पाकिस्तान में दो 'नियाजी' कप्तान हैं. एक हैं खुद Imran Khan 'नियाजी', जो पूरे पाकिस्तान की कप्तानी कर रहे हैं, तो दूसरे हैं Misbah-ul-Haq 'नियाजी', जो पाकिस्तान क्रिकेट टीम के मुख्य कोच और चयनकर्ता दोनों हैं. कहें तो पाक टीम का सर्वेसर्वा वही हैं. लेकिन पाकिस्तान के इन दोनों नियाजियों का नसीब एक जैसा है. पाकिस्तान के 'कप्तान' इमरान खान ने जनता से देश का कायापलट कर 'नया पाकिस्तान' बनाने का वादा किया था. कुछ इसी तर्ज पर मिस्बाह उल हक ने भी पाक क्रिकेट का कायापलट कर दुनिया की बेस्ट टीम बनाने का दम भरा था, लेकिन हो रहा है ठीक उल्टा. एक तरफ इमरान खान तमाम मोर्चों पर फेल साबित हो रहे हैं तो दूसरी तरफ मिस्बाह उल हक की हवा भी निकल गयी है. पाकिस्तान को श्रीलंका की दोयम दर्जे की टीम ने उसी की धरती पर टी-20 सीरीज में सफाया कर दिया है.
फिसड्डी साबित हुए दोनों 'कप्तान'
श्रीलंका के साथ टी-20 के 3 मैचों की सीरीज में पाकिस्तान 3-0 से बुरी तरह पिट गया. जबकि टी-20 रैंकिंग में नंबर-1 पाकिस्तान की टीम, 7वें नंबर के श्रीलंका की दोयम दर्जे की टीम के साथ खेल रही थी, क्योंकि श्रीलंकाई टीम के 10 बड़े खिलाड़ी पाकिस्तान दौरे पर आए ही नहीं थे. इसके बावजूद पाकिस्तानी टीम अपनी ही धरती अपनी लाज बचाने में नाकाम रही. बतौर मुख्य कोच और चयनकर्ता मिस्बाह की ये पहली सीरीज थी. यानी मिस्बाह उल हक अपने पहले ही परीक्षा में पूरी तरह फेल साबित हुए. कोच बनने के बाद मिस्बाह ने टीम को पूरी तरह बदल देने की बात कही थी. इसके लिए उन्होंने सभी क्रिकेटर्स को भारी और तला-गला खाना खाने पर रोक लगा दी. खिलाड़ियों में अनुशासन के लिए कई नियम बनाए, टीम में कई बदलाव भी किए, लेकिन काम कुछ नहीं आया. जब बात परफॉर्मेंस की आई तो पाकिस्तानी टीम चोकर साबित हुई.
पाकिस्तान में दो 'नियाजी' कप्तान हैं. एक हैं खुद Imran Khan 'नियाजी', जो पूरे पाकिस्तान की कप्तानी कर रहे हैं, तो दूसरे हैं Misbah-ul-Haq 'नियाजी', जो पाकिस्तान क्रिकेट टीम के मुख्य कोच और चयनकर्ता दोनों हैं. कहें तो पाक टीम का सर्वेसर्वा वही हैं. लेकिन पाकिस्तान के इन दोनों नियाजियों का नसीब एक जैसा है. पाकिस्तान के 'कप्तान' इमरान खान ने जनता से देश का कायापलट कर 'नया पाकिस्तान' बनाने का वादा किया था. कुछ इसी तर्ज पर मिस्बाह उल हक ने भी पाक क्रिकेट का कायापलट कर दुनिया की बेस्ट टीम बनाने का दम भरा था, लेकिन हो रहा है ठीक उल्टा. एक तरफ इमरान खान तमाम मोर्चों पर फेल साबित हो रहे हैं तो दूसरी तरफ मिस्बाह उल हक की हवा भी निकल गयी है. पाकिस्तान को श्रीलंका की दोयम दर्जे की टीम ने उसी की धरती पर टी-20 सीरीज में सफाया कर दिया है.
फिसड्डी साबित हुए दोनों 'कप्तान'
श्रीलंका के साथ टी-20 के 3 मैचों की सीरीज में पाकिस्तान 3-0 से बुरी तरह पिट गया. जबकि टी-20 रैंकिंग में नंबर-1 पाकिस्तान की टीम, 7वें नंबर के श्रीलंका की दोयम दर्जे की टीम के साथ खेल रही थी, क्योंकि श्रीलंकाई टीम के 10 बड़े खिलाड़ी पाकिस्तान दौरे पर आए ही नहीं थे. इसके बावजूद पाकिस्तानी टीम अपनी ही धरती अपनी लाज बचाने में नाकाम रही. बतौर मुख्य कोच और चयनकर्ता मिस्बाह की ये पहली सीरीज थी. यानी मिस्बाह उल हक अपने पहले ही परीक्षा में पूरी तरह फेल साबित हुए. कोच बनने के बाद मिस्बाह ने टीम को पूरी तरह बदल देने की बात कही थी. इसके लिए उन्होंने सभी क्रिकेटर्स को भारी और तला-गला खाना खाने पर रोक लगा दी. खिलाड़ियों में अनुशासन के लिए कई नियम बनाए, टीम में कई बदलाव भी किए, लेकिन काम कुछ नहीं आया. जब बात परफॉर्मेंस की आई तो पाकिस्तानी टीम चोकर साबित हुई.
इस शर्मिंदगी भरी हार पर मिस्बाह से जब मीडिया ने सवाल पूछा तो वो मीडियाकर्मियों पर ही भड़क गए. उन्होंने रिपोर्टर से ही पूछ लिया कि 'क्या आप ये चाहते हैं कि मैं बाएं हाथ के बल्लेबाज को दाएं हाथ का बना दूं, या बाएं हाथ के गेंदबाज से कहूं कि वो दाएं हाथ से गेंदबाजी करे.' मतलब मिस्बाह को कुछ सूझ ही नहीं रहा है कि वो करें तो क्या करें? बिल्कुल देश के 'कप्तान' इमरान खान की तरह.
इमरान खान की हालत भी कुछ ऐसी ही है. वो पाकिस्तान के लिए धुआंधार बल्लेबाजी करने का दंभ तो खूब भरते हैं, लेकिन हर बार फिसड्डी साबित हो जाते हैं. वो पाकिस्तान से करप्शन खत्म कर देश की दिशा और दशा को बदल देने का दावा कर रहे थे, लेकिन हुआ ठीक उल्टा. भ्रष्टाचार के मामले में पाकिस्तान 180 देशों की सूची अभी भी 117वें स्थान पर है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भी रसातल में चली गई. वहां महंगाई सातवें आसमान पर है, तो बेरोजगारी चरम पर, जिसे जनता त्राहि-त्राहि कर रही है.
इसी तरह इमरान खान खुद को कश्मीर का ब्रांड एम्बेसडर घोषित कर भारत को झुकाने की बात कर रहे थे. उन्होंने पूरी दुनिया के नेताओं के सामने नाक रगड़ ली, यूएन में भारत के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली, ट्रंप से लेकर जिनपिंग तक के सामने खूब गिड़गिड़ाए, लेकिन हुआ ठन-ठन गोपाल. मोदी के सामने किसी की नहीं चली. जिस ट्रंप और जिनपिंग से इमरान आस लगाए बैठे थे, वही मोदी के हाथ में हाथ डालकर घूम रहे हैं.
इसी वजह से खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे के तर्ज पर इमरान खान भी मीडिया पर ही भड़ास निकाल रहे हैं. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि हांगकांग में प्रदर्शन को पूरी दुनिया की मीडिया हेडलाइंस बना रही है, जबकि कश्मीर में हो रहे अत्याचार को नजरअंदाज कर रही है.
इमरान-मिस्बाह में समानताएं
इमरान खान और मिस्बाह में कई समानताएं हैं. दोनों की नसीब शायद इसलिए भी एक जैसी है, क्योंकि दोनों का DNA भी एक ही है. मिस्बाह पीएम इमरान खान के दूर के चचेरे भाई हैं, और नियाजी समुदाय से आते हैं. दोनों को कई चीजें समय से पहले और जरूरत से ज्यादा मिल गयी. जैसे मिस्बाह उल हक को कोचिंग का कोई अनुभव नहीं था, लेकिन वो टीम के मुख्य कोच बन गए. इतना ही नहीं वो टीम के मुख्य चयनकर्ता भी बन गए. क्रिकेट इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था जब एक ही शख्स किसी टीम का चयनकर्ता और कोच दोनों बन गया.
ऐसा इसलिए हुआ कि पाकिस्तान में बड़ा बनने के लिए दो पैरामीटर पर खरे उतरना सबसे ज्यादा जरूरी होता है. वो है सेना और कट्टरपंथियों का हाथ आप पर होना चाहिए. जिसके बाद आप पाकिस्तान में कुछ भी हासिल कर सकते हैं. संयोग से मिस्बाह को भी कजिन इमरान खान के साथ इन दोनों का वरदहस्त हासिल था.
इमरान खान मामला भी कुछ ऐसा ही है. वो सीधे देश के प्रधानमंत्री बन गए, जबकि उनके पास कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं था, लेकिन उन्हें भी सेना और कट्टरपंथियों का वरदहस्त हासिल था. इसलिए दोनों को इलेक्टेड नहीं बल्कि सेलेक्टेड 'कप्तान' माना जाता है. मतलब पाकिस्तान और पाकिस्तानी क्रिकेट टीम की स्टेयरिंग एक ऐसे ड्राइवर के हाथ में दे दिया गया जिसे ड्राइविंग का कोई अनुभव ही नहीं था, इसलिए गाड़ी का एक्सीडेंड होना तो तय था.
अब दोनों 'कप्तान' जब कप्तानी करने में फेल हो गए तो उन्हें हटाने की मांग भी जोर पकड़ने लगी है. एक तरफ मिस्बाह के खिलाफ पाकिस्तान के कई दिग्गज खिलाड़ियों ने मोर्चा खोल दिया है. रमीज राजा और बासित अली जैसे पूर्व खिलाड़ी उन्हें वनडे और टी-20 की कोचिंग से हटाने की मांग कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ सेना द्वारा इमरान को अपदस्थ करने की तैयारी भी तेज हो गई है. एक तरफ कभी मिस्बाह के सहयोगी रहे शोएब अख्तर उनके कोचिंग पर सवाल खड़े कर लॉबिंग में जुटे हुए हैं, तो दूसरी तरफ इमरान के भी सहयोगी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी उनके खिलाफ लॉबिंग कर रहे हैं. कुल मिलाकर हालात ऐसे बन रहे हैं कि जिस तरह दोनों को जिनती जल्दी 'सत्ता' मिली उतनी ही जल्दी 'सत्ता' से बेदखल होने का खतरा भी मंडरा रहा है.
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