सियासत के सफर में पड़ाव तो बहुत ही होते हैं, मगर मंजिल सिर्फ सत्ता होती है. सत्ता हासिल करने के लिए सारे तिकड़म पेशे का हिस्सा होते हैं. सत्ता हासिल करने के लिए इमरान अहमद खान नियाजी ने वो हर मुमकिन कोशिश की जो उन्हें मंजिल के करीब करने में मददगार साबित हो. नवाज को आउट करने के लिए उन्हें मोदी की भाषा बोलने वाला बताया, कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए इस्लामिक वेलफेयर स्टेट के ख्वाब दिखाये और बाकियों के लिए नये पाकिस्तान का झुनझुना.
करगिल विजय दिवस की 19वीं सालगिरह पर मुशर्रफ की विरासत को आगे बढ़ाने जा रहे इमरान खान ने जिस पेशेवराना अंदाज में क्रिकेट खेला सियासत में भी उन्होंने वही फॉर्मूले अप्लाई किये. ऐसे में सत्ता की कुर्सी पर बैठने के बाद अगर इमरान खान पहला ओवर फेंकते हैं तो उनका हर बॉल कैसा होगा - आइये देखते हैं.
पहली गेंद - 'स्लो बॉल'
तेज गेंदबाजी के लिए मशहूर रहे इमरान खान के लिए पहली गेंद इससे बेहतर नहीं हो सकती. जो दुश्मन को छकाये, कुर्सी पर बिठाने वाली फौज को भी कन्फूजन में रखे और अवाम को भी नये पाकिस्तान के सपने से बाहर निकलने का मौका न दे.
तेज गेंदबाज दुश्मन को छकाने के मकसद से यह गेंद फेंकता है और जिसमें बल्लेबाज की गलती करने की काफी ज्यादा गुंजाइश होती है. इसी गलती के आधार पर इमरान खान अपना पैर मजबूत करते जाएंगे. जरूरी नहीं कि अब तक फौज की नजर में रहा भारत ही सबसे बड़ा दुश्मन हो. हो सकता है नये पाकिस्तान में भारत के लिए कोई अलग भी जगह बनी हुई हो.
वैसे इमरान के दूसरा में चीन का बड़ा रोल नजर आता है. पहले भी पाकिस्तानी हुक्मरान चीन की तरफ बड़ी उम्मीद से देखते रहे हैं और पाकिस्तान को चीन बेहतरीन से भी बेहतरीन...
सियासत के सफर में पड़ाव तो बहुत ही होते हैं, मगर मंजिल सिर्फ सत्ता होती है. सत्ता हासिल करने के लिए सारे तिकड़म पेशे का हिस्सा होते हैं. सत्ता हासिल करने के लिए इमरान अहमद खान नियाजी ने वो हर मुमकिन कोशिश की जो उन्हें मंजिल के करीब करने में मददगार साबित हो. नवाज को आउट करने के लिए उन्हें मोदी की भाषा बोलने वाला बताया, कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए इस्लामिक वेलफेयर स्टेट के ख्वाब दिखाये और बाकियों के लिए नये पाकिस्तान का झुनझुना.
करगिल विजय दिवस की 19वीं सालगिरह पर मुशर्रफ की विरासत को आगे बढ़ाने जा रहे इमरान खान ने जिस पेशेवराना अंदाज में क्रिकेट खेला सियासत में भी उन्होंने वही फॉर्मूले अप्लाई किये. ऐसे में सत्ता की कुर्सी पर बैठने के बाद अगर इमरान खान पहला ओवर फेंकते हैं तो उनका हर बॉल कैसा होगा - आइये देखते हैं.
पहली गेंद - 'स्लो बॉल'
तेज गेंदबाजी के लिए मशहूर रहे इमरान खान के लिए पहली गेंद इससे बेहतर नहीं हो सकती. जो दुश्मन को छकाये, कुर्सी पर बिठाने वाली फौज को भी कन्फूजन में रखे और अवाम को भी नये पाकिस्तान के सपने से बाहर निकलने का मौका न दे.
तेज गेंदबाज दुश्मन को छकाने के मकसद से यह गेंद फेंकता है और जिसमें बल्लेबाज की गलती करने की काफी ज्यादा गुंजाइश होती है. इसी गलती के आधार पर इमरान खान अपना पैर मजबूत करते जाएंगे. जरूरी नहीं कि अब तक फौज की नजर में रहा भारत ही सबसे बड़ा दुश्मन हो. हो सकता है नये पाकिस्तान में भारत के लिए कोई अलग भी जगह बनी हुई हो.
वैसे इमरान के दूसरा में चीन का बड़ा रोल नजर आता है. पहले भी पाकिस्तानी हुक्मरान चीन की तरफ बड़ी उम्मीद से देखते रहे हैं और पाकिस्तान को चीन बेहतरीन से भी बेहतरीन दोस्त बताता रहा है. एक बार फिर, ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा ले रहे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इमरान खान को बेस्ट फ्रेंड बताया है. शी जिनपिंग ने ये बाद तब कही है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जोहानिसबर्ग पहुंचे हुए हैं. अब तक ऐसे मौकों पर मोदी सरहद पार से आतंकवाद को बढ़ावा देने की बात जोर देकर कहते आये हैं - और इसमें भारत को बाकी मुल्कों का साथ भी मिला है.
दूसरी गेंद - 'यॉर्कर'
एक धीमी गेंद के बाद वैसे तो इमरान खान के पास बाउंसर का ऑप्शन शुरू से होगा, लेकिन दूसरी गेंद वो यॉर्कर ही चुनेंगे, ऐसा लगता है. भारतीय राजनीति में जो रोल सर्जिकल स्ट्राइक का है, पाकिस्तान की सियासत में कश्मीर की भूमिका उसके मुकाबले गुना ज्यादा रही है. जिस तरह भारत में कई नेता हिंदुओं को कितना बच्चा पैदा करना चाहिये जैसे बयान देकर अपनी राजनीति चमकाये रहते हैं, पाकिस्तान में राग कश्मीर ऐसा है जिसे गाने बजाने के लिए न तो दोपहर का इंतजार करना होता है, न भोर के वक्त का. सियासत की सूफियाना शैली में भी राग कश्मीर सदाबहार फील देता है. इमरान खान भी पूरी तरह औकात में आने से पहले जब तक चाहें बड़े आराम से कश्मीर में अपने नॉन स्टेट एक्टर्स की पीठ ठोक कर अपनी कुर्सी बचाये रख सकते हैं. जिन नवाज शरीफ को इमरान प्रधानमंत्री मोदी की भाषा बोलने वाला बताते रहे हैं, उन्हीं नवाज शरीफ ने तो संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर में इंतिफदा के जिक्र के साथ हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी का नाम लिया था.
कश्मीर में इमरान के आ जाने के बाद आईएसआई की एक्टिविटी निश्चित रूप से बढ़ेगी - क्योंकि इमरान न तो भारत के साथ बातचीत के पक्षधर रहने वाले हैं और न ही कारोबार के. यॉर्कर में गेंद बैट्समैन के पैरों के इर्द-गिर्द गिरायी जाती है, इमरान का भी इरादा वैसा ही कुछ होगा. भारत को सतर्क रहने की जरूरत है.
तीसरी गेंद - 'इन-स्विंग'
क्रिकेट में कम दिलचस्पी लेने वालों के लिए इसमें गूगल की कोई भूमिका तलाशने की जरूरत नहीं है. वैसे तो अपने क्रिकेट काल में इमरान ने हर तरह की स्विंग बॉलिंग के मशहूर थे, लेकिन उनकी इन-स्विंगर कुछ अलग थी. प्रधानमंत्री के नये रोल में वो इसे फिर आजमाने की कोशिश करेंगे.
इमरान खान का टारगेट तो भारत होगा लेकिन वो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खासकर पश्चिमी मुल्कों को इसके जरिये चौंकाने की कोशिश करेंगे. जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह की मांग इमरान खान की ओर से डाली जाने वाली तेज इन-स्विंगर ही होगी. ये मांग उठाकर इमरान खान अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत में हो रही ज्यादाती की बात करते रहेंगे और पाकिस्तानी आर्मी को लगेगा वो सरकार रिमोट कंट्रोल से ही चला रही है.
चौथी गेंद - 'बीमर'
बीमर को क्रिकेट की अवैध कैटेगरी में रखा गया है. इमरान के सामने भी कुछ चुनौतियां ऐसी हैं जिनसे लीगल तरीके से निबटना उनके वश की बात नहीं होगी. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में कुलभूषण जाधव का मामला भी कुछ ऐसा ही है. कुलभूषण के मामले में पाकिस्तान की अब तक की सारी दलीलें खारिज हो चुकी हैं.
कुलभूषण के मामले में पाकिस्तान ने बड़े से बड़े वकीलों की फौज हायर की, लेकिन भारत के हरीश साल्वे के आगे सबको घुटने टेकने पड़े. भारत की कोशिशों की बदौलत कुलभूषण की फांसी पर तो रोक लगी ही, जस्टिस दलबीर भंडारी को भी एक्सटेंशन मिल गया.
इमरान के सामने कुलभूषण मामले में पाकिस्तान की खोई हुई प्रतिष्ठा दिलाने की चुनौती होगी. मामला इतना गंभीर हो तो इमरान भला बीमर के इस्तेमाल से क्यों हिचकेंगे.
पांचवीं गेंद - 'बाउंसर'
इमरान खान अपने जमाने के तेज गेंदबाज रहे हैं और बाउंसर तो ऐसे बॉलर के जेवर जैसा ही होता है. बॉलर के टारगेट पर खड़े शख्स के लिए बाउंसर एक तरह से हमला ही होता है. बाउंसर के हमले में ज्यादातर बचाव की तरकीबें ही काम आती हैं. स्मार्ट बैट्समैन अक्सर तो बाउंसर को जाने देते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो बल्ले को हल्के से छुआ कर बाउंड्री के बाहर भेजने में भी यकीन रखते हैं.
इमरान राज में भी भारत को 26/11 जैसे मुंबई हमलों से सतर्क रहना होगा. इमरान खान से नवाज शरीफ जैसी भी उम्मीद नहीं करनी होगी कि वो कभी पाकिस्तान की भूमिका कबूल भी कर सकते हैं.
पाकिस्तानी अवाम ने भले ही मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद को बेटे और दामाद को नकारते हुए खुदाहाफिज कह दिया हो - इमरान राज में ऐसे तत्वों की फलने फूलने का कहीं से भी कम मौका नहीं रहने वाला.
इमरान खान कट्टरपंथियों के पंसदीदा रहे हैं क्योंकि वो डंके की चोट पर नये पाकिस्तान के साथ साथ इस्लामिक वेलफेयर स्टेट की भी वकालत करते रहे हैं. ऐसे में भारत को घात लगाकर होने वाले हमलों से भी पूरी सतर्कता बरतने की जरूरत होगी.
छठी गेंद - 'रिवर्स स्विंग'
इमरान खान फौजी हुकूमत के लेटेस्ट वर्जन हैं - जनरल परवेज मुशर्रफ 2.0. परवेज मुशर्रफ के सत्ता पर कब्जे और इमरान खान को गद्दी पर बिठाने में फर्क सिर्फ नाममात्र का है. असल में ये भी लोकतांत्रिक तरीके से सैनिक तख्तापलट का एडवांस फॉर्म है. फौज ने बड़ी चालाकी से पहले कोर्ट में अपने समर्थक जजों की नियुक्ति करायी. नवाज शरीफ को कानूनी तरीके से संवैधानिक पदों से बेदखल किया - और जनता की अदालत में जा न सके इसका मुकम्मल इंतजाम किया.
इसी दरम्यान इमरान खान भी फौजी मदद के तलबगार बने और दोनों ने एक दूसरे में म्युचुअल फंड की तरह इंवेस्ट किया - नतीजा सामने है. जब इमरान खान करगिल के आर्किटेक्ट परवेज मुशर्रफ के ही आधुनिकतम रूप हैं तो ऐसे कारनामों की आशंका तो मजबूत होती ही है. इमरान खान करगिल जैसे कारनामे दोहराने के लिए रिवर्स स्विंग इस्तेमाल करेंगे ही, ये मान कर भारत को डिटरेंट के इंतजाम कर लेने चाहिये.
ऑल-राउंटर इमरान का छक्का
कामयाब बॉलर होने के साथ साथ इमरान खान बेहतरीन ऑलराउंडर भी रहे हैं. आखिरी बॉल पर छक्का जड़ने की मिसाल भले ही जावेद मियांदाद की दी जाती हो, लेकिन इमरान उनके कहीं आगे खड़े होते हैं.
इमरान खान को कामयाबी तभी मिली है जब वो ढलान से गुजर रहे होते हैं. चालीस साल के हो चले इमरान खान ने 1992 में क्रिकेट वर्ल्ड कप तब जीता जब उनकी क्रिकेट पारी खत्म हो रही थी - और एक बार फिर जब उम्र ढलान पर रही तो मुल्क के वजीर-ए-आजम बनने जा रहे हैं.
इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी अस्तित्व में आने के 26 साल बाद सत्ता पर काबिज होने जा रही है - और वो भी नवाज शरीफ से लेकर हाफिज सईद जैसों को पछाड़ते हुए.
...और फिर नो बॉल!
इमरान खान बगैर खाता खोले आउट हो जाते अगर फौज के फुल टॉस पर आगे बढ़ कर न खेलने का फैसला न किया होता. कैच आउट होने का पूरा खतरा उठाते हुए इमरान ने फौज के साथ डील ऐसी पक्की कर ली थी कि शहबाज शरीफ और बिलावल भुट्टो के हाउज-दैट के शोर के बावजूद थर्ड अंपायर ISI के मुंह से बस इतना ही निकला - 'नो बॉल'.
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