भाजपा नेताओं का तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी के लिए प्रेम पूरे उफान पर है. सोनाली गुहा के बाद सरला मुर्मू और अब अमोल आचार्य ने पत्र लिखकर अपना 'ममता प्रेम' जता दिया है. सोनाली गुहा ने तो यहां तक कह दिया कि जैसे मछली बिना पानी के नही रह सकती, मैं आपके बिना जिंदा नहीं रह पाऊंगी दीदी. सरला मुर्मू और अमोल आचार्य भी माफी मांगते हुए 'दीदी' की शरण में आने को बेताब हो रहे हैं. तीन से 77 विधानसभा सीटों (सांसद से विधायक बने दो नेताओं के इस्तीफे के बाद 75) पर पहुंचने वाली भाजपा के लिए ये शुभ संकेत तो नही ही हो सकता है. भाजपा ने बंगाल में अपना काफी बड़ा काडर टीएमसी के इन बागियों के कंधों पर ही खड़ा किया है. इस स्थिति में भाजपा के सामने अपने विधायकों को 'ऑपरेशन ग्रास फ्लावर' से बचाने की चुनौती खड़ी हो सकती है.
भाजपा पर संकट गहराने की आशंका
2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों को किनारे रख दिया जाए, तो भवानीपुर सीट से जीत हासिल करने के बाद पश्चिम बंगाल में आने वाले 5 साल तक पक्के तौर पर ममता बनर्जी ही मुख्यमंत्री रहने वाली हैं. 2 मई को विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद अभी एक महीना भी पूरा नहीं हुआ है और दलबदलुओं का ममता के लिए प्रेम उमड़ने लगा है. 'दीदी' से माफी मांगने वालों को देखते हुए भविष्य में भाजपा के विधायकों पर भी इस 'दीदी प्रेम' का असर होने की संभावनाएं काफी बढ़ गई हैं. भाजपा इन नेताओं की वापसी पर भले ही कहती दिख रही हो कि कोई जाना चाहता है, तो उसे कोई समस्या नहीं है. लेकिन, भाजपा के लिए ये समस्याओं की शुरुआत हो सकता है. ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस ऐसा कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देंगे, जिससे भाजपा को कमजोर किया और दिखाया जा सके.
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस का साथ छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले तीन टीएमसी नेताओं का BJP से मोहभंग नजर आने लगा है. इन वर्तमान भाजपा नेताओं का तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी के लिए प्रेम पूरे उफान पर है. सोनाली गुहा के बाद सरला मुर्मू और अब अमोल आचार्य ने पत्र लिखकर अपना 'ममता प्रेम' जता दिया है. सोनाली गुहा ने तो यहां तक कह दिया कि जैसे मछली बिना पानी के नही रह सकती, मैं आपके बिना जिंदा नहीं रह पाऊंगी दीदी. सरला मुर्मू और अमोल आचार्य भी माफी मांगते हुए 'दीदी' की शरण में आने को बेताब हो रहे हैं. तीन से 77 विधानसभा सीटों (सांसद से विधायक बने दो नेताओं के इस्तीफे के बाद 75) पर पहुंचने वाली भाजपा के लिए ये शुभ संकेत तो नही ही हो सकता है. भाजपा ने बंगाल में अपना काफी बड़ा काडर टीएमसी के इन बागियों के कंधों पर ही खड़ा किया है. इस स्थिति में भाजपा के सामने अपने विधायकों को 'ऑपरेशन ग्रास फ्लावर' से बचाने की चुनौती खड़ी हो सकती है.
भाजपा पर संकट गहराने की आशंका
2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों को किनारे रख दिया जाए, तो भवानीपुर सीट से जीत हासिल करने के बाद पश्चिम बंगाल में आने वाले 5 साल तक पक्के तौर पर ममता बनर्जी ही मुख्यमंत्री रहने वाली हैं. 2 मई को विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद अभी एक महीना भी पूरा नहीं हुआ है और दलबदलुओं का ममता के लिए प्रेम उमड़ने लगा है. 'दीदी' से माफी मांगने वालों को देखते हुए भविष्य में भाजपा के विधायकों पर भी इस 'दीदी प्रेम' का असर होने की संभावनाएं काफी बढ़ गई हैं. भाजपा इन नेताओं की वापसी पर भले ही कहती दिख रही हो कि कोई जाना चाहता है, तो उसे कोई समस्या नहीं है. लेकिन, भाजपा के लिए ये समस्याओं की शुरुआत हो सकता है. ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस ऐसा कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देंगे, जिससे भाजपा को कमजोर किया और दिखाया जा सके.
राजनीति में विरोधी पक्ष को हल्के में लेना हमेशा भारी पड़ता है. ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव में ये गलती नहीं की थी. विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने दलबदलुओं को गद्दार के तौर पर पेश किया था. तृणमूल कांग्रेस अपने इस दांव में कामयाब भी रही थी. इसी का नतीजा रहा कि टीएमसी के दलबदलुओं की बड़ी फौज में से सिर्फ 6 नेताओं को ही जीत हासिल हुई. लेकिन, अब भाजपा में शामिल हो चुके पूर्व टीएमसी नेताओं की ममता बनर्जी से माफी की गुहार भाजपा के लिए खतरा बन सकती है. इस बात में कोई शक नही है कि इन नेताओं की वजह से भाजपा के कई विधायकों को जीत हासिल हुई होगी. इन नेताओं की टीएमसी में वापसी से भाजपा के विधायकों और जनाधार पर 'ऑपरेशन ग्रास फ्लावर' की तलवार लटक सकती है.
बंगाल का चुनावी इतिहास कर रहा तस्दीक
पश्चिम बंगाल के चुनावी इतिहास पर नजर डालने पर यह स्थिति बिल्कुल साफ नजर आने लगती है. राज्य में पहला विधानसभा चुनाव जीतने से पहले और बाद में वाम दलों व कांग्रेस के कई बड़े नेता ममता बनर्जी के पाले में आ खड़े हुए थे. तृणमूल कांग्रेस ने इन तमाम नेताओं को अपने पक्ष में लाने के लिए साम - दाम - दंड - भेद के सारे तरीके अपनाए थे. उस दौरान ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस पर नेताओं को फर्जी मुकदमों में फंसाने और पद का लालच देकर अपने साथ मिलाने के आरोप लगे थे. 213 सीटें जीतने के बाद टीएमसी को ऑपरेशन ग्रास फ्लावर चलाने की जरूरत तो नही है, लेकिन पश्चिम बंगाल से भाजपा का जनाधार खत्म करने के लिहाज से ये बहुत जरूरी दिखता है.
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि टीएमसी के रणनीतिकार 'ऑपरेशन ग्रास फ्लावर' पर मंथन नही कर रहे होंगे. इस समय बंगाल में जो राजनीतिक परिस्थितियां हैं, उसके हिसाब से यह होता दिख भी रहा है. टीएमसी के दलबदलुओं को भाजपा, जो राहत देकर अपने साथ लाई थी. टीएमसी भविष्य में भाजपा विधायकों को ऐसी ही राहत ऑफर कर सकती है. बंगाल का चुनावी इतिहास तो इसी ओर इशारा करता है. वैसे, 'ऑपरेशन ग्रास फ्लावर' में चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद भड़की हिंसा भी एक बड़ा फैक्टर साबित होगी. बंगाल के 'रक्त चरित्र' की हमेशा से ही नेताओं के पार्टी बदलने में बड़ी भूमिका रही है.
भाजपा में सामने आ रहा है अंदरूनी संकट
लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा को पश्चिम बंगाल की 18 सीटों पर जीत दिलाने वाले मुकुल रॉय ने दो दशकों बाद चुनाव लड़कर जीत हासिल की. विधानसभा सदस्य के तौर पर शपथ लेने के बाद मुकुल रॉय तृणमूल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष से चर्चा करते और कुछ टीएमसी नेताओं को बधाई देते नजर आए थे. हालांकि, बाद में उन्होंने साफ किया था कि वह भाजपा को छोड़कर कही नही जा रहे हैं. लेकिन, इस मुलाकात के बाद उन्होंने मीडिया में कहा था कि जीवन में कभी चुप भी रहना पड़ता है. मुकुल रॉय की इस मुलाकात ने बंगाल की सियासी हवा को गर्मा दिया था. वैसे, रॉय के भाजपा न छोड़ पाने की वजह साफ है. शुभेंदु अधिकारी को भी इसी वजह से नारद स्टिंग मामले में राहत मिली हुई है. शुभेंदु अधिकारी को विधायक दल का नेता बनाने से भी कई लोग खफा हैं. ये तमाम बातें कहीं से भी भाजपा के हक में नही जाती दिखती हैं. भाजपा ने दलबदलुओं के सहारे बंगाल में अपना रास्ता बनाया है. इनकी टीएमसी में वापसी के साथ ही भाजपा के विधायकों पर खतरा बढ़ जाएगा. भाजपा का पसंदीदा सियासी हथियार 'ऑपरेशन लोटस' अब 'ऑपरेशन ग्रास फ्लावर' के नए रूप में भाजपा के विधायकों पर ही चल सकता है.
भाजपा को कमजोर करने का मौका नही छोड़ेंगी ममता
भाजपा के वरिष्ठ नेता तथागत रॉय विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद अपनी ही पार्टी के खिलाफ मुखर हो गए थे. उन्होंने टीएमसी के नेताओं को कचरा कहने के साथ ही बंगाल में भाजपा के अंत तक की कहानी बता दी थी. टीएमसी शायद ही इस सलाह पर विचार न करे. टीएमसी से भाजपा में शामिल हुए करीब 150 बड़े नेताओं को लेकर पार्टी के अंदर नाराजगी विधानसभा चुनाव के दौरान से ही साफ नजर आ रही है. भाजपा के अंदरूनी मामलों में भी इन नेताओं को कोई खास तवज्जो नहीं मिल रही है. कहना गलत नही होगा कि आज नही तो कल इनका भी दीदी प्रेम जाग ही जाएगा. वैसे भी 'जल में रहकर मगर से बैर करना' शायद ही कोई पसंद करे. हालांकि, तृणमूल कांग्रेस की ओर से अभी तक यही कहा जा रहा है कि इन नेताओं की वापसी का फैसला ममता बनर्जी करेंगी. टीएमसी मुखिया राजनीति की मंझी हुई खिलाड़ी हैं. पश्चिम बंगाल में भाजपा को कमजोर करने का कोई भी मौका शायद ही वो छोड़ेंगी. टीएमसी के दलबदलुओं के बाद सीधा खतरा भाजपा विधायकों पर होगा. खैर, भाजपा इस चुनौती से कैसे निपटेगी, ये तो वक्त ही बताएगा.
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