कोरोना वायरस (Coronavirus Crisis) को लेकर लॉकडाउन के बीच 22 मई को विपक्षी दलों की एक वीडियो मीटिंग बुलाई. जिसमें विपक्षी दलों के नेता अपने अपने घर से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हिस्सा लेंगे. सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की पहल पर बुलाई जा रही इस मीटिंग में, मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट बताती हैं कि इसमें 18 से लेकर 28 विपक्षी पार्टियों तक के हिस्सा लेने की संभावना है. दिलचस्प बात ये है कि जिन पार्टियों के नाम गिनाये जा रहे हैं उनमें एक पार्टी नदारद दिखायी दे रही है - अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी. विपक्ष की इस मीटिंग का थीम 'लाइक माइंडेड' रखा गया है - समझाइश ये कि जो खुल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) पर एक स्वर में हमला बोल सकें.
जैसे तीसरे मोर्चे की कोई बैठक हो
अरविंद केजरीवाल की हालिया राजनीति भले ही एनडीए नेताओं के बात व्यवहार के करीब भले ही लगती हो, लेकिन वो ऐसी राह पकड़े हुए हैं कि 'लाइक माइंडेड' थी वाली ज्यादातर बैठकों से अपनेआप बाहर हो जाते हैं. वो ममता बनर्जी की मीटिंग में तो जाते हैं और तृणमूल कांग्रेस नेता भी अरविंद केजरीवाल की मीटिंग में शामिल होती हैं, लेकिन जब ऐसा कांग्रेस की तरफ से होता है अरविंद केजरीवाल बाहर हो जाते हैं. ऐसा इस बार भी होता लग रहा है.
1. कौन कौन शामिल होगा: कई रिपोर्ट में विपक्ष की मीटिंग में 18 दल तो कुछ में 28 पार्टियों के शामिल होने की संभावना जतायी जा रही है. कुछ बातें ऐसी हैं जिससे मीटिंग के स्वरूप को समझने में आसानी हो सकती है.
मसलन, बिहार की एक पार्टी है VIP यानी विकासशील इंसान पार्टी जिसे न्योता नहीं दिया गया है. ये भी ठीक वैसे ही है जैसे कांग्रेस के कारण आम आदमी पार्टी दरकिनार हुई है, तेजस्वी यादव के चलते VIP को दूर रखा गया है. महागठबंधन वाली पार्टियों के नेता जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा तो मीटिंग में शामिल होंगे लेकिन VIP नेता मुकेश साहनी भी अरविंद केजरीवाल की तरह दूर ही रहेंगे.
सोनिया गांधी कोरोना वायरस संकट के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में जुटी हैं
जहां तक मीटिंग में शामिल होने को लेकर पुष्टि की बात है, उत्तर प्रदेश की दो पार्टियां SP और BSP के नेताओं अखिलेश यादव और मायावती के अभी तक हामी नहीं भरने की ही खबर है. दोनों दलों का आपसी गठबंधन भले ही टूट गया हो, लेकिन ऐसे आयोजनों को लेकर रूख एक जैसा ही लगता है.
जिन नेताओं के मीटिंग में शामिल होने की संभावना जतायी गयी है, उनमें ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, शरद पवार, एमके स्टालिन की मौजूदगी पक्का मानी जा रही है.
2. मीटिंग का मुद्दा क्या होगा: मीटिंग में जिन मुद्दों पर चर्चा होने की संभावना जतायी जा रही है उनमें करीब करीब वही हैं जो कांग्रेस नेता किसी न किसी तरीके से उठाते रहे हैं - मकसद, केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार को घेरना है.
विपक्षी दलों की इस मीटिंग में प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा, उनकी समस्याएं और उनको दूर करने में सरकार की नाकामी एक प्रमुख मुद्दा होने वाला है. एक मुद्दा प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से घोषित 20 लाख करोड़ का पैकेज भी है. ये भी वही मुद्दा है जिसे कांग्रेस नेता छल-कपट से भरा बता रहे हैं. प्रमुख मुद्दों में से एक कोरोना वायरस से उपजे संकट से निबटने में मोदी सरकार की नाकामी भी हो सकता है जिसे लेकर राहुल गांधी कभी प्रेस कांफ्रेंस तो कभी रघुराम राजन और अभिजीत बनर्जी के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग करते रहे हैं.
विपक्ष को साथ लेने का सोनिया का प्रयास
मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष के आवाज पर दावा जताने की बात हो तो कांग्रेस नेता चाहें तो सबसे पहले दावा ठोक सकते हैं क्योंकि हाल फिलहाल कांग्रेस मुखर तो नजर आयी है. ये बात अलग है कि विपक्षी प्रतिनिधित्व के नाम पर कांग्रेस की आवाज अकेली ही नजर आयी है. सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, मनमोहन सिंह, पी. चिदंबरम और रणदीप सुरजेवाला - सिर्फ ये ही नाम सुनायी दिये हैं. मुख्यमंत्रियों की मीटिंग में भी कांग्रेस मुख्यमंत्रियों की आवाज गूंजी है या फिर ममता बनर्जी और मीटिंग से दूर रह कर चर्चा में आये केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन की. अरविंद केजरीवाल तो बस यही कहते हैं को जो मोदी सरकार की गाइडलाइन होगी उसी पर चलेंगे. चुनावी कॉनट्रैक्ट भले खत्म हो गया हो लेकिन लगता है अरविंद केजरीवीाल पर प्रशांत किशोर का असर लंबे अरसे तक रहने वाला है.
एक बार एनसीपी नेता शरद पवार की आवाज जरूर मोदी सरकार के खिलाफ सुनायी दी है, लेकिन 2019 के आम चुनाव के दौरान सक्रिय रहे टीडीपी नेता एन. चंद्रबाबू नायडू या पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की बातें दिल्ली तक तो नहीं ही पहुंची लगती हैं, अपने अपने राज्यों में जो भी हाल रहा हो और उसका राष्ट्रीय राजनीति में कोई मतलब भी नहीं है. जैसे अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव की राजनीति योगी आदित्यनाथ और नीतीश कुमार तक सिमट गयी है - और मायावती की प्रियंका गांधी की तरफ से उत्तर प्रदेश में किसी भी पहल पर प्रतिक्रिया में ट्वीट करने तक सीमित लगती है.
2019 के आम चुनाव के नतीजे आने के बाद से कांग्रेस की मुश्किल ये रही है कि विपक्ष दूरी सा बनाने लगा है, लिहाजा, वो 'एकला चलो रे' का रास्ता अख्तियार करने लगी है. दिल्ली दंगों को लेकर कांग्रेस नेता खुद ही राष्ट्रपति भवन पहुंचे थे. मुश्किल ये भी रही कि दिल्ली में सत्ताधारी आप नेता अरविंद केजरीवाल भी कांग्रेस के निशाने पर थे और वैसी स्थिति में विपक्ष के कई नेताओं का साथ तो कांग्रेस को मिलने से रहा. महाराष्ट्र में चुनाव बाद तो झारखंड में चुनाव पूर्व गठबंधन का हिस्सा होने के नाते कांग्रेस सूबे की सरकारों में और क्षेत्रीय दलों के साथ तो है, लेकिन वे स्वर दिल्ली तक नहीं पहुंच पाते. अगर कभी दिल्ली की ओर रूख भी करते हैं तो उसमें शिष्टाचार से आगे बात बढ़ ही नहीं पाती और राजनीतिक का स्कोप ही खत्म हो जाता है. सोनिया गांधी विपक्ष को साथ लाकर किसी एक प्लेटफॉर्म पर इकट्ठा करने की कोशिश तो कर रही हैं, लेकिन कदम कदम पर राहुल गांधी को क्रेडिट देने का मोह सब पर पानी फेर देता है. भीलावाड़ा मॉडल का केस तो बिलकुल ताजा ताजा ही है.
यूपी में 1000 बसें भेजने को लेकर प्रियंका गांधी 72 घंटे से ज्यादा लगातार चर्चा में जरूर नहीं, लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को ज्यादा गुस्सा राहुल गांधी के दिल्ली के सुखदेव विहार फ्लाई ओवर पर पहुंच कर मजदूरों से मुलाकात कर उनके घर जाने के लिए गाडियों का इंतजाम करने को लेकर रहा. निर्मला सीतारमण ने कहा भी कि अगर राहुल गांधी कुछ दूर मजदूरों का सूटकेस लेकर चले होते तो कुछ बात भी होती - वो तो मजदूरों का वक्त ही बर्बाद करने गये थे.
20 लाख करोड़ वाले पैकेज पर अपनी प्रेस कांफ्रेंस के दौरान ही निर्मला सीतारमण ने राहुल गांधी को जिम्मेदारी समझने और सोनिया गांधी को भी सलाह दी - 'वो हमसे बात करें.' लेकिन सोनिया गांधी और राहुल गांधी की अलग ही शिकायत है - बात करने का फायदा ही क्या है. कोई बात तो सुनता नहीं. इतने सारे सुझाव लिख कर भेजे. लॉकडाउन बेकार की चीज है बोल बोल कर थक गये. टेस्टिंग कराओ कब से चिल्ला रहे हैं. पैसे डायरेक्ट ट्रांसफर करो. NYAY स्कीम लागू करो. कुछ देर के लिए ही लागू करो, लेकिन लागू कर दो ना प्लीज - लेकिन कोई फायदा नहीं ये सरकार तो सुनने को ही तैयार नहीं है.
इन्हें भी पढ़ें :
Priyanka Vadra की बस पॉलिटिक्स में राहुल और सोनिया गांधी के लिए भी बड़े सबक हैं
मजदूरों के किराये पर सोनिया गांधी के पास बरसने का मौका था गरजने में ही गंवा दिया
Kejriwal की नयी राजनैतिक शैली कहीं उनकी मुसीबत न बन जाये
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.