पाकिस्तानी आर्मी चीफ (Pak army chief) जनरल कमर जावेद बाजवा (Qamar Javed Bajwa) अपने देश की सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के कारण मुसीबत में हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा का कार्यकाल तीन साल बढ़ाने के फैसले को निलंबित कर दिया है. ध्यान रहे कि ये फैसला बाजवा के 29 नवंबर को रिटायर होने से ठीक पहले आया है. मामला अदालत ले जाने की वजह रियाज राही नाम के व्यक्ति को माना जा रहा है, राही ने ही बाजवा के कार्याकाल को बढ़ाए जाने को बड़ा मुद्दा बनाया था और सरकार के इस फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल की थी.ज्ञात हो कि बाजवा का कार्यकाल बढ़ाए जाने की बात पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) और उनकी सरकार की खूब किरकिरी हो रही है. माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला बाजवा के साथ साथ इमरान खान की सत्ता तक को प्रभावित करेगा. इमरान खान के लिए ये मामला कितना पेचीदा हो गया है इसे हम सुप्रीम कोर्ट के उन प्रश्नों से भी समझ सकते हैं जिनमें उनपर आरोप लगा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री के अधिकारों का गलत इस्तेमाल किया. कोर्ट ने सवाल उठाया कि कार्यकाल के किसी भी विस्तार पर कोई भी अधिसूचना COAS के वर्तमान कार्यकाल के पूरा होने के बाद ही जारी की जा सकती है, जो 28 नवंबर 2019 को समाप्त Kहो रही है.
मामले पर सरकार के बचाव में पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल आए हैं. जिन्होंने कहा है कि बाजवा के कार्यकाल में विस्तार देश की वर्तमान सुरक्षा स्थिति को देखते हुए किया गया था. अब भले ही इस मामले पर सरकार की तरफ से लाख तर्क पेश किये जाएं. लेकिन ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि इमरान खान से जाने अनजाने एक ऐसी चूक हो गई है जिसका खामियाजा उन्हें...
पाकिस्तानी आर्मी चीफ (Pak army chief) जनरल कमर जावेद बाजवा (Qamar Javed Bajwa) अपने देश की सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के कारण मुसीबत में हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा का कार्यकाल तीन साल बढ़ाने के फैसले को निलंबित कर दिया है. ध्यान रहे कि ये फैसला बाजवा के 29 नवंबर को रिटायर होने से ठीक पहले आया है. मामला अदालत ले जाने की वजह रियाज राही नाम के व्यक्ति को माना जा रहा है, राही ने ही बाजवा के कार्याकाल को बढ़ाए जाने को बड़ा मुद्दा बनाया था और सरकार के इस फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल की थी.ज्ञात हो कि बाजवा का कार्यकाल बढ़ाए जाने की बात पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) और उनकी सरकार की खूब किरकिरी हो रही है. माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला बाजवा के साथ साथ इमरान खान की सत्ता तक को प्रभावित करेगा. इमरान खान के लिए ये मामला कितना पेचीदा हो गया है इसे हम सुप्रीम कोर्ट के उन प्रश्नों से भी समझ सकते हैं जिनमें उनपर आरोप लगा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री के अधिकारों का गलत इस्तेमाल किया. कोर्ट ने सवाल उठाया कि कार्यकाल के किसी भी विस्तार पर कोई भी अधिसूचना COAS के वर्तमान कार्यकाल के पूरा होने के बाद ही जारी की जा सकती है, जो 28 नवंबर 2019 को समाप्त Kहो रही है.
मामले पर सरकार के बचाव में पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल आए हैं. जिन्होंने कहा है कि बाजवा के कार्यकाल में विस्तार देश की वर्तमान सुरक्षा स्थिति को देखते हुए किया गया था. अब भले ही इस मामले पर सरकार की तरफ से लाख तर्क पेश किये जाएं. लेकिन ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि इमरान खान से जाने अनजाने एक ऐसी चूक हो गई है जिसका खामियाजा उन्हें अपनी सत्ता गंवा कर भुगतना पड़ सकता है.
बात बाजवा के कार्यकाल बढ़ाने और उसपर मचे बवाल की चल रही है. तो हमें ये भी समझना होगा कि आखिर इमरान खान ने क्यों एक ऐसा फैसला लिया जिसके दूरगामी परिणाम आज उनकी राह का रोड़ा बने हैं? तो इस सवाल का जवाब है, इमरान के राजनीतिक जीवन में बाजवा की निर्भरता. आज पाकिस्तान में जिस मुकाम पर बाजवा है. और ऐसा उनका रुतबा है. ये कहना बिलकुल भी गलत नहीं है कि उन्होंने सेना प्रमुख के साथ साथ वो तमाम काम किये जो इमरान खान और उनकी सत्ता के लिए उस वक़्त जरूरी थे. जब पाकिस्तान बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा और कर्जे को लेकर विपक्ष के निशाने पर था.
बाजवा पाकिस्तान की सुरक्षा में तो लगे ही थे. साथ ही वो प्रधानमंत्री इमरान खान की संकट में लगी नैया को पार लगाने के लिए विदेश मंत्री, गृह मंत्री, कानून मंत्री जैसी भूमिकाएं भी समय समय पर निभाते रहे हैं. बाजवा देश के लिए कितने जरूरी है? इसे हम उनकी व्यापारियों और उद्यमियों से मुलाकात से भी समझ सकते हैं. वहीं बात जब मुल्क की गिरती अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए धन जुटाने की आती है तो वो चीन और ईरान जैसे देशों से आर्थिक मदद लेते हुए भी दिखाई देते हैं.
ध्यान रहे कि जिस वक़्त इमरान खान की तरफ से बाजवा का कार्यकाल बढ़ाया गया, किसी से कोई सलाह मशवरा नहीं लिया गया. पाकिस्तान के पीएम कार्यालय से जो सूचना इस संबंध में जारी हुई यदि उसपर गौर करें तो मिलता है कि ये फैसला खुद इमरान ने किया. इमरान ने इसके लिए सुरक्षा का हवाला दिया था. बात अगर ऐसी किसी अधिसूचना की हो तो बता दें कि ये अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास है. यदि पाकिस्तानी राष्ट्रपति डॉक्टर आरीफ अल्वी को ऐसा कुछ करना था तो बाकायदा इसपर चर्चा होती. मंत्रियों के हस्ताक्षर लिए जाते. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. इमरान ने खुद ही सारे फैसले लेकर ये बता दिया कि बाजवा उनके लिए वो हड्डी हैं जिसे न तो वो निगल पा रहे हैं और न ही उगल पा रहे हैं.
गौरतलब है कि 2018 में जिस वक़्त इमरान ने सत्ता संभाली उन्हें सेना और न्यायपालिका दोनों का समर्थन मिला. ऐसा बिलकुल नहीं है कि सुरक्षा कारणों के चलते इमरान ने बाजवा का कार्यकाल बढ़ाया है. पाकिस्तान का एक बड़ा वर्ग है जिसका मानना है कि बिना बाजवा के इमरान किसी काम के नहीं हैं. इमरान को लेकर पाकिस्तान में कहा तो यहां तक जाता है कि इमरान वो कठपुतली हैं जिसे सेना विशेषकर बाजवा अपनी अंगुलियों पर नचा रहे हैं.
पहले भी ऐसे कई मौके आए हैं जब सार्वजनिक मंच से इमरान ने बाजवा की तारीफ की और कहा कि मेरी तरह बाजवा भी नए पाकिस्तान के प्रबल समर्थक हैं. दिलचस्प बात ये है कि इमरान के इस नए पाकिस्तान के कॉन्सेप्ट ने पूरे मुल्क का बुरा हाल कर रखा है. पाकिस्तान अपने लोगों को बुनियादी चीजें जैसे शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य नहीं मुहैया करा पा रहा है. बात अगर देश की अर्थव्यवस्था की हो तो पाकिस्तान भयंकर इकोनॉमिक क्राइसिस से जूझ रहा है. देश कर्जे के बोझ तले इस हद तक दबा हुआ है कि आज उसकी जीडीपी भी इसकी चपेट में आ गई है.
पाकिस्तान के इस हालत पर पाकिस्तानी पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का एक वर्ग वो भी है जिसका मानना है कि आज पाकिस्तान के जो हालात हैं उसकी वजह इमरान खान तो हैं ही साथ ही इसमें बाजवा की भी एक अहम भूमिका है. बाजवा के कारण ही आज मुल्क खस्ताहाली की भेंट चढ़ा है. बाजवा को लेकर पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का ये भी मत है कि आर्थिक मदद के लिए यहां वहां दौड़ना आर्मी चीफ का काम नहीं है लेकिन इसके बावजूद बाजवा यहां वहां मुंह मार रहे हैं.
पैसों के लिए बाजवा का चीन, सऊदी अरब और यूएई जाना इस बात के साफ़ संकेत दे देता है कि अगर आज पाकिस्तान गर्त के अंधेरों में जा रहा है तो इसकी एक बड़ी वजह बाजवा हैं.
बहरहाल अब जबकि बात इमरान और उनकी कार्यप्रणाली पर आ गई है. तो देखना दिलचस्प रहेगा कि वो ऐसा क्या करते हैं जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. कह सकते हैं पाकिस्तान के सन्दर्भ में बाजवा और इमरान एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. बाकी पद के लिहाज से इमरान बड़े हैं साथ ही वो महत्वकांशी भी हैं. वो बाजवा रूपी ये हड्डी निगलते हैं या फिर उगलते हैं जवाब वक़्त देगा. लेकिन जो वर्तमान है वो ये खुद-ब-खुद बता रहा है कि यदि बाजवा डूबे तो फिर इमरान भी कहीं के नहीं बचेंगे. बातें तो इमरान सरकार के तख्तापलट की भी हो रही हैं.
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