पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में इमरान खान और वर्तमान पीएम शहबाज शरीफ के बीच की अदावत किसी परिचय की मोहताज नहीं थी. दोनों ही हुक्मरानों के बीच अदावत का आलम क्या अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान की हुकूमत ने वहां के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इमरान खान की स्पीच या फिर पत्रकार वार्ता पर तत्काल प्रभाव में रोक लगा दी है. हुकूमत की तरफ से एक आदेश पारित हुआ है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को निर्देशित किया गया है कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान से जुड़े किसी भी वीडियो चाहे वो लाइव हो या पूर्व में रिकॉर्ड किया गया हो उसे प्रसारित नहीं किया जाएगा.
इमरान के खिलाफ सरकार का ये रुख यूं ही नहीं है. दरअसल अभी बीते दिनों ही पाकिस्तान पुलिस इमरान खान को गिरफ्तार करने लाहौर स्थित उनके घर पहुंची थी. मगर उसे बताया गया कि इमरान घर पर नहीं हैं. बाद में इस बात का खुलासा हुआ कि इमरान घर पर ही थे और जांच से बचने के लिए उन्होंने झूठ का सहारा लिया. मामले में दिलचस्प ये भी रहा कि पूर्व पीएम ने तोशखाना मामले में गिरफ्तारी से बचने के लिए सरकारी संस्थानों को निशाने पर भी लिया.
एक तरफ पाकिस्तान में इमरान खान और उनकी गिरफ्तारी के प्रयास सुर्खियां बटोर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ वर्तमान पीएम शहबाज शरीफ हैं जिनके सत्ता में आने के बाद से ही पाकिस्तान की हालत बद से बदतर है. चाहे वो बेरोजगारी और महंगाई हो या फिर हमले और उनमें जान गंवाते आम लोग पाकिस्तान में शहबाज के सत्ता संभालने के बाद ऐसा बहुत कुछ हो गया है जो मुल्क की लगातार होती किरकिरी का कारण है. सवाल ये है कि अगर पाकिस्तान के हालात ख़राब हैं तो क्या इसका कारण क्या है?
जवाब के स्वरूप में हम इमरान...
पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में इमरान खान और वर्तमान पीएम शहबाज शरीफ के बीच की अदावत किसी परिचय की मोहताज नहीं थी. दोनों ही हुक्मरानों के बीच अदावत का आलम क्या अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान की हुकूमत ने वहां के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इमरान खान की स्पीच या फिर पत्रकार वार्ता पर तत्काल प्रभाव में रोक लगा दी है. हुकूमत की तरफ से एक आदेश पारित हुआ है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को निर्देशित किया गया है कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान से जुड़े किसी भी वीडियो चाहे वो लाइव हो या पूर्व में रिकॉर्ड किया गया हो उसे प्रसारित नहीं किया जाएगा.
इमरान के खिलाफ सरकार का ये रुख यूं ही नहीं है. दरअसल अभी बीते दिनों ही पाकिस्तान पुलिस इमरान खान को गिरफ्तार करने लाहौर स्थित उनके घर पहुंची थी. मगर उसे बताया गया कि इमरान घर पर नहीं हैं. बाद में इस बात का खुलासा हुआ कि इमरान घर पर ही थे और जांच से बचने के लिए उन्होंने झूठ का सहारा लिया. मामले में दिलचस्प ये भी रहा कि पूर्व पीएम ने तोशखाना मामले में गिरफ्तारी से बचने के लिए सरकारी संस्थानों को निशाने पर भी लिया.
एक तरफ पाकिस्तान में इमरान खान और उनकी गिरफ्तारी के प्रयास सुर्खियां बटोर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ वर्तमान पीएम शहबाज शरीफ हैं जिनके सत्ता में आने के बाद से ही पाकिस्तान की हालत बद से बदतर है. चाहे वो बेरोजगारी और महंगाई हो या फिर हमले और उनमें जान गंवाते आम लोग पाकिस्तान में शहबाज के सत्ता संभालने के बाद ऐसा बहुत कुछ हो गया है जो मुल्क की लगातार होती किरकिरी का कारण है. सवाल ये है कि अगर पाकिस्तान के हालात ख़राब हैं तो क्या इसका कारण क्या है?
जवाब के स्वरूप में हम इमरान और शाहबाज के बीच के गतिरोध को जिम्मेदार मान सकते हैं और देखा जाए तो ये एक ऐसा सत्य है जिसे किसी भी सूरत पर नाकारा नहीं जा सकता. लचर कानून व्यवस्था और अपने हुक्मरानों की बदौलत जिन चुनौतियों का सामना किया है तमाम कारण हैं जो एक मुल्क के रूप में पाकिस्तान की खस्ताहाली के लिए जिम्मेदार हैं.
आइये नजर डालते हैं उन चार चुनौतियों पर जिनको जानने के बाद इस बाद की पुष्टि स्वतः ही हो जाएगी कि यदि पाकिस्तान बर्बाद हुआ तो वजह एक दो नहीं कई हैं. जिक्र पाकिस्तान की बर्बादी का हुआ है तो आगे कुछ कहने से पहले हम इतना जरूर कहना चाहेंगे कि अगर मौजूदा वक़्त में पाकिस्तान बर्बाद हुआ तो हर चुनौती दूसरी चुनौती से लिंक है और किसी को भी ख़ारिज नहीं किया जा सकता.
धार्मिक संकट
भले ही आस्था इंसान को सकारात्मक बनाती हो. मगर अत्याधिक धार्मिक होना कैसे एक देश के विकास में बाधा डाल सकता है इसे समझने के लिए पाकिस्तान से बेहतर शायद ही कुछ हो. आज जैसे हाल पाकिस्तान के हैं वहां मुसलमानों ने अपने को आपस में बांट लिया है. मतलब शिया सुन्नी का बंटवारा तो पहले ही मुसलमानों में था लेकिन पाकिस्तान में स्थिति दूसरी है. यहां शिया हैं, अहमदिया हैं, सुन्नी हैं, देवबंदी और बरेलवी हैं.
जैसा कि अब तक देखा गया यहां सरकार ने भी उसका साथ दिया जो मेजॉरिटी में था. नतीजा ये निकला कि मेजॉरिटी ने माइनॉरिटी का शोषण करना शुरू कर दिया और आज हाल ऐसे हैं कि चाहे वो शिया हों या अहमदिया इन्हें वैसे ही देखा जाता है जैसे पाकिस्तान सिखों और हिन्दुओं को देखता है.
पाकिस्तान में चाहे वो वर्तमान की सरकार हो या फिर पूर्व की सरकारें उनका सारा समय मेजॉरिटी के तुष्टिकरण पर बीता और नतीजे के स्वरूप में हम अपने सामने वो पाकिस्तान देख रहे हैं जो न माइनॉरिटी को साध पाया न ही उसने कभी कुछ अपने देश में रहने वाले अल्पसंख्यकों के लिए किया.
आर्थिक संकट
पाकिस्तान बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है. खास चीजें तो छोड़ ही दीजिये. आम सी चीजें, रोज इस्तेमाल की जानें वाली चीजें भी देश के आम आदमी की पहुंच से दूर हैं. लोग दाने दाने को मोहताज हैं और कई मामले ऐसे भी आए हैं जहां रोटी के लिए, गेहूं के लिए लोगों को हिंसा को अंजाम देते देखा गया है. चाहे वो इमरान द्वारा लिया गया कर्ज हो या फिर दुनिया के सामने झोली फैलाए शहबाज.
जब हम पाकिस्तान के मौजूदा हालात को देखते हैं तो मिलता है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का भट्ठा बिलकुल बैठ चुका है. मुल्क में भारी अस्थिरता है और ये सिर्फ इसलिए है क्योंकि हुक्मरानों की बदौलत पाकिस्तान का सरकारी खजाना बिलकुल खाली हो चुका है.
आतंकी संकट
1947 में पाकिस्तान बनने से लेकर अब तक जिस चीज़ ने एक देश के रूप में पाकिस्तान की कमर तोड़ कर रख दी है वो आतंकवाद है. पहले पाकिस्तान पोषित आतंकी देश से बाहर अपना कहर बरपाते थे. और आज जैसे हाल हैं पाकिस्तान अपने ही बिछाए जाल में फँस गया है. अभी बीते दिनों पेशावर की मस्जिद में हुए बम धमाके से लेकर बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वां तक, आतंकी और अलगाववादी लगातार दीमक की तरह मुल्क को चाट रहे हैं.
चाहे वो इमरान खान और उनके पहले के प्रधानमंत्री रहे हों या फिर शरीफ जिस तरह पाकिस्तान के हुक्मरान अपने मंचों से आतंकियों को पनाह देते हैं कहना गलत नहीं है कि पाकिस्तानी नेताओं द्वारा की जा रही सियासत का अभिन्न हिस्सा हैं आतंकवादी. नेता वहां इस बात को समझते हैं कि बिना उनकी क्षरण के राजनीति संभव नहीं है. कुल मिलाकर कहा यही जा सकता है कि यदि आज विश्व पटल पर पाकिस्तान की थू थू या किरकिरी हो रही है तो वजह मुल्क के अंदर फैला आतंकवाद है. आज पाकिस्तान चाह कर भी आतंकवाद से अपना पिंड नहीं छुड़ा सकता.
सियासी संकट
जैसा कि शुरुआत में ही हमने इस बात की पुष्टि की थी आज इमरान खान और शहबाज शरीफ के बीच रिश्ता सांप और नेवले सरीखा है. मुल्क की ख़राब हालत के लिए इमरान, शहबाज को जिम्मेदार ठहराते हैं तो वहीं ऐसा ही मि;लता जुलता हाल शहबाज का भी है. सवाल ये है कि क्या मुल्क अगर गर्त के अंधेरों में जा रहा है तो वजह इमरान और शहबाज ही हैं?
जवाब है नहीं. मुल्क में में जो जो प्रधानमंत्री बना उस उसने अपने हिसाब से शासन चलाया और लूट घसोट की. यानी कोई कुछ लेकर गया तो फिर जब कोई दूसरा सत्ता में आया उसने पहले वाले की अपेक्षा और अधिक लूट की.
पाकिस्तान में सियासत करने वाले नेताओं को इससे फर्क नहीं पड़ा कि उनकी लूट घसोट का जनता पर सीधा असर क्या होगा? लोग भी इसे नजरअंदाज करते रहे आज नौबत क्या है? इसपर बात करने की कोई बहुत ज्यादा जरूरत नहीं है.
सुरक्षा संकट
ये बात तो जगजाहिर है कि पाकिस्तान में जब सरकार बदलती है तो सब कुछ बदलता है. सब का मतलब यहां सब से है. सेना से भी और सुरक्षा एजेंसियों से भी. यानी आज जो शहबाज के समय सेनाध्यक्ष है, सवाल ही नहीं कि अगर कल की तारीख में मुल्क का निजाम इमरान खान के पास आए तो वही सेना की कमान अपने हाथों में रहेगा. ऐसा ही मिलता जुलता हाल बाकी की एजेंसियों का भी है. अगर मुल्क आंतरिक गतिरोध का सामना कर रहा है तो उसके पीछे लाख दलीलें दे दी जाएं लेकिन एक बड़ा कारण यही है.
पाकिस्तान में एक के बाद एक घटनाएं हो रही हैं और सुरक्षा एजेंसियों और सेना को उसका कोई इल्म नहीं है. तो कहा यही जाएगा कि पाकिस्तान आज वही काट रहा है जो उसने बोया है.
फ़िलहाल इमरान का बोया शहबाज काट रहे हैं और जो खिजलाहट है वो बस यही है कि इमरान ने सरकारी खजाने का तो दुरूपयोग तो किया ही साथ ही साथ उन्होंने तोशखाना को भुई डकार लिया और सांस तक नहीं ली.
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